ऑपरेशन सिंदूर के सियासी रंग में बिहार डूबा हुआ है। बीजेपी गदगद है, उसे उम्मीद है कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिये वह बिहार की सत्ता तक पहुँच सकती है। उधर नीतीश मौन साधे सब कुछ देख रहे हैं और बीजेपी के खेल को समझ भी रहे हैं लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है। बेचारा की भांति बीजेपी की हाँ में हाँ मिलाकर एक बार फिर से सत्ता की कुर्सी तक पहुँचने का सपना देख रहे हैं। लेकिन बीजेपी का खेल तो कुछ और ही है। एक ऐसा खेल जिसमें नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू के खात्मे की पटकथा तैयार की जा रही है।
बिहार की कहानी को आगे बढ़ाएं उससे पहले यह जानना जरूरी है कि क्या ऑपरेशन सिंदूर से चुनावी राज्य बिहार में एनडीए को कोई बड़ा लाभ मिलने जा रहा है? और जब एनडीए की बात की जा रही है तो क्या इस ऑपरेशन का लाभ बीजेपी के साथ जदयू और एनडीए के बाकी घटक दलों को भी मिलेगा? जवाब तो यही है कि देशभक्ति और हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष और ऑपरेशन सिंदूर का लाभ बीजेपी को छोड़कर किसी भी पार्टी को नहीं मिलने जा रहा है। जदयू को तो बिल्कुल ही नहीं। जदयू को वही वोट मिलेगा जिसकी राजनीति नीतीश कुमार करते आये हैं। वहीं अति पिछड़ा, महादलित और कुछ कोइरी-कुर्मी जाति से जुड़े वोट। मुसलमानों का वोट जदयू को भी मिलता रहा है लेकिन अबकी बार बिहारी मुसलमान जदयू को वोट नहीं देने जा रहे हैं और इस बात की जानकारी नीतीश कुमार को भी है।
नीतीश कुमार जानते हैं कि उनका सूर्यास्त अब हो रहा है। उनकी राजनीति ढल गई है और अब वे बिहार को आगे बढ़ाने में सक्षम भी नहीं हैं। सेहत के हिसाब से भी वे कमजोर हो गए हैं और पार्टी के कुछ चर्चित नेताओं के बदले रंग ढंग से वे बहुत कुछ समझ गए हैं। वे यह जानते हैं कि बिहार चुनाव में इस बार उन्हें अपने लोगों से भी चुनौती मिलने जा रही है और बीजेपी से भी। वे यह भी जानते हैं कि अब अगर वे फिर से पाला बदलते हैं तो उनकी पार्टी के लोग भी पाला बदल सकते हैं और चुनाव के बाद तो पाला बदल ही देंगे। इसमें पार्टी के चार से पांच सांसद भी हैं और दर्जन भर मौजूदा विधायक भी। विधायकों की हालत तो यह है कि अगर वे फिर से चुनाव जीत गए तो भी पाला बदल देंगे और हार गए तो भी पाला बदल कर एमएलसी बन जायेंगे। बीजेपी के साथ उनका मोल भाव हो गया है।
यही वजह है कि नीतीश कुमार खामोश हैं। दो दशक तक पाला बदल -बदल कर बिहार में राज करने वाले नीतीश कुमार इस बार फंस गए हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी ने उनके सामने चिराग को खड़ा किया था। चिराग ने जदयू का पूरा खेल बिगाड़ा लेकिन अबकी बार चिराग को बीजेपी ने स्पेशल कैटेगरी में रखा है। प्रशांत किशोर को आगे बढ़ा दिया है। बीजेपी को पता है कि जो काम चिराग ने पिछले चुनाव में नहीं किया था अब उससे आगे बढ़कर प्रशांत किशोर करेंगे। जन सुराज जदयू को मटियामेट करेगा और फिर चुनाव के बाद जनसुराज के साथ बीजेपी की सरकार बन सकती है।
इस बात की जानकारी नीतीश कुमार को भी है और जदयू वाले तमाम नेताओं को भी। सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उससे पता चल रहा है कि जन सुराज के कई नेताओं से बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं के साथ लगातार बैठक भी हुई है और खास रणनीति पर चर्चा भी। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि उस बैठक में कम से कम दो बार जदयू के भी कुछ नेता शरीक हुए थे और बीजेपी की सरकार बनाने की बात हुई थी। नीतीश कुमार को भी यह सब पता है लेकिन कर भी क्या सकते हैं।
अब मुद्दे की बात। सवाल है कि क्या ऑपरेशन सिंदूर का लाभ बीजेपी लेने जा रही है? ऊपर से भले ही ऑपरेशन सिंदूर की कथा कहानी को चुनावी लाभ लेने से बीजेपी मनाही कर रही है और सिंदूर की पुड़िया को बाँटने से मना कर दिया गया है लेकिन यह सब ऊपर की ही बात है। संघ और बीजेपी के लोग भीतर ही भीतर बहुत कुछ कर रहे हैं और जो कर रहे हैं वह सब ऑपरेशन सिंदूर के तहत ही।
बिहार के गांव -गांव में यह मैसेज पहुँचाया जा रहा है कि पहलगाम हमला के बाद अगर मोदी पाकिस्तान पर हमला नहीं करते तो देश का बचना मुश्किल था। पाकिस्तानी आतंकी बिहार तक पहुँच गए थे। मैसेज यह भी दिया जा रहा है कि देश में बीजेपी के बाद राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ही है और कांग्रेस मुसलमानों को आगे बढ़ाकर देश को कमजोर कर रही है लेकिन मोदी जी कांग्रेस के खेल को आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं। और यह सब इसलिए कि देश सुरक्षित रहे और बिहार का विकास चलता रहे।
बीजेपी की तरफ से बिहार को यह भी मैसेज दिया जा रहा है कि जैसे ही बिहार में बीजेपी की सरकार बनेगी, युवाओं और महिलाओं के लिए अलग से बहुत कुछ ऐलान किया जायेगा। बड़ी संख्या में बिहार की महिलाओं को रोजगार देने की योजना बीजेपी बना रही है और जैसे ही बीजेपी का मुख्यमंत्री बनेगा बिहार विकास की राह पर दौड़ पड़ेगा। इस तरह के बहुत सारे मैसेज बिहार के गांव तक पहुँच रहे हैं।
बिहार के कई इलाकों में बीजेपी ने अपना आईटी सेल भी खड़ा कर दिया है जिसे बिहार के ही चार नेता संचालित कर रहे हैं ,इस आईटी सेल का काम यही है कि रात दिन बीजेपी और मोदी के बारे में यशोगान तैयार करना और विपक्षी पार्टी पर वार करना। इसके साथ ही आईटी सेल के हर वीडियो और कथित खबर में ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र भी होना है और पाकिस्तान की हालत को पीएम मोदी ने क्या कुछ कर दिया है उसका बखान करना है। जाहिर है कि भले ही ऑपरेशन सिंदूर को चुनावी खेल की मनाही बीजेपी कर रही है लेकिन चुनाव में ऑपरेशन सिंदूर की गाथा तेजी से फैलाई जा रही है।
जाहिर है कि ऑपरेशन सिंदूर ने बिहार के चुनावी माहौल को नया रंग दे दिया है और नीतीश कुमार सब कुछ देखकर भी चुप्पी साधे हुए हैं। हर दिन रोजगार और नौकरी देने का ऐलान कर रहे हैं लेकिन अब बिहारी युवा नीतीश के खेल को समझ गए हैं या फिर जातीय राजनीति के तहत बिहारी समाज को बहुत कुछ समझा दिया गया है। यह समझाने का खेल बीजेपी तो कर ही रही है, जन सुराज वाले भी कर रहे हैं और संघ के लोग भी।
पहलगाम हमले और फिर ऑपरेशन सिंदूर के बाद बीजेपी और पीएम मोदी ने क्या किया उसे भी जान लेते हैं। इस ऑपरेशन ने कहने के लिए एनडीए को एक मजबूत कहानी दी है। पीएम मोदी ने पहलगाम आतंकी घटना के दूसरे दिन ही मधुबनी में इसकी शुरुआत की थी। जब उन्होंने कहा था कि इस घटना के आतंकवादियों को धरती के आखिरी छोर तक खोज कर मारा जाएगा। फिर ऑपरेशन सिंदूर हो गया। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए 10 दिनों तक बिहार में तिरंगा यात्रा निकाली, जिससे राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने की कोशिश की गई। हालांकि, नीतीश कुमार ने इन यात्राओं को चुपचाप देखा, शायद सतर्कता के साथ, क्योंकि वह जानते हैं कि बीजेपी इस मौके का इस्तेमाल अपने प्रभाव को बढ़ाने और बिहार में अपना मुख्यमंत्री स्थापित करने के लिए कर सकती है। वे चाहते तो इस पर रोक लगा सकते थे लेकिन चूक से गए।
किस मुँह से बीजेपी को रोक पाते। उनका मुँह तो पहले ही यह कहते हुए बंद कर दिया गया था कि अबकी बार भी नीतीश ही सीएम बनेंगे। बीजेपी वाले कुछ यही बात महाराष्ट्र में शिंदे को भी कह गए थे और चुनाव के बाद शिंदे का क्या हुआ, देश जानता है। शिंदे पहले फड़फड़ा रहे थे। बीजेपी ने उनकी फाइल ही उनके सामने खोल दी और शिंदे शांत हो गए। वैसे भी बीजेपी वाले और खासकर मोदी और अमित शाह नीतीश को झेल ही तो रहे हैं। फिर इन दोनों नेताओं को नीतीश से बदला भी लेना है। ऐसा बदला जिसकी कल्पना तक नीतीश नहीं कर रहे होंगे। पार्टी भी ख़त्म और नीतीश की राजनीति भी ख़त्म।
बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव किसी बड़े अवसर से कम नहीं हैं। बीजेपी जन सुराज के सहारे तो नीतीश की राजनीति को घेर ही रही है और चिराग को चुनावी मैदान में उतारकर एक और बड़ा खेल करने को तैयार है। कहने के लिए चिराग के सरोकार नीतीश के साथ पहले से बेहतर हुए हैं और वे कभी-कभी नीतीश के नजदीक ज्यादा दिखते भी हैं लेकिन सच यही है कि चिराग किसी प्यादे से कम नहीं। जानकारी के मुताबिक अगर चिराग के मुताबिक बीजेपी और जदयू उन्हें सीटें नहीं देती है तो इस बार भी चिराग की पार्टी अकेले मैदान में जा सकती है। और ऐसा हुआ तो नीतीश को पहले ही निपटा दिया जा सकता है।
जदयू के लोग भी अब यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि चिराग जिस तरह से विधान सभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं उसके पीछे सिर्फ कुछ सीटें पाकर सीएम बनने की मंशा भर ही नहीं है। मंशा तो एक ही है कि नीतीश को पहले निपटा दिया जाए और जदयू के बाकी लोगों को मिलकर सरकार का गठन किया जाये और चिराग को अहम जिम्मेदारी दी जाए।
नीतीश कुमार, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं, इस बार कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। डिजाइन बॉक्स्ड के एक सर्वे के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही एनडीए को बिहार में बढ़त थी। सर्वे में 60% से अधिक लोगों ने नीतीश के प्रदर्शन से संतुष्टि जताई, और 50% से अधिक ने माना कि एनडीए अगला चुनाव जीतेगा। अत्यंत पिछड़ा वर्ग, जो बिहार की आबादी का 36% है, में एनडीए को 68.72% समर्थन मिला, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग में 39.63% समर्थन था। अनुसूचित जाति में भी एनडीए को 48.23% समर्थन प्राप्त था।
हालांकि, नीतीश की लोकप्रियता में कमी आई है। सी वोटर सर्वे के अनुसार, उनकी लोकप्रियता 18% से घटकर 15% हो गई है, और वह मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरे पसंदीदा उम्मीदवार बन गए हैं। उनके सामने तेजस्वी यादव (35.5%) और प्रशांत किशोर (17.2%) हैं। नीतीश की घटती लोकप्रियता के कारणों में उनकी सेहत, बार-बार गठबंधन बदलने से विश्वसनीयता में कमी, और एनडीए द्वारा मुख्यमंत्री चेहरा घोषित न करना शामिल हैं।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव इस बार सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं, हालांकि उनकी लोकप्रियता भी 40.6% से घटकर 35.5% हुई है। तेजस्वी ने बेरोजगारी और प्रवास जैसे मुद्दों को अपनी रणनीति का केंद्र बनाया है, जो सर्वे में 43.8% लोगों की प्राथमिक चिंता है। वह युवाओं और अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की आक्रामकता उनकी राह में बाधा बन रही है।
बीजेपी नीतीश को गठबंधन का चेहरा बनाए रखते हुए भी अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। वह ऑपरेशन सिंदूर और राष्ट्रवादी मुद्दों के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। साथ ही, चिराग पासवान और सम्राट चौधरी जैसे नेताओं को आगे बढ़ाकर वह भविष्य में नीतीश को हटाकर अपना मुख्यमंत्री लाने की जमीन तैयार कर रही है।
बिहार की आबादी में ईबीसी (36%), ओबीसी (27%), और एससी (19.6%) का बड़ा हिस्सा है। यदुवंशी (14.26%) और नीतीश की कुर्मी जाति (2.87%) भी महत्वपूर्ण हैं। एनडीए को ईबीसी और ऊपरी जातियों में मजबूत समर्थन है, जबकि राजद का आधार यदुवंशी और मुस्लिम वोटर हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय में भी 28.47% समर्थन हासिल किया है, जो नीतीश के लिए चिंता का विषय है।
जाहिर है ऑपरेशन सिंदूर का लाभ एनडीए की जगह बीजेपी को मिलता दिख रहा है नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव आसान नहीं है। बीजेपी अपनी रणनीति के तहत नीतीश को समर्थन देते हुए भी भविष्य में अपनी सत्ता स्थापित करने की योजना बना रही है। बिहार का यह चुनाव न केवल नीतीश के लिए, बल्कि पूरे एनडीए और विपक्ष के लिए एक कड़ा इम्तिहान होगा। लेकिन बड़ी बात तो यह होगी कि अगर नीतीश सत्ता से बाहर हो गए तो जदयू भी ख़त्म होगी और वह बीजेपी के संग हो जाएगी।
ऐसे में बिहार में एनडीए का एक बड़ा कुनबा खड़ा होगा जिसमें प्रशांत किशोर भी हो सकते हैं। और ऐसा हुआ तो सेक्युलरवाद का कथित गढ़ कहा जाने वाला बिहार भी बीजेपी के हवाले होगा जिसमें वाम दल और कांग्रेस और राजद का संघर्ष चलता रहेगा। नीतीश कुमार को इन बातों पर भी गौर करने की जरूरत है और चुनाव से पहले ही उन्हें कोई बड़ा फैसला लेने के बारे में भी सोचने की जरूरत है।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)