ऑपरेशन कगार में सीपीआई माओवादी के महासचिव केशवराव समेत 27 की मौत, न्यायेतर हत्या की माले ने की निंदा 

नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे आपरेशन कगार में सुरक्षा बलों को बड़ी सफलता मिली है। सुरक्षा बलों ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव केशव राव उर्फ बासवराजू समेत तकरीबन 27 नक्सलियों को मारने का दावा किया है। केशव राव की उम्र 70 साल बतायी जा रही है और उन्होंने वारांगल इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की डिग्री हासिल की थी। वह पढ़ाई के दौरान ही रेडिकल आंदोलन से जुड़ गए थे। कई छात्रसंघ चुनावों में भी उन्होंने शिरकत की थी और उसमें जीत हासिल की थी।

इस पर कई जगहों से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। भाकपा (माले) ने कहा है कि वह नारायणपुर-बीजापुर में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कामरेड केशव राव समेत कई माओवादी कार्यकर्ताओं और आम ​आदिवासियों की न्यायतेर नृशंस हत्या की कड़ी भर्त्सना करती है। उसने कहा है कि जिस प्रकार केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उत्सवी अंदाज में इस समाचार को साझा किया है उससे स्पष्ट है सरकार ऑपरेशन कगार को न्याय व्यवस्था से परे सामूहिक विनाश के अभियान की ओर ले जा रही है। ताकि कॉरपोरेट लूट और माओवाद दमन के नाम पर आदिवासी इलाके में कार्पोरेट लूट और भारी सैन्यकरण के खिलाफ आदिवासी प्रतिवाद को कुचल दिया जा सके और नागरिकों की हत्याओं को वैध ठहराया जा सके।

केंद्रीय कमेटी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हम सभी न्याय पसंद भारतवासियों से अपील करते हैं कि इस जनसंहार की न्यायिक जांच तथा अपनी ओर से युद्धविराम घोषित कर चुके माओवादियों के खिलाफ चल रही सैन्य कार्यवाही को तत्काल बंद करने की मांग जोरदार तरीके से उठायें।

इसके पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस घटना की सूचना देते हुए बेहद प्रसन्नता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि नक्सलवाद को खत्म करने की लड़ाई में काबिलेगौर उपलब्धि हासिल हुई है। आज (सोमवार) छत्तीसगढ़ के नारायनपुर में एक आपरेशन में हमारे सुरक्षा बलों के जवानों ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव नामबाला केशव राव उर्फ बासवराजू समेत 27 माओवादियों को ढेर कर दिया। यह तीन दशकों में नक्सलवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में पहली बार है जब महासचिव के पद के एक शख्स को सुरक्षा बलों ने मारा है। इस बड़ी सफलता के लिए मैं अपने बहादुर सुरक्षा बल के जवानों की प्रशंसा करता हूं।   

इसी तरह से पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर खुशी जाहिर की है। 

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाएं आयी हैं। जिसमें कई लोगों ने इस हत्या को न्यायेतर बताते हुए उसकी निंदा की है। उनकी मौत पर उन्हें क्रांतिकारी सलाम किया है।

एआईपीएफ ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव सहित 27 सदस्यों की हत्या की निंदा की

आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट (एआईपीएफ) की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव सहित 27 सदस्यों की न्यायेतर हत्या की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया। हम माओवादी पार्टी की राजनीतिक विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से केंद्र और राज्य सरकारें माओवादियों और निर्दोष आदिवासियों का सफाया कर रही हैं, वह निंदनीय है। यह सर्वविदित तथ्य है कि समाज सेवा में लगे लोगों ने केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ राज्य सरकार से माओवादियों से बातचीत शुरू करने का आग्रह किया था। बताया जाता है कि माओवादी नेतृत्व ने नागरिक स्वतंत्रतावादियों द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और माओवादियों के कार्यकर्ताओं की घेराबंदी और हत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

यह उल्लेखनीय है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और असहमति जताने वालों को गिरफ्तार करने और उन पर मनगढ़ंत मामले दर्ज करने की एक बड़ी फासीवादी योजना का हिस्सा है। भीमा कोरेगांव में हुई गिरफ्तारियां और हाल ही में प्रो. अली खान की गिरफ्तारी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इस सरकार द्वारा आरोपित किए गए कई लोग निर्दोष पाए गए हैं। एआईपीएफ का मानना है कि देश में विकसित हो रही यह फासीवादी प्रवृत्ति लोकतंत्र और राष्ट्र के लिए अच्छी नहीं है।

एआईपीएफ की राष्ट्रीय कार्यसमिति की ओर से एस.आर. दारापुरी ने कहा कि एआईपीएफ उन सभी राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के साथ है, जो हत्याएं रोकने और समस्या के समाधान के लिए बातचीत शुरू करने का आह्वान कर रहे हैं।

नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर की जा रही है न्यायेतर हत्याएं – डी. राजा

सीपीआई के महासचिव डी. राजा के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर न्यायेतर हत्याएं की गई, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है।

डी. राजा ने सवाल उठाया कि अगर सरकार को माओवादी नेता के ठिकाने की जानकारी थी, तो उसे कानूनी तरीके से गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? डी. राजा ने कहा कि इस तरह की हत्याएं राज्य की हिंसा और आदिवासी समुदाय के उत्पीड़न को दर्शाती हैं। उन्होंने इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की ताकि सच सामने आ सके।

सीपीआई ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में सरकार को खुद जज और जूरी बनने का हक नहीं है। पार्टी ने सभी लोकतांत्रिक और प्रगतिशील संगठनों से छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ एकजुटता दिखाने और इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की।

माओवादियों की ओर से लगातार की जा रही बातचीत की पेशकश को ठुकरा कर केंद्र सरकार कर रही जनसंहार-माकपा

सीपीएम पोलित ब्‍यूरो ने बयान जारी कर कहा है कि माओवादियों की ओर से लगातार की जा रही बातचीत की पेशकश को ठुकरा कर केंद्र सरकार और भाजपा शासित छत्‍तीसगढ़ सरकार अमानवीय तरीके से पुलिस द्वारा सफाये की कार्रवाई को अंजाम दे रही हैं। बयान में कहा गया है कि केंद्रीय गृहमंत्री डेडलाइन पर जोर दे रहे हैं और छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री ने बयान दिया है कि बातचीत की कोई जरूरत नहीं है। यह रवैया लोकतंत्र विरोधी है।

कई राजनीतिक दलों और सुचिंतिंत नागरिकों ने सरकार से अपील की है कि संवाद का रास्‍ता अपनाए। बयान में कहा गया है कि हम माओवादी राजनीति का विरोध करते हैं और इसके साथ ही सरकार से अपील करते हैं कि वह सुरक्षा बलों के ऑपरेशन रोके और माओवादियों से संवाद करे।

भाकपा (माओवादी) के महासचिव और 27 कार्यकर्ताओं की हत्या निंदनीय -नवजनवादी लोकमंच

भाकपा (माओवादी) के महासचिव केशव राव (बासवराजू) और कथित रूप से 27 कार्यकर्ताओं की हत्या और केंद्र सरकार तथा पूंजीवादी विचारकों की ओर से उत्सव का माहौल पैदा करने की कोशिश अत्यंत निंदनीय है। यह कार्रवाई सिर्फ एक पार्टी पर हमला नहीं, बल्कि शोषित पीड़ित जनता और खासकर बस्तर क्षेत्र और पूरे देश की आदिवासी जनता पर निर्णायक हमला है।

कैसी विडंबना है कि कल तक जो सरकार सीमा पार के आतंकवाद के खिलाफ पूरे देश से एकता का आह्वान कर रही थी, आज वही अपने ही देश की जनता की हत्या पर बड़े उत्साह से विजय का उद्घोष कर रही है। कहां है देश, कहां है राष्ट्रीय एकता। यह बात खुली चर्चा में है कि केंद्र सरकार उस क्षेत्र से आदिवासी जनता को उजाड़कर वहां की खनिज संपदा पूंजीपतियों (खासकर अदानी) को सौंपने पर तुली हुई है। यह कार्रवाई उस दिशा में निर्णायक कदम है।

दूसरी ओर कई जनतांत्रिक संगठनों की ओर से यह कोशिश जारी थी कि सरकार और माओवादी संगठनों के बीच वार्ता हो और मामले का शांतिपूर्ण हल निकाला जाय। ऐसी भी खबरें हैं कि माओवादी इसी उम्मीद के साथ वार्ता की दिशा में मुखातिब थे। इसी क्रम में वे सरकारी अभियान में फंसकर सुनियोजित हत्या का शिकार हो गए।

उल्लेखनीय है कि भाजपा-आरएसएस की सरकार ने इस घृणित कार्रवाई की जिम्मेवारी आदिवासी मुख्यमंत्री को सौंपी है। हम यह नहीं भूल सकते कि फिलहाल देश के सर्वोच्च सांवैधानिक पद (राष्ट्रपति) पर भी आदिवासी ही सुशोभित हैं। इस सच का संज्ञान देश की जनता, खासकर आदिवासी जनता को लेना चाहिए।

यह सरकार न सिर्फ आदिवासियों के विनाश पर अडिग है, बल्कि पूंजीपतियों के हित में खनिज सम्पदा की लूट और पर्यावरण की बर्बादी पर भी अमादा है, जिसका नतीजा पूरे देश और दुनिया को भोगना पड़ेगा।

यह सरकार और उसके पालतू बुद्धिजीवी माओवादियों और आदिवासी जनता की हत्या पर चाहे जितनी खुशी मना लें, लेकिन अपनी नीतियों से वे हर दिन, हर क्षण बेरोजगारी और भुखमरी पैदा कर क्रांतिकारी आंदोलन की जमीन तैयार कर रहे हैं। इस पराजय की घड़ी में माओवादियों और सभी क्रांतिकारी ताकतों की जिम्मेवारी बनती है कि वे अपनी रणनीति पर गंभीरता से विचार करें और सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ व्यापक जनांदोलन खड़ा करें।

फासीवादी सरकार माओवादी कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की गैर-न्यायिक जनसंहार में लगी हुई है- सीपीआई (एमएल) रेड स्टार

सीपीआई (एमएल) रेड स्टार ने एक बयान में कहा कि हम सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कॉमरेड कम्बाला केशव राव और माओवादी कार्यकर्ताओं की सोची-समझी और कायराना हत्या की कड़ी निंदा करते हैं!

“फासीवादी डबल इंजन” सरकार तथाकथित ऑपरेशन कगार के तहत माओवादी कार्यकर्ताओं और आदिवासियों की गैर-न्यायिक जनसंहार में लगी हुई है, जबकि सीपीआई (माओवादी) ने एकतरफा रूप से राज्य के समक्ष शांति वार्ता की इच्छा जाहिर की है। आज नारायणपुर-बीजापुर में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कॉमरेड केशव राव और माओवादी कार्यकर्ताओं की हत्या इसी सिलसिले की एक कड़ी है। यह एक अमानवीय फासीवादी शासन की खूनी मानसिकता को पूरी तरह उजागर करता है, जो अत्यंत निंदनीय है।

जंगलों की कॉरपोरेट लूट, जो आदिवासियों की आजीविका और जीवन के साधनों को नष्ट कर रही है, जैसे मुद्दों को सुलझाने के बजाय, इस प्रकार की गैर-न्यायिक हत्याएं फासीवादी शासन की कॉरपोरेट्स के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

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