Friday, April 19, 2024

महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत में सीबीआई जांच कि प्रगति अब तक सिफर?


महंत नरेंद्र गिरि कि संदिग्ध मौत के मामले में नैनी जेल में निरुद्ध बाबा के शिष्य आनंद गिरि, बंधवा के लेटे हनुमान जी के पुजारी आद्या प्रसाद तिवारी औरउन के पुत्र संदीप तिवारी का पालीग्राफ टेस्ट कराने कि अनुमति जिला अदालत से सीबीआई को नहीं मिली। इससे सीबीआई जाँच थम सी गयी है। इन तीनों के पालीग्राफ टेस्ट कि अनुमति के लिए सीबीआई ने कोर्ट में अर्जी डाली थी। सरल भाषा में कहें तो इसका अर्थ यही है कि इन तीनों के बयानों से कुछ भी ठोस सीबीआई को नहीं मिला है, इसलिए सीबीआई इनके बयानों का झूठ, यदि हो तो ,पकड़ना चाहती थी।अदालत ने इन तीनों से पालीग्राफ टेस्ट कि लिए पूछा तो इन्होंने इसे कराने से यह कहकर इनकार कर दिया कि सीबीआई उन्हें पहले ही पांच दिन के रिमांड पर लेकर पूछताछ कर चुकी है और उसे उकसाने का कोई भी सबूत नहीं मिला।

दरअसल जबसे पालीग्राफ टेस्ट कि बात सामने आई है तबसे यह कयास लग रहे हैं कि सीबीआई भी इसे प्रयागराज पुलिस की तरह आत्महत्या का ओपन एंड शट केस मानकर चल रही है और सुसाइड नोट को सही ठहराने कि कवायद में लगी है। पालीग्राफ टेस्ट कि अनुमति न मिलने से सीबीआई जाँच को बहुत धक्का लगा है। सीबीआई जाँच में अज्ञात कारणों से बहुत पर्दादारी है जिससे तमाम संदेहों को बल मिल रहा है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कि संदिग्ध मौत की सीबीआई जाँच शुरू हुए 23-24दिन हो चुके हैं पर अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि महंत नरेंद्र गिरि ने फांसी लगाकर आत्महत्या किया या उनकी हत्या कि गयी है। महंत नरेंद्र गिरि की सोमवार 20 सितम्बर21 को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। बाघम्बरीमठ के सेवादारों सुमित तिवारी, सर्वेश द्विवेदी और धनंजय ने दावा किया था कि उनका शव उनके कमरे में पंखे से लटकता मिला ,जिसे उन लोगों ने बिना पुलिस को इत्तिला दिए रस्सी काटकर नीचे उतार लिया।

इसकी जाँच के लिए यूपी सरकार ने पहले एसआईटी गठित कर दिया फिर 23 सितम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने सीबीआई जाँच कि सिफारिश कर दी। 25 सितंबर को इस जांच को सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया। 25 को ही सीबीआई ने एसआईटी से केस हैंड ओवर लिया।सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर विप्लव चौधरी और मुख्य जांच अधिकारी के एस नेगी के साथ सीएएफएसएल की टीम लगातार जांच पड़ताल में जुटी हुई है।

सीबीआई जाँच के 22-23 दिन हो चुके हैं पर अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि महंत नरेंद्र गिरि ने फांसी लगाकर आत्महत्या किया या उनकी हत्या कि गयी?क्या उन्हें वास्तव में आत्म हत्या के लिए किसी ने उकसाया या नहीं? उन्हें आत्महत्या करने के लिए किसी अश्लील सीडी को सार्वजनिक करने कि सूचना किसी ने वास्तव में दी थी या नहीं? यदि कोई सीडी है तो क्या सीबीआई को इस 22-23दिन कि जाँच में उस कथित सीडी को बरामद करने में सफलता मिली या नहीं?इन प्रश्नों का अभी तक जवाब सामने नहीं आया है।

इन प्रश्नों का जवाब भी नहीं मिला है कि क्या मौके पर मिला 13 पन्नों का सुसाइड नोट महंत ने अपने हाथ से स्वयं लिखा था और सुसाइड नोट में हैण्डराइटिंग महंत की है या किसी और की है?यदि महंत की नहीं है तो किसकी हैण्डराइटिंग है ?सबसे बड़ा सवाल यह है कि सीबीआई ने अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों छिपाकर रखा है? आखिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण फांसी लगाकर आत्महत्या है या दमघोंट कर महंत की किसी ने हत्या की है ?महंत की मौत के पहले चाय में बेहोशी कि दवा तो नहीं मिलायी गयी थी ?

उनकी विसरा रिपोर्ट में क्या निकला ?क्या महंत के तीन सेवादारों और रसोइये के बयानों में विरोधाभास तो नहीं है? बिना पुलिस को इत्तिला दिए बंद कमरे का दरवाजा तोड़ कर या धक्का देकर खोलने और फंदे पर लटकते शव को रस्सी काटकर नीचे उतारने के अन्य मामलों में सबसे पहले ऐसा करने वालों को हिरासत में लिया जाता है और कड़ाई से पूछताछ किया जाता है। पर इस मामले में उन सेवादारों को हिरासत में लेकर पूछताछ क्यों नहीं की गयी ?क्या पहले पुलिस फिर एसआईटी और उसके बाद सीबीआई किसी राजनीतिक या उच्चाधिकारियों के दबाव में है?

महंत नरेन्द्र गिरि की संदिग्ध मौत की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के बाद ही एक वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो गया था। इस वीडियो में साफ दिख रहा था कि बाघम्बरी मठ के कमरे में महंत नरेन्द्र गिरि ने रस्सी के सहारे जिस पंखे पर कथित रूप से लटककर फांसी लगाई थी, वह चल रहा था और महंत का पार्थिव शरीर फर्श पर पड़ा था। एक मिनट 45 सेकेंड के इस वीडियो को लेकर अब कई तरह के सवाल उठ रहे थे जिनका समुचित उत्तर या स्पष्टीकरण आज तक सार्वजानिक रूप से पुलिस या सीबीआई द्वारा नहीं दिया गया।

पुलिस जब कमरे में पुलिस पहुंची तो महंत नरेन्द्र गिरि का पार्थिव शरीर फर्श पर था। शरीर के पास ही उनके शिष्य खड़े थे ।वीडियो में आईजी प्रयागराज रेंज केपी सिंह भी दिखाई दे रहे थे । वह मठ में मौजूद शिष्यों से पूछताछ कर रहे थे। उन्होंने चल रहे पंखे को लेकर भी सवाल किया। इस पर उन्होंने वहां खड़े सुमित से पूछा तो उसने कहा कि उसी ने पंखा चलाया था। केपी सिंह ने कहा कि तुम्हें पुलिस को सूचना देने के बाद शरीर को नीचे उतारना चाहिए था।लेकिन ऐसा करने वालों के खिलाफ आजतक कोई कारवाई नहीं हुयी?अपराधशास्त्र कि भाषा में प्राइम सस्पेक्ट वही तीन सेवादार हैं।

जो वीडियो वायरल है उसमें महंत का शव कमरे के नंगे फर्श पर पड़ा दिख रहा है और उनके गले में कोई रस्सी बंधी या लिपटी नहीं दिख रही है बल्कि गले के नीचे से आर पार रस्सी जमीन पर पड़ी है।रस्सी के तीन टुकड़े दिख रहे हैं। जमीन पर पड़ी रस्सी के टुकड़े के आलावा एक टुकड़ा मेज पर और एक टुकड़ा पंखे के चुल्ले पर बंधा लटका है जिसे पंखे के ब्लेड्स के उपर से काटा गया प्रतीत होता है,क्योंकि चलते हुए पंखे से इसका कोई भी अंश टकरा नहीं रहा है। महंत को फंदे से उतारने में क्या एक सेवादार था या दो या तीन थे ?

अब जब कथित तौर पर बबलू सेवादार ने जब महंत को रस्सी काटकर फंसी से उतारा तो रस्सी खान कहाँ से काटी?यदि ब्लेड्स के उपर से रस्सी काटी तो महंत के शरीर को किसने पकड़ रखा था?वरना रस्सी कटते ही महंत का शरीर जमीन पर या पलंग पर गिर जाता।दूसरा सवाल यह है कि महंत के गले से किसने और क्यों रस्सी की गाँठ (यदि लगी हुई थी) तो खोली। कमरे में मेज पर पड़ी कैची से रस्सी काटना कहा जा रहा है तो पुलिस या विवेचनाधिकारी या एसटीएफ ने प्लास्टिक की रस्सी को काट कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि इससे रस्सी कटती है या नहीं?यदि कटती है तो कैसी कटती है और कितना समय लगता है ?फिर प्लास्टिक की मोटी रस्सी में कोई सिद्धहस्त ही गांठ बांध सकता है वरना गांठ खुल जाती है।

जो लोग भी महंत नरेंद्र गिरि को जानते हैं ,देख चुके हैं ,मिल चुके हैं उन्हें मालूम है कि महंत नरेंद्र गिरि भारी शरीर के थे और गठिया रोग से ग्रस्त थे , फिर महंत नरेंद्र गिरि ने पंखे के चूले से फांसी की रस्सी कैसे बाँधी होगी।वे चूले तक कैसे पहुंचे होंगे ? उनके लिए यह आसान नहीं था कि बेड पर स्टूल रखकर चढ़ जाएं। यदि बीएड पर स्टूल भी रखें तो कोई जब तक स्टूल हाथ से नहीं पकड़ेगा तब तक बिना किसी की मदद के नरेंद्र गिरि ने पंखे के चूले से फांसी का फंदा कैसे लगाया होगा ,यह क्राइम के विशेषज्ञों के लिए शोध का विषय है। अब सीबीआई ही बता सकती है कि कैसे, अकेले ही नरेंद्र गिरि ने सब कुछ किया और फांसी के फंदे पर झूलकर जान दे दी?

नरेंद्र गिरि की मौत पर संत समिति ने सवाल उठाया था। संत समिति ने कहा था कि नरेंद्र गिरि हस्ताक्षर तक ठीक से नहीं कर पाते थे। ऐसे में 13 पेज का कथित सूइसाइड नोट वह कैसे लिख सकते थे। इस नोट के आधार पर ही पुलिस ने मामले में तीन लोगों, महंत के शिष्य आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी और संदीप तिवारी को हिरासत में लेकर जेल भेजा था और सीबीआई ने कोर्ट के आदेश से रिमांड लेकर पूछताछ की थी। 13 पन्नों के कथित सूइसाइड नोट में महंत के शिष्य आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी और संदीप तिवारी को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया गया है। अब इन तीनों के पॉलीग्राफ टेस्ट कि अनुमति के लिए सीबीआई ने कोर्ट में अर्जी डाली है।सरल भाषा में कहें तो इसका अर्थ यही है कि इन तीनों के बयानों से कुछ भी ठोस सीबीआई को नहीं मिला है, इसलिए सीबीआई इनके बयानों का झूठ, यदि हो तो ,पकड़ना चाहती है।

यह सवाल भी है कि जो1.45 मिनट का जो वीडियो किसी ने बनाया है, तो क्या सेवादारों ने जब दरवाजा खोलकर या तोड़कर कमरे में प्रवेश किया और महंत को फांसी पर लटके देखा तो उनमें से किसी ने अपने मोबाइल से उसका वीडियो क्यों नहीं बनाया? यदि बनाया है तो पुलिस,एसआईटी अथवा सीबीआई को अभी तक दिखाया क्यों नहीं?क्या उन तीन सेवादारों के अलावा किसी और ने फांसी पर लटके महंत को देखा है?

मोदी की मेडिकल जूरिस्प्रूडेंस के 17 में संस्करण पृष्ठ 125 के अनुसार श्वासावरोध होने से होने वाली मृत्यु के तत्काल बाद पोस्टमार्टम किया जाए तो हृदय के दोनों ओर रक्त भरा हुआ मिलता है। लेकिन पोस्टमार्टम में विलंब के कारण मृत्युज काठिन्य प्रारंभ हो जाने के बाद हृदय सिकुड़ा हुआ और खाली मिलता है। बहुत संभव है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु विष के परिणाम स्वरूप हुई है लेकिन मृत्यु के पश्चात उसके शरीर में कोई भी विष ना मिले तब हो सकता है कि सारा विष वाष्प द्वारा फेफड़ों से गायब हो चुका हो और कफ या दस्त के जरिए आमाशय या आँतों से निकल चुका हो और तत्पश्चात वह विष रहा हो, घुल-मिल गया हो और गुर्दे के रास्ते या अन्य मार्गों से शरीर से बाहर निकल गया हो। जिन मामलों में मार्फीन दिया गया हो उसमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत शरीर में से कोई चिन्ह नहीं मिलते जो विशेष रूप से विलक्षण हो।

इसलिए जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट को मेडिकल जूरिस्प्रूडेंस की कसौटी पर विशेषज्ञों द्वारा नहीं कसा जाता तब तक महंत कि संदिग्ध मौत के रहस्य पर पर्दा पड़ा रहेगा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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