देश इस समय दुनिया की सबसे बड़ी संस्कारी पार्टी के विचित्र कारनामों को देखकर हतप्रभ है। पता नहीं ये सब कबरबिज्जू अब तक कहां दफ्न थे। मनोहर लाल धाकड़ को इस वर्ष का सेक्स हीरो घोषित करना चाहिए। उनके कथित कुत्ते छाप रोमांस ने जिस तरह प्राकृतिक कर्म को प्रकृति के साथ जिया वह काबिले गौर है। आखिर कार जब हमारा देश अतीत की ओर लौटने की तैयारी में है तब ऐसे प्रकृति प्रदत्त कर्म पर सजा नहीं सम्मान की ज़रूरत है।जो आने वाले कल में उन्हें निश्चित तौर पर मिलेगा।
इधर प्रेम शुक्ला जी की ज़बान ऐसे लज़ीज़ अंदाज में चली, गोया उनकी संस्कारिता धड़ल्ले से गाली गलौज पर बातचीत में सामने आई। स्त्री को दास और दोयम दर्जे का समझने वाले पितृसत्तात्मक मनुवाद के पक्षधर संस्कारी स्त्री सम्बंधी निकृष्टतम गाली पर उतर आए। बात समझने की है, इनका असल चाल चरित्र वही है जो संस्कारी पार्टी की चाहत है।
जब देश का मुखिया किलो किलो गाली खाने का आदर्श सामने रखता हो तो गाली गलौज से परहेज़ क्यों हो? देशवासियों को सहन करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। आईटी सेल की स्थापना का मुख्य मक़सद तो अक्सर ट्रोलिंग में स्पष्ट देखा जा सकता है। वह आम जन को प्रशिक्षण देने की कोशिश में लगा है।
स्त्री शोषण और दोहन सदियों से होता रहा है कोई नई चीज़ तो नहीं जिसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई जाए। संघ तो इसीलिए स्त्री विमुख रहने की कोशिश अपने जन्म से कर रहा है। हमारे मुखिया जी इसके उदाहरण हैं। लेकिन कभी-कभी जब काम वासना का ज्वार उफ़नता है तो वह धाकड़ स्वरूप में सामने आता है। जी हां कभी कभार बृजभूषण सिंह, कुलदीप सेंगर जैसे कई लोग सामने आ जाते हैं। जिनके सामंती संस्कार भी ज़ोर मार जाते हैं।
अब तो प्राच्य संस्कृति के ज़ोर का दौर है। जो युवतियां इनकी शिकार होती हैं वे अंकिता भंडारी की गति को प्राप्त हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार में दलित और गरीब स्त्रियों पर आज भी ऐसे लोग अपना हक समझते हैं। इसी तरह आदिवासी महिलाओं के शोषण की अनगिनत घटनाएं, झारखंड, छत्तीसगढ़ और सुदूर पूर्वांचल से अक्सर सामने आती हैं। अब राजे महराजे ख़त्म हो गए तो संघ से प्रशिक्षित अनुषंगी संगठन सदस्य और जनप्रतिनिधियों ने इसे अपनी बपौती बना लिया है।
कभी कभी लगता है जब दुनिया की अधिकांश महिलाएं आधी धरती और आसमान के लिए अपने कदम बढ़ा रही हैं तब भारत में भले महिला सशक्तिकरण का राग अलापा जा रहा हो पर उसे मंदिरों, प्रवचनों और घर की ओर धकेलने का एक सुनियोजित काम अप्रत्यक्ष रुप से चलने के संकेत ये घटनाएं देती हैं।
जिस लोकतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधि ही अविश्वसनीय हो जाए वहां भला कोई कैसे स्त्री सुरक्षित हो सकती है ऐसी अनेकों घटनाएं प्रशासनिक क्षेत्र में भी वेग पूर्वक बढ़ रही हैं। जो चिंताजनक है।
सच ये है कि आज देश में मां ,बहु बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। अफ़सोसनाक ये सच है कि कथित तौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए अभिमन्यु की तरह श्रेष्ठ बच्चे के जन्म के लिए भी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है।
तरह-तरह के शास्त्री भव्य पंडालों के नीचे पुरानी स्त्री शिक्षा पर ज़ोर दे रहे हों। महाभारत और रामायण की स्त्रियों की पति भक्ति और धरती सी सहनशीलता का पाठ सिखा रहे हैं तथा आगे बढ़ी हुई उच्च पदस्थ स्त्री की ट्रोलिंग में गाली गलौज और दैहिक शोषण देख रही हो तब वह किस हिम्मत और साहस से बाहर आए। उसे हिम्मत और हौसला देने वाले जेल भेज दिए जाते हैं। महिला का अपमान करने वाले सम्मानित होते हैं। तब वह क्या करे?
इस स्त्री संकट के बुरे दौर में यदि नेहा सिंह राठौर जैसी युवती जिस तरह चीख चीख कर खुलकर सच्चाई सामने ला रही है उससे प्रेरणा लेना चाहिए। आज जिस तरह से नेहा गाली गलौज और अपमान की परवाह किए बगैर देश को ऊर्जा दे रही है और तथाकथित संस्कारी पार्टी की जिस तरह सरेआम पोल खुल रही है उससे यह उम्मीद बढ़ती है कि आने वाले कल को ऐसी संस्कारी पार्टी निश्चित नफ़रत का शिकार होगी। क्योंकि अब बीच बजरिया उनकी पोल का ढोल खूब ज़ोर शोर से बज रहा है।जिसकी गूंज दूर-दूर तक पहुंच रही है। वह उम्मीद जगाती है।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)