इसे कहते हैं हमेशा लक्ष्य केंद्रित रहना। कल पूरे दिन भर प्रधानमंत्री मोदी की सेना के तीनों विंग्स के प्रमुखों, सीएडीएस और एनआईए प्रमुख के साथ हुई बैठक को लेकर कयास चलते रहे, जिसकी भनक पर सीमा पार पाकिस्तान में भी जवाबी हमले और बचाव की तैयारियां जोर-शोर से होने लगी थीं। लेकिन जैसा कि भूराजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ लगातार दोहरा रहे थे कि युद्ध की स्थितियां कहीं से भी माकूल नहीं हैं, और यह सारी कवायद मूलतः देशवासियों को गुड ह्यूमर में रखने के लिए की जा रही हैं, आज की कैबिनेट कमेटी की बैठक के बाद वैसा ही देखने को मिला है।
राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीपीए) के फैसलों की जानकारी प्रेस के साथ साझा करते हुए केंद्रीय मंत्री, अश्विनी वैष्णव ने बताया है कि आगामी जनगणना के साथ ही जाति जनगणना के काम को भी मंजूरी दे दी गई है। मंत्री जी के अनुसार, “भारतीय संविधान के मुताबिक, जनगणना का काम संघ का विषय है। कुछ राज्यों ने जाति जनगणना के लिए अपने प्रदेश में सर्वेक्षण करवाए हैं। मैं दोहरा रहा हूँ कि सर्वेक्षण कराए हैं। कुछ राज्यों ने इस काम को अच्छे से किया है, वहीं कुछ अन्य राज्यों ने इसे शुद्ध रूप से राजनीतिक लिहाज से गैर-पारदर्शी तरीके से किया है। ऐसे सर्वेक्षणों ने राज्य में संदेह को जन्म दे दिया है।”
कैबिनेट कमेटी के ताजा फैसलों से जहां दक्षिण एशिया में युद्ध और अशांति के बादल काफी हद तक छंट गये हैं, जिसको लेकर अमेरिका और चीन दोनों कहीं न कहीं अरुचि प्रकट कर चुके थे। आजादी के बाद से भारत का एकमात्र भरोसेमंद दोस्त, रूस पिछले 3 वर्ष से खुद यूक्रेन में नाटो देशों के पैसे और हथियारों का मुकाबला कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी की नाजी सेना पर निर्णायक जीत की 80वीं सालगिरह पर रूस के राष्ट्रपति ने स्वंय चीन और भारत के प्रमुखों को आमंत्रित कर रखा है। ऊपर से स्वयं, पीएम मोदी कई बार वैश्विक मंचों पर इस बात को दुहरा चुके हैं कि यह समय युद्ध का नहीं है, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले में हुई चूक के लिए चूँकि सीधे गृह मंत्रालय जिम्मेदार है, इसलिए देश का ध्यान हटाने के लिए कुछ बड़ा होने वाला है, का मंचन भी ज़रूरी था।
अब ध्यान दीजिये कि देश का नैरेटिव कैसे तेजी से बदलता है। 22 अप्रैल से पहले तक देश में चारों तरफ वक्फ़ बिल पर विपक्ष, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के बड़े आंदोलन की चेतावनी, सुप्रीम कोर्ट की ओर से केंद्र सरकार से पूछे गये कुछ कड़े प्रश्न और एनडीए गठबंधन के भीतर की अंतर्कलह के साथ-साथ बीजेपी का अध्यक्ष कौन बने को लेकर आरएसएस का बढ़ता दबाव मोदी सरकार के लिए जी का जंजाल बना हुआ था।
पहलगाम आतंकी हमले ने पूरे परिदृश्य को बदलकर रख दिया। तत्काल गोदी मीडिया ने 26 सैलानियों की मौत को आतंकियों द्वारा हिंदू पहचान के आधार पर गोली मारने को बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन समूचे कश्मीर, श्रीनगर के व्यापारियों, होटल और खच्चर वालों की सह्रदयता और पीड़ितों को मदद के वीडियो इस नैरेटिव को हावी ही नहीं होने दे रहे थे। ऊपर से पीड़ित परिवारों और देश ने जब यह सवाल पूछना शुरू कर दिया कि इतनी बड़ी संख्या में सैलानियों की मौजूदगी में सरकार ने सुरक्षा के कोई इंतजाम क्यों नहीं किये थे, का सरकार के पास कोई जवाब नहीं था।
अब जबकि कल शाम की बैठक और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ पीएम की मुलाकात हो गई, और सूत्रों के हवाले से खबर लीक की गई कि सारा दारोमदार अब सेना के विवेक पर छोड़ दिया गया है, तभी अनुभवी पत्रकारों ने बता दिया था कि भारत की ओर से बड़े हमले की बात अब खत्म हो चुकी है।
अब देश को एक ऐसे नैरेटिव के साथ ऊभ-चूभ कराने की तैयारी हो चुकी है, जिसका सीधा असर बिहार विधानसभा चुनाव पर तो पड़ेगा ही साथ ही चुनावी लिहाज से देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी समीकरण को बड़े पैमाने पर बीजेपी अपने पक्ष में साध सकती है।
जैसा कि सभी जानते हैं, बिहार में महागठबंधन सरकार के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सबसे पहली बार जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े सार्वजनिक किये गये थे। अब बीजेपी इसे अपनी उपलब्धि बताएगी, और इसी सर्वेक्षण को सही और तेलंगाना एवं कर्नाटक में कांग्रेस की राज्य सरकारों द्वारा किये गये सर्वेक्षणों को राजनीतिक लाभ के लिए गलत सर्वेक्षण बताकर राष्ट्रीय स्तर पर 1931 के बाद पहली बार जातिगत सर्वेक्षण कराने का क्रेडिट लेने की तैयारी करेगी।
इसका असर भी दिखना शुरू हो गया है। बीजेपी के ओबीसी एवं दलित समुदाय के नए पक्षकार दिलीप सी मंडल सहित तमाम धुरंधरों ने सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार कार्य शुरू भी कर दिया है। उधर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे पीडीए की जीत बताते हुए अपने बयान में कहा है, “जाति जनगणना का फ़ैसला 90% पीडीए की एकजुटता की 100% जीत है। हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन ये निर्णय लेने को बाध्य हुई है। सामाजिक न्याय की लड़ाई में ये पीडीए की जीत का एक अति महत्वपूर्ण चरण है”।
भाजपा सरकार को ये चेतावनी है कि अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखे। एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में अपना वो अधिकार और हक़ दिलवाएगी, जिस पर अब तक वर्चस्ववादी फन मारकर बैठे थे। ये अधिकारों के सकारात्मक लोकतांत्रिक आंदोलन का पहला चरण है और भाजपा की नकारात्मक राजनीति का अंतिम। भाजपा की प्रभुत्ववादी सोच का अंत होकर ही रहेगा। संविधान के आगे मनविधान लंबे समय तक चल भी नहीं सकता है।
ये INDIA की जीत है!”
उधर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, मल्लिकार्जुन खड़गे का भी बयान आ गया है। खड़गे कहते हैं, “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लगातार जातिगत जनगणना की माँग उठाई थी, जिसके सबसे मुखर पक्षधर श्री राहुल गांधी रहे हैं। आज मोदी सरकार ने Census के साथ जातिगत जनगणना कराने की घोषणा की है। ये सही कदम है जिसकी हम पहले दिन से माँग कर रहे थे।
मैंने कई बार इसे संसद में उठाया और प्रधानमंत्री जी को पत्र भी लिखा। INDIA गठबंधन के नेताओं ने भी कई बार जातिगत जनगणना की माँग की है और लोकसभा चुनाव में ये अहम मुद्दा बना। बार-बार प्रधानमंत्री मोदी जी सामाजिक न्याय की इस नीति को लागू करने से बचते रहे और विपक्ष पर समाज को बांटने का झूठा आरोप लगाते रहे। जातिगत जनगणना के अभाव में, सार्थक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण कार्यक्रमों का क्रियान्वयन अधूरा है, इसीलिए ये सभी वर्गों के लिए ज़रूरी है। जनगणना के लिए इस साल के बजट में भी केवल ₹575 करोड़ का आवंटन है, इसलिए ये सवाल मुनासिब है कि सरकार इसको कैसे और कब पूरा करेगी।
कांग्रेस पार्टी ये माँग करती है कि मोदी सरकार जल्द से जल्द, बजट का प्रावधान कर, जनगणना और जातिगत जनगणना का काम पूरी पारदर्शिता के साथ चालू करे।”
इस प्रकार, मोदी की कैबिनेट कमेटी की इस महत्वपूर्ण बैठक ने पहलगाम आतंकी हमले से उठे गंभीर प्रश्नों के जवाब में विपक्ष की एक बहुप्रतीक्षित मांग को स्वीकार कर अपने ऊपर उठ रहे सवालों, वैश्विक स्तर पर राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ वार के समय पाक पर हमले के लिए बढ़ते राष्ट्रवादी दबावों से ही न सिर्फ खुद को मुक्त कर लिया है, बल्कि विपक्ष के दो वर्षों के नैरेटिव को अपना बनाकर उसके पाँव के नीचे से जमीन खींचने की जबरदस्त चाल चली है।
जबकि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पहलगाम आतंकी हमले के बाद से कश्मीर घाटी जाकर अस्पताल में पीड़ितों से मुलाकात करने से लेकर आज आतंकी हमले में शहीद हुए शुभम द्विवेदी के परिजनों से मुलाक़ात और सांत्वना देने की पहल में लगे हुए हैं। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी शक्तियों और सामाजिक पहचान की शक्तियों के बीच की रस्साकशी में से कितना हिस्सा बीजेपी या कांग्रेस के हिस्से से छिटकता या प्रवेश पाता है। भारत जैसे विशाल आबादी और बहुराष्ट्रीय संस्कृति वाले देश की बुनियादी समस्याओं का हल तो हमारे नायकों के पास नहीं है, इसलिए धागों को सुलझाने से अच्छा है कि अपनी ओर से इसे और उलझा दो। शायद उनके पास यही विकल्प बचा है।
(रविंद्र सिंह पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)