Friday, April 19, 2024

citizen

1400 अकादमिक शख्सियतों ने लिखा भारत में “स्टार्स” शिक्षा परियोजना के स्थगन के लिए विश्व बैंक को खत

नई दिल्ली। देश भर के 24 राज्यों से ख्यातिलब्ध 1400 शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, शोधकर्ताओं, शिक्षक संघों और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों, जमीनी स्तर पर सक्रिय संगठनों और सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न नेटवर्कों/मंचों ने विश्व बैंक से भारत में 6...

कोरोना डायरी: अपने नागरिक होने का हक़ भी खोते जा रहे हैं लोग

कोरोना वायरस से दरपेश इस संकट काल में बहुत कुछ सिरे से बदल गया है। साहित्य और इतिहास से मिले सबक बताते हैं कि विकट त्रासदियां इसी मानिंद अपने नागवार असर समय और समाज पर छोड़ती हैं। बेबसी का...

एनपीआर पर अमित शाह पहले सच थे या आज?

राज्य सभा में गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी के नाम के सामने डी यानि डाउटफुल नहीं लगेगा मतलब एनपीआर के आधार पर किसी को डाउटफुल सिटीजन नहीं बनाया जाएगा और ना ही सीएए के माध्यम से किसी की...

प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र

माननीय प्रधानमंत्री जी,                              तमाम राजनैतिक-वैचारिक विरोधों के बावजूद जब आप कुछ बोलने के लिए खड़े होते हैं तो एक जिम्मेवार नागरिक होने के नाते यथासम्भव आपकी...

100 से ज्यादा रिटायर्ड नौकरशाहों ने लिखा भारतीयों के नाम खुला पत्र, कहा-देश को CAA,NRC या NPR की कोई जरूरत नहीं

नई दिल्ली। 100 से ज्यादा रिटायर्ड नौकरशाहों के एक समूह ने गुरुवार को भारत के नागरिकों के नाम खुला पत्र जारी कर नागरिकता संशोधन कानून के प्रति अपना विरोध जाहिर किया है। पत्र में विस्तार से लिखा गया है कि देश...

बीएचयू फिरोज खान प्रकरण: एक नागरिक के तौर पर मैं शर्मिंदा हूं!

आज मुझे देश का नागरिक होने पर शर्म आ रही है। बीएचयू की संस्कृत विभाग की घटना सामने आने और अब उसके अध्यापक प्रोफेसर फिरोज खान के वहां से छोड़कर अपने घर चले जाने के फैसले के बाद महसूस हो रहा...

व्हाट्सएप स्पाईवेयर कांड: नागरिकों की निजता के उल्लंघन से बाज नहीं आ रही है मोदी सरकार

'हर व्यक्ति का घर उसकी शरणस्थली होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और क़ानूनी अनुमति के उसे भेद नहीं सकती' यह बात आज से 124 साल पहले 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में कही गयी थी, 1925...

Latest News

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।