झारखंड। उल्लेखनीय है कि मजदूर संगठन कई वर्षों से एक राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून की मांग करते रहे थे। इस मुद्दे को लेकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर राष्ट्रीय राजधानी तक के स्तर पर सार्वजनिक चर्चा की गई थी। ऐसे में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून के प्रारूप पर चर्चा हुई और जागरूक नागरिकों ने 1 सितम्बर 2004 को एक प्रारूप बनाया। जो 7 सितंबर 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया।
हालांकि, इसे 2 फ़रवरी, 2006 को महेंद्रगढ़ और सिरसा ज़िलों में शुरू किया गया था। जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के नाम से जाना जाता है।
यह योजना हरियाणा के दो जिलों महेंद्रगढ़ और सिरसा की सभी ग्राम पंचायतों में शुरू की गई थी। इसे 1 अप्रैल, 2008 तक पूरे देश में लागू कर दिया गया था।
यह एक रोज़गार गारंटी योजना है।
इस योजना के तहत हर वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को 100 दिनों का रोज़गार देने का प्रावधान है, उस परिवार में चाहे जितने भी वयस्क सदस्य हों। सभी को मनरेगा के तहत काम पाने के लिए जॉब कार्ड बनवाना होता है।
मनरेगा मजदूरों और मनरेगा से जुड़े संगठनों द्वारा 19 वें मनरेगा दिवस के अवसर पर 2 फरवरी को देश के कई भागों में कार्यक्रम किए गए।
इस अवसर पर झारखंड में भी मनरेगा दिवस के रूप में 19 वें साल पर मनरेगा मजदूरों और मनरेगा से जुड़े संगठनों ने कई जिलों में कार्यक्रम किए।

उक्त कार्यक्रम मुख्य रूप से राज्य के लातेहार जिला अंतर्गत मनिका प्रखण्ड और पश्चिमी सिंहभूम ज़िला के सोनुआ प्रखंड में बड़े धूमधाम से मनाया गया और कार्यक्रम में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा में लादी गई कई विसंगतियों पर चर्चा की गई और उन विसंगतियों को खत्म करने की मांग की गई।
लातेहार के मनिका में जहां ग्राम स्वराज्य मजदूर संघ एंव नरेगा सहायता केंद्र के द्वारा रैली व प्रखण्ड परिसर में जागरूकता सम्मेलन किया गया। वहीं पश्चिमी सिंहभूम के सोनुआ प्रखंड के नीलईगोट मैदान एवं पोड़ाहाट (गुटूसाई) में खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम द्वारा आयोजित जन सभा कर मनरेगा पर हो रहे व्यापक हमलों पर चर्चा की गई।
खबर के मुताबिक मनिका में आयोजित कार्यक्रम में एक रैली मनिका हाई से शुरू होकर प्रखण्ड कार्यालय परिसर में पहुंच कर सम्मलेन में तब्दील हो गई। रैली में मनिका के विभिन्न गांवों से सैकड़ों की संख्या में मनरेगा मजदूर ढोल, नागाड़ा और मनरेगा से सम्बंधित तख्ती के साथ शामिल हुए, और “हर हाथ को काम दो, काम का पूरा दाम दो” के नारों के साथ शामिल हुए।

मनरेगा जागरूकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए नरेगा वांच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के लागू हुए आज 19 वर्ष पूर्ण हो गये हैं और बीते लगभग 2 दशकों में इस महत्वकांक्षी योजना से गांव में अनेक टिकाऊ परिसंपति सृजित हुए हैं।
साथ ही हम मजदूरों ने काम के अधिकार का लाभ उठाया है। कई परिवार ऐसे हैं जिनके कुएं, तालाब, आम बागवानी, पशु शेड निर्मित हुए हैं। उन परिवारों ने दूसरी और कई लोग तीसरी फसलों का लाभ भी लेने लगे हैं।
लेकिन हाल के कुछ वर्षों से मनरेगा में अत्यधिक तकनीकों के इस्तेमाल, मजदूरों को वगैर कोई जानकारी दिए उनके जॉब कार्ड को रद्द कर देना, कम मजदूरी दर, लगातार केन्द्रीय बजट आवंटन में कटौती, ग्राम पंचायतों की संवेदनहीनता जैसी अनेक विसंगतियां हैं। जिसके कारण हम मजदूरों की परेशानियां बढ़ी हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि “मनरेगा में लाई गई इन विसंगतियों में नेशनल मोबाइल मॉनीटरिंग सिस्टम (NMMS), आधार आधारित भुगतान प्रणाली, ड्रोन से मजदूरों की निगरानी जैसे तकनीकी बाधाओं को तत्काल दूर करने की गारंटी की जाए।”

ग्राम स्वराज्य मजदूर संघ के भूखन सिंह ने कहा कि “मनरेगा मजदूरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण कानून हैं, जिस तरह से मजदूरों ने मनरेगा कानून को लड़ कर लिया हैं, आज उसे बचाने के लिए संघर्ष करने की जरुरत है। क्योंकि मनरेगा बिचौलियों और तकनीकी विसंगतियों के गिरफ्त में चली गई है, जिसे बचाने के लिए मनरेगा मजदूरों को संघर्ष करना जरुरी हैं।”
उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि “मनरेगा में मजदूरी बहुत ही कम हैं, उसे बढ़ा कर प्रति दिन 800 रूपये किया जाये, इससे मजदूरों को सम्मान जनक मजदूरी सुनिश्चित हो सके।”
उन्होंने आगे कहा कि “2009 में देश का पहला नरेगा लोक अदालत लगा था जिसमें कोपे व जेरुआ के 72 मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता मिला था।”
सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिलीप रजक ने कहा कि “राज्य के विभागीय मंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मनरेगा के अन्तर्गत चलाई जा रही योजना को ग्राम सभा के सहयोग व ग्राम सभा कर जंगल के वन भूमि में योजना लिया जाए, इससे ग्रामीण व मजदूरों को आजीविका के लिए वरदान साबित होगा।”
सम्मलेन में बोलते हुए ग्राम स्वराज्य मजदूर संघ की महिला नेत्री सुखमनी देवी ने कहा कि “मनरेगा में चल रही सभी योजनाओं में मेठ को कार्यादेश दिलवाना जिला प्रशासन सुनिश्चित करें, साथ ही हर सप्ताह में सोमवार और गुरुवार को रोजगार दिवस पंचायत भवन में करवाना जिला प्रशासन अनिवार्य करें, ताकि मजदूरों को नरेगा सम्बंधित कामों के लिए प्रखण्ड कार्यालय का चक्कर न लगाना पड़े।”
सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए नेशनल कैम्पेन दलित ह्यूमन राइट्स के राज्य संयोजक मिथिलेश कुमार ने कहा कि “एकल महिला, एकल पुरुष, दिव्यांग परिवारों के मामले में प्रति व्यक्ति को साल में 300 दिन का रोजगार की गारंटी की जाए तथा सभी मनरेगा मजदूरों को केंद्र एवं राज्य सरकारों के स्तर से चलाए जा रहे अन्य सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़े जाने की गारंटी की जाए।

इसके साथ ही साथ मनरेगा क्रियान्वयन जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र के अधीन यथा काम मांगने पर मजदूरों को काम देना, मजदूरी का समय पर भुगतान करना, लंबित बेरोजगारी भत्तों का ससमय भुगतान, नियमित सोशल ऑडिट, शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई जैसे प्रशासनिक कदमों को हर हाल में सुनिश्चित किया जाए।”
उन्होंने कहा कि “केंद्र सरकार मनरेगा में बजट में लगातार कटौती कर साजिश एक के तहत मनरेगा को बंद करना चाहती है, जिसे सीधे तौर पर दलित और आदिवासी सामुदाय के मजदूर प्रभावित हो रहे हैं।”
सभा को संबोधित करते हुए नरेगा सहायता केन्द्र के पचाठी सिंह ने कहा कि “राज्य सरकार अपने राज्य मद से प्रत्येक वित्तीय वर्ष वैसे मजदूरों को जो दिसंबर माह तक 100 दिन का रोजगार पूर्ण कर लेते हैं, प्रति कार्ड अतिरिक्त 50 दिन रोजगार देने की गारंटी दें, साथ ही मनरेगा कर्मियों द्वारा विगत वर्षों में अनधिकृत तरीके से निरस्त किए गए रोजगार कार्डों को तत्काल कैंप मोड में पुनर्बहाल करने का निर्देश जारी करे।”

सभा को संबोधित करते हुए सामाजिक अंकेक्षण इकाई के DRP अश्रिता तिर्की ने कहा कि “मनरेगा के अन्तर्गत योजना का जो प्लान किया जा रहा है, उस योजना को ग्राम सभा के द्वारा मिलकर जिला व प्रखण्ड प्रशासन को करना चाहिए और मनरेगा के तहत चलाई जा रही योजना के बारे में व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार करना चाहिए।
इस अवसर पर सीमा देवी,पल्लवी कुमारी, सरांग, महावीर परहिया, कोमल सिंह, बिनेशवर सिंह, कविता देवी, पानपती देवी, ननकू सिंह, दीपू सिंह, बब्लू चौधरी, श्रीराम प्रजापति सहित दर्जनों मनरेगा मजदूरों व कार्यकर्ताओं ने कहा कि मनरेगा में विचौलिया व तकनिकी जटिलता को ग्राम स्वराज्य मजदूर संघ इसका विरोध करेगा।
झारखंड नरेगा वॉच के आह्वान पर मनरेगा दिवस के अवसर पर पश्चिमी सिंहभूम ज़िला के सोनुआ प्रखंड के मज़दूरों ने नीलईगोट मैदान एवं पोडाहाट (गुटूसाई) में खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम द्वारा आयोजित जन सभा में मनरेगा पर हो रहे व्यापक हमलों और तकनीकी विसंगतियों पर चर्चा की और विरोध प्रदर्शन किया।

सभा में मज़दूरों ने पर्याप्त काम न मिलने और समय पर भुगतान न मिलने की जानकारी दी। दूसरी ओर न काम करने वाले लोगों पर मस्टर रोल निकाल कर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है, इसका खुलासा किया। मजदूरों ने कहा कि कानून लागू होने के 19 साल बाद भी समय पर भुगतान मिलना मज़दूरों के लिए एक सपने से कम नहीं है। सरकार द्वारा मज़दूरों से बंधुआ मज़दूरी करवाई जा रही है। प्रखंड व ज़िला में मनरेगा में व्यापक ठेकेदारी चल रही है।
केन्द्र की मोदी सरकार ने पुनः मनरेगा के लिए कम बजट का आवंटन कर साफ़ कर दिया कि वे ग्रामीण मज़दूरों के रोज़गार की जीवन रेखा को ख़त्म करने पर तुली हुई है। मनरेगा की तुच्छ मज़दूरी दर, जो कि राज्य के न्यूनतम मजदूरी दर से बहुत कम है, भी सरकार की मज़दूर विरोधी मंशा को दर्शाती है।
सरकार ने 2023-24 में हाजरी के लिए एक मोबाइल एप-आधारित व्यवस्था NMMS ( National Mobile Monitoring System) को अनिवार्य किया है, जिससे मज़दूरों के काम और भुगतान के अधिकार के उल्लंघन के साथ-साथ व्यापक परेशानी हो रही है। पिछले कुछ सालों में मनरेगा को ऐसी तकनीकी जाल में फंसाया गया है कि मज़दूरों के लिए पारदर्शिता न के बराबर हो गयी है एवं स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही भी ख़त्म हो गयी है।

मजदूरों ने साफ कहा कि ऐसा लगता है कि मोदी सरकार केवल मनरेगा नहीं बल्कि मनरेगा मज़दूरों को ही ख़त्म करना चाहती है।
अवसर पर सोनुआ प्रखंड के मनरेगा मज़दूर, खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम और झारखंड नरेगा वॉच की ओर से केंद्र सरकार से मांग की गयी कि मनरेगा को ख़त्म करने की न सोचे एवं मनरेगा को पूर्ण रूप से लागू करे व निम्न मांगों पर कार्यवाई करे:-
■ ऐप-आधारित उपस्थिति प्रणाली (NMMS) को रद्द किया जाए।
■ मनरेगा मज़दूरी दर को सातवें वेतन आयोग के सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम मज़दूरी दर (महंगाई दर को जोड़ते हुए) के बराबर (800रु प्रति दिन) किया जाए।
■ किसी भी परिस्थिति में 7 दिनों के अन्दर मज़दूरी भुगतान सुनिश्चित किया जाए। सभी लंबित भुगतान का मुआवज़ा सहित भुगतान किया जाए।
■ मनरेगा से तकनीकी प्रणाली को हटाया जाए एवं पहले के अनुसार विकेंद्रीकृत मैन्युअल व्यवस्था लागू की जाए।
■ सामाजिक अंकेक्षण व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
उक्त आयोजन में मज़दूरों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम के प्रतिनधि शामिल थे। कार्यक्रम में संदीप प्रधान, तरावती नायक, बोलेमा जोको। कौशल्या हेंब्रम, मानकी हेम्ब्रोम, सुनीता बैंकिरा, ललिता मांझी समेत कई लोगों ने अपनी बात रखी।
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)