प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने भारत-पाक के बीच तनाव को लेकर अपने फेसबुक पोस्ट पर 8 मई को एक टिप्पणी की थी, जिसे हरियाणा राज्य महिला आयोग और बीजेपी से जुड़े एक गांव के सरपंच ने आपत्तिजनक पाया। महिला आयोग ने प्रोफेसर अली को स्पष्टीकरण देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर समन किया। प्रोफेसर अली ने इसके जवाब में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए लिखित रूप से अपना जवाब दिया। इससे खफ़ा होकर महिला आयोग और सरपंच के द्वारा प्राथमिकी दर्ज कर दी गई, और कल रविवार के दिन प्रोफेसर को हरियाणा पुलिस ने हिरासत में भी ले लिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने आज प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर अपनी सहमति जताई है। प्रोफेसर अली खान पर ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस ब्रीफिंग में शामिल भारतीय सेना की महिला अधिकारियों पर टिप्पणी करने और सांप्रदायिक विद्वेष बढ़ाने का आरोप है।
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद, कपिल सिब्बल ने दो न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई के समक्ष दलील देते हुए कहा है कि, “अशोका विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के खिलाफ पूरी तरह से देशभक्ति से जुड़े बयानों पर कार्रवाई की गई है।” सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया कि यदि संभव हो तो 21 मई को इस पर सुनवाई की जाए। वहीं सीजेआई गवई ने इस पर सुनवाई करने पर सहमति जताई है, लेकिन मामला सूचीबद्ध होने के बाद ही तारीख तय होगी।
प्रोफेसर अली पर हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और जठेरी गांव के सरपंच योगेश जठेरी की शिकायत के आधार पर दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, योगेश जठेरी हरियाणा में भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव भी हैं। दोनों प्राथमिकी राज्य के सोनीपत जिले के राई पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई हैं। जठेरी की शिकायत के आधार पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196(1)बी (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 197(1)सी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कथन), 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य) और 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण कृत्य) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
दूसरी एफआईआर बीएनएस की धारा 353 (सार्वजनिक शरारत के लिए उकसाने वाले बयान), 79 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य) और 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य) के तहत दर्ज की गई है।
अशोका यूनिवर्सिटी ने रविवार को जारी एक बयान में कहा: “हमें बताया गया है कि प्रो. अली खान महमूदाबाद को आज सुबह पुलिस हिरासत में ले लिया गया है। हम मामले के विवरण का पता लगाने की प्रक्रिया में हैं। यूनिवर्सिटी जांच में पुलिस और स्थानीय अधिकारियों के साथ पूरा सहयोग करना जारी रखेगी।”
बता दें कि दिनांक 12 मई को एनसीडब्ल्यू ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बाद महमूदाबाद द्वारा सोशल मीडिया पर किए गए पोस्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए उन्हें नोटिस जारी किया था। कारण बताओ नोटिस में उनकी टिप्पणियों को भी शामिल कर प्रोफेसर अली को आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए भी समन किया गया था। आयोग ने उनकी टिप्पणियों को “राष्ट्रीय सैन्य कार्रवाइयों को बदनाम करने का प्रयास” माना है।
सवाल है कि क्या प्रोफेसर अली ने कोई ऐसी आपत्तिजनक बात अपने पोस्ट में लिखी थी जो ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग देने के लिए मीडिया में उपस्थित होने वाली सेना की दो महिला अधिकारियों के सम्मान के खिलाफ लिखी गई थी? इसे उनके फेसबुक पोस्ट को पढ़कर ही समझा जा सकता है, जिसे उन्होंने 8 मई को अंग्रेजी में लिखा था। पोस्ट की शुरुआत करते हुए प्रोफेसर अली लिखते हैं:-
“रणनीतिक रूप से देखें तो असल में भारत ने पाकिस्तान में सैन्य और आतंकवादी गतिविधियों (नॉन-स्टेट एक्टर्स) के बीच के अंतर को खत्म करने के मामले में एक नए चरण की शुरुआत की है। वास्तव में किसी भी आतंकवादी गतिविधि की प्रतिक्रिया एक पारंपरिक प्रतिक्रिया को आमंत्रित करेगी और इसलिए इसे सुनिश्चित करने के लिए यह पाकिस्तानी सेना के ऊपर जिम्मेदारी थोपता है कि वह आतंकवादियों और नॉन-स्टेट एक्टर्स के पीछे छिपा न रह सके। लगभग हर मामले में पाक सेना ने इस क्षेत्र को अस्थिर करने के लिए काफी लंबे समय से सैन्यीकृत नॉन-स्टेट एक्टर्स का इस्तेमाल किया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसने इससे खुद के पीड़ित होने का दावा भी किया है। इसने उन्हीं एक्टर्स का इस्तेमाल किया है, जिनमें से कुछ को हाल ही में पाकिस्तान में सांप्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए हमलों में निशाना बनाया गया था। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत-पाक संबंधों की सभी धारणाओं को फिर से स्थापित किया है क्योंकि आतंकवादी हमलों का जवाब सैन्य प्रतिक्रिया से दिया जाएगा और दोनों के बीच किसी भी प्रकार के तार्किक अंतर को मिटा दिया जाएगा। इस पतन के बावजूद, भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान स्थित सैन्य या नागरिक प्रतिष्ठानों या बुनियादी ढांचे को निशाना नहीं बनाने का ख्याल रखा है ताकि कोई अनावश्यक तनाव न बढ़े। संदेश स्पष्ट है: यदि आप अपने आतंकवाद की समस्या से नहीं निपटते हैं तो हम निपट लेंगे! नागरिक जीवन का नुकसान दोनों पक्षों के लिए दुखद है और यही मुख्य कारण है कि युद्ध से बचा जाना चाहिए।”
इस पहले पैराग्राफ में प्रोफेसर अली ने भारतीय सेना की कार्रवाई को उचित बताया है, और कहीं से भी उनके विचार पाक सैन्य कार्रवाई या पाक समर्थित नॉन-स्टेट एक्टर्स का समर्थन करते हों। अली आगे लिखते हैं:
“ऐसे लोग भी हैं जो बिना सोचे-समझे युद्ध की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी युद्ध नहीं देखा है, और संघर्ष क्षेत्र में रहने या वहां जाने का कोई अनुभव ही उनके पास है। मात्र सिविल डिफेंस ड्रिल का हिस्सा बन जाने से आप सैनिक नहीं बन जाते और न ही आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति का दर्द जान पाएंगे जिन्हें इन संघर्षों की वजह से भारी नुकसान उठाना पड़ता है। युद्ध क्रूर होता है। गरीबों को इससे भारी पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ता है और केवल राजनेता और रक्षा कंपनियां ही इससे लाभान्वित होती हैं। जबकि युद्ध अपरिहार्य है क्योंकि राजनीति मुख्य रूप से हिंसा में निहित है- कम से कम मानव इतिहास से हमें यही सीख मिलती है। ऐसे में, हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक संघर्षों को कभी भी सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से हल नहीं किया जा सका है।”
इस पैराग्राफ में प्रोफेसर अली, जो कि राजनीति विज्ञान पढ़ाने के साथ-साथ पिछले एक दशक से उर्दू और अंग्रेजी के नामचीन समचार पत्रों, मैगज़ीन में लिख रहे हैं, अपनी दृष्टि रखते हैं। लेकिन यहां पर भी उनकी ओर से ऐसी कोई उल्लेखनीय बात नहीं कही गई है, जिसे भारत में अन्य राजनीतिक, भूराजनैतिक विषयों पर लिखने वाले लोग नहीं लिख रहे। अंत में प्रोफेसर अली, लिखते हैं:
“अंत में, मुझे यह देखकर बेहद खुशी है कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं, लेकिन शायद वे उतनी ही जोर से यह भी मांग कर सकते हैं कि mob lynching (भीड़ द्वारा हत्या), मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने और भाजपा के नफरती प्रचार के शिकार अन्य लोगों को भी भारतीय नागरिक के तौर पर संरक्षित किया जाए। दो महिला सैनिकों के द्वारा अपने निष्कर्षों को प्रस्तुत करने का ऑप्टिक्स महत्वपूर्ण है, लेकिन इस ऑप्टिक्स को जमीन पर वास्तविकता में तब्दील भी किया जाना चाहिए, अन्यथा यह पाखंड से अधिक नहीं होगा। जब एक प्रमुख मुस्लिम राजनेता ने “पाकिस्तान मुर्दाबाद” कहा और ऐसा करने के लिए पाकिस्तानियों द्वारा उन्हें ट्रोल किया गया- तब भारतीय दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों ने यह कहकर उनका बचाव किया कि “वो हमारा मुल्ला है।” बेशक यह मजाकिया है, लेकिन यह इस बात की ओर भी इशारा करता है कि सांप्रदायिकता भारतीय राजनीति को कितनी गहराई से संक्रमित करने में कामयाब रही है।
मेरे लिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस एक क्षणिक झलक मात्र है, एक भ्रम और संभवतः एक संकेत, एक ऐसे भारत के प्रति, जिसने उस तर्क को चुनौती पेश की है, जिसपर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। जैसा कि मैंने कहा, आम मुसलमानों के सामने जो जमीनी हकीकत है, वह उससे अलग है जिसे सरकार दिखाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस से पता चलता है कि, अपनी विविधता में एकजुट भारत अभी भी एक विचार के रूप में पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। जय हिंद”
प्रोफेसर अली ने अपनी पोस्ट के अंत में जो बातें लिखी हैं, उससे शायद ही कोई लोकतंत्र और अमन पसंद इंकार नहीं कर सकता। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना और विदेश विभाग की संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग में विदेश सचिव, विवेक मिसरी और भारतीय सेना की ओर से कर्नल सोफिया कुरैशी एवं व्योमिका सिंह की उपस्थिति ने दुनिया के सामने भारत की एक सकारात्मक छवि ही निर्मित की थी। प्रोफेसर अली ने भी अपनी पोस्ट में इस ऑप्टिक्स को सराहते हुए इसे जमीन पर भी अमल में लाने की मांग की थी।
लेकिन हरियाणा महिला आयोग को इसमें सेना की दो महिला अधिकारियों का अपमान कहां से नजर आ गया? क्या यह अंग्रेजी भाषा की समस्या की वजह से गलतफहमी है, या इसे सायास कुचेष्टा कहा जाना चाहिए? क्या मध्य प्रदेश की महिला आयोग को अभी तक दिखाई नहीं दिया कि उनके राज्य में एक उप-मुख्यमंत्री और एक वरिष्ठ मंत्री ने कर्नल सोफिया कुरैशी और भारतीय सेना के अपमान में क्या-क्या बातें कहीं हैं? उनके द्वारा किए गये अपमान को लेकर तो महिला आयोग क्या भाजपा की केंद्र सरकार तक ने मुंह नहीं खोला है, और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने मीडिया में कहना शुरू कर दिया है कि उनका मामला तो कोर्ट में चल रहा है, अपराध सिद्ध होगा तब हम कोई कार्रवाई कर सकते हैं।
ये क्या मजाक है? या तो सरकार और भाजपा को भारतीय सेना की इन दो जांबाज अधिकारियों के सम्मान की चिंता है, या फिर रत्ती भर भी नहीं है, इसे देश के सामने स्पष्ट करना होगा। साथ ही यह भी बताना होगा कि प्रोफेसर, अली ने अपनी पोस्ट में कहां पर सेना के अधिकारियों का अपमान किया है?
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद से जो भी परिचित है, उनके द्वारा व्यापक स्तर पर उनके समर्थन में अपील और जनमत संग्रह हरियाणा महिला आयोग के समन के बाद से ही शुरू हो चुका था। लेकिन हरियाणा पुलिस उनकी गिरफ्तारी जैसा कदम भी उठा सकती है, यह शायद ही किसी ने सोचा था। अब उनके समर्थन में तमाम अखबारों में संपादकीय से लेकर विश्वविद्यालय संघों, नागरिक समाज और राजनीतिक मंचों से भी आवाज उठने लगी है।
सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने अली खान महमूदाबाद की पोस्ट और टिप्पणी के साथ-साथ सरपंच योगेश के द्वारा दायर प्राथमिकी में पेश किए तर्कों को भी अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में संलग्न करते हुए सवाल किया है कि अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी किस आधार पर की गई है। इसमें महिला विरोधी, धार्मिक घृणा बढ़ाने वाली कौन सी बात लिखी गई है? या देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली धारा किस आधार पर लगाई जा सकती है?
योगेंद्र आश्चर्य व्यक्त करते हुए सवाल करते हैं कि ऐसी बे-सिरपैर की शिकायत के आधार पर पुलिस कैसे कार्यवाही कर सकती है? आखिर ऐसी कौन सी आपातकालीन स्थिति आ गई थी कि पुलिस को राज्य से बाहर जाकर रविवार को उन्हें गिरफ्तार करना पड़ा? योगेन्द्र यादव अंत में आम नागरिकों से सवाल करने के लिए कहते हैं कि एक तरफ प्रोफेसर अली खान को आनन-फानन में गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन कर्नल सोफिया कुरैशी का वास्तव में अपमान करने वाले मध्य प्रदेश के मंत्री पर कोई कार्रवाई अभी तक की गई है? सरकार का असली संदेश क्या है?
डेमोक्रेटिक टीचर्स इनिशिएटिव (डीटीआई) ने भी सार्वजनिक बयान जारी कर डॉ. महमूदाबाद के साथ अपनी पूर्ण एकजुटता व्यक्त करते हुए मांग की है कि उनके खिलाफ दर्ज मामले तथा उन्हें भेजे गए नोटिस को हरियाणा सरकार तुरंत वापस ले।
प्रोफेसर अली खान के प्रशसंकों की कमी नहीं है। सुहेल यासीन ने 16 मई को ही अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था, “दक्षिणपंथी विचरधारा वालों का कैसा दोहरा चरित्र है, देश की बेटी सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री पर हुकूमत चुप्पी साध लेती है ,और देश में अमन, भाईचारा और सौहार्द् की बात कहने वाले प्रो. अली खान (राजा महमूदाबाद) को हरियाणा का महिला आयोग सम्मन जारी करता है।
दुनिया जानती है प्रो. अली खान श्रेष्ठ इतिहासकार ,राजनीति विज्ञान के अध्येता और अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होने के साथ ही इस्लामिक और भारतीय दर्शन के श्रेष्ठ चिंतक और विचारक है, जो हमेशा इस मुल्क की तरक्की और हुबूल वतनी को लेकर संजीदा रहते हैं, उन्हें भारतीय दर्शन की इतनी श्रेष्ठ जानकारी है जो बड़े-बड़े दर्शनिकों के पास भी सम्भव नहीं ,उनकी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उन्हें निशाना बनाकर नोटिस जारी करना समग्र बौद्धिक जगत पर हमला है, कहीं न कहीं ये मसला उच्च शिक्षा संस्थानों में विचारकों पर हमले की भी साजिश है ,गौरतलब है प्रो. अली खान को अहले-हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े अदब-ओ-एहतराम के साथ सुना जाता है, ऐसे में उनकी आवाज़ को दबाकर सच्चे हिन्दुस्तानी की आवाज़ को दबाने की कोशिश है ये।
हम सब प्रो. अली खान साहब के साथ कदम दर कदम पूरी मुस्तैदी से खड़े हैं ,हमें अपने भाई और आबरू-ए-हिन्दुस्तान प्रो. अली पर नाज है!”
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)