Thursday, March 28, 2024

प्रियंका ने वैक्सिनेशन पर उठाए सवाल, कहा-गर्त में पहुंच गयी है सरकार की वैक्सीन नीति

(कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने फेसबुक पेज पर ‘जिम्मेदार कौन?’ नाम से एक श्रृंखला शुरू की है। इसमें कोरोना से जुड़े मसलों के संदर्भ में वह लगातार सरकार से सवाल पूछ रही हैं। आज उन्होंने वैक्सीन के वितरण और उससे जुड़ी समस्याओं को लेकर सवाल पूछे हैं। पेश है उनकी आज की पूरी पोस्ट-संपादक)

वैक्सीन वितरण का संकट

कुछ दिनों पहले मैंने वैक्सीन नीति के बारे में चर्चा की थी। आज मैं वैक्सीन नीति के दूसरे, सबसे महत्वपूर्ण अंग के बारे में आपसे चर्चा करना चाहती हूँ-

वैक्सीनों का वितरण।

विशेषज्ञों का मानना है कि ज़्यादा से ज़्यादा और जल्द वैक्सिनेशन कोरोना को हराने के लिए ज़रूरी है। जिन देशों ने अपने यहाँ ज़्यादा वैक्सीन लगवाई, उनमें कोरोना की दूसरी लहर का कम प्रभाव पड़ा। हमारे देश में दूसरी लहर, पहली लहर से 320% ज़्यादा भयानक साबित हुई। यह पूरे विश्व का रिकॉर्ड है।

जिम्मेदार कौन?

हालांकि भारत के पास स्मालपॉक्स, पोलियो की वैक्सीन घर-घर पहुंचाने का अनुभव है, लेकिन मोदी सरकार की दिशाहीनता ने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण दोनों को चौपट कर दिया है।

भारत की कुल आबादी के मात्र 12% को अभी तक पहली डोज़ मिली है और मात्र 3.4% आबादी पूरी तरह से वैक्सिनेटेड हो पाई है। 15 अगस्त, 2020 के भाषण में मोदीजी ने देश के हर एक नागरिक को वैक्सिनेट करने की ज़िम्मेदारी लेते हुए कहा था कि “पूरा खाका तैयार है।“

लेकिन अप्रैल, 2021 में, दूसरी लहर की तबाही के दौरान, मोदीजी ने सबको वैक्सीन देने की ज़िम्मेदारी से अपने हाथ खींचते हुए, इसका आधा भार राज्य सरकारों पर डाल दिया।

-मोदी सरकार ने 1 मई तक मात्र 34 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया था तो बाकी वैक्सीन आएँगी कहाँ से?

-देश में वैक्सीन अभाव के चलते कई राज्य सरकारें ग्लोबल टेंडर निकालने को मजबूर हुईं। मगर उन्हें खास सफलता नहीं मिली। Pfizer, Moderna जैसी कम्पनियों ने प्रदेश सरकारों से डील करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा वे केवल केंद्र सरकार के साथ वैक्सीन डील करेंगे।

-आज वैक्सीन लगाने वाले काफी केन्द्रों पर ताले लटके हैं एवं 18-45 आयुवर्ग की आबादी को वैक्सीन लगाने का काम बहुत धीमी गति से चल रहा है।

-मोदी सरकार की फेल वैक्सीन नीति के चलते अलग-अलग दाम पर वैक्सीन मिल रही है। जो वैक्सीन केंद्र सरकार को 150रू में मिल रही है, वही राज्य सरकारों को 400रू में और निजी अस्पतालों को 600रू में। वैक्सीन तो अंततः देशवासियों को ही लगेगी तो यह भेदभाव क्यों?

-भारत की 60% आबादी के पास इंटरनेट नहीं है और कइयों के पास आधार या पैन कॉर्ड भी नहीं होता। ऐप आधारित वैक्सिनेशन प्रणाली के चलते भारत की एक बड़ी जनसंख्या वैक्सीन लेने से वंचित है। सरकार ने इस बारे में अभी तक प्रयास शायद इसलिए नहीं किया क्योंकि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया मुश्किल होने से कम समय में ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगवाने का बोझ हल्का हो सकता है।

-अगर हम दिसम्बर 2021 तक हर हिंदुस्तानी को वैक्सिनेट करना चाहते हैं तो हमें प्रतिदिन 70-80 लाख लोगों को वैक्सीन लगानी पड़ेगी। लेकिन मई महीने में औसतन प्रतिदिन 19 लाख डोज ही लगी हैं।

अब जनता पूछ रही है-

-वैक्सीन नीति को गर्त में धकेलने के बाद मोदी सरकार ने “सबको वैक्सीन देने” की जिम्मेदारी से हाथ क्यों खींच लिया? आज क्यों ऐसी नौबत आई कि देश के अलग-अलग राज्यों को वैक्सीन के ग्लोबल टेंडर डालकर आपस में ही प्रतिदंद्विता करनी पड़ रही है?

-एक वैक्सीन, एक देश मगर अलग-अलग दाम क्यों हैं?

-न पर्याप्त वैक्सीन का प्रबंध है, न तेजी से वैक्सीन लगवाने की योजना है तो सरकार किस मुंह से कह रही है कि इस साल के अंत तक हर एक हिंदुस्तानी को वैक्सीन मिल चुकी होगी? अगली लहर से देशवासियों को कौन बचाएगा?

-इंटरनेट एवं डिजिटल साक्षरता से वंचित आबादी के लिए केंद्र सरकार ने वैक्सिनेशन की कोई योजना क्यों नहीं बनाई? क्या मोदी सरकार के लिए उनकी जानें क़ीमती नहीं हैं?

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles