जनपक्षीय पत्रकार रूपेश का दो वर्षों में कई जेलों में किया गया ट्रांसफर, इस जेल जीवन के क्या हैं मायने?

ग्राउंड रिपोर्टर रूपेश कुमार सिंह के गिरफ्तारी के दो वर्ष पूरे हो गये हैं, 17 जुलाई 2022 का वह दिन था, जब सरायकेला पुलिस ने स्थानीय पुलिस के साथ रूपेश के घर पर दस्तक दी थी, यह कहते हुए कि सर्च करना है पर लगभग 1 बजे जाकर उनके द्वारा बताया गया कि उनके पास अरेस्ट वारंट है रूपेश जी को लेकर। और इस तरह जो पत्रकार दो दिन पहले राज्य की एक बहुत बड़ी रिपोर्टिंग झारखंड के गिरिडीह जिले के औद्योगिक प्रदूषण और जनता पर उसके दुष्प्रभाव पर लिखे रहे थे , सलाखों के पीछे डाल दिए गए। उस दिन से जो मुद्दे चर्चे के हो सकते थे बदल गए, एक धारदार कलम पर अंकुश लग गया, वे सारे सवाल जो उनके लेख खड़े कर रहे थे हाशिए पर चले गए, उनके लेख भी समय के इस रफ्तार में पीछे छूट गए और अब अपनी कलम खोए पत्रकार को प्रशासन के मनमाने रवैया से गुजरना पड़ा।

पर यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि हमारा नजरिया हर जगह अपनी चीजें ढूंढ लेता है, इन दो वर्षों में रूपेश चार जेलों से गुजारे गए। भले ही उन्होंने अब बाहरी दुनिया के लिए अपनी कलम खो दी, पर उनके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ जिसे वही जान सकता है जो जेल गया हो। जेल के अंदर के भ्रष्टाचार को उन्होंने देखा और देखा ही नहीं जहां भी संभव हो सका उसका विरोध भी किए। बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में बदलाव का प्रयास भी किए। अब तक वे चार जेलों से गुजारे गए हैं और सबकी अलग ही कहानी रही है।

सरायकेला मंडल कारा

गिरफ्तारी के बाद 18 जुलाई 2022 शाम करीब 5:30 बजे कोर्ट में पेश करने के बाद रूपेश को सरायकेला जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें बीमार बंदियों- जिनमें 1 हेपेटाइटिस बी, 1 कुष्ठ रोगी, 2 टीवी के मरीज थे, के साथ एक ही जगह रखा गया था, यह जेल व्यवस्था की पहली तस्वीर थी। जेल का पहला दिन, रातभर चिंता में बीता और दूसरा दिन 19 जुलाई 2022 रिमांड का ही दिन था।

19 जुलाई से 4 दिन का पुलिस रिमांड जिसका मतलब ही था, सवालों की बौछार और मानसिक उत्पीड़न। हालांकि गिरफ्तारी का दिन भी पूछताछ का दिन होने के कारण इससे कुछ अलग नहीं था। यानि दो दिनों की मानसिक थकान और चार दिनों के लिए और बढ़ गई थी। चार दिनों के रिमांड के बाद फिर 23 जुलाई को जेल पहुंचाए गए। चार दिनों बाद 28 जुलाई को फिर रिमांड पर ले जाए गए, रिमांड के दौरान उन्हें नये केस थोपने की धमकी भी दी जाती रही और जिनमें से कुछ लगाए भी गए हैं।

31 जुलाई बेटे के जन्मदिन का दिन, रूपेश फिर ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजे गए। हालांकि वह रविवार का दिन था और कोर्ट बंद था। 24 जुलाई से रूपेश को एक नई जगह पर भेजा गया था, रिमांड के बाद वापस वे उसी जगह रखे गए। वह एक तन्हा सेल था, एक पुराना महिला वार्ड, जिसमें अब कोई नहीं था। पुराना और रख-रखाव न होने के कारण वह जर्जर था, छत 80℅ से ज्यादा रिसने वाला, बाहर बड़े-बड़े झाड़-झंखाड़ जिसमें जहरीले जीव हो सकते थे। ताजुब्ब की बात यह थी कि जिस जेल प्रशासन ने चार बीमार बंदियों के साथ उन्हें रखा था, वही इस जगह पर रूपेश को रखने के लिए कोरेंटाइन का हवाला दे रही थी। इस तरह रूपेश के जेल जीवन ने जेलों के अंदर की सच्चाई से अवगत कराया। जहां बदलाव के लिए वृहद पहल की जरूरत है।

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन रूपेश ने अपनी तीन मांगों – 1. काॅपी-कलम देने की बात 2. खाना जो कच्चा रहता था जेल मेन्युअल के अनुसार करने और 3. जर्जर जगह चेंज करने को लेकर भूख हड़ताल किया, अंततः जेल सुपरिटेंडेंट द्वारा मांग पूरी करने का आश्वासन दिये जाने के बाद भूख हड़ताल को खत्म किया गया, सुधार तो हुए मगर बहुत कम। 18 अगस्त को रूपेश दूसरे केस जागेश्वर बिहार, बोकारो जिसकी पेशी 10 अगस्त को कर दी गई थी, के लिए फिर एक बार पुलिस रिमांड पर भेज दिए गए। जो कि 96 घंटे का था यानि 22 अगस्त तक।

वापस फिर सरायकेला जेल में वही स्थिति बनी रही, जिसके कारण 13 सितम्बर शहीद यतींद्र नाथ दास जो कि जेल की बदतर व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए ही शहीद हुए थे, के 93वें शहादत दिवस पर रूपेश ने भूख हड़ताल का निश्चय किया।

इस बाबत एक पत्र बंदियों के पांच मांगों के साथ महामहिम राष्ट्रपति महोदया को लिखे और जेल प्रशासन को सौंपा। कायदे से इस पर जेल में जांच और सुधार होनी की अपेक्षा थी, मगर उसकी बजाय रुपेश का जेल ट्रांसफर हो गया।

बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार, रांची

12 सितम्बर को ही उन्हें बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार, रांची ले जाया गया। और ताजुब्ब की बात यह थी कि उसी दिन से एक करीब 8.5×7 के कमरे में उन्हें बंद कर दिया गया। जबकि कानून कहता है कि जेल प्रशासन जेल अपराध पर ही अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है, इस तरह जो बंदी अभी लाया ही गया हो वह कौन सा जेल अपराध कर सकता है यह समझ से परे है।

ट्रांसफर से आए बंदी को सजा देना बिल्कुल गैरकानूनी था और मानवाधिकार के साथ-साथ मौलिक अधिकार का भी हनन था। पर जेल प्रशासन पर कोई अंकुश नहीं है, वह नये आए बंदी के साथ कुछ भी कर सकती है।

यह सच्चाई दबकर भी रह जाती है क्योंकि वहां की सच्चाई वही बता सकता है जो वहां कैद हैं किसी प्रकार की जांच के समय सब अपने हिसाब से जेल प्रशासन अरेंज कर लेती है जिसके कारण कभी कोई बड़ी कार्रवाई जो बंदियों के कानूनन अधिकार के हित में हो, विरले ही होते हैं।

रूपेश से जेल फोन पर बात हुए कुछ दिन हो गए और सामान पहुंचाने के लिए जेल गेट पर जाने पर पता चला उन्हें ट्रांसफर कर दिया गया है। अनुमान था कि रांची लाए गए होंगे। अब 17 सितम्बर को मुलाकात के लिए परिवार रांची पहुंचे, बताया गया कि वे यहीं लाए गए हैं पर मुलाकात का वक्त पूरा नहीं होने का हवाला देकर मिलने नहीं दिया गया जो कि सेल के बंदी के लिए 17 दिन होता था। न ही कोई फोन काॅल आया और न ही कोई और तरीका था जो यह कंफर्म करता कि वे यहीं है और ठीक हैं।

22 सितम्बर को रूपेश से मिलने का मौका मिला, तो रूपेश ने परिवार वालों को सारी बात बताई। वह कुछ यूं थी- 12 सितम्बर 2022 को वे बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा, होटवार (रांची) लाए गए। उन्हें एक कमरे में भेजकर बाहर से ताला लगा दिया उस कमरे में बाथरूम अटैच था, जहां पीने के लिए शौचालय का ही पानी यूज करना था। पर उनके हठ पर जेल प्रशासन ने उन्हें पीने का पानी बाहर से उपलब्ध कराया। यह जगह शायद कैदियों को सजा देने के लिए इस्तेमाल की जाती होगी। वह 24 घंटे बंद ही रहता, खाना भी कभी गेट खोलकर तो कभी बंद गेट के ऊपर से दी जाती थी।

रूपेश उस दिन कुछ न खाए, सरायकेला जेल में सुबह 12 सितम्बर 10 बजे खाए थे, 13 सितम्बर को शहीद यतींद्र नाथ दास की शहादत के सम्मान और वर्तमान जेल के भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ अनशन पर थे, 14 सितम्बर को दोपहर में जेल अधिकारी के मिलने की आश्वासन पर खाना खाए, पर फिर नहीं मिलाया गया,और गेट हमेशा बंद ही रहा। वहां विरले ही सिर्फ जेल सिपाही दिखते थे। इस तनाव ने उनके नस के खिंचाव की प्रॉब्लम को काफी बढ़ा दिया। इस यातना गृह में उन्हें सात दिनों तक रखा गया, जब तक कोर्ट में पेशी का वक्त न आ गया।

हम कल्पना कर सकते हैं एक नई जगह जहां एक ही कमरे में सात दिनों तक पूरी तरह से बंद रहना हो, कैसी स्थिति रही होगी। न सुबह की खबर, न शाम की। न एक इंसान, न एक जीव। सात दिनों तक लगातार किसी से भी न मिलना, न सुनना, न देखना सिवाय उन सिपाहियों के जो गाहे बगाहे खाना देने आ रहे थे। मानवाधिकार के साथ एक क्रूर मजाक। वे चाहते थे कि इन बातों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक ले जाना चाहिए और इस विषय पर परिजनों के हित में कुछ पहल होनी चाहिए, पर वे विवश इसलिए थे कि वे खुद जेल में थे।

जेल ट्रांसफर को लेकर ऐसे कोई नियम नहीं है जो परिजनों को आश्वस्त कर सकें, उन्हें इस बावत सही सूचना मिल सके। जहां बाहर गेट पर उन्हें यह कहा जाएगा कि अंदर सब ठीक है वहां अंदर बंदी किसी यातना को झेल रहा होगा। यह एक बेहद चिंता का विषय है क्योंकि कई लोग ऐसे बंद हैं जिनके परिवार बेहद कमजोर और गरीब हैं वे अपने अधिकारों की रक्षा कैसे करेंगे? देश के कानूनविदों को इसपर सोचने की सख्त जरूरत है।

रूपेश अपने जेल जीवन में भी जहां तक संभव हुआ, बंदियों के अधिकार के लिए बोलते रहे चाहे फोन कॉल हो, मुलाकात में पैसे लेने की बात हो, काॅपी कलम हो, बंदियों के साथ दोहरा व्यवहार हो। और इन प्रयासों का परिणाम भी देखने को मिलता रहा।

जहां रूपेश नए-नए केस में नामजद किए गए वहीं देश भर में एक मुखर पत्रकार की गिरफ्तारी के विरुद्ध आवाज उठती रही।
कई जनसंगठनों ने सड़क पर उतर कर इसका विरोध किया है, कई पत्र-पत्रिकाओं ने इसपर सवाल खड़े किए हैं, वेब पोर्टल पर भी रिहाई के लिए खबरें लगातार छप रही है, आउटलुक, इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंट, द वायर, बीबीसी न्यूज़, जनचौक, जनज्वार, न्यूज़ क्लिक, scroll.in, The caravan, Committee to Protect Journalist, srdefender.org, Femenism in india, Indie journal, siasat.com, International Federation of journalists, samridhjharkhand.com, Maktoo media,workers unity, न्यूज़लौंड्री, भड़ास फार मीडिया, वर्कर्स यूनिटी, Boom fackcheck, article- 14.com, Al Jazeera, clarrion india, US commission on International religious freedom. the newspost.in, जैसे न जाने कितने जगहों पर इस गिरफ्तारी के खिलाफ और रिहाई के लिए आवाज उठी, खबरें छपीं।

झारखंड के बगोदर विधायक विनोद सिंह द्वारा झारखंड विधानसभा में सवाल उठाए गए, रिहाई की मांग की गई, CPJ द्वारा अमेरिका की वाशिंगटन डीसी में इसपर पूरे पेज में एड द्वारा सवाल खड़े किए गए, प्रेस फ्रीडम ने पोस्टर निकला, अमेरिकी सीनेट में भी सवाल उठाए गए।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति के विशेष प्रतिवेदक ( Special Rapporteur on the situation of human rights defenders ) मैरी लाॅलर ने भी इस अवैध गिरफ्तारी व जेल उत्पीड़न की निंदा करते हुए महामहिम का ध्यान आकृष्ट करते हुए पत्र 26 अक्टूबर 2022 को लिखा।

इसके बावजूद प्रशासन अपने रफ्तार में चलती रही और 15 दिसम्बर 2022 को एक और केस टोक्लो थाना क्षेत्र चाईबासा में अनामजद अभियुक्त शामिल कर दिया। पहले ही पुलिस रिमांड में ही रूपेश को कह दिया गया था कि उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा, चाहे कपिल सिब्बल को ही क्यों न वकील बना लें, यह सब उसी की तैयारी थी।

आदर्श केंद्रीय कारा बेऊर, पटना

17 अप्रैल 2023 को एक साथी वकील के कॉल से पता चला कि रूपेश एक एनआईए केस के तहत पटना ट्रांसफर कर दिए गए हैं उन्होंने उन्हें कोर्ट में देखा था। घर पर परिजन मुलाकात की अगली तारीख गिन रहे थे, बेटा पिता से मिलने को आतुर था पर बिना किसी खबर के वे एक राज्य से दूसरे राज्य ट्रांसफर कर दिए गए थे। ट्रांसफर नीति में बंदी और बंदी के परिजन से न्याय शब्द कहीं जुड़ा हुआ नहीं दिख रहा था।

रूपेश आदर्श केंद्रीय कारा बेऊर पटना में सामान्य वार्ड में पहली बार रखे गये थे। पटना एनआईए कोर्ट में काफी महीने से स्थाई जज नहीं था, अतः स्थायी जज की नियुक्ति को लेकर अन्य 70-80 बंदियों के साथ मिलकर उन्होंने भी एक आवेदन लिखा, जिसके लगभग दो महीने बाद स्थायी जज की नियुक्ति हो गई थी। जेल में एक बंदी की दबंग बंदियों द्वारा हत्या होने पर भी इन्होंने विरोध किया और अन्य बंदियों के साथ इसके खिलाफ इन्होंने आवेदन भी दिया, यहां रूपेश ने और उनके लगभग 800 से भी ज्यादा सहबंदियों ने इजरायल द्वारा फिलिस्तीन पर किए जा रहे युद्ध रोकने व पीड़ितों की हरसंभव मदद में देश की सक्रिय भूमिका की उम्मीद व इसके समर्थन में माननीया राष्ट्रपति महोदया को पत्र भी भेजा था। रांची जेल में रहते हुए ही समय के सदुपयोग के लिए वे दो विषयों पर फिर से मास्टर की पढ़ाई शुरू कर दिए थे जो यहां जारी थी।

17 जून 2023 को खबर मिली की रूपेश जी को चिकनपॉक्स हो गया है, गर्मी बहुत ज्यादा थी, और जेल में तो स्थिति और भी खराब होती है। एक तरफ सेलों में क्षमता से काफी कम बंदी रहते हैं, जो तन्हाई का एहसास दिलाते हैं, वहीं सामान्य वार्डों में क्षमता से ज्यादा बंदी होने के कारण गर्मी में राहत की भी कोई जगह नहीं होती। उन्हें पूरी तरह स्वस्थ्य होने में महीने लग गए, बंदियों से अच्छे रिश्ते और व्यवहार होने के कारण जहां भी रहे, बंदियों से उन्हें बेहद प्यार मिला। उन्होंने उनका उस दौरान ख्याल भी रखा। 8 महीने इस जेल में रहने के बाद एक नये बहाने के साथ एक बार फिर जेल ट्रांसफर कर दिया गया।

शहीद जुब्बा सहनी सेंट्रल जेल, भागलपुर

22 जनवरी 2024 रात को रूपेश एक ऐसी जगह ट्रांसफर कर दिए गए, जहां न उनका कोई केस था न कोई विचारण, पटना, सरायकेला, जागेश्वर बिहार, चाइबासा जहां उनके केस का ट्रायल चल रहा था, को छोड़कर एक नयी जगह। जैसा कि हर जगह होता आया यहां भी शुरुआत के एक सप्ताह उत्पीड़न में ही बीते। अकेले एक कम रौशनी के कमरे में रखना, सर्दी जुखाम के बावजूद ठंडा पानी पीने को विवश करना, काॅपी कलम, किताबें न देना , इसके कारण मानवाधिकार आयोग में आवेदन देना पड़ा।

जेल नियम को लेकर यहां जेल अधिकारियों द्वारा कोई कुछ कहता तो कोई और कुछ। कभी कहा जाता- ई-मुलाकात लगा लीजिए, कोई कहता प्रशासनिक बंदी का ई-मुलाकात नहीं होता। लगभग चार महीने लगे यह पता करने में क्योंकि चार महीने तक ई-मुलाकात के लिए अप्लाई करने के बाद भी एक बार भी न ओके किया गया न रिजेक्ट। सिर्फ एक बार 23 फरवरी को कोर्ट के मौखिक आदेश से ई-मुलाकात संभव हो पाई थी, फिर वही स्थिति। जबकि बेटा पिता को देखने के लिए दिन गिनता रहता।

बात करने के लिए फोन की भी वही स्थिति रही, पर रूपेश को जेल के इस अनियमितता की आदत पड़ चुकी थी। यहां भ्रष्टाचार बाकी जेलों से अलग था, यहां बंदियों के नाम पर आने वाले सामान में कटौती करके और उन्हें कैंटिन में कच्चे सामान के रूप में उससे बने सामानों को बंदियों को बेचकर जेल कैंटीन में बेचकर भ्रष्टाचार की प्रथा कायम रखी गई थी। यहां अस्पताल की स्थिति भी बदतर है, रूपेश को शुरुआत मार्च से ही आंखों में प्रोब्लम हो रही थी, जिसे मई लास्ट में जाकर दिखाया गया वह भी तब, जब जेल के भ्रष्टाचार को लेकर रूपेश ने भागलपुर डीएम को आवेदन लिख दिया था।

यहां ट्रांसफर होकर आए बंदियों की पहले पिटाई की जाती है ताकि वह अपने अधिकार यहीं से भूल जाए, अंदर गुलामों की तरह जेल प्रशासन व्यवहार करती है। रूपेश जी ने इस पिटाई, डांटना-फटकारना, गाली गलौज करना, खाने की बदतर स्थिति, पौष्टिक आहार जो कि जेल मेन्युअल में दिया है की कमी, ईलाज की व्यवस्था का न होना, पीने के पानी का गंदा होना, प्रशासनिक बंदी का ई-मुलाकात में दिक्कत करना, ऐसे कई मसलों को लेकर भागलपुर डीएम को 7 मई 2024 को एक आवेदन लिखा था जो कि डीएम के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग , बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग, हाईकोर्ट पटना के मुख्य न्यायाधीश, बिहार के मुख्यमंत्री, बिहार के कारा-महानिरीक्षक तथा बिहार गृहसचिव महोदय को भी प्रेषित किया गया था। जिसको संज्ञान में लेते हुए 3 जून को गृह सचिव तथा 12 जून को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जेल महानिरीक्षक को भेजा गया है। वहीं 29 मई को जिलाधिकारी की तरफ से भी जांच कराई गई थी जिसके बाद कुछ हद तक सुधार हुआ था।

सच में, जेल के इन भ्रष्टाचार पर बड़े जांच की जरूरत है क्योंकि जांच की खबर पर संभव है कि जेल प्रशासन सबकुछ पहले से अरेंज कर ले, बंदियों को डरा-धमका कर अपनी बातें बुलवा ले और जांच में प्रत्यक्ष रूप से सच बाहर नहीं आ पाए। पर जहां परिस्थियां खुद बोलती है वहां गहराई से जांच होने पर सच जरूर सामने आ जाएगा।

वर्तमान में रूपेश शहीद जुब्बा साहनी केंद्रीय कारा में जेल जीवन का दूसरा वर्ष बिता रहे हैं और इन दो वर्षों में चार जेलों की भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ हर बार अपनी आवाज उठाते आ रहे हैं, जेल के बाहर उनकी ग्राउंड रिपोर्टिंग ने जमीनी स्थिति से अवगत कराया था तो जेल के अंदर जेल भ्रष्टाचार से।

इन दो वर्षों में बहुत कुछ बदला है, पत्रकारिता पर अंकुश और तेजी से लगे हैं, कई पत्रकार जेल में बंद किए गए, कई राजनीतिक बंदी रिहा हुए। जन संगठनों के खिलाफ भी दमन तेजी से बढ़ा है, एनआईए द्वारा जन संगठनों के आफिस व सदस्यों के घरों में छापेमारी की खबर आए दिन पढ़ने को मिल रही है। इसके अलावा बहुत कुछ बदला है, और इन सबसे दूर रूपेश जी अपने जीवन साथी और 7 वर्ष के बेटे के दिलों में जल्द लौटने की उम्मीद देकर जेल में अपना अनमोल वक्त बिता रहे हैं, जेल की भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते हुए, जिसे शायद हमारी, आपकी, प्रगतिशील व कानूनविद् लोगों के सहयोग की जरूरत है।
जिंदगी जहां भी हो, बदलाव के सपने कभी छूटने नहीं चाहिए आखिर यही सपना एक दिन एक बेहतर सुबह लाती है।

(झारखंड से इलिका प्रिय की रिपोर्ट)

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