Saturday, April 20, 2024

पश्चिमी मीडिया को पच नहीं रहा है छोटे देश कतर की फीफा विश्व कप की मेजबानी

अभी तक पश्चिमी देशों या उनकी जैसी सोच वाले देश के इवेंट की लाइन से हटकर हो रहे फीफा विश्व कप के आयोजन के आरंभ से पश्चिमी मीडिया द्वारा उसकी आलोचना शुरू हो गई है। फुटबॉल का फीफा विश्व कप क़तर में शुरू हो गया अगले एक महीने 18 दिसंबर को समापन तक यह अन्तर्राष्ट्रीय ख़बरों की सुर्खियों में रहेगा। लेकिन वो सुर्खियां कौन सी होंगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

जिस तरह पश्चिम में कोई खेल या कोई अलग तरह के इवेंट होते हैं और उसमें जो कथित स्वतंत्रता होती है वैसी स्वतंत्रता इस बार के विश्व कप में नहीं है। बस यही विरोध का मूल आधार है। फिर किसी छोटे देश का इतना बड़ा आयोजन करना पश्चिमी मीडिया को हजम नहीं हो रहा है।

इस इवेंट में शराब, फ्री सेक्स, समलैंगिक सम्बन्धों और अश्लीलता का प्रतिबंधित कर दिया। खेल के दौरान बीयर और शराब पीना जुर्म करार दिया गया है। पिछले विश्व कप के आयोजन में स्टेडियम को बीयर के कैंपों से सड़ाने वाले मंजर से इस बार निजात मिलेगी। जर्मनी में हुए फीफा विश्व कप के आयोजन के दौरान खिलाड़ियों और दर्शकों के मनोरंजन के लिए विदेशों से स्मगलिंग करके लाई गई 40000 वेश्याओं का चकलाघर बनाया था। कतर के फीफा विश्व कप में ऐसा कुछ नहीं मिलेगा।

यह मध्यपूर्व की अपनी व्यवस्था है अभी तक पश्चिमी व्यवस्था देखी थी इस बार यह व्यवस्था दिखेगी। असल यह मध्यपूर्व का नया आर्डर है। पश्चिम को यह स्वीकारना थोड़ा मुश्किल हो रहा है।

एक बहुत छोटे से देश में इसका होना एक आश्चर्य से कम नहीं है, जबकि 10 साल पहले वो पूरा देश रेगिस्तानी और बंजर था जहां एक नखलिस्तान ही बड़ी नेअमत माना जाता हो वहां आधुनिक शहर का निर्माण पूरी तरह इंसानी शाहकार का नमूना है, जिसके लिए जराए (धन) संसाधन से ज्यादा नज़रिया (दृष्टि) अहम रहा। पूरे आयोजन की तैयारी में करीब 200 लाख करोड़ डालर का खर्च आया है जो क़तर से बड़े कई देशों के कई सालाना बजट से भी ज्यादा है।

कतर ने इसके आयोजन को विशुद्ध प्रोफेशनल नजरिए से प्लान किया है ताकि इससे वो भविष्य में अपनी अर्थव्यवस्था को गति दे सके। इधर पिछले कुछ वर्षों से मध्यपूर्व के देश अनेक अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक और आर्थिक मामलों की मध्यस्थता का केंद्र बनते जा रहे हैं। कतर इसमें अपनी भूमिका बढ़ाना चाहता है, फीफा का यह आयोजन इसी की एक कड़ी है।

वो फीफा विश्व कप के आयोजन से मिली साफ्ट पावर से अपनी ब्रांडिंग और इमेज बढ़ाना चाहता है। ताकि मध्यपूर्व आने वाले कारोबार, राजनैतिक आर्थिक मध्यस्थता और पर्यटन में अपनी भागीदारी बढ़ा सके।

फीफा के लिए बने स्टेडियम और अन्य सहूलियतों पर हर इंसान और खासकर तरक्कीयाफ्ता (विकासशील) मुल्क फख़्र कर सकते हैं अगर वो बड़ा नज़रिया रखते हों। क्योंकि पिछले 10 सालों में क़तर को फीफा के लिए तैयार करने में उन्हीं विकासशील मुल्कों के मेहनतकशों का बड़ा हाथ है जो ऐसे गैर मामूली इवेंट के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। दिसंबर  2010 में जब क़तर ने विश्व कप की मेजबानी आस्ट्रेलिया, जापान दक्षिण कोरिया, और अमेरिका जैसे अमीर और सुविधा सम्पन्न देशों के मुकाबले हासिल की थी, तो पूरे क़तर में हफ़्तों तक जश्न मनाया गया था। तब अनजान से क़तर के लिए यह सब ख़्वाब की तरह था।

क़तर की आबादी 30 लाख भी पूरी नहीं है, जबकि वहां 20 लाख दूसरे मुल्कों के प्रवासी मजदूरों और प्रोफेशनल्स ने पिछले 10 सालों में रात दिन मेहनत करके फीफा कप के लिए शानदार शहर और सुविधाएं तैयार कर दीं। जिन देशों के प्रोफेशनल्स ने इस आयोजन को करने में मदद की है उसमें भारत प्रमुख हैं, इसके बाद नेपाल, पाकिस्तान, बंगला देश और श्रीलंका के अलावा अफ्रीकी आदि देश भी हैं।

फीफा विश्वकप में आने वाले खिलाड़ियों, दर्शकों, पत्रकारों और इससे जुड़े कारोबारियों को यह साफ कह दिया गया है कि इस आयोजन में स्थानीय कल्चर और विश्वासों का सम्मान करना होगा। स्त्री और पुरुष अर्धनग्न नहीं रह सकेंगे, परमिट लेकर शराब पीने वाले सार्वजनिक रूप से शराब नहीं पीएंगे, समलैंगिकों के प्रदर्शन की सख्ती रहेगी।

इस तरह यह आयोजन पश्चिम कल्चर की जगह मध्य पूर्व के कल्चर पर फोकस कर रहा है, यही मीडिया की परेशानी है, शराब, फ्री सेक्स और समलैंगिक हुल्लड़ से ख़बर बनाने वाले पत्रकारों को इस बार निराशा होगी।

पत्रकारों ने इसकी भरपाई के लिए फर्जी खबर प्लांट करना शुरू कर दिया है। उद्घाटन से पहले ही मेजबान कतर और इक्वाडोर के बीच उद्घाटन मैच को फिक्स बताने की ख़बर फैलाई गई, और कहा गया कि क़तर ने अपनी टीम की जीत के लिए इक्वाडोर की टीम को करोड़ों की घूस देकर ख़रीद लिया है, ताकि मेजबान टीम को जीत का हीरो बनाया जाए। अब जब उद्घाटन मैच में यह फर्जी कहानी पिट गई और मेज़बान क़तर की टीम अपना मैच हार गई, तो पश्चिम मीडिया ने यह ख़बर चला दी कि यह फीफा का पहला आयोजन है। जिसमें मेजबान टीम पहला मैच हार गई है और इससे आयोजन की लोकप्रियता कम हो गई है।

उद्घाटन पर मध्यपूर्व के देशों की सरकारों के अलावा तुर्की के प्रमुखों और भारत के उपराष्ट्रपति की मौजूदगी को भी विदेशी मीडिया ने कवर नहीं किया जबकि यह बड़ी घटना थी।

एक और विवाद निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों/प्रोफेशनल्स की मौतों और उनके मुआवजे का है, विदेशी मीडिया ने यह संख्या 6500 के आसपास बताई है। किसी भी निर्माण में एक भी मज़दूर की मौत न हो यह आदर्श की स्थिति है, जो कहीं होती नहीं है। और खासकर विकासशील देशों में तो बिल्कुल भी नहीं। हमारे देश में हर साल करीब पचास हजार मेहनतकशों की मौत निर्माण कार्यों में होती है, छोटे मोटे कामों में हुई मौतों की तो गिनती ही नहीं होती। लाशें गायब कराकर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाता है।

क़तर की सरकार ने हालांकि इस मामले में बहुत सफाई दी और सुधार भी किए। सारा निर्माण निजी ठेकेदारों / कंस्ट्रक्शन कम्पनियों द्वारा किया गया जो बाहर से मजदूर कफ़ाला कानून के अन्तर्गत मंगाते हैं। कत़र और मध्य पूर्व के देशों में चलने वाले कफ़ाला कानून में मजदूरों को अपने नियोक्ता को बदलने की छूट नहीं होती है। जो मज़दूरों के शोषण का बड़ा कारण था, क़तर ने मजदूरों की मांग और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ हस्तक्षेप पर 2019 में इसमें बदलाव किया था।

(इस कफाला सिस्टम को समझने के लिए भारत में बड़े कार्पोरेट के हाल में ही हुए उस आपसी समझौते को देखना होगा जिसमें कार्पोरेट ने एक दूसरे के कर्मचारियों/एक्सपर्ट को नौकरी ना देने की बंदिश की है।)

यह भी बड़ा सवाल है कि अभी पिछली सदी तक ग़रीब देशों के लोगों को गुलामी से बदतर हालत में रखने वाले पश्चिमी समाज के मीडिया ने इस मुद्दे को हर तरह से खींचा है, लेकिन मूल समस्या यह है कि प्रवासी देशों में अगर रोजगार के हालात ख़ुशगवार होते तो वहां के लोग बाहर क्यों जाते। 

इस सब के बीच एक बात यह है कि पिछले 10 सालों में विश्व कप में खर्च हुए अरबों के बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रवासी, प्रोफेशनल्स और मेहनतकशों को गया है।जिससे उस मुल्क की तरक्की में भी मदद मिली होगी, उनकी जीडीपी पर भी असर पड़ा होगा। इस तरह इस आयोजन पर होने वाले बजट का आर्थिक प्रभाव दक्षिण एशिया में कुल मिलाकर कई गुना रहा होगा। 

रही बात मुस्लिम देश में हो रहे इस खेल आयोजन में इस्लाम के विस्तार या मुसलमान बनाने के लिए कथित मजहबी रहनुमाओं की सरगर्मी की। तो इतना ही कहा जा सकता है कि जब कहीं खेल, तमाशा और मेला होता है तो वहां बहुत से अलग अलग तरह के लोग अपना अपना मजमा लगाने और अपना अपना ‘माल’ बेचने पहुंच ही जाते हैं।

तो यह सब परे करके विश्व फुटबॉल का आनन्द लीजिए और ऐसा माहौल बनाने में मदद कीजिए जिससे अगले विश्वकप में हमारी टीम भी शामिल हो।

(इस्लाम हुसैन लेखक और एक्टिविस्ट हैं आप आजकल नैनीताल में रहते हैं।) 

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