इलेक्शन कमीशन भाजपा के हाथ की कठपुतली बन चुकी है: तेजस्वी यादव 

इलेक्शन कमीशन भाजपा के हाथ की कठपुतली बन चुकी है। यह कहना है आज बिहार में विपक्षी दल के नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री, तेजस्वी यादव का। पटना में आज जब एएनआई के पत्रकार द्वारा तेजस्वी यादव से चुनाव आयोग के मतदाता सूची में गहन पुनरीक्षण अभियान के बाबत सवाल किया गया तो साफ़ नजर आ रहा था कि चुनाव आयोग ने विपक्ष को किस कदर बैचेनी में डाल दिया है।

यहां पर बता दें कि हम उक्त इंटरव्यू को साझा नहीं कर सकते, क्योंकि एजेंसी का अपनी सामग्री पर एकाधिकार है, और इसका उल्लंघन करने पर कई लाख रूपये के हर्जाने का दावा किया जा सकता है। कोई भी चाहे तो उक्त साक्षात्मकार को सोशल मीडिया पर देख सकता है।

अपने वक्तव्य में तेजस्वी यादव का कहना है कि चुनाव आयोग विपक्ष से मिलने के लिए समय नहीं दे रहा है। पहले उसका तर्क था कि राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष की ओर से इस बाबत पत्र भेजा जाना चाहिए। फिर बाद में कहा गया कि इसे ईमेल के द्वारा भेजिए. फिर कहा गया कि पार्टी के अकाउंट की ओर से इसे भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं आज भी लालू यादव जी के द्वारा लिखे गये नए पत्र के साथ आया हूँ। लेकिन चुनाव आयोग ने अभी तक हमारे पत्राचार का संज्ञान तक नहीं लिया है। 

तेजस्वी यादव आगे कहते हैं कि अब चुनाव आयोग का कहना है कि सारे दल एक साथ नहीं मिल सकते। एक-एक कर मिल सकते हैं। ये क्या तमाशा चल रहा है? 

आप सभी को याद होगा कि 25 जून को चुनाव आयोग की ओर से बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण की घोषणा के अगले दिन ही महागठबंधन की ओर से पटना में एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। इसमें विस्तार से राजद, कांग्रेस, सीपीआई (एमएल), सीपीआई सहित अन्य गठबंधन दलों ने उन सभी बातों का जिक्र किया था, जिसे हम एक सप्ताह बाद भी चर्चा में सुन देख रहे हैं।

जब पत्रकारों की ओर से पूछा गया कि विपक्ष आगे क्या करने जा रहा है, तो तेजस्वी यादव का कहना था कि हमारा पहला कदम होगा चुनाव आयोग से मिलकर इस बारे में अपना पक्ष रखना। आज इस बात को एक सप्ताह बीत चुके हैं, लेकिन विपक्ष के पास आगे की कोई रणनीति नजर नहीं आती। चुनाव आयोग धड़ल्ले से अपने काम पर लग गया है. शर्तों में कुछ ढील के साथ उसने यह दिखाने की कोशिश की है कि वह विपक्ष के सवालों पर ध्यान दे रहा है, लेकिन समूचा बिहार जानता है कि चुनाव आयोग ने वैध मतदाता होने के लिए जिन दस्तावेजों की मांग की है, उसे करोड़ों वैध मतदाता पूरा नहीं कर पाएंगे। 

करीब डेढ़ दशक पहले भारत सरकार ने पूरे देशभर में घूम-घूमकर जिस एक दस्तावेज के लिए काम किया था, वह था आधार कार्ड। आज आधार कार्ड एक ऐसा दस्तावेज है, जिसके बिना आप हवाई यात्रा, होटल में एंट्री जैसी तमाम जरुरी चीजें नहीं कर सकते। लेकिन चुनाव आयोग को चाहिए, बिहार के लोगों का जन्म प्रमाण पत्र, जिसके लिए देश में किसी भी राज्य सरकार ने आज तक कोई अभियान नहीं चलाया है। 

बिहार के मामले में तो स्थिति सबसे बदतर है, और माना जाता है कि यहां मात्र 2-3% के पास ही जन्म प्रमाणपत्र हैं. इससे आगे बढें तो मेट्रिक परीक्षा का प्रमाण पत्र आपकी समस्या हल कर सकता है। लेकिन यहां पर भी भारी पेंच है, क्योंकि बहुसंख्यक आबादी हाई स्कूल पास भी नहीं है। इसी प्रकार जाति प्रमाण पत्र भी दलितों और ओबीसी वर्ग में 20% से अधिक नहीं है, सामान्य वर्ग के पास तो वो भी नहीं है। अलबत्ता, सामान्य वर्ग के लोगों में मेट्रिक पास लोगों की संख्या अवश्य 30% से अधिक हो सकती है।

ऊपर से करीब 3 करोड़ बिहारी दूसरे प्रदेशों में अप्रवासी श्रमिक या रोजी-रोजगार में लगे हुए हैं। खुद को वैध मतदाता साबित करने के लिए उन्हें 1 जुलाई से 25 जुलाई के बीच अपना रोजगार छोड़ बिहार में आकर दस्तावेज जुटाने होंगे, जोकि आधे से अधिक लोगों के पास हैं ही नहीं। 

चुनाव आयोग का इस बारे में यह भी कहना है कि आपको बिहार आने की जरूरत नहीं है, बल्कि आप डिजिटली भी इस काम को कर सकते हैं। लेकिन करीब 60% लोगों को तो अपने वैध मतदाता साबित करने के लिए अपने माँ-बाप में से किसी एक या दोनों के जन्म प्रमाण और स्थान को साबित करना पड़ेगा। इस काम को कोई अप्रवासी भला, पंजाब, तमिलनाडू में बैठकर कैसे हल कर सकता है? निश्चित रूप से पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग के लिए यह सुविधाजनक हो सकता है, और नहीं भी।

मजे की बात यह है कि इसी मुद्दे पर चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधिमंडल से कल मिल चुका है। लेकिन इस मुलाकात से पहले चुनाव आयोग के दफ्तर के बाहर जिस पैमाने पर पुलिसबल का इंतजाम किया गया था, वह अपनेआप में अभूतपूर्व था। ऐसा जान पड़ता था कि चुनाव आयोग पर कभी भी विपक्षी दल बड़ा हमला बोल सकते हैं। आखिर चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है, जिसका काम देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना है।

इस देश ने टी.एन. शेषन का जमाना भी देखा है, जिनके आगे राजनीतिक पार्टियाँ थर्राती थीं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अपनी छवि एक बेदाग़ प्रशासक के साथ ही एक कड़क व्यक्तित्व की बना रखी थी, जिससे विपक्ष क्या सत्ता पक्ष भी घबराता था। चुनाव आयुक्त अपने कार्यक्षेत्र के मामले में स्वतंत्र और सर्वोपरि है, उसका काम सिर्फ और सिर्फ जनता जनार्दन और लोकतंत्र को किसी भी कीमत पर कायम रखना है।

लेकिन मौजूदा दौर में हालत यह है कि पूर्व चुनाव आयुक्त राजीव कुमार तो शेरो-शायरी के बहाने एक-आध एकतरफा प्रेस कांफ्रेंस कर सारे मामले को रफादफा करने में माहिर थे, लेकिन अब तो चुनाव आयोग सामने आकर कुछ भी जवाब देना भी जरुरी नहीं समझता।

हर चीज आईने की तरह साफ है, लेकिन विपक्ष को अभी इसे समझने में वक्त लग रहा है। यह अलग बात है कि वक्त रेत की तरह तेजी से फिसलता जा रहा है। दो दिन पहले ही दावा किया गया था कि बिहार के एक करोड़ घरों तक मतदाता फॉर्म भिजवाये जा चुके हैं। चुनाव आयोग अपने काम को मुस्तैदी से करता जा रहा है, और अगले तीन सप्ताह में वह इस कवायद को पूरा कर मतदाता सूची में अपडेट को जारी कर देगा। जो लोग संदर्भित दस्तावेज संलग्न कर पाने में असमर्थ रहेंगे, वे वोट देने के हकदार नहीं होंगे। 

लेकिन सब कुछ जानते हुए भी विपक्ष अभी भी पेशोपेश में है। विपक्ष अभी भी उपलब्ध प्रेस के सामने चुनाव आयोग की कवायद पर संदेह जताते हुए अपना विरोध व्यक्त कर रहा है। उसके पास बड़े जनांदोलन को खड़ा करने, असहयोग आंदोलन से लेकर अंत में चुनाव के बहिष्कार की धमकी देने की भी हिम्मत नहीं पड़ रही है। यह समझ सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कांग्रेस और वाम दलों को भी आगे की राह नहीं सूझ रही है।

सबसे हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता, राहुल गांधी ने अभी तक इस मसले पर एक शब्द नहीं कहा है. एक व्यक्ति, जिसने पिछले कुछ माह से बिहार में एक के बाद एक दौरे कर युवाओं और दलित वर्ग में नए उत्साह का संचार किया हो, ने सबकुछ बिहार राज्य नेतृत्व पर छोड़ दिया है। जबकि, साफ़ नजर आ रहा है कि राहुल गांधी के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटों की धांधली के मुद्दे को 6 माह बाद भी जिंदा रखना, बिहार में वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण की फांस को लेकर आया है। क्या राजनीतिक दलों के नेता इतने अधिक नासमझ हैं, जो उन्हें इतनी सीधी सी बात समझ नहीं आ रही जिसे बड़ी संख्या में आम लोग समझ पा रहे हैं? 

कहना न होगा, यदि अगले दो-तीन दिन तक संयुक्त विपक्ष ने एकजुट होकर बिहार में बड़े जनांदोलन से लेकर चुनाव बहिष्कार तक की सीमा को लांघने का बड़ा ऐलान नहीं किया तो बिहार के आक्रोशित युवा और गरीब-गुरबा के लिए जो थोड़ी आस बंध रही थी, वह भी खत्म हो जायेगी। तेजस्वी यादव, जो पिछली बार संभवतः मात्र 20,000 वोटों के अंतर से सरकार बनाने से चूक गये, इस बार तो लाखों नहीं करोड़ों वोटों के अनुपस्थिति की सूरत में उन्हें भविष्य की इबारत को साफ़-साफ़ पढ़ लेना चाहिए। 

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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