भारत अपने पड़ोसी देश के साथ युद्ध के कगार से वापस लौटा है।
जबकि पिछले दिनों युद्ध को लेकर चिंतित विभिन्न राज्यों के नागरिक नई दिल्ली में एकत्रित हुए और “कोऑर्डिनेशन कमिटी फॉर पीस” (‘शांति के लिए समन्वय समिति’) का गठन किया और युद्ध के खतरों पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कई कार्यक्रम किए।
वहीं नागरिक समाज के गठबंधन ने आदिवासी बहुल राज्यों की पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के निरंतर आंतरिक युद्ध पर भी चिन्ता जताई और इसपर भी तत्काल संघर्ष विराम की मांग की।
बताया गया कि छत्तीसगढ़ की तेलंगाना सीमा के पास कर्रेगुट्टा पर्वत श्रृंखला में 21अप्रैल 2025 को शुरू की गई एक प्रमुख सैन्य मुठभेड़ को स्थगित करने की खबरों के बीच, बस्तर से झारखंड तक आदिवासियों के शवों का ढेर लगना जारी है, साथ ही सरकार की क्रूरता की भयावह कहानियां भी सामने आ रही हैं। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि कर्रेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र में अर्धसैनिक बलों द्वारा हाल ही में लगभग 25 लोगों को माओवादी के नाम पर मार दिया गया।
बताया गया कि पिछली जनवरी में सलवा जुडूम के बाद सबसे आक्रामक अभियान, ऑपरेशन कगार के बाद से बस्तर में सरकार के इस आंतरिक युद्ध में मरने वालों की संख्या 500 के करीब पहुंच गई है। जबकि सीपीआई (माओवादी) ने एक महीने पहले एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की थी और बार-बार शांति वार्ता का आह्वान कर रहे है, तब से सरकार आदिवासी अधिकारों के राजनीतिक सवालों के प्रति आंखें मूंद कर सैन्य आक्रमण जारी रखे हुए है।
अप्रैल की शुरुआत में भारत भर के 300 से अधिक नागरिक जन संगठनों, जनांदोलनों और हिंसा से चिंतित लोगों ने सरकार और सीपीआई (माओवादी) दोनों से तत्काल और बिना शर्त युद्ध विराम और शांति वार्ता की अपील की थी। उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को भी पत्र लिखा था। 8-9 मई को, 19 संगठन और कई उल्लेखनीय व्यक्ति, जो इस सामूहिक नागरिक समाज प्रयास का हिस्सा हैं, एक साथ आए और युद्ध विराम और शांति वार्ता के लिए अपनी वकालत जारी रखने के लिए शांति के लिए समन्वय समिति “कोआर्डिनेशन कमिटी फॉर पीस” का गठन किया। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में और भी लोकतांत्रिक संगठन इस समिति में शामिल होंगे।
वहीं समिति के प्रमुख सदस्यों ने 9 मई को नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और संघर्ष विराम की मांग के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। सम्मेलन को भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने भी संबोधित किया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी चंद्र कुमार, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी. हरगोपाल, लेखिका मीना कंडासामी, दिल्ली विश्वविद्यालय समाजशास्त्र की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधि दिनेश मुर्मू, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव, कोऑर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गनाइजेशन के सह-संयोजक क्रांति चैतन्य और फोरम अगेंस्ट कॉरपोरेटाइजेशन एंड मिलिटेराइजेशन के संयोजक एहतमाम शामिल थे।
“कोआर्डिनेशन कमिटी फॉर पीस” समिति के सदस्यों ने अपनी दृढ़ सामुहिक राय व्यक्त की कि सीपीआई (माओवादी) नेतृत्व द्वारा संयम बरतने की सार्वजनिक पेशकश के मद्देनज़र सरकार से संवैधानिक जिम्मेदारी और राजनीतिक दूरदर्शिता पर आधारित प्रतिक्रिया की अपेक्षा है। जबकि छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने अक्सर माओवादी लड़ाकों के साथ “बिना शर्त” बातचीत का दिखावा किया है, हालांकि इस बात की उम्मीद के साथ कि वे हथियार डालने के लिए तैयार हों, लेकिन साथ ही व्यापक सैन्य अभियानों की वृद्धि ने एक गंभीर विरोधाभासी संदेश दिया है।
नवंबर से छत्तीसगढ़ में मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध जारी है, जो निहत्थे आदिवासी युवाओं का एक लोकतांत्रिक संगठन है, इसके कई युवा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और जमानत से इनकार तथा रघु मिडियामी, सुनीता पोट्टम और अन्य के खिलाफ यूएपीए (UAPA) लगाये जाने से लोगों का विश्वास और कम हुआ है।
तत्काल युद्ध विराम और शांति वार्ता के लिए सार्वजनिक वकालत के एक महीने बाद, अब यह मांग पूरे देश में गूंज रही है। मार्च महीने से ही छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और दिल्ली के कई हिस्सों में आंतरिक युद्ध विराम और शांति वार्ता का झंडा बुलंद करने के लिए विरोध प्रदर्शन और सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। विदुथलाई चिरुथैगल काची (वीसीके) के अध्यक्ष और सांसद डॉ. थिरुमावलवन ने इस मामले के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लिखा है। सीपीआई, सीपीआई (एम) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी समर्थन का वादा किया है।
तेलंगाना के पूर्व सीएम के. चंद्रशेखर राव ने वारंगल में एक विशाल जनसभा को संबोधित किया, जहां उन्होंने सत्तारूढ़ शासन से युद्ध विराम की घोषणा करने का आह्वान किया, जबकि वर्तमान सीएम ए. रेवंत रेड्डी ने भी समर्थन व्यक्त किया। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन और सीपीआई (एमएल) न्यू डेमोक्रेसी राज्यों में इन मांगों को लेकर सड़क पर उतर आए हैं।
शांति समन्वय समिति “कोआर्डिनेशन कमिटी फॉर पीस” के प्रतिनिधिमंडल ने 9-10 मई को राहुल गांधी (नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा) और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा) से भी मुलाकात की और उनसे माओवादी पार्टी नेतृत्व और दूसरी ओर, केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के बीच युद्ध विराम और शांति वार्ता की मांग को राजनीतिक समर्थन देने का आग्रह किया। प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें इस मुद्दे पर अन्य भारतीय दलों को संगठित करने के लिए भी कहा। उन्होंने सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा और सीपीआई (एम) के महासचिव एम. ए. बेबी से भी मुलाकात की।

इस समय, शांति गठबंधन “कोआर्डिनेशन कमिटी फॉर पीस” के अनुसार, सरकार द्वारा बिना शर्त युद्ध विराम अनुच्छेद 21 से प्राप्त एक संवैधानिक अनिवार्यता है। यह हिंसा को रोकने, आदिवासी समुदायों के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण करने और न्याय, शांति और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का एकमात्र व्यवहारिक तरीका है। समिति नीचे अपनी मांगों को दोहराती है और सभी नागरिकों और लोकतांत्रिक और राजनीतिक ताकतों से इस प्रक्रिया का समर्थन करने और राज्य को अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रेरित करने की अपील करती है….
1. सरकार को आदिवासी इलाकों में हमले बंद करने चाहिए, तथा निष्पक्षता के साथ विश्वसनीय युद्ध विराम लागू करना चाहिए।
2. सीपीआई (माओवादी) ने एक-तरफा युद्ध विराम की घोषणा की है, तथा उन्हें अपने आश्वासन पर कायम रहना चाहिए।
3. सरकार और सीपीआई (माओवादी) के बीच जल्द से जल्द बातचीत शुरू होनी चाहिए। लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाले सभी आदिवासी समूहों और नेताओं को इस बातचीत का हिस्सा होना चाहिए।
4. स्वतंत्र नागरिक संगठनों और मीडिया को सभी क्षेत्रों में पहुंच प्रदान की जानी चाहिए, जहां इस प्रकार के संघर्ष चल रहे हैं।
5. लोगों की जीविका जरूरतों और संवैधानिक अधिकारों को तत्काल हल करने पर ध्यान देना चाहिए।
6. राज्य को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का दावा करने के लिए जेल में बंद आदिवासियों और अन्य कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए और उन्हें इस बातचीत में समान हित-धारक बनाना चाहिए। (उदाहरण के लिए, मूलवासी बचाओ मंच के कार्यकर्ता)
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)