ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के हालिया बने फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर कोई पहली बार अमेरिका के ह्वाइट हाउस पहुंचे थे जहां उनकी खूब आवभगत हुई थी। अमेरिका तो अपने हिसाब से तरह-तरह का जलसा अक्सर करता रहा है। कुछ व्यावसायिक लाभ के लिए तो कुछ दिखावे के लिए। और कभी-कभी दुनिया को दिखाने के लिए भी। यह भी सच है कि पाकिस्तान की सच्चाई को अमेरिका लम्बे समय से जानता है। और अमेरिका यह भी जानता है कि वह सिर से लेकर पांव तक आतंकवाद की चासनी में डूबा हुआ है।
अमेरिका यह भी जानता है कि भारत के सामने पाकिस्तान की कोई हस्ती नहीं और अमेरिका यह भी जानता है कि हालिया ऑपरेशन सिंदूर अगर सप्ताह भर भी चल जाता तो पाकिस्तान भले ही परमाणु ताकत होने की बात करता हो, भारत उसका नक्शा ही बिगाड़ देता और पाकिस्तान को कई खंडों में भी बांट देता। लेकिन अमेरिका को यह भी पता है कि तेजी से आगे बढ़ता भारत आज भी शांति को मानता और पहचानता है। वह युद्ध नहीं चाहता। भारत सबके साथ मिलकर रहना चाहता है। भारत की कोई विस्तारवादी नीति नहीं है और न ही वह अपने पड़ोसियों के साथ कभी कोई दुर्व्यवहार ही करता है।
लेकिन अमेरिका के मन में एक कसक तो आज भी है। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की लड़ाई और फिर बांग्लादेश के निर्माण में भारत की भूमिका और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कूटनीति और जिद के सामने अमेरिका का शर्मिंदा होना, अमेरिकी शासन व्यवस्था को आज भी याद है और अमेरिका के पेंटागन के दस्तावेज में भी यह सब दर्ज है कि कैसे इंदिरा गाँधी ने अमेरिका के सातवें बेड़े को चुनौती दी थी और उसके पीछे रूस के घातक बेड़े को खड़ा कर दिया था।
लगता है ट्रंप को यह सब याद है। तभी वह भारत के साथ आज भी भारत की ताकत को देखते हुए पीएम मोदी से दोस्ती और मस्ती की बात तो करता है लेकिन सच यही है कि अमेरिका को भारत से बदला लेना भी है। वह बदला चाहे जिस रूप में हो। वह दिखाना चाहता है कि दुनिया का वही सुपर पावर है और वह जब चाहे किसी को बर्बाद कर सकता है, झुका सकता है और अपने पाले में ला भी सकता है।
लेकिन भारत की नीति ही कुछ ऐसी रही है जो नेहरू के काल से आज तक लगभग एक जैसी चली आ रही है और अमेरिका को कोई बड़ा दांव खेलने को नहीं मिल रहा है। लेकिन पाकिस्तान पर वह बार-बार दांव खेलता है और पाकिस्तान अमेरिका के हर दांव में फंसता चला जाता है। उसके पास कोई चारा भी तो नहीं है। अभी हाल में ही पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और एडीबी से जो बड़े पैमाने पर कर्ज मिले हैं और जिसका विरोध भारत हमेशा करता रहा है, वह सब अमेरिका के रहमोकरम पर ही तो संभव हो पाया है।
1971 में भी अमेरिका ने पाकिस्तान का ही साथ दिया था। पहले तो अमेरिका ने इंदिरा गाँधी का अपमान किया और बाद में उसने भारत के खिलाफ पाकिस्तान के समर्थन में अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में खड़ा कर दिया ताकि भारत को तबाह कर दिया जाए। लेकिन इंदिरा गाँधी के इरादे के सामने अमेरिका का कुछ नहीं चला और भारत के समर्थन में रूस ने अमेरिकी बेड़े के पीछे अपना परमाणु युक्त घातक बेड़ा खड़ा कर दिया और अमेरिका को चेतावनी दी कि वापस चले जाओ वरना डुबो दिए जाओगे।
समुद्र में घिरा सातवां बेड़ा अंततः वापस चला गया और फिर भारत ने पाकिस्तान पर विजय हासिल किया और बांग्लादेश का निर्माण कर दिया। अमेरिका के मन में आज भी यह टीस बरकरार है। अगर अमेरिका को भारत से व्यापारिक लाभ की बात नहीं होती तो शायद ही भारत के साथ आज भी कथित मधुर सम्बन्ध होते, आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता।
खैर ये एक लम्बी कहानी है और अमेरिका की नीति और रीति की बात है। दुनिया बदल चुकी है। और भारत भी पहले से ज्यादा सबल हो चुका है। भारत न किसी के पक्ष में है और न ही विपक्ष में। लेकिन पाकिस्तान की पूरी राजनीति आज भी भारत के मुखालफत पर ही टिकी है। और यह सब दुनिया भी जानती है।
जनरल मुनीर के लिए हालिया समय में अमेरिका ने रेड कारपेट क्यों बिछाया इस पर हम बात करेंगे लेकिन पहले इसी राष्ट्रपति ट्रंप के उस बयान को सामने रखने की ज़रूरत है जब उन्होंने पाकिस्तान के लिए क्या-क्या नहीं कहा था।
विश्लेषकों का कहना है कि गर्मजोशी से मुनीर के स्वागत में चौंकाने वाली बात यह है क्योंकि यह अतीत में पाकिस्तान के बारे में वाशिंगटन द्वारा कही गई बातों से कितना अलग है। ट्रम्प ने स्वयं पाकिस्तान को एक ऐसा देश बताया था जो “झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं देता” तथा उस पर अरबों डॉलर की अमेरिकी सहायता लेने के साथ-साथ “आतंकवादियों को पनाह देने” का आरोप लगाया था। फिर भी, ट्रंप दोपहर के भोजन पर पाकिस्तान के शीर्ष जनरल की प्रशंसा कर रहे थे। जाहिर है इसके पीछे कोई बड़ी बात छुपी है।
अब थोड़ा तथ्यों पर नजर डालने की ज़रूरत है। ‘मैं पाकिस्तान से प्यार करता हूं’, अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के अपने दावों को दोहराते हुए कहा। व्हाइट हाउस ने कहा कि असीम मुनीर को आमंत्रित किया गया क्योंकि उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने का प्रस्ताव रखा था। अमेरिका ने पाकिस्तान के शक्तिशाली सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल असीम मुनीर के लिए रेड कार्पेट बिछाया है, जिसका मुख्य आकर्षण राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ कार्य लंच था, जिन्होंने उन्हें शांतिदूत के रूप में सराहा।
लेकिन व्हाइट हाउस ने पूरे लंच में एक अजीबोगरीब बात जोड़ दी जब एक प्रेस अधिकारी ने प्रेस को बताया कि मुनीर को यह निमंत्रण तब मिला जब उन्होंने प्रस्ताव रखा कि ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया जाना चाहिए। इसके बाद, इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि ट्रंप मोदी और मुनीर को लंच पर एक साथ फोटो खिंचवाने के लिए लाना चाहते थे, जिससे पुरस्कार पाने की उनकी लंबे समय से चली आ रही महत्वाकांक्षा को बल मिले।
यही वजह है कि ट्रंप ने मोदी को वाशिंगटन में मिलने के लिए अचानक निमंत्रण दिया था, क्योंकि वे कनाडा के कनानास्किस में जी7 शिखर सम्मेलन में एक साथ नहीं मिल पाए थे। इस निमंत्रण ने तुरंत अटकलें लगाईं कि ट्रंप मोदी और मुनीर को वाशिंगटन में एक साथ लाकर कूटनीतिक तख्तापलट करना चाहते हैं।
लेकिन कहानी इतनी भर ही नहीं है। वाशिंगटन में चर्चा है कि अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान अपने पड़ोसी ईरान के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करे और देश का नेतृत्व करने वाले अयातुल्लाओं को बातचीत की मेज पर वापस आने और परमाणु हथियार बनाने के अपने प्रयासों को त्यागने के लिए राजी करे। ट्रंप ने कहा, “आज मैं मुनीर से मिलकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।” “आज मैं उन्हें यहां इसलिए बुला रहा हूं क्योंकि मैं उन्हें (भारत के साथ) युद्ध में न जाने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं।” फिर, अपनी प्रशंसा को थोड़ा कम करते हुए ट्रंप ने कहा: “मैं प्रधानमंत्री मोदी को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। इन दो बहुत ही चतुर लोगों ने एक ऐसे युद्ध को जारी न रखने का फैसला किया जो परमाणु युद्ध बन सकता था।”
विदेश नीति विश्लेषक माइकल कुगेलमैन, जो दक्षिण एशिया पर विशेष ध्यान देते हैं, कहते हैं, “ट्रम्प-मुनीर की मुलाकात को केवल इजराइल-ईरान युद्ध के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। महत्वपूर्ण खनिजों, क्रिप्टो और सीटी [आतंकवाद-विरोधी] पर अमेरिका-पाक की भागीदारी रही है। और ट्रम्प इन सभी में गहरी व्यक्तिगत रुचि रखते हैं।”
इधर पाकिस्तान, अपनी ओर से, चाहेगा कि वाशिंगटन सिंधु जल संधि को लेकर भारत पर दबाव डाले।
ऐसे में भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान पिछले दो दशकों में एक ऐसा खेल खेल रहा है जिसमें वह माहिर है- महत्वपूर्ण क्षणों में जब वह खुद को मुश्किल स्थिति में पाता है, तो अमेरिका द्वारा वांछित आतंकवादियों के बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करना उसका काम हो गया है। बेशक, ऐसी जानकारी आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।
वर्तमान में, अमेरिका का मानना है कि पाकिस्तान उसे आतंकवादी संगठन आईएसआईएस- के बारे में जानकारी देकर मदद कर सकता है, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में ठिकाने बनाए हैं। यह संगठन अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ मतभेद रखता है और इसलिए उसे पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में काम करना सुरक्षित लगता है।
कुल मिलाकर, मुनीर की यात्रा पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक जीत और ट्रंप के लिए एक सुर्ख़ियों वाला क्षण हो सकता है। लेकिन भारत अब बहुत कुछ समझ गया है और अमेरिका पर उसकी पैनी निगाह बनी रहेगी।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)