Tuesday, April 23, 2024

जल संकट: गंगा भी न बुझा सकी अमरोहा की प्यास!

अमरोहा। देश में जल संकट की समस्या अब आम होती जा रही है।  ऐसा शायद ही कोई राज्य हो जो जल संकट से ना जूझ रहा हो। गांव-देहात में गिरता वाटर लेवल चिंताजनक है। हैंडपंप, सबमर्सिबल से धरती के सीने को छलनी तो कर दिया जा रहा है लेकिन कुंओं को सहेजने की कोई पहल नहीं दिख रही। बदहाल होते कुंए अस्तित्व खोते जा रहे हैं। उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1960 से लेकर अभी तक जल आपूर्ति की मांग बढ़ने से जल की निकासी दोगुनी हो गई है। वर्षा जल संचयन के प्रमुख साधन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लोगों के जेहन से गायब है। अमेरिका स्थित विश्व संसाधन संस्थान द्वारा साल 2019 में प्रकाशित आँकड़ों के मुताबिक जल संकट से सर्वाधिक ग्रसित विश्व के 17 देशों में भारत 13वें स्थान पर है। भविष्य में जलसंकट से निपटने के लिए शासन-प्रशासन की क्या तैयारियां हैं यह जानने के लिए जनचौक ने अमरोहा जिले के भू-जल स्तर को लेकर गहन अध्ययन किया।

बढ़ते औद्योगीकरण तथा गाँवों से शहरों की ओर तेजी से पलायन तथा फैलते शहरीकरण ने भी अन्य जलस्रोतों के साथ भूमिगत जलस्रोत पर भी दबाव उत्पन्न किया है। अमरोहा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है, यहां की जलवायु को उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में  वर्गीकृत किया गया है। दक्षिण-पश्चिम मानसून को छोड़कर, यहां की जलवायु सामान्य शुष्कता से जुड़ी है जहां नमी अधिक रहती है। औसत मासिक सापेक्षिक आर्द्रता अधिकतम सुबह और शाम में क्रमशः 84% से 74% रहती है। जिले से राष्ट्रीय नदी गंगा अपने उच्च जलस्तर के साथ निकलती है। प्राचीन सोत व बान नदी पर अवैध कब्जे हो गए और वो नालों में तब्दील हो चुकी हैं जबकि बगद और राम गंगा नहर के पानी को प्रदूषित हुए एक अरसा बीत चुका है।

अमरोहा में गंगा नदी के आस-पास खादर का बड़ा इलाका है, इसके बावजूद भी खादर के इलाकों में जलस्तर काफ़ी गिर चुका है। क्षेत्र में एक कहावत अब तक प्रचलित रही। यदि खेत-खलिहानों, गलियारों में लोग किसी मुद्दे पर बहस कर रहे होते थे तो उनमें से कोई न कोई ये जरूर बोलता था कि, “अगर ज़मीन में ऐड़ी मार दी तो पानी निकल जाएगा।” ऐसा इसलिए कहा जाता था क्योंकि वाटर लेवल भू-तल के समांतर था लेकिन अब हालात काफ़ी बदल चुके हैं।

वर्ष 2012 में एक शोध किया गया। शोध के मुताबिक मई मानसून के बाद नवंबर 2012 तक गंगेश्वरी ब्लॉक के गांव दरयाल में 4.90 मीटर विलो ग्राउंड लेवल(एमबीजीएल) से 13.41 तक पाया गया। वहीं गांव जलालपुर कलां (गजरौला प्रखंड) में एमबीजीएल,  मानसून के बाद (नवंबर 2012) के दौरान, 3.77 mbgl से 14.05 mbgl तक पाया गया जबकि जल स्तर 5.00 मीटर से कम था।भूजल के अत्यधिक दोहन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। अति-दोहन के परिणामस्वरूप भूजल स्तर में कमी तो आ ही रही है साथ ही उथले कुओं के सूख जाने की परेशानी भी उत्पन्न हो रही है। 

जलस्तर में धनौरा और गंगेश्वरी ब्लाक को छोड़कर अमरोहा के प्रखंडों का पानी निगेटिव लेवल पर है। साल 2012-13 में जब यह किया गया तो पाया कि उस समय नलकूपों की सामान्य गहराई 50 से 110 एमबीजीएल तक होती थी। वहीं स्क्रीनिंग की लंबाई 20 से 30 मीटर गहरे में ट्यूबवेल के लिए होती थी। हसनपुर तहसील के लुहारी निवासी सुनील शर्मा पिछले 35-40 साल से खेती कर रहे हैं। इनके खेत खादर क्षेत्र में आते हैं। सुनील बताते हैं कि यहां आज से 25-30 साल पहले एक जमाना था कि बरसात के मौसम में बाढ़ का पानी आता था जिसके कारण फसलों की सिंचाई के लिए कभी कुओं या बोरवेल की आवश्यकता नहीं पड़ी। किसान बाढ़ के पानी को खेत में रोकने के लिए मेड़ों पर मिट्टी चढ़ाते थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं पहले यदि किसी राहगीर को प्यास लगती थी तो खेत में जाकर ज़मीन में हाथ डालते ही पानी निकल आता था लेकिन जलस्तर घटने से इलाक़े में सबमर्सिबल लग चुके हैं। 

यहां जलस्तर 25-30 फीट पर पहुंच चुका है कुछ ऐसे क्षेत्र अवश्य हैं जो वनों के पास हैं इसलिए वहां अभी भी कुएं काम कर रहे हैं। गंगा का मैदान होने की वजह से यहां पर सब्जियों का उत्पादन काफ़ी मात्रा में होता था लेकिन जैसे-जैसे जलस्तर में कमी आती गई वैसे-वैसे ही इस क्षेत्र में गन्ना जैसी जल-गहन फसलों में तेज वृद्धि हुई है जिसके कारण भूजल पर दबाव बनता गया है। यह तस्वीर केवल हसनपुर तहसील की ही नहीं है बल्कि अधिकतर इलाकों की यही कहानी है। जल संसाधन सूचना प्रणाली (डब्ल्यूआरआईएस) के अनुसार पिछले 10 वर्षों में अमरोहा में भूजल उपलब्धता में परिवर्तन से पता चलता है कि 2020 में भूजल स्तर दो बार नीचे चला गया है (17.17 मीटर)। 

शोध के मुताबिक जिले में भूजल की स्थिति चिंताजनक है।अमरोहा, गजरौला, गंगेश्वरी, हसनपुर और जोया ब्लॉक को ओवर डेंजर्स के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भूजल के शोषण के कारण धनौरा ब्लॉक क्रिटिकल स्टेज में है हालांकि धनौरा प्रखंड में भविष्य में भूजल विकास की संभावनाएं हैंं। शोध में सुझाव के तौर पर कहा गया है, भूजल के संकट से निपटने के लिए जिले में जल बंटवारा और कृत्रिम पुनर्भरण योजनाओं को लागू किया जाना आवश्यक है।

बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए, अमरोहा-मुरादाबाद के उत्तर-पश्चिम में सोत नदी के पास वाटरशेड बने हैं और कुछ झीलें भी स्थित हैं। जिलास्तर पर वाटर-लेवल की समस्या से निपटने के लिए कुओं के संरक्षण हेतु कुछ प्रयास किए गए जिसमें सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले तालाबों की खुदाई शामिल है। आंकड़े बताते हैं कि यहां करीब 45 खराब पड़े कुएं हैं, जो अब काम नहीं कर रहे। 

 कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक भूजल दोहन के परिणामस्वरूप भूजल स्तर में खतरनाक गिरावट के कारण कुएं खराब हो रहे हैं। वाटरशेड के परिवार भूमिहीन हैं, इसलिए उनकी आजीविका कभी-कभार दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर करती है। यहां के 18 % लोगों की दिनचर्या खुशहाल नहीं है। कृषि क्षेत्र में उन्हें रोजगार मिलता है या वे दिहाड़ी मजदूर के रूप में पास के शहरों में चले जाते हैं।

अमरोहा में भू-जल औसतन, लगभग 1 मीटर/वर्ष की दर से घट रहा है। औद्योगिक नगरी गजरौला में जलस्तर में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई है। 15 साल पहले 20 फिट वाले पानी का जलस्तर अब 90 फिट के आस पास पहुंच चुका है। गंगा तिगरी के इलाक़े को यदि छोड़ दें तो घरेलू हैंडपंपों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। कुएं भी इक्का-दुक्का नजर आते हैं लेकिन डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी होने की वजह से इन कुओं पर मोटर रखी जाती है हालांकि हर इलाके में ऐसा नहीं होता। जहां पर बिजली, खम्भे की व्यवस्था नहीं है वहां अभी भी लोग इंजन से खेती करते हैं।

अधिकतर इलाकों में सिंचाई के लिए अब 180-200 फिट पर सबमर्सिबल लग चुके हैं। सबमर्सिबल की परिभाषा कुओं के अस्तित्व समाप्त होने के बाद से गढ़ी गई। ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब हैंडपंप नज़र नहीं आते। कहीं हैं गजरौला-धनौरा शहरों में कुछ जगहों पर अभी भी नल काम कर रहे हैं लेकिन पानी पीने लायक नहीं बचा। इसलिए लोग घरों में सबमर्सिबल लगवा चुके हैं, जिसके कारण जलस्तर में और कमी आई है। कौराला, दौराला और मेंहमदी गांवों में लोग शुद्ध पानी पीने के 400 फिट गहराई तक सबमर्सिबल लगवा रहे हैं। 

जलस्तर बढ़ाने वाले तालाबों पर पथ रहे उपले, तो कहीं अवैध कब्जे

साल 2008 में बेरोजगारों को गांव में ही रोजगार देने के उद्देश्य से शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत तालाबों की खुदाई को तरजीह दी गई । करोड़ों रुपये खर्च कर जिले में 500 तालाब व पोखरों की खुदाई कराने का आंकड़ा दर्ज है जबकि मनरेगा से खोदे गए तालाब तक अपने कोख में बारिश का पानी सहेजने में पूरी तरह नाकाम हैं।

मनरेगा के तहत जलस्तर बढ़ाने वाले  पीपने के तालाब पर पथ रहे उपले 

इसके पीछे कारण यह रहा कि काम कम व सरकारी धन लूटने का काम ज्यादा हुआ। अधिकतर तालाबों में गहराई आदि को लेकर मानक की पूरी तरह अनदेखी हुई। और वह चार छह माह तक पानी नहीं सहेज पा रहे हैं। इसके साथ ही दूसरा पहलू यह है कि अभी भी जिले के आंकड़ों में दर्ज 3388 के सापेक्ष 1080 तालाबों को खाली कराया गया है जबकि 1288 तालाबों पर भू-माफियाओं का कब्जा अभी भी बरकरार है। अमरोहा जिले में सैकड़ों तालाब और नदी-नाले नेस्तनाबूद कर दिए गए हैं। कोतवाली क्षेत्र में बिजनौर मार्ग पर आबादी के बीचों-बीच पनवाड़ी तालाब है। तालाब की जमीन पर बीते कई सालों से मिट्टी का भराव कर कब्जा किया जा रहा है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि, क्षेत्र में तालाब बहुत होते थे जिनकी परम्परा अब लगभग समाप्त हो चुकी है। इन तालाबों का जल भूगर्भ में समाहित होकर भूजल को संवर्द्धित करने का कार्य करता था लेकिन, बदलते समय के साथ लोगों में भूमि और धन-सम्पत्ति के प्रति लालच बढ़ा जिसने तालाबों को नष्ट करने का काम किया। वैसे वर्षा का क्रम बिगड़ने से भी काफी तालाब सूख गए। रही-सही कसर भू-माफियाओं ने पूरी कर दी। उन्होंने तालाबों को पाटकर उन पर बड़े-बड़े भवन खड़े कर दिए अथवा कृषि फार्म बना डाले।

पुरानी छवि: अमरोहा का ऐतिहासिक पनवाड़ी तालाब

मौजूदा वक्त में तालाब की जमीन पर बसी बस्ती में बड़ी-बड़ी इमारतें भी खड़ी हैं। बची जमीन पर भी भू-माफिया की नजर गड़ी है। नवनियुक्त डीएम बालकृष्ण त्रिपाठी ने जरूर पनवाड़ी तलाब पर अवैध कब्जाधारियों पर शिकंजा कसा है लेकिन जिले भर में हजारों की तादाद में ऐसे तालाब हैं जो जलस्तर बनाए रखने के उद्देश्य के चलते मटियामेट कर दिए गए।

भूजल प्रबंधन रणनीति :

1.भूजल विकास: गंगा के बाढ़ के मैदान (छोटी जलोढ़) निकासी के लिए अधिक उपयुक्त हैं। बाढ़ के माध्यम से मौसमी पुनर्भरण के कारण भूजल का बोरिंग सेट की मदद से उपयोग आमतौर पर जलोढ़ क्षेत्र में और 80 – 100 मीटर गहराई तक किया जाता है।

2. नलकूप सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए पूरी तरह से सफल हैं जबकि गहरा ट्यूबवेल औद्योगिक उपयोग के लिए विशेष रूप से गजरौला के लिए 150 से 200 मीटर से अधिक का उपयोग किया जा सकता है।

भूजल से संबंधित मुद्दे और समस्याएं: जिले में जल भराव अहम समस्या है। इसके लिए जल पुनर्भरण की आवश्यकता है अमरोहा जिले की बात करें तो भूजल में गिरावट की प्रवृत्ति सभी क्षेत्रों से अधिक दर्ज की गई है।

1. सतह के संयुक्त उपयोग द्वारा भू-जल गिरावट की प्रवृत्ति को नियंत्रित करना अनिवार्य है।

2. नहरों के माध्यम से सिंचाई के लिए जल संसाधन के साथ-साथ गहरी जमीन की खोज जल जलभृत प्रणाली समय की मांग है।

3. डगवेल का उपयोग प्रदूषण फैलाने वाले सभी प्रकार के आश्रयों को डंप करने के लिए किया जा रहा है, सुझाव दिया जाता है कि इन कुओं को बैक फिलिंग द्वारा बंद किया जा सकता है और फ़्रीटिक एक्वीफर में पाईज़ोमीटर 30 मीटर से 40 मीटर तक हो सकता है।

4. विश्लेषकों का मानना है कि इन कुओं को उचित स्थानों पर स्थापित करें ताकि जल स्तर की नियमित रूप से निगरानी की जा सके।

5.जिले का मध्य भाग जहाँ जल स्तर 6.00 मीटर से अधिक है, सोत नदी समेत अन्य जगहों पर चेक मिट्टी के बांध का उपयोग करके कृत्रिम रूप से रिचार्ज किया जाना चाहिए। 

6. छत पर वर्षा जल संचयन को विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है इससे भूजल पुनर्भरण में वृद्धि होगी।

हमने अध्ययन में पाया कि सरकार के द्वारा लगातार गिर रहे भूजल स्तर को लेकर जितने प्रयास किए जा रहे हैं यदि उन तमाम प्रयासों पर इसी तरह से अवैध कब्जे होते रहे तो भविष्य में अमरोहा भी जलसंकट से अछूता नहीं रह सकेगा।

(अमरोहा से प्रत्यक्ष मिश्रा की रिपोर्ट।)

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