‘दलित साहित्य’ ही कहना क्यों जरूरी?

बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में दलित समाज की वेदना और उत्पीड़न को दलित साहित्य के माध्यम से दुनिया के समक्ष…

जयंतीः मधुशाला कविता से आगे समाज और इंसानियत के उच्च मुकाम का पैमाना बन गई

जीवित है तू आज मरा सा, पर मेरी यह अभिलाषाचिता निकट भी पहुंच सकूं अपने पैरों-पैरों चलकर यह पक्तियां दर्शाती…

पुण्यतिथिः साहित्य में दलित और स्त्री को विमर्श तक ले आने वाले राजेंद्र यादव विवादों से कभी हारे नहीं

हिंदी साहित्य को अनेक साहित्यकारों ने अपने लेखन से समृद्ध किया है, लेकिन उनमें से कुछ नाम ऐसे हैं, जो…

आलोचना पत्रिका के बहानेः बाजार और जंगल के नियम में कोई फर्क नहीं होता!

पांच दिन पहले ‘आलोचना’ पत्रिका का 62वां (अक्तूबर-दिसंबर 2019) अंक मिला। कोई विशेषांक नहीं, एक सामान्य अंक। आज के काल…

जन्म दिन विशेषः नेमिचंद्र जैन ने रंगकर्म में भरे जीवन के रंग

साल 2019, नेमिचंद्र जैन यानी नेमि बाबू का जन्मशती वर्ष था। पिछले साल उनकी याद में शुरू हुए तमाम साहित्यिक…

निर्णायक और नेतृत्वकारी भूमिका में रहे हैं प्रेमचंद के स्त्री पात्र

विवादों के कारण ही सही प्रेमचंद का साहित्य फिर से ज़ेरे बहस है। दलित साहित्य के लेखकों ने उनके साहित्य…