Wednesday, April 24, 2024

योगी जी! बेटी बचेगी तभी तो पढ़ेगी

महिलाओं के पक्ष में कारगर कदम उठाते हुए, उनके लिए हिंसा और भयमुक्त समाज निर्माण का दावा करने वाली सरकार के सूबे में जब एक बलात्कार पीड़ित लड़की सिस्टम से तंग आकर आत्मदाह को मजबूर हो जाए, तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हमें सरकार के दावों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेना चाहिए या सरकार से यह सवाल करना चाहिए कि आपके दावों के बावजूद बेटियां क्यों अपना जीवन समाप्त करने को विवश हो रही हैं?  उत्तर प्रदेश में यही हालात पैदा होते जा रहे हैं, एक तरफ योगी सरकार “बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ” का नारा देकर बेटियों के पक्ष में अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि बताते हुए बहुत कुछ करने का दावा करती है तो दूसरी तरफ इसी प्रदेश में बलात्कार पीड़ित बेटियां आत्महत्या करने को मजबूर हो रही है क्योंकि जिस न्यायिक व्यवस्था पर उन्हें भरोसा था, वही व्यवस्था उनके भरोसे की धज्जियां उड़ा रहा है। दस मार्च को लखनऊ विधान भवन के सामने आखिर एक रेप पीड़ित बेटी को क्यों आत्मदाह के लिए मजबूर होना पड़ा, क्या इसका जवाब है हमारे सिस्टम के पास।

यदि समय रहते वहां मौजूद पुलिसकर्मियों द्वारा उसे न बचा लिया जाता तो एक बेटी के संघर्ष का सच उसी के साथ दफन हो जाता। वह सुल्तानपुर की रहने वाली थी, वह कहती है कुछ दिन पहले एक युवक ने उसके साथ दुष्कर्म किया।  इस मामले में पीड़िता ने आरोपित और उसके दोस्त के ख़िलाफ़ जब पुलिस में एफआईआर लिखवाई तो  पुलिस ने उन्हें पकड़ा तो जरूर लेकिन जेल नहीं भेजा और थाने से ही छोड़ दिया। पुलिस के इस रवैए से आहत युवती ज्वलनशील पदार्थ लेकर विधान भवन के सामने पहुंच गई और खुद पर छिड़काव करने लगी इस बीच वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों द्वारा उसे पकड़ लिया गया। 

  यहां तो एक बेटी बच गई लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। इसी महीने की पांच तारीख को संभल जिले के बहजोई थाना क्षेत्र से खबर आती है कि एक दलित रेप पीड़िता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक साल पहले उसका रेप हुआ। आरोपी युवक को जेल भी हुई लेकिन आए दिन आरोपी के परिवार की ओर से मिल रही जान से मारने की धमकी और केस खत्म करने का दबाव इतना बढ़ता रहा कि पीड़िता अपना मानसिक संतुलन खोने लगी और एक दिन उसने मौत को गले लगा लिया। ऐसी ही दास्तान बुलंदशहर की उस 19 वर्षीय रेप पीड़िता की भी है जिसने पुलिस के रवैए से परेशान होकर अंततः आत्महत्या कर ली। घटना चार महीने पहले की है जब एक कानून की छात्रा को सुसाइड करने को मजबूर होना पड़ा। अपने पीछे वह सुसाइड नोट छोड़ गई जिसमें लिखे एक-एक शब्द ने यह ज़ाहिर किया कि एक रेप पीड़िता के लिए चुनौतियों की ऐसी दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं कि वह लड़ते-लड़ते इतनी धाराशायी हो जाएं कि वह अपराध के लिए खुद को ही दोषी मानने लगे।

एक बलात्कार उसका शारीरिक होता है और उसके बाद यह समाज और सिस्टम बार बार उसका मानसिक बलात्कार करता है। मृतका के सुसाइड नोट के मुताबिक चार युवकों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया जिसमें से एक उसका परिचित था तीन उसके दोस्त। पुलिस ने उसकी शिकायत दर्ज तो की लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे वह बेहद आहत थी। उसके पिता ने बताया कि पुलिस की निष्क्रियता से परेशान होकर उनकी बेटी ने खुदकुशी कर ली। अभी यह घटना घटी ही थी कि उसके कुछ दिनों बाद यानी बीते नवंबर में चित्रकूट से भी एक बेहद परेशान करने वाली खबर आई। यहां भी सामूहिक बलात्कार पीड़ित एक दलित किशोरी को आरोपियों के ख़िलाफ़ पुलिस के ढुलमुल रवैए के कारण आत्महत्या पर विवश होना पड़ा। 

 फेहरिस्त लंबी है, उससे गई गुना लंबा हैं इन बेटियों और इनके परिवार का संघर्ष।  जो जीवित हैं और अपने पर हुए यौन हिंसा के खिलाफ़ लड़ रही हैं उनके लिए भी राह आसान नहीं। हम यहां साफ देख सकते हैं कि घटनाएं इस हद तक घट रही हैं जहां पीड़िता के परिवार के किसी सदस्य को सरेआम मौत के घाट उतार दिया जाता है। हाथरस में एक पिता को इसलिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी के साथ हुई छेड़खानी की एफआईआर दर्ज करवाई थी। जमानत पर छूटे मुख्य आरोपी द्वारा पीड़िता के पिता को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर हत्या कर दी गई। अभी इस घटना को हुए कुछ ही दिन बीते थे कि आठ मार्च को कानपुर से भी ऐसी ही एक घटना सामने आई। अपनी नाबालिग बेटी के साथ हुई गैंगरेप की पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद एक पिता को ट्रक ने कुचलकर मार डाला। परिवार का आरोप है कि यह अकस्मात घटी घटना नहीं बल्कि हत्या है और इसमें पुलिस की भी मिलीभगत है क्योंकि आरोपी के पिता दरोगा हैं। ये घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि इस क़दर खौफ पैदा किया जा रहा है कि पीड़ित परिवार न केवल न्याय की उम्मीद छोड़ दे बल्कि शिकायत तक दर्ज करवाने की हिम्मत न कर सके। 

महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराध में दोषियों के लिए “जीरो टॉलरेंस” रखने का वादा करने वाली योगी सरकार के आंकड़ों के खेल भले ही बेहतर कानून व्यवस्था का दावा करें, महिलाओं के पक्ष में बहुत कुछ सकारात्मक करने का ढिंढोरा पीटे लेकिन तस्वीर ठीक इसके उलट है । आए दिन होने वाली गैंगरेप, यौन हिंसा, की घटनाएं हमें यह बताती हैं कि सच वह नहीं जिसे बताया जा रहा है बल्कि वह है जिसे छुपाया जा रहा है यानी अपराधी बैखौफ होकर ऐसे कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं, पुलिस भी बलात्कार, यौन हिंसा, छेड़खानी जैसे गंभीर अपराधों पर न केवल काबू करने में नाकाम साबित हो रही है बल्कि पुलिस की घोर लापरवाही बलात्कारियों के हौसले बुलंद कर रही है।

ऐसे असंख्य उदाहरण हमारे सामने हैं जहां पुलिस द्वारा दोषियों के खिलाफ़ त्वरित कार्रवाई की बजाय पीड़ित पक्ष को ही एफआईआर तक दर्ज करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। पिछले दिनों गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे थे कि सरकार ने संगठित अपराध को पूरी तरह खत्म कर दिया है और यदि कहीं कोई अपराधी समाज के लिए सुरक्षित माहौल में बाधा डालता है तो उसको कुचलने के लिए प्रशासनिक खुली छूट है और उनके इस तरह अपनी सरकार की पीठ थपथपाने से ठीक दो दिन पहले यानी दो मार्च को गोरखपुर में ही एक युवती का गैंगरेप होता है अपने पर हुई इस हिंसा के खिलाफ़ जब युवती ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाना चाही तो इस मामले असंवेदनशील रवैया अपनाते हुए पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की लेकिन जब रेप का वीडियो वायरल हुआ तब जाकर बड़े अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद तीन मार्च को एफ आई आर दर्ज हुई। 

केवल मार्च भर की ही हम बात करें तो अभी तक दर्जनों रेप, गैंगरेप की घटनाएं हमारे सामने आ चुकी हैं और यह हालात तब है जब योगी सरकार प्रदेश की महिलाओं, बालिकाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन के लिए “मिशन शक्ति” चला रही है और इस मिशन की बदौलत राज्य में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली हिंसा पर कमी का दावा भी कर रही है। सरकार ने इस मिशन को शारदीय नवरात्र से लेकर वासंतिक नवरात्र तक चलाने का फैसला लिया है यानी पिछले साल 17 अक्तूबर से शुरू हुआ यह अभियान 13 अप्रैल तक चलेगा। इसकी सफलता को देखते हुए सरकार अब इसके दूसरे चरण की भी तैयारी कर रही है।

हाल ही में महिला दिवस के मौके पर सरकार ने महिला अपराधों की विवेचना में तेजी लाने के लिए हर जिले में रिपोर्टिंग पुलिस चौकी खोलने का फैसला लिया जिसका नेतृत्व एडिशनल पुलिस अधीक्षक करेंगे। सरकार कहती है कि इस मिशन शक्ति के तहत वह राज्य के 75 जनपदों, 521 ब्लॉकों, 59,000 पंचायतों, 630 शहरी निकायों और 1,535 थानों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के ऐसे कार्यक्रम संचालित कर रही है जहां उनके भीतर यह विश्वास पैदा किया जा रहा है कि वे खौफ के साए में न जिएं क्योंकि सरकार उन्हें और उनके सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए कारगर कदम उठा रही है। 

अभियान के पूरे होने में अब एक महीने से भी कम समय बचा है। जब से मिशन शक्ति की शुरुआत हुई है तब से अब तक इसकी सफलताओं को गिनाने में सरकार जुट गई है। सरकार कहती है इस मिशन शक्ति के तहत महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराध खासकर यौन हिंसा, रेप, गैंगरेप में कमी आई है, अब महिलाएं नहीं बल्कि अपराधी, बलात्कारी खौफजदा हैं, उनके  खिलाफ कठोर कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है, तो वहीं अभियोजन विभाग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आशुतोष पांडेय कहते हैं महिला अपराधों के मद्देनजर अपराधियों को सजा दिलाने के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। उनके मुताबिक राज्य में करीब 55% ऐसे अपराधी हैं जिन्हें अपराध के बाद अब तक सजा मिल चुकी है। यह सरकार और प्रशासन की अपनी दलीलें हैं लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कुछ और ही बताते हैं। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में अभी भी पहला स्थान देश में उत्तर प्रदेश का ही है। साल 2019 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में करीब 15 फीसद अपराध उत्तर प्रदेश में हुए। 

जब मिशन शक्ति की शुरुआत सरकार ने की थी तो प्रदेश की महिलाओं को यही संदेश दिया गया था कि आप खुद को असुरक्षित महसूस न करें। इस मिशन के तहत महिलाओं के लिए एक ऐसा भयमुक्त माहौल बनाने की ओर कदम बढ़ाने का सरकार का वादा था जहां महिलाएं नहीं बल्कि अपराधी, बलात्कारी खुद को असुरक्षित महसूस करें। इस मिशन के तहत पुलिस द्वारा पीड़ित पक्ष को हरसंभव मदद का भी भरोसा दिलाया गया था लेकिन तस्वीर ठीक इसके विपरीत हमें दिखाई देती है। आए दिन अखबारों के पन्ने यौन हिंसा, रेप, गैंगरेप, छेड़खानी की खबरों से पटे रहते हैं। विडंबना तो यह है कि ज्यादातर मामलों में पुलिस शिकायत तक दर्ज नहीं कर रही जिसका परिणाम यह हो रहा है कि पीड़ित को आत्मदाह पर मजबूर होना पड़ रहा है और उससे भी भयावह तस्वीर यह है कि पुलिस द्वारा दोषियों के खिलाफ़ कोई सख्त कार्रवाई न करने के चलते न जाने कितनी बेटियां अपनी जान दे चुकी हैं।

पीड़ित पक्ष को डराने धमकाने, केस वापस लेने, जान से मार देने जैसे सच ही हमारे सामने नहीं हैं केस दर्ज करवाने के चलते सरेआम मार देने तक के मामलों को हम देख रहे हैं तब यह कैसे मान लिया जाए कि महिलाओं के पक्ष में बहुत कुछ बेहतर हो रहा है । यही योगी सरकार अपने शुरुआती कार्यकाल में एंटी रोमियो स्क्वैड भी लाई थी लेकिन वह भी अब कहीं नहीं दिख रहा। महिलाओं के साथ बढ़ती छेड़छाड़ की घटनाओं को देखते हुए यूपी सरकार और पुलिस इससे पहले भी कई अभियान चला चुकी है लेकिन इन अभियानों की सफलता और गंभीरता तब धाराशाई होती नजर आती है जब लगातार हम   महिला हिंसा की घटनाओं में इजाफा देखते हैं। 

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल लखनऊ में रहती हैं।)

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