Thursday, March 28, 2024

क्या पंजाब में बनेगी नई पार्टी और कैप्टन अमरिन्दर चलेंगे पवार की राह पर?

विभिन्न कठिन दौरों से गुजरते हुये पंजाब ने सत्ता के कई उतार चढ़ाव देखे हैं। कई दौर राष्ट्रपति शासन के भी रहे ।आजादी के बाद से ही पंजाब में राजनीतिक सत्ता परंपरागत रुप से कांग्रेस और अकाली दल के बीच ही हस्तांतरित होती रही है ।

पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ समय से चल रही हलचल के परिणाम आखिरकार धरातल पर असंतुष्ट खेमे की जीत के रूप में सामने आ ही गये। अपनी कार्यशैली और महाराजा के अन्दाज के कारण पिछले काफी समय से कैप्टन अमरिन्दर अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के निशाने पर रहे। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से अच्छे सम्बंधों के कारण कैप्टन अमरिन्दर अपनी स्थिति को बार – बार संभालने में सफल होते रहे। 2017 में कांग्रेस ने 10 बरस के वनवास के बाद कैप्टन अमरिन्दर की अगुवाई में ही पंजाब में फिर से सत्ता प्राप्त की थी।

कैप्टन अमरिंदर ने अपनी सियासत की छवि के केंद्र मे अपनी राजसी विरासत  को हमेशा रखा। अपने विरोधियों को छोटा बनाने और बौना करने के मौके भी कभी नहीं चूके। अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा की परदेदारी भी नहीं की।राष्ट्रीयता और राष्ट्रसेवा की प्राथमिकता को अपने भूतपूर्व सैनिक होने से जोड़ कर बार – बार सामने भी रखते रहे। पंजाब से एक विशेष मोह के कारण कैप्टन  ने राष्ट्रीय राजनीति से इतर पंजाब प्रदेश को ही अपनी कर्मभूमि बनाये रखा पांच बार पंजाब विधानसभा के चुनाव में सफल रहे तीन बार प्रदेश कांग्रेस के मुखिया रहे ।

हाल के पंजाब के घटनाक्रम में नवजोत सिंह सिद्धू को अहमियत मिलने और खुद को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से कैप्टन अमरिंदर नाराज हैं। आने वाले 2021 के पंजाब विधानसभा के चुनाव के लिये कांग्रेस की बढ़ी हुयी चुनौतियों ,बदलते समीकरणों और किसानों के अन्दोलन से बदले हालात को देखते हुये कांग्रेस आलाकमान ने भी कैप्टन अमरिंदर की कार्यशैली को ‘आई  एम  सौरी  कैप्टन ‘ कह कर विराम लगा दिया । आलाकमान पर दबाव बनाने की रणनीति के माहिर कैप्टन अमरिन्दर को ऐसे निर्णय की उम्मीद नहीं थी। लेकिन अभी कुछ इंतजार कर रही आलाकमान कितने और समय तक कैप्टन को स्वीकार करेगी यह प्रश्न भी बना  हुआ है।

राजनीति के सफर में कैप्टन अमरिन्दर ने कई मौकों पर पार्टी हाई कमान को अनदेखा करते हुये फैसले लिये थे। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार में भारतीय फौज के स्वर्ण मंदिर में की गयी कार्यवाही के फैसले से आहत हो कर पार्टी छोड़ दी थी। हरियाणा के साथ पानी बंटवारे को लेकर भी पार्टी के मत व सुझाव के विरूध सतलज यमुना लिंक नहर समझौता रद्द कर दिया था।अपने राजनीतिक कद को पार्टी के समानांतर रखने के प्रयासों में खुले बयान देने से भी नहीं हिचके। अपने खिलाफ लगे आरोपों को कभी गंभीरता से न मानते हुये उपहास व तंज करके खारिज करना कैप्टन की  नियति  रही है। पंजाब में हुये राजनीतिक घटनाक्रम में कैप्टन अमरिन्दर के बेबाक बयानों का योगदान भी कम नहीं ।

सोनिया गांधी के सलाहकारों पर सवाल उठाना व राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा की राजनीतिक समझ को कटघरे मे खड़ा करने वाले बयान में कैप्टन अमरिन्दर की हताशा साफ दिखाई देती है। नवजोत सिद्धू को आने वाले 2021 के विधानसभा चुनावों में हराने के लिये किसी मजबूत उम्मीदवार को खड़ा करने के बयान से कैप्टन पार्टी से नाता तोड़ने के संकेत स्पष्ट कर रहे हैं।

चुनावों के करीब होने के कारण तेजी से बदलते समीकरणों में कई तरह की सरगर्मियां होने लगी हैं। अचानक विपक्षी राजनीतिक दलों को कैप्टन अमरिन्दर में संभावनाएं  दिखाई  देने लगी। भाजपा सुर बदल कर अब कैप्टन अमरिन्दर की राष्ट्रीयता की प्रशंसा करने लगी। भाजपा से बढ़ती नजदीकियों की चर्चा पहले भी कैप्टन अमरिन्दर के बारे में खूब जोर पकड़ती रही है। हालांकि राष्ट्रीयता के सवाल को कैप्टन अमरिन्दर ने नवजोत सिंह सिद्धू के बारे मे बयान दे कर खुद खड़ा किया है। राज्य को सीमावर्ती क्षेत्र बताते हुये पाकिस्तान से होने वाले खतरों की आशंका को इस समय पर फिर से गिना दिया ।

राजनीति मे 5 दशक की लम्बी पारी खेलते हुये 2017 में अपने आखिरी चुनाव की घोषणा कर चुके कैप्टन अमरिन्दर अपना कोई राजनीतिक वारिस नहीं स्थापित कर पाये। प्रदेश में पार्टी को संगठित कर एकजुट रखने में भी असफल ही सिद्ध हुये। उमर के इस पड़ाव पर एक बार फिर खुद को आजमाने की चाह से भी मुक्त नहीं हो सके। कांग्रेस में रहते हुये अब ये संभावनाएं बहुत सीमित हो गयी हैं। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये नये विकल्प की तलाश ही एकमात्र रास्ता बचता है।

बदली हुई परिस्थितियों मे कैप्टन मरिन्दर ने अपनी संभावनाओं को अभी स्पष्ट नहीं किया। भाजपा की कोशिश आपदा में अवसर खोजने की है। लेकिन एक विचारधारा से बंध कर लंबे समय तक राजनीति में खुद को बनाये रखने वाले ऐसे कद के नेता के लिये इस विकल्प से ज्यादा सशक्त एक नयी राह चुन कर अपने अनुभव और सामर्थ्य से राजनीति में एक अलग विरासत को बनाया जाना हो सकता है।

(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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