Saturday, April 27, 2024

किसानों! भेड़ियों से सावधान

           

प्रकाश दिवस के दिन गुरुनानक की जन्म तिथि पर मोदी ने तीन काले क़ानून वापस लेने की घोषणा की है। क्या ये पंजाब को पुचकारने की कोशिश है? जहां के आंदोलनकारी किसान अब तक मोदी को खालिस्तानी, आतंकवादी, नक्सलवादी,आन्दोलनजीवी और न जाने क्या-क्या लग रहे थे, सिवाय देश के किसानों के जो उनकी पहचान और सम्मान है।

मोदी पंजाब के किसानों से कह रहे हैं कि मैंने नानक के सम्मान में तीनों बिल वापस ले लिए। जो तुमको समझ नहीं आए। जिन्हें तुम काला कह रहे थे पर मुझे वो प्रकाश की तरह साफ़ लग रहे थे। फिर भी मैंने वापस लिए। अरे पंजाबियों, अब तो खुश हो! चलो उठाओ अब अपने लंगर की ताकत और मुझे उत्तर प्रदेश जीतने दो। तुम जो एमएसपी लेकर इतने ताकतवर हुए वो हमने यूपी को क्यों नहीं दी? आज समझ में आया!

क्या किसानों ने अहंकारी मोदी सरकार का सिर झुकाया है? या कि सरकार ने अपने फ़ायदे के लिए जब तक चाहा किसान आंदोलन की आग में घी डाला और जब चुनाव की बारी आई तो ख़ुद ही ये आग बुझाने की महानता का ढोंग करने चले आए, मिस्टर जुमलेबाज।

कोरोना के हाहाकार से जो कमाई करनी थी उससे नज़र हटाने के लिए कुछ बहाना चाहिए था। सो किसान बिल प्लान किये गए। क्या इन बिलों को वापस लिया जाना भी पहले से प्लान में शामिल था? जैसे एससी एसटी एक्ट को लेकर ड्रामा किया गया था।

मोदी सरकार का ये स्टाइल है। पहले गैर संवैधानिक, मनमौजी, फ़ालतू के क़ानून ज़बरन लागू करो। जनता से उस हक़-अधिकार को छीन लो जो उसके पास पहले से ही मौजूद हैं। फिर जनता को इसे रद्द कराने की जद्दोजहद में लगा दो। लोगों को मरवाओ, बदनाम करो, तड़पाओ, जेलों में डलवाओ। जमकर माहौल बनाओ। ऐसा कर दो कि जनता को लगे कि बस इस चंगुल से निकलना ही स्वर्ग की प्राप्ति है। इस बीच और जो मनमानी-गुंडागर्दी, धींगामस्ती, देश की लूट करनी है, करो। जब टारगेट पूरा हो जाए तो चुनाव नतीजे भी अपनी झोली में भरने के लिए जनता का जो हक़ बेशर्मी से छीना था, शराफ़त का ढोंग रचते हुए उसे वापस कर दो। है न मस्त फार्मूला! “हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा” जी । 

नँगा-भूखा किसान, आदिवासी, दलित, पिछड़ा कपड़े के नाम पर बची आख़री लंगोटी और रूखी रोटी गँवा कर तसल्ली कर ले कि चलो, गंगा तो नहाए। बाक़ी मोदी-शाह एंड भागवत पार्टी के सौजन्य से स्वर्ग के द्वार खुलवाने के लिये विशेष पैकेज डील उपलब्ध हैं ही।

जैसे 5 स्टार, 7 स्टार होटलों में घुसने के लिए एंट्री कार्ड होते हैं, वैसे ही हिंदुत्व के स्वर्ग में एंट्री के लिए अर्पित करने पड़ते हैं मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों की लाशें। उनके घर की महिलाओं के शरीर से नोचे चीथड़े, कटे स्तन, बलात्कार की गवाही देती उनकी औरतों, नाबालिग कन्याओं की योनि आदि-आदि।

हिंदुत्व का दम भरने वाले बाकी जिन्हें ऊपरलिखित अवसर प्राप्त न हो सकें, उनके स्वर्ग प्रवेश के लिए उपाय हैं। वो अपने क़ीमती वोटों से, तन-मन-धन से हिंदुत्व की सेवा करें। भूखा सोने से पहले मुसलमानों की बर्बादी की कामना ज़रूर करें। शम्भू रैगर आदि-आदि का सम्मान-समर्थन करें। जो तथाकथित म्लेच्छ को हिंदुत्व की कुल्हाड़ी से सबक सिखाए। ऐसा करने वालों को भी हिंदुत्व के स्वर्ग का एंट्री पास मिलेगा।

अब साहेब, नानक अनुयाइयों को पुचकारने निकल पड़े हैं। कह रहे हैं करीब डेढ़ साल बाद करतारपुर साहिब कॉरिडोर खुल गया है। बता दें कि करतारपुर साहिब पाकिस्तान में मौजूद है। और वहाँ के प्रधानमंत्री इमरान खान स्वयं करतारपुर जाकर, सिर ढककर अरदास में शामिल हुए थे। इमरान ने ख़ुद भारत और दुनिया भर के सिखों को नानक दर्शन के लिए आमंत्रित किया था।

जब करतारपुर साहिब और उस तक पहुंचने वाले रास्तों को सजाने-संवारने, दुरुस्त करने में इमरान खान निजी दिलचस्पी ले रहे थे, तब यहां भारत में मोदी गैंग द्वारा उन पर कीचड़ उछाली जा रही थी। उसी करतारपुर राहदारी के खुलने पर आज मोदी “हाउडी करतारपुर साहिब” चिल्लाकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

“संसार में सेवा का मार्ग अपनाने से ही जीवन सफ़ल होता है।” नानक की इस सीख को दोहराते हुए मोदी ने कहा -“हमारी सरकार इसी सेवा भाव के साथ देशवासियों के जीवन सरल बनाने में जुटी है।” मोदी के अनुसार इस देश मे 10 करोड़ छोटे किसान हैं। और उनकी भलाई के लिए ही 3 कृषि क़ानून बनाए गए थे। जिन्हें वही छोटा किसान काले क़ानून कह रहा है।

छोटे किसानों के कंधे पर बैठ कर उनकी भलाई का भोंपू बजा कर मोदी भारतीयों को बरगलाते हैं कि “देखो, मैं कितना महान हूँ। मुझे ही वोट देना।” पर जिन किसानों के कंधों पर मोदी बैठे हैं, वो चिल्ला रहे हैं -“अरे मार डाला… मार डाला… निकला दम हमारा। नीचे उतर ‘कम्बख़्त’।”  पर अपने तय किये गए वक्त से पहले और किसानों की तकलीफों के सदके मोदी उनका कंधा खाली कर दें, तो फिर वो मोदी ही क्या?!

जिस मोदी क्लास-भक्त को पेट्रोल 100 पार से फ़र्क नहीं पड़ता। कोरोना में मरकर, सड़क पर सड़कर फ़र्क नहीं पड़ता, बैंक जब ज़िंदगी भर की कमाई अम्बानी-अडानी, माल्या, नीरव मोदी, चौकसी की तोंद में सिलकर ठेंगा दिखा देते हैं, तब फ़र्क नहीं पड़ता। तो भला किसानों के विलाप, उनकी हत्याओं, आत्महत्याओं से भक्त प्रहलादों को क्या फ़र्क पड़ेगा। और…”मिस्टर मोदी नोज़ दैट…”  पर क्या किसान नोज़? अगर जानते हैं तो जहाँ हैं वहाँ डटे रहेंगे। भेड़िया मेमने की मौसी-मौसा कभी नहीं होता। किसान भाइयों-बहनों याद है ना बचपन में पढ़ी भेड़िया-मेमने की कहानी?

देसी भेड़ियों के बाप बड़े विदेशी भेड़िये घात लगाए बैठे हैं देश के जल-जंगल, ज़मीन पर। जो पगलाए हुए हैं किसानों को मज़दूरी की भट्टी में झोंकने के लिए। और इन भट्टियों में ईंधन की जगह भी इंसान ही झोंके जाएंगे। सो किसान अब सभी प्रकार के भेड़ियों को पहचान गए हैं। उनके नुकीले दाँत साफ़-साफ़ नज़र आ रहे हैं उन्हें। किसान समझ गए हैं कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।

फ़कीर का क्या है कह देगा – “भाईयों-बहनों, तुम्हारी गुलामी में मेरा कोई हाथ नहीं है। मरने से पहले नेहरू दस्तख़त कर गया था इस पर।”

(वीना पत्रकार, व्यंग्यकार और फिल्मकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।

Related Articles

पुस्तक समीक्षा: निष्‍ठुर समय से टकराती औरतों की संघर्षगाथा दर्शाता कहानी संग्रह

शोभा सिंह का कहानी संग्रह, 'चाकू समय में हथेलियां', विविध समाजिक मुद्दों पर केंद्रित है, जैसे पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता और स्त्री संघर्ष। भारतीय समाज के विभिन्न तबकों से उठाए गए पात्र महिला अस्तित्व और स्वाभिमान की कहानियां बयान करते हैं। इस संग्रह में अन्याय और संघर्ष को दर्शाने वाली चौदह कहानियां सम्मिलित हैं।