इत्तेफाक कि रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के मितभाषी सांसद आर.एस.गवई का जो प्रसंग याद आ रहा है, वह राज्यसभा में संविधान समीक्षा के संकल्प पर बहस का ही है। याद आने का सबब यह है कि कल उनके पुत्र बी.आर. गवई देश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ले रहे थे और मुख्य न्यायाधीश के तौर पर आज सरकार के नये वक्फ कानून को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर जो पहला महत्वपूर्ण मसला सुनवाई के लिए उनके सामने आने वाला है, आलोचकों ने उसकी संवैधानिकता पर ही सवाल उठाये हैं।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, कई अन्य मुस्लिम संगठनों और कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी पार्टियों ने पिछले 4 अप्रैल को संसद के दोनों सदनों से पारित इस कानून को लेकर केन्द्र सरकार पर वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन में मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की भूमिका कम करने और प्रबंधन में सरकार की दखलंदाजी का रास्ता खोलने के आरोप लगाये हैं।
नये वक्फ कानून में वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिये सर्वेक्षण आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति, इन संपत्तियों के प्रमाणीकरण की व्यवस्था और वक्फ परिषद तथा औकाफ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
करीब चौथाई सदी पहले की घटना है, 5 मई 2000 की। आर.एस. गवई महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति में करीब तीन साढ़े तीन दशक बिताने के बाद पहली बार राज्यसभा में पहुंचे थे। राज्यसभा में अपराह्न तीन बजे कार्यवाही शुरु होते ही उप-सभापति टी.एन. चतुर्वेदी ने आसन संभाला और संविधान की समीक्षा के भाजपा नेता रामदास अग्रवाल के निजी संकल्प पर दो सप्ताह बाद फिर बहस शुरु हुई। बहस शुरु होते ही आर.एस.पी. सांसद आर.एस.गवई ने कहा कि दो हफ्ते पहले इस संकल्प पर उनकी बात अधूरी रही थी।
उप-सभापति ने पहले तो कहा कि 20 अप्रैल को जब कार्यवाही खत्म हुई थी, तब वह अपना भाषण खत्म कर चुके थे और उपलब्ध सूची के अनुसार कांग्रेस के संतोष बागरोडिया संकल्प पर बात रख रहे थे। लेकिन पिछली कार्यवाही में अपना भाषण अधूरा रहने की बात दोहराने पर श्री चतुर्वेदी ने उन्हें बहस शुरु करने की अनुमति दे दी।
तब शिवसेना में रहे संजय निरुपम ने पिछली कार्यवाही में आर.एस. गवई द्वारा एक विवादास्पद बात कहे जाने का जिक्र भी किया, पर गवई ने अपना भाषण जारी रखा। उन्होंने स्वयं पर अप्रासंगिक मुद्दे उठाने के आरोपों की चर्चा करते हुए कहा कि कई दूसरे सदस्यों के साथ स्वयं अरुण शौरी ने कहा है कि मैं उनके तर्कों से सहमत हूं। आर.एस. गवई ने कहा कि ‘अब मैं यहां हूं महोदय और मैं बताना चाहता हूं कि श्री अरुण शौरी ने एक किताब लिखी है, ‘वर्शिपिंग फाल्स गाड्स’।
संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के बारे में तत्कालीन अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी की यह किताब सात-आठ साल पहले छप चुकी थी और भारत और दुनिया भर में यह अत्यन्त विवादास्पद भी रही थी। अब बारी उच्च सदन की थी और उप-सभापति, स्वयं संविधान समीक्षा संकल्प के प्रस्तावक रामदास अग्रवाल, कांग्रेस से होते हुए 1999 में भाजपा में पहुंच चुके एस.एस. अहलुवालिया और कई अन्य सदस्यों की टोका-टाकी के बीच आर.एस. गवई ने जोर देकर कहा कि उनके इस उल्लेख का संबंध मौजूदा विषय से है।
श्री चतुर्वेदी ने बार-बार सदन की कार्यवाही संचालन के नियम 238ए का विस्तृत उल्लेख कर उन्हें अरुण शौरी की किताब का जिक्र करने से रोकने की कोशिश की, पर आर.एस. गवई ने बार-बार दोहराया कि वह विषय पर ही बोल रहे हैं। आर.एस.पी. सदस्य ने कहा कि अपनी बात रखते हुए उन्हें लगातार यह आशंका रही थी कि संविधाान समीक्षा का हो-न-हो कोई गोपन एजेंडा है। उन्होंने कहा कि ‘इसी गोपन एजेंडा की चर्चा करते हुए मैंने कई बातें कही, और फिर अरुण शौरी की किताब का उल्लेख। सो यह उल्लेख, विषय से असंबद्ध नहीं है।’
आर.एस. गवई ने इसके बाद अम्बेडकर के योगदान पर राजेन्द्र प्रसाद, के.एम. मुंशी, पं. जवाहरलाल नेहरु और महात्मा गांधी तक के उद्धरण पेश किए और कहा, ”बाबा साहब अम्बेडकर देश और दुनिया में करोडों लोगों के दिलों में हैं। मेरी श्रद्धा उन लोगों में है, जो वास्तविक ईश्वर हैं, झूठे भगवान नहीं। उन्होंने हमारे संविधान का प्रारूप बनाया है। अपनी पुस्तक में अरुण शौरी ने…”
वह पुस्तक पर कोई टिप्पणी करना चाहते थे, पर उप-सभापति और एस.एस. अहलुवालिया एक साथ बोल पडे़ कि ‘हम किताब पर बहस नहीं कर रहे हैं। श्री चतुर्वेदी ने जोड़ा कि ‘हम डा. अम्बेडकर के बारे में भी चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम संविधान समीक्षा समिति के गठन के बारे में विचार कर रहे हैं।’
उप-सभापति ने इसके बाद आर.एस. गवई को अपनी बात खत्म करने का निर्देश देते हुए कहा ‘मैंने आपको बोलने की इजाजत दी है, मैं आगे भी आपको यह इजाजत दूंगा, पर आप जिस तरह बोल रहे हैं उसमें मैं श्री अरुण शौरी की किसी किताब का कोई हिस्सा, उसका कोई उद्धरण सदन की कार्यवाही के रिकार्ड में जाने देने की अनुमति नहीं दे सकता।
आर.एस.गवई ने इसके बाद भी कई बार बात रखने का प्रयास किया, लेकिन उप-सभापति, संजय निरुपम, एस.एस. अहलुवालिया, स्वयं रामदास अग्रवाल और कुछ अन्य सदस्य उनके हर प्रयास पर उठ खडे़ होते और गवई की हर टिप्पणी शोर में डूब जाती। आखिरकार गवई ने ‘वर्शिपिंग फाल्स गाड्स’ का एक पन्ना फाड़ दिया। यह उनकी अन्तिम टिप्पणी थी, पर उनके इस एक्शन के बाद सारी चर्चा किताब फाड़ने के कृत्य की निन्दा, उसे सदन का अपमान बताने, उस पर आर.एस. गवई से माफी की मांग पर केन्द्रित हो गयी। उप-सभापति ने कहा कि यह स्वीकार्य नहीं है, एस.एस. अहलुवालिया ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और पूछा कि वह सदन के भीतर ऐसा कैसे कर सकते हैं, संविधान समीक्षा संकल्प के प्रस्तावक रामदास अग्रवाल ने इसे उच्च सदन का अपमान बताया और संजय निरुपम ने कहा कि ‘अगर इसी तरह से होगा तो किसी पुस्तक की सुरक्षा नहीं है।’
आर.एस.पी. सांसद ने भारी शोर-शराबे के बीच कहा कि वह कतई माफी नहीं मांगेंगे, अलबत्ता वह अपने कृत्य पर कोई भी सजा स्वीकार करने को तैयार हैं। इसे लक्ष्य कर संजय निरुपम ने बाद में बार-बार कहा, ”बहुत सी चीजें हैं, जिनको फाड़ा जा सकता है। मैं भी माफी नहीं मांगूंगा।”… पर आर.एस. गवई माफी नहीं मांगने और कोई भी जुर्माना स्वीकार करने को तैयार रहने पर अडे़ रहे।
इसके बाद राष्ट्रीय जनता दल की सरोज दुबे, कांग्रेस की अंबिका सोनी और तब कांग्रेस के ही सदस्य राजू परमार सहित कई सांसदों ने आर.एस. गवई का बीच-बचाव किया। श्री परमार करीब दो दशक बाद 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में चले गये थे। लेकिन मामला शांत होता न देख उप-सभापति टी.एन. चतुर्वेदी ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी।
(राजेश कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)