Friday, April 19, 2024

अपराधी जमात में तब्दील हो गयी है त्रिपुरा की बिप्लब देब सरकार

त्रिपुरा का दंगाई मुख्यमंत्री और उसका प्रशासन एक बार फिर सक्रिय हो गया है। उसने पत्रकार श्याम मीरा सिंह के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया है और एफआईआर में उनके ट्विटर पर लिखे गए तीन शब्दों ‘त्रिपुरा इज बर्निंग’ को कारण बताया गया है। त्रिपुरा प्रशासन की निगाह में इन तीन शब्दों के साथ श्याम उन धाराओं के तहत दोषी हो गए जो इस देश में जिलेटिन विस्फोटकों के इस्तेमाल जैसी किसी आतंकी कार्रवाई पर किसी दुर्दांत आतंकवादी के खिलाफ लगती हैं। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। बिप्लब सरकार ने जिन निरीह और मासूम मुसलमानों के घर जलवाए और उनकी जान और माल को दंगों में नुकसान पहुंचाया अब उन्हें हीआरोपी बनाकर पेश कर दिया गया है। इस तरह से तकरीबन 67 मुस्लिमों के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। यानि पीड़ित को ही आरोपी और अपराधी साबित करने की पूरी व्यवस्था कर दी गयी है।

किसी को अचरज नहीं होना चाहिए अगर एक दिन बिप्लब का प्रशासन कोर्ट में यह कहता हुआ मिले कि मुसलमानों ने खुद ही अपने घरों में सरकार को बदनाम करने के लिए आग लगा दी। और फिर इस अपराध में मुसलमानों को सजा देने की मांग कर डाले। सरकार की बेहयाई और बेशर्मी का पर्दा यहीं नहीं उठा उसने दंगों की जांच करने के लिए दिल्ली से गयी वकीलों की एक टीम को भी निशाना बनाया। और उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल कई वकीलों पर भी यूएपीए थोप दिया। इस देश में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए यूएपीए सबसे बड़ा कानून है। लेकिन यह आतंकियों और सत्ता में बैठे दंगाइयों के खिलाफ नहीं लग रहा है बल्कि उन पत्रकारों, वकीलों और तमाम एक्टिविस्टों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन्होंने अपना जीवन जनता की सेवा में लगा दी।

जबकि सच्चाई पानी की तरह बिल्कुल साफ है। पूरे देश ने देखा है कि किस तरह से संघ के हाइड्रा संगठनों की अगुआई में त्रिपुरा के दो जिलों में अल्पसंख्यक मुस्लिम तबके की बस्तियों को जलाने और उनको तहस-नहस करने का संगठित अभियान चलाया गया। लोगों के घर जलाए जा रहे थे और पुलिस खड़ी होकर तमाशा देख रही थी। यहां तक कि कुछ जगहों पर खाकीधारियों के सीधे दंगों में शामिल होने की तस्वीरें सामने आयी हैं। और कई जगहों पर तो पुलिस जैश्रीराम के नारे लगाते हुए जश्न मनाती दिखी। लिहाजा त्रिपुरा में अगर कोई अपराधी और दंगाई है तो वह सरकार है। संघी गुंडे हैं। या फिर प्रशासन है। जिनके संरक्षण में हमलों को अंजाम दिया गया है। अगर किसी के खिलाफ यूएपीए लगाया जाना चाहिए तो वे यही सब हैं। और इन सबसे आगे बढ़कर सूबे का मुख्यमंत्री इन सारी चीजों के लिए जिम्मेदार है। अगर हम गलत नहीं हैं तो यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि इन हमलों की साजिशें सीएम के आधिकारिक आवास या फिर दफ्तर में तैयार की गयी हैं। लिहाजा सचमुच में संवैधानिक तर्ज पर किसी के खिलाफ यूएपीए का मुकदमा बनता है तो वह मुख्यमंत्री बिपल्ब देब के खिलाफ।

फासीवादी निजाम को अपने मंसूबे पूरा करने के लिए सड़क के किसी मवाली से बेहतर कोई नहीं हो सकता। मवाली इसलिए चुना जाता है क्योंकि उसमें न तो कोई शर्म होती है और न ही हया। न उसे संविधान का क, ख, ग पता होता है। न ही उसकी गरिमा और सम्मान का ख्याल रखने की जरूरत। बिप्लब में ये सारे ‘गुण’ मौजूद थे। लिहाजा मोदी-शाह की जोड़ी ने उन्हें चाय की दुकान से उठाकर त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बना दिया। इस बात को किसी को नहीं भूलना चाहिए कि उनको संविधान की शपथ ही उसे खत्म करने के लिए दिलवायी गयी है। और वो इस काम को बखूबी कर रहे हैं।

अगर किसी को जानकारी न हो तो उसे यहां यह बता देना जरूरी होगा कि बिप्लब यहीं दिल्ली में रहते थे और बीजेपी हेडक्वार्टर के चक्कर लगाया करते थे। इसके साथ ही दफ्तर के इर्द-गिर्द चाय की दुकानों पर बैठना उनकी दिनचर्या में शामिल था। और एक दिन बीजेपी के एक नेता ने उन्हें पकड़ लिया और कहा कि त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनोगे। भला इस तरह के किसी प्रस्ताव को कोई क्यों ठुकरा देता। फिर क्या था महज एक साल पहले बिप्लब को अगरतला भेजा जाता है और एक साल के भीतर ढेर सारा पैसा पंप किया जाता है और फिर विरोधियों को खरीदने से लेकर सांप्रदायिक माहौल बनाने के जरिये सत्ता हासिल कर ली जाती है।

इस समय बिप्लब केंद्र के दिए गए कार्यभार को आंख मूंद कर पूरा कर रहे हैं। दरअसल इस तरह का काम कोई अपराधी ही पूरा कर सकता है। लिहाजा त्रिपुरा में अब कोई सरकार नहीं बल्कि एक अपराधी जमात काम कर रही है। देश में किसी एक नागरिक की हत्या भी आपको फांसी के फंदे तक ले जा सकती है। लेकिन यहां नरसंहारों की न केवल साजिशें रची जा रही हैं बल्कि उन्हें सत्ता के खुले संरक्षण और निर्देशन में अंजाम दिया जा रहा है। भला यह काम कोई सभ्य और सामान्य नागरिक कर सकता है? संविधान में विश्वास करने वाला इसको अंजाम दे सकता है? बिल्कुल नहीं। इसको वही कर सकता है जो दिमाग से अपराधी हो या फिर उसके दिमाग में इंसानियत किसी दूसरी दुनिया की चीज हो गयी हो।

अनायास नहीं देश की शासन व्यवस्था देखने की केंद्रीय संस्था गृहमंत्रालय को गंभीर अपराध के आरोपियों से भर दिया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री तो घोषित तड़ीपार हैं। बाकी दो राज्यमंत्रियों अजय मिश्रा टेनी और नीशीथ प्रमाणिक पर 302 से लेकर डकैतियों तक के मुकदमे दर्ज हैं। टेनी ने तो लखीमपुर खीरी कांड से पहले भरी सभा में अपना बॉयोडाटा दे दिया था और फिर उसी के अनुरूप कांड भी कराया।

और देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठे शख्स के बारे में क्या कहना। वह तो इन सबके प्रधानाचार्य हैं। गुजरात का उनका कार्यकाल प्रशिक्षण से लेकर उनके पारंगत होने का काल था। उनका तमगा ही संविधान को रौंदने और उसको झांसा देने पर निर्भर रहा है। देश के संविधान में यह व्यवस्था है कि अगर कोई राज्य कानून और व्यवस्था को बनाए रखने की संवैधानिक जिम्मेदारियों पर खरा नहीं उतर रहा है तो वहां धारा 356 लगायी जा सकती है। और फिर राष्ट्रपति शासन के जरिये केंद्र उसकी सत्ता को अपने हाथ में ले सकता है। लेकिन यहां सरकार बदलने या फिर राष्ट्रपति शासन लगाने को कौन कहे पीएम मोदी इतनी बड़ी-बड़ी घटनाओं पर अपना मुंह तक खोलने के लिए राजी नहीं हैं। निंदा और चेतावनी तो बहुत दूर की बात है। बल्कि इस मौन के जरिये अपने तरीके से वह इन वारदातों और घटनाओं के प्रति अपनी सहमति ही जाहिर कर रहे होते हैं। ऐसे में मोदी सरकार से कोई उम्मीद करना बेमानी है।

लेकिन इस देश में एक संस्था ऐसी है जिसकी जिम्मेदारी संविधान को संरक्षित करने की है। और अगर केंद्र या फिर कोई राज्य सरकार उस पर खरी नहीं उतरती है तो उससे जवाबदेही भी ले सकती है। वह है सर्वोच्च न्यायालय। आज ऐसे समय में जबकि त्रिपुरा की पूरी संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गयी है। जिस सरकार पर लोगों के जीवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी वह उनकी हत्याओं में शामिल हो गयी है। लिहाजा यह देश के सर्वोच्च न्यायालय की जिम्मेदारी बनती है कि वह पहल करे। और राज्य की व्यवस्था को अपने हाथ में ले। क्योंकि यहां सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगाने से भी काम नहीं चलेगा। राष्ट्रपति शासन का मतलब केंद्र का शासन। जिससे चीजें नहीं बदलेंगी। वहां राज्य के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में सिविल सोसाइटी के लोगों की अंतरिम सरकार का गठन हो और स्थिति के सामान्य होने तक राज्य की शासन व्यवस्था का वह संचालन करे। इस बीच वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमले के दोषियों को सजा दिलाने की गारंटी करते हुए नये चुनावों की तरफ आगे बढ़े। यही मौजूदा समय में तात्कालिक समाधान हो सकता है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संपादक हैं।)

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