Friday, March 29, 2024

सर्व-शक्तिमान भाजपा को बिहार क्यों बन गया है मुश्किल?

सभी राजनीतिक दलों और सूबाई क्षत्रपों के लिए तरह-तरह की मुश्किलें पैदा करने में उस्ताद देश की सर्व-शक्तिमान सत्ताधारी पार्टी-भाजपा बिहार में स्वयं ही मुश्किलों का सामना कर रही है। पिछले तीन-चार महीने से उसे समझ में नहीं आ रहा है कि जिस राज्य में वह स्वयं सत्ताधारी पार्टी है, वहां सत्ता का मनमाफिक संचालन कैसे करे? जिस सत्ताधारी गठबंधन की वह सबसे बड़ी पार्टी है, उसका नेतृत्व उससे छोटी पार्टी के नेता नीतीश कुमार के हाथ में है। उस नीतीश कुमार के हाथ में है, जिनका राजनीतिक-प्रशासनिक अनुभव के मामले में बिहार में फिलहाल कोई जोड़ नहीं दिखता। 

केंद्रीय स्तर के तमाम प्रयासों के बावजूद नीतीश कुमार भाजपा का रबर-स्टाम्प बनने से इंकार करते आ रहे हैं। अगर हाल के घटनाक्रमों को बारीकी से देखिये तो लगता है जैसे अब नीतीश और भाजपा, दोनों एक-दूसरे से ऊब चुके हैं। कोई नहीं बता सकता कि भाजपा-जद-यू गठबंधन बना रहेगा या निकट भविष्य में टूट जायेगा? पर बिहार और बिहार के बाहर आज अनेक लोग मिल जायेंगे जो बतायेंगे कि किस तरह दोनों दलों के बीच की दरार लगातार चौड़ी हो रही है। क्या ये दरार भरेगी या निर्णायक टूट के ऐलान का कारण बनेगी?

30-31जुलाई को बिहार में भाजपा का बड़ा कार्यक्रम हो रहा है। पूरे सूबे से पार्टी के सभी विभागों और प्रकोष्ठों के शीर्ष संगठकों और अन्य नेताओं को पटना में बुलाकर सम्मेलन किया जा रहा है। इसे संबोधित करने देश के गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कल पटना जा रहे हैं। अब तक माना जा रहा था कि इस बार पार्टी के ये दोनों केंद्रीय नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से ‘शिखऱ वार्ता’ करके ‘सब कुछ’ तय कर लेंगे। इसे आर-पार वाली बैठक माना जा रहा था। लेकिन अब यह बैठक शायद ही हो पाये! नीतीश कुमार कोरोना-संक्रमित होकर तनहाई (क्वारंटीन) में चले गये हैं। यानी अमित शाह-नड्डा की नीतीश से अब आमने-सामने की बैठक शायद नहीं हो सकेगी। हो सकता है, दोनों पक्ष डिजिटल संवाद करें।  

इस बीच, नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्तों को लेकर तरह-तरह की व्याख्याएं हो रही हैं। कुछ समय पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और जद(यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह, जो राजनीति में नीतीश की उंगली पकड़कर दाखिल हुए थे, को लेकर दोनों पार्टियों में तनातनी रही। अंत में सर्वशक्तिमान भाजपा को ही झुकना पड़ा। आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से ही नहीं, संसद से भी बाहर जाना पड़ा। जद(यू) ने अपने कोटे से उन्हें राज्य सभा का फिर से उम्मीदवार नहीं बनाया और पार्टी से बाहर भी कर दिया। 

भाजपा उन्हें मंत्री बनाये रखना चाहती थी पर बिहार की सत्ता में भागीदारी और नीतीश से अपनी ‘राजनीतिक-रिश्तेदारी’ बनाये रखने के लिए उसे आरसीपी का मोह छोड़ना पड़ा। भाजपा ने सोचा था कि दूसरी पार्टियों की तरह वह जदयू पर भी दबाव डालकर आरसीपी जैसे अपने करीबी हो चुके नेता को मंत्री पद पर बरकरार रख सकेगी पर नीतीश खेल को पहले ही समझ गये थे। वह ‘आस्तीन का सांप’ नहीं पालना चाहते थे।

इसके बाद अग्निपथ-अग्निवीर जैसी योजना को लेकर बिहार में युवाओं के आक्रोश पर भी दोनों पार्टियों के बीच मतभेद उभर कर सामने आये। छात्र-युवाओं ने आंदोलन के दौरान भाजपा और उसके नेताओं के कुछ दफ्तरों और प्रतिष्ठानों के समक्ष विरोध-प्रदर्शन किये। कुछेक जगहों पर तोड़फोड़ भी हुई। इसे लेकर भाजपा ने नीतीश कुमार और सरकार के रवैये पर असंतोष जाहिर किया। 

स्वयं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के बयानों में इस असंतोष की अभिव्यक्ति हुई। जवाब में जद यू के अध्यक्ष लल्लन सिंह और प्रवक्ता उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा के रवैये को सर्वथा अनुचित बताया और छात्रों की शिकायतों को संबोधित करने का केंद्र सरकार और भाजपा से अनुरोध किया।

हाल ही में एक अन्य मुद्दे पर दोनों दलों के रूख में अंतर देखा जा रहा है-वह है-फुलवारी शरीफ का कथित आतंकी खुलासा कांड। स्थानीय स्तर पर पुलिस ने एक छापे मारी कर बताया कि पीएफआई या ऐसे ही किसी कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन से जुड़े कुछ लोगों को फुलवारी शरीफ में पकड़ा गया है। फुलवारी शरीफ की ख्याति सूफी संतों की सरजमीं के कारण है। लेकिन उसी फुलवारी शरीफ में अब कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों की सक्रियता का शोर मचने लगा। इस घटना पर प्रेस कांफ्रेंस में पटना के एसएसपी ने संवाददाताओं के एक सवाल के जवाब में कहा, ‘जो लोग पकड़े गये हैं, उन्होंने बताया कि वे मुस्लिम लोगों को कराटे आदि सिखाते हैं, व्यायाम कराते हैं, जैसे आरएसएस कराता है।’ 

एसएसपी के इस बयान पर पूरी भाजपा भड़क गयी और एसएसपी को बर्खास्त करने से लेकर पद से हटाकर जांच कराने की मांग होने लगी। सभा-जुलूस भी निकाले गये। पर एसएसपी आज तक बने हुए हैं। राज्य सरकार के दो-दो उपमुख्यमंत्री भाजपा से हैं। वे भी चाहते थे कि एसएसपी जो स्वयं एक अल्पसंख्यक सिख समुदाय से आते हैं, के खिलाफ कार्रवाई हो पर नीतीश की अगुवाई वाली बिहार सरकार ने घटना के महीना बीत जाने के बावजूद अब तक ऐसा नहीं किया। इस मामले में राजद, भाकपा (माले) और कई अन्य दलों ने भी एसएसपी का बचाव किया। इन दलों ने नीतीश कुमार से भाजपा के दबाव में आकर एसएसपी के विरूद्ध किसी तरह की अनुशासनिक कार्रवाई न करने का अनुरोध किया है।  

पिछले दिनों एक वाकया ऐसा भी हुआ जब सत्ताधारी दल यानी जद (यू) ने, जिसका अपना मुख्यमंत्री है, उसे विधानसभा के सत्र के दौरान सदन की बैठक का बहिष्कार करना पड़ा। किसी भी राज्य में ऐसा पहली बार देखा-सुना गया। जद-यू ने यह कदम भाजपा के रवैये, खासकर विधानसभा के स्पीकर के रूख के प्रति अपनी नाराजगी जताने के लिए उठाया। स्पीकर विजय कुमार सिन्हा भाजपा से आते हैं और पिछले कुछ समय से वह कुछ न कुछ ऐसा कर देते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को काफी झुंझलाहट होती है।

दोनों गठबंधन सहयोगियों के बीच पहले ऐसा नहीं होता था क्योंकि मुख्यमंत्री के साथ स्पीकर हमेशा जद-यू का ही होता था। लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा को जद-यू से ज्य़ादा सीटें मिलीं। ऐसा पहली बार हुआ। माना जाता है कि वह भी भाजपा की चुनावी चाल थी। एनडीए के एक घटक-चिराग पासवान को गठबंधन में नहीं रखा गया। लेकिन बिहार में यह बात सबको समझ में आ रही थी कि पर्दे के पीछे से भाजपा ने ही पासवान को उकसाया कि वह ज्यादा सीटें लड़े। 

पासवान ने उन सीटों पर ही ज्यादा उम्मीदवार दिये जो जदयू की थीं। इनमें कुछ तो भाजपा के ही पूर्व नेता थे। इससे नीतीश के कई जीतते उम्मीदवार हार गये। बताया जाता है कि नीतीश इससे बहुत नाराज हुए पर वह गुस्सा पी गये। लेकिन स्पीकर के तौर-तरीकों से उनकी नाराज़गी लगातार बढ़ती रही और एक दिन उनका गुस्सा सार्वजनिक स्तर पर फूट पड़ा। वह भी सीधे विधान सभा के अंदर, जब मार्च के दूसरे सप्ताह में एक बहस के दौरान उन्होंने स्पीकर को जमकर खींचा। 

बताया जाता है कि उस घटना के बाद स्पीकर को दिल्ली भी बुलाया गया। क्या कहा-सुना गया, कोई नहीं जानता। लेकिन कुछ समय बाद उन्हीं स्पीकर महोदय ने जुलाई के दूसरे सप्ताह में नीतीश को फिर से आहत किया। विधानसभा के सेनटेनरी सेलिब्रेशन में जो निमंत्रण कार्ड छपा, उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम तक नहीं था। 

इस कार्यक्रम के समापन समारोह में प्रधानमंत्री मोदी भी 12 जुलाई को पटना गये थे। तब दोनों नेताओं-मोदी और नीतीश ने एक दूसरे की प्रशंसा की थी। लेकिन 17 जुलाई को जब गृह मंत्री अमित शाह ने तिरंगा झंडा अभियान को लेकर मुख्यमंत्रियों की बैठक की तो उसमें नीतीश कुमार अनुपस्थित रहे। फिर 22 जुलाई को जब पीएम मोदी ने राष्ट्रपति कोविन्द के लिए विदाई-भोज दिया तो आमंत्रित रहने के बावजूद नीतीश उससे भी गायब रहे। 

यही नहीं, 25 जुलाई को राष्ट्रपति मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह से भी नीतीश अनुपस्थित रहे। बताया जाता है कि नीतीश चाहते हैं कि भाजपा अपने चहेते स्पीकर को पद से हटाने पर सहमति दे और दोनों दलों की सहमति से दूसरा स्पीकर चुना जाए। पर भाजपा फिलहाल उसके लिए तैयार नहीं दिखती। कुछ सूत्रों का कहना है कि अब यह मामला सिर्फ स्पीकर से नाराज़गी तक सीमित नहीं रह गया है। नीतीश को अच्छी तरह मालूम हो चुका है कि भाजपा अन्य सहयोगी दलों की तरह उनके जद-यू को भी निगलना चाहती है। असल मसला शायद यही है कि बिहार की भावी राजनीति का सिकंदर भाजपा बनेगी या यह जगह कभी नीतीश तो कभी लालू की रहेगी?

30-31 जुलाई को होने वाला सम्मेलन जिस मौके पर आयोजित किया गया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। उधर जद(यू) से बाहर हुए आरसीपी सिंह भी नीतीश के खिलाफ गुर्रा रहे हैं। माना जा रहा है कि इस दरम्यान दोनों दलों के आपसी मसलों पर भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश पार्टी नेतृत्व को कोई ठोस रणनीतिक मंत्र ज़रूर देगा। पार्टी को इस समय सन् 2024 का लोकसभा चुनाव नजर आ रहा है, जिसकी तैयारी उसने अभी से शुरू कर दी है। 

सवाल उठता है- बिहार में क्या वह अगला संसदीय चुनाव किसी गठबंधन-सहयोगी के बगैर लड़ने की तैयारी करेगी? क्या उसकी स्थिति इतनी मजबूत हो चुकी है कि वह अकेले ही राजद और उसके सहयोगियों का मुकाबला कर लेगी? क्या बीते कुछ सालों में उसके जनाधार में इतना उल्लेखनीय इजाफा हुआ है कि वह अकेले लड़े और बिहार की 40 में कम से कम 30 संसदीय सीटें जीतने का लक्ष्य पूरा कर सके? अगर वह एकला चलने का फैसला करती है तो बिहार में उसकी साझेदारी से चल रही नीतीश कुमार की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार का क्या होगा? बिहार की राजनीति से उभरते ये सवाल सर्व-शक्तिमान भाजपा के लिए भी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं।

 (उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles