पिछले तीन दिनों से बिहार में बीएलओ घर-घर जाकर आम लोगों से गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) फॉर्म के साथ चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत 11 दस्तावेजों के स्थान पर आधार संख्या, जन्मतिथि मांग रहे थे, जबकि चुनाव आयोग की ओर से ऐसा कोई लिखित निर्देश जारी नहीं किया गया था। कल रविवार को बिहार के मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने भी प्रदेश के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में विज्ञापन जारी कर मतदाताओं को राहत देने की बात कही। लेकिन आज फिर चुनाव आयोग कह रहा है कि वोटर लिस्ट अपडेशन को लेकर SIR प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
अब आप कहेंगे कि ये चक्कर क्या है, तो वास्तविक स्थिति यह है कि SIR प्रक्रिया बूथ स्तर के चुनाव अधिकारियों के लिए फ़ांस बनकर रह गई है, क्योंकि इन्हीं को चुनाव आयोग के फरमान को अमल में लाने का कार्यभार है। इनमें से अधिकांश सरकारी स्कूलों के अध्यापक/अध्यापिका हैं और कई स्थानों पर आंगनबाड़ी/जीविका कर्मियों को भी देखा जा रहा है। ये सभी अपने मूल काम को छोड़ अगले एक महीने तक इसी काम में लगने वाले हैं। जिलाधिकारी कार्यालय से हर दो घंटे में अपडेट और जल्द से जल्द फॉर्म जमा करने और अपलोड करने के निर्देश तो दूसरी तरफ बड़ी संख्या में आम मतदाताओं के पास आवश्यक दस्तावेजों का अभाव दिनोंदिन हालात को गंभीर बना रहे थे।
उधर विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर हमलावर होता जा रहा था, और एडीआर, पीयूसीएल सहित कांग्रेस और तृणमूल पार्टी की ओर से चुनाव आयोग की इस कवायद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को लेकर गहरे सवाल उठने लगे थे। विपक्ष ने पहले दिन से ही साफ़ कह दिया था कि ऐन चुनाव से तीन महीने पहले बाढ़ के हालात के बीच 8 करोड़ मतदाताओं के बीच गहन पुनरीक्षण की यह कवायद पूरी तरह से विफल साबित होने जा रही है, लेकिन चुनाव आयोग अपनी हठधर्मिता पर अड़ा हुआ था।
जब उसे गाँव-गाँव, शहर-शहर से फीडबैक मिलना शुरू हुआ कि बमुश्किल से कुछ ही लोगों के पास वे दस्तावेज हैं, जिन्हें आयोग मांग रहा है तो उसकी हालत सांप-छछूंदर वाली हो गई। यही कारण है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की ओर से कोई लिखित आदेश तो नहीं दिया गया, लेकिन पिछले 3 दिनों से बिहार के दूर-दराज के इलाकों में भी बीएलओ स्तर के अधिकारियों को यह संदेश भिजवा दिया गया कि वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में तत्काल फॉर्म जमा कराने पर जोर दें।
कल शाम 6 बजे तक कुल 1,69,49,208 गणना फॉर्म, यानि बिहार में 24 जून, 2025 तक नामांकित कुल 7,89,69,844 (लगभग 7.90 करोड़) निर्वाचकों में से 21.46 प्रतिशत लोगों के गणना फॉर्म प्राप्त हो चुके थे। फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि में अभी 19 दिन बाकी हैं, लेकिन अब अधिकांश लोग ऐसे हैं जो 2003 तक मतदाता सूची में नहीं थे। अब तक 7.25 प्रतिशत फॉर्म अपलोड हो चुके हैं।
कुल 77,895 बीएलओ घर-घर जाकर निर्वाचकों को गणना फॉर्म भरने में मदद कर रहे हैं। इसके अलावा, 20,603 अतिरिक्त बीएलओ की नियुक्ति किये जाने की भी खबर है। इसके साथ ही चुनाव आयोग की ओर से करीब 4 लाख वालेंटियर्स को सरकारी कर्मचारियों, एनसीसी कैडेटों, एनएसएस के सदस्यों आदि के माध्यम से नियुक्त कर एसआईआर प्रक्रिया में बुजुर्गों, दिव्यांगों, बीमार और कमजोर लोगों को सुविधा देने के लिए फील्ड में तैनात किया जा रहा है। प्रदेश के सभी 243 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में 239 ईआरओ, 963 एईआरओ, 38 डीईओ और राज्य के सीईओ निर्वाचकों को इस प्रकिया को सुचारू ढंग से संपन्न करने के लिए तैनात किया गया है।
इस बीच चुनाव आयोग ने बीएलओ की सहायता के लिए जिन एक लाख वालंटियर्स की नियुक्ति की घोषणा की थी, उसे अचानक से बढ़ाकर अब चार लाख कर दिया गया है। विपक्ष सवाल कर रहा है कि ये वालंटियर्स कब, किस प्रकिया के तहत नियुक्त किए गये? आज पटना में गठबंधन की एक और प्रेस कांफ्रेंस में राजद नेता, तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग से मांग की है कि वह इस तथ्य का खुलासा करे कि ये वालंटियर्स कौन हैं और इनकी पहचान सार्वजनिक की जाये। ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इनमें से कई लोग बीजेपी/संघ की पृष्ठभूमि के हो सकते हैं, जो मतदाता पहचान की प्रकिया को बीजेपी के पक्ष और विरोधी दलों के खिलाफ मोड़ सकते हैं।
बिहार मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने रविवार (6 जुलाई) को बिहार के सभी प्रमुख अखबारों में विज्ञापन जारी कर मतदाताओं को राहत देने की कोशिश की। विज्ञापन में कहा गया है कि मतदाता बिना आवश्यक दस्तावेजों के भी अपने नाम का सत्यापन करा सकते हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि यदि मतदाता दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाते हैं तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) स्थानीय जांच या वैकल्पिक प्रमाणों के आधार पर फैसला ले सकते हैं।
इस विज्ञापन ने विपक्ष के खेमे में सनसनी सी मचा दी, क्योंकि यदि चुनाव आयोग इस प्रकिया को अपनाता है तो यह उसके लिए SIR प्रक्रिया से भी ज्यादा विनाशकारी साबित हो सकता है। इससे चुनाव आयोग की मंशा खुलकर सामने आ जाती है। पहला, आयोग के द्वारा निर्दिष्ट दस्तावेजों के बगैर ही यदि सभी लोग 25 जुलाई तक फॉर्म भर देते हैं तो चुनाव आयोग दावा कर सकता है कि विपक्ष के दावों के बावजूद वह SIR प्रकिया सफलतापूर्वक संपन्न कराने में सफल रहा।
असली खेल 1 अगस्त से शुरू होगा, जिसमें निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) के विवेक पर तय होगा कि वह किसे वैध मतदाता मानता है और किसे नहीं। चूंकि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) सीधे-सीधे सत्ता पक्ष के अधीन काम करने वाला सरकारी अधिकारी है, जिसके साथ बीएलओ और चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त 4 लाख अस्थायी वालंटियर्स होंगे। इनकी मदद से अधिकारी तय कर सकता है कि किसे आधार कार्ड, पुराने मतदाता पहचान पत्र या राशन कार्ड के आधार पर वैध मतदाता के रूप में मान्यता दे दी जाये।
इस पूरी प्रकिया में यह होगा कि जो भी सवर्ण जाति के लोग होंगे उनमें से अधिकांश को वैध मतदाता मान लिया जायेगा। इसी के साथ अन्य जातियों में भी स्थानीय समीकरण के लिहाज से तय किया जा सकता है कि कौन लोग एनडीए के समर्थक हो सकते हैं और कौन नहीं। इसमें सबसे बड़ी संख्या में यदि किसी एक समुदाय को मताधिकार से वंचित रखे जाने की आशंका नजर आती है तो वह है मुस्लिम समुदाय।
चूंकि चुनाव आयोग ने स्वंय SIR प्रकिया को लेकर जिन कारणों का हवाला दिया है, उसमें से एक प्रमुख वजह विदेशी घुसपैठियों को बाहर करने का है। हालांकि यह काम चुनाव आयोग के दायरे में नहीं आता है, और उसके पास इसे तय करने के कोई अधिकार नहीं हैं, लेकिन इस एक संवेदनशील मुद्दे को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर बीजेपी बिहार चुनाव में अपने हिंदू-मुस्लिम कार्ड को बड़े पैमाने पर खेल सकती है।
बिहार के ग्रामीण इलाकों में भी चुनाव आयोग की इस कवायद के बारे में आम लोगों के बीच यह धारणा बनती जा रही है कि बिहार में विदेशी घुसपैठियों पर रोकथाम के लिहाज से सरकार ने यह फैसला लिया होगा। वे इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं कि देश में बिहार के लोग सबसे बड़ी संख्या में पलायन करते हैं, ऐसे में बिहार में विदेशी घुसपैठियों की आमद सबसे कम होने की आशंका है। ऐसा माना जा रहा है कि मुसलमानों की तुलना में बिहार में नेपाल मूल के हिंदू नेपाली रह रहे हों।
विपक्ष का कहना है चुनाव आयोग अब अपने ही बनाये जाल में बुरी तरह से उलझ गया है, लेकिन उसने बिहार के आम लोगों को भी इस क्रम में हैरान परेशान कर दिया है। बीएलओ स्तर के अधिकारियों के लिए काम करना उत्तरोत्तर कठिन होता जा रहा है। विपक्ष की मांग है कि चुनाव आयोग SIR प्रकिया को तत्काल बंद करे, और जनवरी, 2025 में जो सूची पारित की गई थी, उसे आधार बनाकर चुनावी प्रकिया को शुरू करे।
9 जुलाई को वामपंथी ट्रेड यूनियनों के संयुक्त आह्वान पर देश भर में चक्का जाम किया जाना है। बिहार में संयुक्त राजनीतिक विपक्ष इसे मजबूती से लागू करने जा रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष, राजेश राम ने प्रेस कांफ्रेंस में 9 जुलाई को नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी की उपस्थिति की घोषणा कर स्पष्ट कर दिया है कि 9 जुलाई से बिहार में लड़ाई आरपार की हो सकती है। बीजेपी के द्वारा देश के संविधान और मौलिक अधिकारों को कुचलने के इस दुष्चक्र का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए विपक्ष यदि अदालती लड़ाई के बजाय जमीनी राह पकड़ता है तो उसके लिए बिहार सबसे उर्वर जमीन बीजेपी/संघ की राजनीति के लिए प्राणघातक साबित हो सकता है।
(रविंद्र सिंह पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)