गुजरात कांग्रेस ने संगठन सृजन अभियान के तहत प्रदेश के 41 जिला/शहर अध्यक्षों की नियुक्ति की है। कांग्रेस इस अभियान के माध्यम से संगठन को मजबूत कर 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सबसे मजबूत गढ़ को चुनौती देना चाहती है। कांग्रेस का नेतृत्व प्रदेश नेताओं से निराश होकर ऐसी प्रक्रिया अपना रहा है, जिससे जिला और शहर की नियुक्तियों में प्रदेश नेताओं का दखल कम किया जा सके। कांग्रेस ने इन नियुक्तियों के लिए नियम बनाए थे कि जिला और शहर प्रमुख 35 से 55 वर्ष के लोगों को बनाया जाएगा।
प्रदेश कांग्रेस के सुझाए 6 उम्मीदवारों का साक्षात्कार राहुल गांधी स्वयं लेंगे। लेकिन अंत में नियमों को दरकिनार कर दिया गया। केंद्रीय नेतृत्व ने उन उम्मीदवारों को चुना, जिन्हें वे मजबूत मानते थे। इन नियुक्तियों में तत्कालीन प्रदेश प्रमुख शक्ति सिंह गोहिल, भारत सिंह सोलंकी, अमित चावड़ा, गेनीबेन ठाकोर, जगदीश ठाकोर, सिद्धार्थ पटेल और कादिर पीरजादा जैसे प्रदेश नेताओं की पसंद का ख्याल रखा गया। इसके अलावा, उद्योगपति गौतम अडानी को भी कच्छ जिले में अपनी पसंद के जिला प्रमुख की नियुक्ति कराने में सफलता मिली है।
विसावदर और कडी उपचुनाव में कांग्रेस की हार के बाद गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल ने इस्तीफा दे दिया और संगठन का कार्यभार देखने के लिए विधानसभा में पार्टी के उपनेता शैलेश परमार को जिम्मेदारी सौंपी। कांग्रेस हाईकमान ने गुजरात प्रदेश समिति के अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को गुजरात में सबसे अधिक भरोसा विधायक जिग्नेश मेवाणी पर है। इसलिए गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अहमदाबाद से दिल्ली तक जिग्नेश मेवाणी की चर्चा सबसे अधिक हो रही है।
मीडिया में खबरें चल रही हैं कि जिग्नेश मेवाणी ने केंद्रीय नेतृत्व को एक डोजियर सौंपा है, जिसमें गुजरात में पार्टी को पुनर्जनन करने का “Plan of Action” है। इस कारण कुछ राजनीतिक पंडित अनुमान लगा रहे हैं कि मेवाणी सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं। लेकिन सूत्रों के अनुसार, मेवाणी ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है और पिछड़े वर्ग से अध्यक्ष बनाने का सुझाव दिया है। केंद्रीय नेतृत्व के पास पिछड़े वर्ग से आने वाले लालजी देसाई और अमित चावड़ा के नाम पर चर्चा हो रही है।
दूसरी ओर, अहमदाबाद के चौराहों पर चर्चा है कि पूर्व प्रमुख शक्ति सिंह गोहिल अपने कार्यकाल में बीजेपी को चुनौती देने में असफल रहे, क्योंकि वे बीजेपी प्रायोजित कांग्रेसी नेताओं से घिरे रहे। अपने कार्यकाल में उनकी एकमात्र चिंता यह थी कि पार्टी चलाने के लिए पैसा कहाँ से आएगा। बिजली और फार्मा उद्योग से जुड़े एक उद्योगपति ने उनके कार्यकाल में प्रदेश कार्यालय को अच्छी फंडिंग प्रदान की।
बीजेपी से साठगांठ रखने वाले नेता भी अच्छे फंड रेजर हैं। कांग्रेस हाईकमान ने कांग्रेस में रहकर बीजेपी का काम करने वालों को पहचान लिया, लेकिन उन उद्योगपतियों को नहीं पहचान पाए, जो कांग्रेस में फंडिंग देकर बीजेपी को फायदा पहुँचाने और कांग्रेस को कमजोर करने का काम कर रहे थे।
जब से आंदोलनकारी और एनजीओ पृष्ठभूमि के नेताओं के नाम प्रदेश प्रमुख के लिए उछले हैं, तब से बारात के घोड़े सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस हाईकमान को फंडिंग के नाम पर डराया जा रहा है कि यदि इन्हें बनाया गया, तो पार्टी को फंडिंग नहीं मिलेगी। जिस तरह मोसाद ने ईरान में घुसपैठ की है, उसी तरह बीजेपी ने भी कांग्रेस में घुसपैठ कर रखी है। जब कोई कांग्रेसी नेता बीजेपी पर हमलावर होता है, तो अंदर बैठे बीजेपी के मोसाद जैसे एजेंट ड्रोन उड़ाकर कांग्रेस के क्षेत्र में ही उस नेता का शिकार कर लेते हैं।
कांग्रेस पार्टी ने वी.के. हम्बल को कच्छ जिले का अध्यक्ष बनाया है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे उद्योगपति गौतम अडानी के करीबी हैं। कांग्रेस के कई नेता भी मानते हैं कि हम्बल के अडानी ग्रुप के साथ निकट संबंध हैं। गुजरात सरकार ने कौड़ियों के भाव जो जमीनें अडानी को दी हैं, उनमें अधिकांश कच्छ की हैं। अडानी का मुंद्रा पोर्ट भी कच्छ जिले में ही है।
कच्छ की नियुक्ति में सफलता मिलने के बाद अडानी ग्रुप अब गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अपनी पसंद के व्यक्ति को नियुक्त कराने के प्रयास में है। ऐसा नहीं है कि गौतम अडानी के लोग कांग्रेस में नहीं हैं। यूपीए-1 और यूपीए-2 के समय अहमद पटेल सुपर पीएम कहे जाते थे। उस समय भी गौतम अडानी की फाइलें न रुकती थीं, न दबती थीं।
सिद्धार्थ पटेल 2008 से 2011 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और दो बार विधायक भी रहे हैं। उनके पिता गुजरात के मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता थे। जब सिद्धार्थ पटेल यूपीए के समय प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उन पर आरोप लगता था कि अडानी की कारोबारी फाइलें उनके माध्यम से केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों तक पहुँचती थीं और अहमद पटेल के जरिए अडानी को कारोबारी लाभ मिलता था।
ग्राम पंचायत चुनाव में मंत्रियों के बेटे-बेटियों की हार से बीजेपी और उनके उद्योगपति दोस्तों में बेचैनी बढ़ी है। इसलिए बीजेपी नहीं चाहती कि कांग्रेस रेस के घोड़ों को पार्टी से खदेड़े। इसीलिए कांग्रेस हाईकमान को फंडिंग का डर अलग-अलग मोर्चों से दिखाया जा रहा है।
गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश मेहता, जो अपनी राजनीतिक भविष्यवाणियों के लिए जाने जाते हैं, ने भी कांग्रेस हाईकमान को मीडिया के माध्यम से फंडिंग के मुद्दे पर डराया है। मेहता ने अमरेली जिले से आने वाले कद्दावर नेता वीरजी ठुम्मर और पिछड़े वर्ग से आने वाले विधानसभा में कांग्रेस पक्ष के नेता तथा पूर्व प्रदेश प्रमुख अमित चावड़ा के नाम की भविष्यवाणी की है। ठुम्मर पाटीदार समुदाय से हैं, जबकि चावड़ा ठाकोर समुदाय से हैं।
मेहता ने तीसरे नाम से सबको चौंका दिया। उनके अनुसार, विधायक शैलेश परमार भी अगले गुजरात प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं। उनका तर्क है कि परमार पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप है, लेकिन वे पार्टी के लिए फंड जुटा सकते हैं। फंड जुटाने वाला ए हो या बी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
पाटीदार समाज के कई नेता दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं, ताकि गुजरात प्रदेश का अध्यक्ष उनके समुदाय से बनाया जाए। पूर्व सीएलपी लीडर परेश धनानी और वीरजी ठुम्मर का नाम कांग्रेस हाईकमान के पास पहले से ही विचाराधीन है। लेकिन सूत्रों के अनुसार, पाटीदारों का मक्का कहे जाने वाले खोडलधाम ने किसी पाटीदार को कांग्रेस प्रमुख बनाने का दबाव शुरू कर दिया है।
खोडलधाम के मुख्य ट्रस्टी नरेश पटेल, जो पाटीदार समुदाय के प्रभावशाली व्यक्ति और बड़े उद्योगपति हैं, इस दबाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समय नरेश पटेल का नाम जोर-शोर से उछला था कि वे कांग्रेस में शामिल होंगे और मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। ऐसी खबरों ने ठाकोर समुदाय को असहज कर दिया था, जिसका कांग्रेस को नुकसान भी हुआ था।
बारात के घोड़ों वाली एक लॉबी अहमदाबाद से दिल्ली तक, वाया राजस्थान, लॉबिंग कर रही है कि कांग्रेस हाईकमान प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष इंद्रविजय सिंह गोहिल को प्रदेश प्रमुख बनाए। गोहिल शिक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्योगपति हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि गुजरात में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई कांग्रेस की नहीं, बल्कि गोहिल का संगठन है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उमाकांत मकड ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर शक्ति सिंह गोहिल के इस्तीफे को अस्वीकार करने की मांग की है। मकड ने पत्र में कहा है, “गोहिल का इस्तीफा स्वीकार किया गया, तो यह पार्टी के लिए हानिकारक होगा। उनकी नाराजगी से पार्टी में गुटबाजी बढ़ेगी और संगठन निर्माण अभियान को नुकसान होगा। इसलिए मेरा अनुरोध है कि उनका इस्तीफा अस्वीकार किया जाए और उन्हें पद पर बने रहने का आदेश दिया जाए।”
मकड ने संवाददाता से टेलीफोनिक बातचीत में फंडिंग के मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा, “शक्ति सिंह गोहिल अगड़ों, पिछड़ों और शिक्षित युवाओं में बहुत लोकप्रिय हैं। उनके उद्योग घरानों से भी अच्छे संबंध हैं। उनके प्रदेश प्रमुख रहते हुए पार्टी को फंडिंग की कभी कोई समस्या नहीं हुई। यदि उनका इस्तीफा अस्वीकार किया जाता है, तो आगे भी पार्टी को फंडिंग की कोई समस्या नहीं होगी।”
गुजरात में 43% से अधिक पिछड़ा वर्ग, 16% अनुसूचित जनजाति, 12.6% पाटीदार, 8% अनुसूचित जाति और 10% मुस्लिम आबादी है। पिछड़ों में सबसे बड़ी आबादी कोली और ठाकोर की है, जो लगभग 20 से 24 प्रतिशत है।
गुजरात प्रदेश अध्यक्ष के लिए विधायक जिग्नेश मेवाणी, सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालजी देसाई, विधानसभा में कांग्रेस पक्ष के नेता अमित चावड़ा, पूर्व विधायक वीरजी ठुम्मर, पूर्व सीएलपी लीडर परेश धनानी, सांसद गेनीबेन ठाकोर, पूर्व सांसद और विधायक तुषार चौधरी जैसे नेताओं के नाम कांग्रेस हाईकमान के पास विचाराधीन हैं। अमित चावड़ा ठाकोर समुदाय से हैं और 2018-21 के दौरान प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। इस समय वे गुजरात विधानसभा में पार्टी के नेता हैं।
लालजी देसाई मालधारी समुदाय से हैं, जिनकी आबादी लगभग 10 प्रतिशत है। वे गांधीवादी और कांग्रेस सेवादल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 15 फरवरी 2014 को देसाई कांग्रेस में शामिल हुए थे। इससे पहले उनकी पहचान एक किसान नेता की थी। देसाई ने जमीन अधिकार आंदोलन गुजरात (JAAG) सहित कई किसान आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया है।
गेनीबेन ठाकोर समुदाय से हैं और 2024 में लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंची हैं। तुषार चौधरी के पिता मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चौधरी कांग्रेस में आदिवासी चेहरा हैं। धनानी और ठुम्मर पाटीदार समुदाय से हैं, जो गुजरात में प्रभावशाली समुदाय है। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और आम आदमी पार्टी के फायरब्रांड विधायक गोपाल इटालिया भी पाटीदार समुदाय से हैं।
बीजेपी भी जल्द ही अपने प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करने वाली है। चूंकि बीजेपी ने पाटीदारों को मुख्यमंत्री दिया है, इसलिए माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष पिछड़े वर्ग से होगा। इसीलिए पाटीदार बीजेपी पर प्रदेश अध्यक्ष के लिए दबाव नहीं बना रहे हैं। पाटीदार परंपरागत रूप से बीजेपी को वोट देते हैं, और उनके एक वर्ग का झुकाव आम आदमी पार्टी की ओर भी है। कांग्रेस को पाटीदार वोट न के बराबर मिलते हैं।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में अडानी ग्रुप, बीजेपी के कथित मोसाद जैसे एजेंटों और पाटीदारों की दिलचस्पी ने राज्य की राजनीति को रोचक बना दिया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का विश्लेषण अपनी जगह है, लेकिन राजनीतिक दलों के निर्णय अपनी जगह होते हैं। विश्लेषण कुछ हद तक दिशा दे सकते हैं, लेकिन निर्णय पर उनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ता। जब तक गुजरात में कांग्रेस और बीजेपी अपने अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर देतीं, इस तरह के विश्लेषण चलते रहेंगे।
(गुजरात से कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट)