मध्यप्रदेश भाजपा: एक अनार और छह बीमारों के बीच घोड़ा पछाड़ युद्ध

अनार को स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इसका नियमित सेवन खून की मात्रा बढ़ाता है, दिमाग को तरोताजा रखता है और बीमारियों को दूर भगाता है। लेकिन समस्या तब शुरू होती है, जब अनार केवल एक हो और उसके दावेदार कई हों। तब यह अनार जी का जंजाल बन जाता है।

यही हाल मध्यप्रदेश का है। मुख्यमंत्री का पद एक है, लेकिन दावेदार अनेक। आज भाजपा का हर बड़ा नेता इस पद को हथियाने के लिए उत्सुक है। जिसके पास यह पद होता है, उसकी सारी बीमारियां छूमंतर हो जाती हैं। जिसे इस पद से हटाया जाता है, उसका शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। इसलिए मध्यप्रदेश की रामनामी सरकार के लिए मुख्यमंत्री का पद रामबाण औषधि है।

विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जिस तरह हटाया गया, वह पूरी जनता जानती है। चुनाव में भाजपा को अपने बल-बूते प्रचंड जीत दिलाने वाले चौहान को बेआबरू होकर कुर्सी छोड़नी पड़ी। प्रधानमंत्री मोदी के एक लिफाफे, जिसमें नए मुख्यमंत्री का नाम लिखा था, ने उनकी कुर्सी छीन ली। न उन्हें और न ही उनके समर्थकों को विद्रोह करने या हाईकमान को ललकारने का मौका मिला।

प्रदेश के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय को भी मन मारकर मोहन यादव के समर्थन में हाथ उठाना पड़ा, जबकि विधानसभा चुनाव से पहले उनकी नजर इस कुर्सी पर थी। मोदी के उस लिफाफे ने उनकी पुख्ता दावेदारी को मिट्टी में मिला दिया। लिफाफे का मजमून सामने आते ही कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर भी कहीं के नहीं रहे।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को केंद्र में रखकर उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और मंत्री विजय शाह ने जो बयान दिए, उनसे भाजपा की छवि धूमिल हुई। दोनों नेताओं ने “सरदार शाबाशी देगा” के अंदाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज करने के लिए ऐसे बयान दिए, ताकि पार्टी में उनका कद बढ़े। संघ-भाजपा भी ऐसा ही चाहता है। लेकिन जनता के बीच इन बयानों का उल्टा असर हुआ। भाजपा की स्थिति “न उगलते बन रहा, न निगलते बन रहा” वाली हो गई। ये दोनों नेता भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं और मोहन यादव के जाने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन तब तक वे उनकी आंखों की किरकिरी बने हुए हैं।

शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, जगदीश देवड़ा, विजय शाह-इन सभी गुटों को साधते हुए मोहन यादव घनचक्कर बने हुए हैं। लेकिन एक और कद्दावर दावेदार हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो भले ही केंद्र में संचार मंत्री हैं, लेकिन राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव लगभग खत्म हो चुका है। वे अपने समर्थक विधायकों को छोटी-मोटी पोस्ट तक दिलाने में असमर्थ हैं। उनकी नाराजगी इस कदर है कि भाजपा के पचमढ़ी शिविर से उनके समर्थक विधायक पूरी तरह गायब रहे। यह तब हुआ, जब शिविर का उद्घाटन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने और समापन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया था।

बताया जाता है कि इस शिविर में ‘घोड़ा पछाड़’ नाम का एक सांप निकल आया, जिसने सनसनी मचा दी। इसे घोड़ा पछाड़ इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह घोड़े-जैसी तेज रफ्तार से दौड़ता है। यह सांप डेढ़ से दो मीटर लंबा होता है। वन विभाग के सर्प-मित्रों ने इसे पकड़कर दूर छोड़ दिया, लेकिन इसकी अनुपस्थिति से शिविर की सनसनी में कोई कमी नहीं आई।

मीडिया की खबरों के अनुसार, शिवराज सिंह चौहान ने अपने गृह क्षेत्र बुदनी से पदयात्रा शुरू की है, ताकि अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखें। अंदरखाने भाजपा सुलग रही है। कोई इस आंच में हाथ ताप रहा है, तो कोई रोटी सेंक रहा है। मध्यप्रदेश भाजपा में घोड़ा पछाड़ युद्ध जारी है। सब एक-दूसरे को काटने पर तुले हैं, और मोहन यादव इस रणक्षेत्र में अपना पद बचाने की जुगत में हैं। लेकिन पद साधना एक बात है और सरकार चलाना दूसरी। क्या आप सोचते हैं कि मध्यप्रदेश में वाकई सरकार चल रही है?

(संजय पराते अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं)

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