जो सम्मानित है वो संदिग्ध है!

तो साहिबान आज की दुनिया है ना वो बड़ी ही विचित्र है। लोगों की समझ में ही नहीं आता कि सच क्या है और झूठा कौन है? जोर-शोर में दबा दबा के, मीडिया से घेर घार कर, चमचमाते बैनरों तले झूठ जैसा आज सम्मानित है वैसी बात कोई पहले सोच भी नहीं सकता था। हमारे मोदी जी विश्वगुरु की होड़ में तो अव्वल चल रहे थे पर डोनाल्ड ट्रम्प ने उनकी चूलें हिला दीं। जिन्हें भारतीय बेहिसाब सम्मान से नवाज़ते थे आज ट्रम्प की बदौलत वे अपनी प्रतिष्ठा ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में गंवा चुके हैं। 

दरअसल चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत आपने सुनी होगी मोदी जी ने जो गड़बड़ियां देश के साथ की, उसका रिकॉर्ड ट्रम्प रखे हुए हैं यदि तू तड़ाक किया तो ठिकाने लगा दिए जाओगे। इसलिए साहिब सरेन्डर हैं। उधर विश्वगुरु बनने की धाक जमाने डोनाल्ड ट्रम्प आतुर हैं। लेकिन अमेरिकी मीडिया बिकाऊ नहीं है और वह उनकी पोल बराबर खोल रहा है। मोदी जी की तरह बहुत से देश उनसे निरंतर दूरी बढ़ाने में लगे हैं। कहने का मतलब ये है कि इतने बड़े सम्मानित महामानव आज संदिग्ध हैं। लेकिन ये तो राजनीति की संदिग्धता है जिसमें साम-दाम-दंड-भेद आज भी कथित तौर पर मान्य है।

बहरहाल राजनीति से हटकर अब दूसरे क्षेत्रों की ओर मुखातिब हो लिया जाय एक संन्यासिन ऋतम्भरा देवी जी हैं, जी दुर्गा वाहिनी वाली जिन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री और अब पद्मभूषण से सम्मानित किया है। ये राजनीति से जुड़ी सन्यासिन हैं और देश में साम्प्रदायिक आग उगलती रही हैं। साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए विख्यात भारत के लिए यह एक करारा तमाचा है। लेकिन सम्मान की तौहीन करनी ही है तो अपने समर्थकों को उपकृत करना परम धर्म बनता है।

एक और हैं श्रीरामभद्राचार्य जी जिनका आशीर्वाद लेने थल सेनाध्यक्ष खुद जाते हैं उनकी देशभक्ति देखिए वे आशीर्वाद देते हुए दक्षिणा में उनसे अधिकृत कश्मीर मांग बैठते हैं उनकी इसी देशभक्ति का प्रभाव केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर ने जाना और विश्वविद्यालय ने धर्माचार्य को डीलिट की उपाधि देने का निर्णय ले लिया है। जिसकी आंखें और ज्ञान चक्षु भी बंद है?अधिकृत कश्मीर को दक्षिणा में मांगता है? धर्म के आदर्शों के विपरीत बात करता है, इसका मतलब है कि डीलिट की उपाधि, दो कौड़ी की हो गई है? 

याद आती हैं स्मृति ईरानी जो 2014 में सांसद चुनाव राहुल गांधी से हारती हैं, उन्हें मोदी सरकार सम्मानित करते हुए देश के मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसा बुद्धि जीवियों का विभाग सौंप देते हैं। जिनकी डिग्री भी माननीय मोदी जी की तरह संदिग्ध है।

एक अनुराग ठाकुर जी हैं जो पिछली केंद्र सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री थे उनकी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने दिल्ली दंगे में गोली मारो……को नारे के साथ वहां तनाव बढ़ाया था एवज़ में मंत्री बनाए गए।

एक और सम्मानित सांसद कंगना जी जो जब तब अपने ऊल-जलूल बयानों के लिए जानी जाती हैं। वे भारत को आज़ादी 2014 में मिली कहकर लोकप्रिय हो जाती हैं। उनका खंडन नहीं होता यानि उनका भविष्य उज्जवल है सम्मान द्वार खटखटा रहा है।

हम सब 2002 के गुजरात नरसंहार से भली-भांति वाक़िफ हैं। बिल्किस बानो और उसके परिवार के साथ जिस तरह की बेरहमी के साथ दुराचार हुआ। पर उसकी हज़ारहा कोशिश के बाद एक पूरी गैंग दोषी पाई जाती है। वह आजीवन कारावास पाती है। लेकिन ऐसे महान लोगों को सम्मानित करते हुए उनकी सज़ा कम करके ठीक पंद्रह अगस्त को उन्हें आज़ाद कर दिया जाता है। इस आज़ादी पर उनका सार्वजनिक तौर पर सम्मान समारोह आयोजित होता है इससे तकलीफ देह और क्या हो सकता है।

हाल ही में कर्नाटक के हावेरी में एक युवती के सामूहिक बलात्कार के दोषियों को जमानत मिलने पर सार्वजनिक तौर पर जुलूस निकालकर जश्न मनाने का समाचार क्या संदेश देता है? अपराधी अब खौफ नहीं खाते हर्ष मनाते हैं।

ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें भ्रष्ट आचरण के दोषी लोगों को इस दौर में मंत्री पद देकर सम्मानित किया गया है उनमें हेमंत विस्वशर्मा, शुभेन्दु अधिकारी ,मुकुल राय शारदा चिटफंड जैसे घोटाले के सरताज हैं। तो अजीत पवार सिंचाई घोटाले, नारायण राणे आदर्श सोसायटी घोटाला, नवीन जिंदल- कोयला घोटाला, येदुरप्पा खनन घोटाला बाज हैं। ये सूची बहुत लंबी है फिर क्यों न भावी नेता घोटालों से विचलित होंगे। इस तरह सम्मानों के लिए तड़पते फड़फड़ाते लोगों को देखकर क्षोभ होता है। 

किसी कवि ने सच लिखा है 

आज आदमी को 

इतने तरह से 

अपमानित किया जा रहा है 

कि जो सम्मानित हैं 

वो संदिग्ध हैं।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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