एक दौर के भाजपा आईटी सेल द्वारा पप्पू नाम से प्रचारित राहुल गांधी ने लगातार झूठ और अपमान जनक सरकार की बातों को आज जिस तरह झुठलाया है और अपनी प्रतिभा और तार्किकता से लज्जित किया है। वह ऐतिहासिक सच्चाई बन चुकी है। ख़ामोशी से बिना आक्रामक हुए उन्होंने जिस शालीन और लोकतांत्रिक रवैए को अख़्तियार किया उसका कोई सानी नहीं।
आज पीएम मोदी उनकी मांगों पर जिस तरह यू-टर्न ले रहे हैं यह कम नहीं है। बिकाऊ चुनाव आयोग को भी उन्होंने झुकने के लिए मज़बूर किया है। हालांकि उनकी मुखर होती छवि से सरकार आहत है और उन्हें बराबर कभी नागरिकता के नाम पर तो कभी ईडी या उनके भाषणों के नाम अदालत में घसीट कर परेशान करती रहती है।
राहुल ने अपनी किशोरावस्था से जो कड़वे घूंट पिए हैं उसने उन्हें अकूत ताकत और राजनैतिक ज्ञान प्रदान किया है वे महात्मा गांधी के पथ के सच्चे राही हैं और नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू के शांति प्रियता के उपासक हैं। वे दादी की विदेश नीति के प्रशंसक भी हैं। उनमें अपनी मां सोनिया जी और पिता राजीव जी जैसी राजनीति में सत्ता प्रमुख बनने की आतुरता भी नहीं है। वे सच्चे देशभक्त हैं और देश को बर्बादी से बचाने के लिए लगातार संघर्षरत हैं। संसद में प्रतिपक्ष नेता के रूप में राहुल ने निश्चित नई इबारत लिखी है। वे अपने दादा फिरोज़ गांधी की तरह अपनी सरकार से भी बराबर सवाल करते रहे हैं। उनके पास अपनी पीढ़ियों की विरासत है जो उन्हें मज़बूत बनाती है।
सबसे अहम बात ये है कि राहुल ने अपनी उम्र के बहुमूल्य समय को देश को समझने में खर्च किया। भारत यात्रा के दौरान विभिन्न प्रदेशों के लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं को जाना। आज भी वे आम लोगों से मिलने चुपचाप निकल ही पड़ते हैं जो उन्हें एक परिपक्व नेता बनाने में मदद करता है।
इंडिया गठबंधन के गठन और उनके कतिपय नेताओं के सियासत प्रेम ने उन्हें नए सिरे से सोचने के लिए बाध्य किया है। अपनी पार्टी के स्लीपर सेल और पूर्व के बगावती कांग्रेस नेताओं के ज़रिए उन्होंने राजनीति की पाठशाला से भी बहुत कुछ सीख लिया है। वे बेहिचक सत्ता शीर्ष से दूर रहकर संविधान की किताब पकड़े उसको बचाने का आह्वान कर रहे हैं। यह वही पुस्तक है जो अमीरों- गरीबों, ऊंच-नीच, जात-पात और धर्मनिरपेक्षता की बात के साथ सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा का अवसर प्रदान करने की बात करती है। वहीं लोकतांत्रिक चुनाव में सभी को शामिल कर तानाशाही सोच को समाप्त करती है। जो भारतीय दर्शन और संस्कृति का एक प्रमुख अंग है।
राहुल गांधी अपने देश में जिस तरह झूठ और फरेबी में पारंगत तानाशाह सरकार से बराबर जूझते हुए निडर रहकर उसका पर्दाफाश कर रहे हैं इतना जबरदस्त संघर्ष आज तक किसी विपक्षी नेता को नहीं करना पड़ा। वे इसलिए निडरता और मोहब्बत का पैगाम देते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। यही वजह कि छल व कपटपूर्ण चुनौतियां भी उन्हें डिगा नहीं सकीं।
अपने इन्हीं अनमोल गुणों की वजह से आज वे देश के सबसे काबिल नेताओं में शुमार हैं। उनकी इसी राष्ट्रीय सद्भावना के आगे भारत सरकार को भी जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे पर झुकना पड़ा। राहुल गांधी ने अपने भाषणों में साफ़ कहा था कि जब उनकी सरकार आएगी वे सबसे पहले जातिगत जनगणना कराएंगे जिससे यह पता चल सके कि सरकार और विभिन्न संस्थाओं में ओबीसी, दलित की कितनी भागीदारी है? बराबर वे इसकी विषमता के आंकड़े पेश करते रहे हैं। इसका श्रेय कभी भी भाजपा को नहीं मिलने वाला।
इस मसले को लेकर भाजपा सरकार ने राहुल गांधी के एक बड़े हथियार को ऐसा लगता है हथिया लिया है। लेकिन उनकी बात सुनी गई उसे समझा गया ये कम नहीं है। ये बात और कि जाति-गणना किस तरह के शैडयूल्ड में होती है। उस पर भी उनकी पैनी नज़र है।
बहरहाल आज राहुल अपने तमाम उन विचारों के लिए जाने जाते हैं जो उन्हें एक सशक्त चिंतक बनाते हैं। याद कीजिए, उन्होंने नोटबंदी और आतंकी सफाए पर साफ़ कहा था कि यह अपने कालेधन को बचाने का तरीका था। यह सही साबित हुआ। इसी तरह जब तीन कृषि कानून बनाकर उनका आंदोलन समाप्त किया गया तब भी राहुल ने इसे छल कहा था। किसान आज भी इसे झेल रहे हैं।
जब मोदी जी मध्यप्रदेश सरकार गिराने और नमस्ते ट्रम्प करने में लगे थे।उससे पूर्व राहुल गांधी ने कोरोना प्रकोप से सरकार को चेताया था। यदि उस समय ध्यान दिया गया होता तो इतनी जनहानि नहीं होती। चीन को गुजरात में जब झूला झुलाया गया उसकी मनमानी पर बात नहीं की। जबकि उसने लद्दाख की हमारी ज़मीन पर पूरा गांव बसा लिया। चीन ने नेहरू को धोखा दिया और वह आज अमेरिका के साथ खड़ा है। राहुल का तब विरोध करना उनकी दूर दृष्टि का परिचायक है।
वस्तुत: राहुल गांधी ऐसे नेता हैं जो कभी अपनी कही बात से पीछे नहीं हटते वे कभी झूठ नहीं बोलते। जुमला नहीं फेंकते। नफ़रत नहीं फैलाते। राहुल गाँधी को अच्छे से पता है कि कब सरकार का विरोध करना है और कब सरकार के साथ डट कर खड़ा होना है।
कुल मिलाकर राहुल गांधी जैसा स्थितिप्रज्ञ, कर्मठ, शांत, उत्साही और जुझारू नेता दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा है। आज तो राहुल का है ही कल भी राहुल का होगा क्योंकि देश की तमाम समस्याओं के हल का अध्ययन सिर्फ़ और सिर्फ़ राहुल की टीम के पास है। ज़िंदाबाद। उनके संघर्ष को सलाम।
(सुसंस्कृति परिहार का लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)