एक समय था, जब डॉ. अम्बेडकर हों या यहां तक कि लोहिया हों, सभी लेखन, बहस और प्रकाशन के जरिये…
भारतीय समाज व सत्ता के लोकतांत्रिक होने की चुनौतियां और सामाजिक न्याय का सवाल
हमारे समाज और साहित्य में समता और सामाजिक न्याय के विचारों और मूल्यों की मौजूदगी काफी पहले से रही है।…
दो ‘आपातकालों’ का कैदी
‘आगे और लड़ाई है’ प्रबीर पुरकायस्थ की आत्मकथा है। अंग्रेजी में लिखी उनकी आत्मकथा ‘किपिंग अप द गुड फाइट’ का…
कुछ चुनिंदा एंकरों के बहिष्कार मात्र से मीडिया का मिज़ाज क्यों नहीं बदलेगा?
इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस (INDIA) ने देश के कुछ प्रमुख टीवी चैनलों के 14 एंकरों के कार्यक्रमों में अपना…
इंडियन कॉफ़ी हाउस की कहानी जबलपुर की ज़ुबानी
अप्रैल,1986 में दिल्ली से पटना गया। अगले कुछ वर्षों के लिए तब पटना ही मेरा नया बसेरा बन रहा था।…
आकस्मिक घटना नहीं है महाराष्ट्र का सियासी भूचाल
जुलाई, 2023 के पहले रविवार को महाराष्ट्र में आया सियासी-भूचाल आकस्मिक घटना नहीं है। यह चलताऊ या पारम्परिक क़िस्म का…
आज का भारत और इमरजेंसी: एकदलीय प्रचंड बहुमत डेमोक्रेसी के लिए बड़ा ख़तरा
सन् 1975 की 25 जून को जब इमरजेंसी लागू की गई, मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए का छात्र था और…
एक संसद भवन जिसकी शुरुआत ही भारी विवाद और टकराव से हुई
दुनिया का हर लोकतांत्रिक देश अपने संसद भवन पर गर्व करता है। इसलिए नहीं कि उसे वह बिल्डिंग देश की…
क्या इस बार कर्नाटक देश को रास्ता दिखायेगा?
एक जमाने में हमारी राजनीति में बहुत लोकप्रिय जुमला बना था-‘बिहार शोज द वे!’ यानी बिहार रास्ता दिखाता है। इमरजेंसी-विरोधी…
सत्यपाल मलिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय का ‘हीरो’ क्यों नहीं बन सके!
जनाब सत्यपाल मलिक को चौधरी चरण सिंह के जमाने से जानता हूं। शायद उन्हें भी हमारी थोड़ी-बहुत याद हो! हाल…