गया। स्कूलों में बच्चों को मिलने वाले मिड डे मील का बुरा हाल है। बच्चों के कुपोषण को दूर कर स्वस्थ बनाए रखने की यह योजना बिहार में खुद कुपोषण की शिकार है। ज्यादातर स्कूलों में या तो खाना बनता नहीं और अगर बनता भी है तो वह खाने लायक नहीं होता है। ऊपर से समाज में कोढ़ की तरह फैली ब्राह्मणवादी मानसिकता इसको और विकृत और बीमार कर देती है।
मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत 1925 में
मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत 1925 में मद्रास हुई थी। 1980 के मध्य तक तीन अन्य राज्यों गुजरात, केरला और तमिलनाडु तथा केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी में व्यापक रूप से अपने स्वयं के संसाधनों से प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए पका पकाया मध्याह्न भोजन योजना लागू किया गया।

2007 में इस योजना को बिहार के सभी 38 जिलों में लागू किया गया
बिहार सरकार द्वारा 18 दिसंबर, 2004 को अधिसूचित अधिसूचना के तहत 2005 में बिहार के सभी प्राथमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना शुरू की गई। वर्ष 2007-08 में इस योजना को बिहार के सभी 38 जिलों में लागू किया गया। 2020 के अनुसार बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित 14416688 बच्चों तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित 4337317 बच्चों को मध्याह्न भोजन का लाभ मिला।
मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य पका पकाया भोजन उपलब्ध कराने के अलावा बच्चों में पौष्टिकता के स्तर को बढ़ाना और मनोवैज्ञानिक लाभ भी पहुंचना था।लेकिन सरकारी स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील को लेकर शिकायतें बढ़ती जा रही हैं।

गया के पंचानपुर के सरकारी स्कूल उर्दू मध्य विद्यालय में मिड डे मील को लेकर कई शिकायतें
गया के पंचानपुर के सरकारी स्कूल उर्दू मध्य विद्यालय में मिड डे मील को लेकर कई शिकायतें आ रही हैं। उर्दू मध्य विद्यालय में मिड डे मील कभी बच्चों को मिलता है तो कभी मिलता ही नहीं है। बच्चे डर से इसकी शिकायत नहीं करते हैं।
जब हमने यहां पढ़ने वाले बच्चों से बात की तो उन्होंने चौंकाने वाला सच बताया। मोनू ( बदला हुआ नाम) कक्षा 5 के विद्यार्थी हैं। वो इसी स्कूल में पढ़ते हैं। जब हमने उनसे मिड डे मील के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि “स्कूल में मिड डे मील कभी मिलता है तो कभी नहीं मिलता है। जब मन करे तो खाना बनता है वरना नहीं बनता है। अंडा भी हमें नहीं मिलता है। इसकी शिकायत जब टीचर से करता हूं तो वो भी डांट देते हैं। वहीं खाना भी बहुत ख़राब होता है। कभी-कभी लगता है की खाना कच्चा है।”

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की फिसलती रैंक
2021 के Global hunger index में भारत का रैंक 101 था वहीं 2022 के Global hunger index में भारत का रैंक फिसल कर 107 हो गया, 2023 में भारत का रैंक 111 रहा। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण की स्थिति उलट गई है और उसका स्तर बदतर होता जा रहा है। भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का घर है।
राहुल जो कि उसी स्कूल में पढ़ते हैं, बताते हैं, “हमारे स्कूल में भोजन को लेकर बहुत समस्या होती है। कभी भोजन मिलता है तो कभी नहीं, कभी ऐसा भोजन मिलता है जिसे खाया न जा सके। ऊपर से हम शिकायत भी नहीं कर पाते हैं। हम लोग गरीब हैं इसीलिए यहां पढ़ाई करते हैं, लेकिन जो फायदा हमें मिलना चाहिए वो हमें नहीं मिलता है।”
20% स्कूलों में मिड डे मील का बजट अपर्याप्त है
जन जागरण शक्ति संगठन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मील का बजट अपर्याप्त है, खासकर अंडे का बजट कम आता है। कई जगहों पर अंडे का ब्राह्मणवादी विरोध भी होता रहा है।
जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष बताते हैं कि “स्कूलों में मिड डे मील में बच्चों को अंडा देना कई बार एक समस्या बन चुकी है। कई स्कूल धार्मिक पक्ष रखते हैं लेकिन बच्चों को अंडा चाहिए। पैसे के अभाव में बच्चों को बिस्कुट नहीं दिया जा रहा है।”

मध्याह्न भोजन के क्या हैं नियम?
नियमों के तहत, प्रति बच्चा प्रति दिन 4.97 रुपये (प्राथमिक कक्षा) और 7.45 रुपये (उच्च प्राथमिक) का आवंटन विधानमंडल वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ 60:40 अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों के साथ 90:10 अनुपात में साझा किया जाता है।
क्या कहती है ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2021?
हाल ही में जारी ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट (जीएनआर, 2021) के अनुसार, भारत ने एनीमिया और चाइल्डहुड वेस्टिंग पर कोई प्रगति नहीं की है। ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट (GNR) के मुताबिक, भारत में भूख की समस्या बढ़ रही है। साल 2019 में यह 14 प्रतिशत थी, जो 2020 में बढ़कर 15.3 प्रतिशत होने की संभावना थी।
पंचानपुर उर्दू मध्य विद्यालय में पढ़ने वाली रोशनी से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “ स्कूल का मिड डे मील बहुत ख़राब है। शिकायत करने पर हमें धमकी दी जाती है। चार्ट के हिसाब से भी खाना नहीं मिलता। एक बार मील का खाना खा कर मेरी दोस्त की तबियत बहुत ख़राब हो गई थी। उसे फूड पॉइजनिंग हो गई थी। स्कूल हमें अच्छा खाना दे बस यही चाहते हैं हम।”
जब हमने स्कूल के प्रधानाध्यापक से इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमसे बात नहीं किया। अब सोचने वाली बात ये है कि बच्चे जो इस देश के भविष्य हैं उनके न्यूट्रीशन के लिए मिड डे मील लाया गया था लेकिन स्कूल के बच्चों को मिड डे मील का लाभ ही नहीं मिल रहा, जिसके कारण बच्चों में कुपोषण जैसे हालात पैदा हो रहे हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार बिहार में 48.3 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-2016 के अनुसार, बिहार में 48.3% बच्चे अविकसित थे, 20.8% कमजोर थे, और 43.9% कम वजन के थे। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) 2019-2020 के अनुसार, भारत में पांच साल से कम उम्र के 37.9% बच्चे अविकसित हैं, 20.8% कमजोर हैं, और 35.7% कम वजन वाले हैं।
आंकड़ों में अभी भी कमी नहीं आई है। बिहार में कुपोषण की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और इस पर सरकार का ध्यान नहीं है। सरकार को चाहिए की सरकार स्कूल में मिलने वाले मिड डे मील पर ख़ास ध्यान दे।
(नाजिश महताब की रिपोर्ट।)