Friday, March 29, 2024

26 नवंबर को देश भर के राजभवनों पर होगा किसानों का मार्च

26 नवंबर को देशभर में संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन भारत का संविधान, संविधान सभा में पारित किया गया था।

संविधान सभा में 389 सदस्य थे। जिनमें 70 मनोनीत थे। बंटवारे के बाद 299 रह गए थे। जिनमें कुल महिला सदस्यों की संख्या 15, अनुसूचित जाति के 26, अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे। प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबा साहेब आंबेडकर थे । संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद जी, जो पहले राष्ट्रपति बने। संविधान सभा में 114 दिन बहस चली थी।

26 जनवरी 1950 को संविधान भारत वर्ष में लागू किया गया। गत 72 वर्षों में संविधान में 105 संशोधन अक्टूबर 21 तक किए जा चुके हैं। देश में जो भी जनांदोलन होते हैं संविधान प्रदत्त अधिकारों की अनदेखी और लागू न किए जाने के कारण किए जाते हैं।

मुझे लगता है सरकारों ने यदि संवैधानिक अधिकार लागू किए होते तो अनेक संघर्षों की जरूरत ही नहीं पड़ती। हालांकि संवैधानिक जागरूकता को लेकर तमाम सवाल किए जा सकते हैं।

महत्वपूर्ण सवाल है कि देश के 140 करोड़ भारतवासियों में से कितने नागरिक संविधान के बारे में जानकारी रखते हैं?  मैं देश भर में गत 38 वर्षों से घूमता रहा हूं। जहां कहीं भी यह पूछता हूं कि संविधान के बारे में आप क्या जानते हैं?  बहुत कम लोग जवाब दे पाते हैं। संविधान की किताब को भी बहुत कम लोगों ने देखा है। होना तो यह चाहिए था कि संविधान अंगीकृत किए जाने के बाद इसकी प्रति भारत के हर परिवार को उसकी समझने वाली भाषा में उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी। लेकिन संविधान तो क्या संविधान की उद्देशिका तक भी नागरिकों को उपलब्ध नहीं कराई गई। सरकार ने यह कार्य नहीं किया तो पार्टियों, संगठनों और संस्थाओं द्वारा यह काम किया जा सकता था।

मुझे लगता है यह सोच समझ कर नहीं किया गया ताकि नागरिक संविधान में दिए गए अधिकारों पर चर्चा न करें। लेकिन देश में बाबा साहब को मानने वाली जमातों ने संविधान को लेकर जागृति फैलाई। इसका परिणाम भी आज दिखाई देता है। देश में बाबा साहब को मानने वाला दलित समाज संविधान को लेकर सबसे ज्यादा जागरूक, सजग और सावधान है तथा संविधान को लेकर सदा चर्चारत रहता है।

नागरिकता कानून के खिलाफ किए गए आंदोलनों में मैंने समाजवादी विचार यात्रा के दौरान देशभर के 50 शाहीन बागों में हजारों मुस्लिम महिला पुरुषों को संविधान की प्रतियां और बाबा साहेब की फोटो को लेकर आंदोलन करते हुए देखा है।

संविधान की प्रस्तावना अपने हाथ में लेकर हमने देश में ‘संविधान बचाओ, देश बचाओ यात्राएं देखी हैं।

आजकल मैं मध्यप्रदेश में जयस जैसे आदिवासी संगठनों तथा ओबीसी महासभा से जुड़े युवाओं को संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ते देख रहा हूं।

किसानों के आंदोलन ने 26 नवंबर की तारीख को ऐतिहासिकता प्रदान की है। मध्यप्रदेश के मंदसौर में 6 जून 2017 को हुए पुलिस गोली चालन के बाद किसान संगठनों ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया तथा 26 नवंबर को दिल्ली में किसानों का जंतर मंतर पर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया।

“कर्जा मुक्ति, पूरा दाम” के मुद्दे को लेकर ‘किसान मुक्ति यात्रा’ के बाद यह प्रदर्शन किया गया। दो बार 26 नवंबर को लाखों किसानों के दिल्ली में प्रदर्शन के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन किसान विरोधी कानून को लागू करने का ऐलान किया गया, तब इन कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर 26 नवंबर 2020 को रामलीला ग्राउंड पर प्रदर्शन करने के लिए ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ का गठन किया। केंद्र सरकार के दमन और अड़ियल रवैया के चलते किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर रोक दिया गया, जहां लाखों किसानों ने 380 दिन का धरना दिया। 13 महीने के आंदोलन और 715 किसानों की शहादत के बाद सरकार को 19 नवंबर 21को तीनों कृषि कानून वापस लेने को  मजबूर होना पड़ा। इस वर्ष 26 नवंबर 22 को देश के सभी राज भवनों पर किसानों का मार्च किया जाएगा।

इस तरह किसानों ने संविधान दिवस को अपना हक और अधिकार पाने के लिए महत्वपूर्ण तारीख बना दिया है। इस बार 26 नवंबर को देशभर में होने वाले किसानों के मार्च से किसान आंदोलन के दूसरे चरण का आगाज़ होगा।

हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भारत के संविधान की प्रेरणा से देश में दलितों और किसानों के आंदोलन के साथ-साथ समाज के विभिन्न समुदाय अपने संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए आगे आएंगे।

मुझे उम्मीद है कि आने वाले वर्ष में भारत के राजनीतिक विपक्षी दल भी संविधान बचाने की लड़ाई को लड़ने के लिए एकजुट होकर आगे आएंगे।

(डॉ. सुनीलम किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं।)

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