Friday, March 29, 2024

देशद्रोह मामले में शरजील इमाम को दिल्ली की अदालत से जमानत नहीं

दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र शरजील इमाम को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके दिसंबर 2019 के भाषण के संबंध में उनके खिलाफ दर्ज देशद्रोह मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने कहा कि 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में इमाम द्वारा दिया गया भाषण स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक / विभाजनकारी तर्ज पर था और समाज में शांति और सद्भाव को प्रभावित कर सकता है।कोर्ट ने कहा कि 13.दिसंबर 2019 के भाषण को सरसरी तौर पर पढ़ने से पता चलता है कि यह स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक/विभाजनकारी तर्ज पर है। मेरे विचार में, आग लगाने वाले भाषण के स्वर और भाव का समाज की शांति, शांति और सद्भाव पर एक दुर्बल प्रभाव पड़ता है।

कोर्ट ने जमानत देने से इनकार करते हुए रेखांकित किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को हमारे संविधान द्वारा एक उच्च स्थान पर रखा गया है, लेकिन इसका प्रयोग समाज की सांप्रदायिक शांति और सद्भाव की कीमत पर नहीं किया जा सकता है।उनके कथित भाषण के प्रासंगिक हिस्से की जांच करने के बाद, अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 19 के तहत निहित ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के मौलिक अधिकार को इस देश के संविधान में बहुत ऊंचे स्थान पर रखा गया है।इमाम फरवरी, 2020 की पूर्वोत्तर दिल्ली हिंसा से संबंधित मामलों का भी सामना कर रहे हैं और वर्तमान में जेल में हैं।

वर्चुअल सुनवाई पर जारी एसओपी में संशोधन

उच्चतम न्यायालय  ने फिज़िकल सुनवाई के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) में एक संशोधन किया है जिसमें कहा गया है कि बेंच के पास गैर-विविध दिन (मंगलवार, बुधवार और गुरुवार) को मामले की वर्चुअल सुनवाई का विकल्प देने का विवेक होगा।

उच्चतम न्यायालय  ने 7अक्टूबर को फिजिकल सुनवाई के लिए एक संशोधित मानक संचालन प्रक्रिया जारी करते हुए तय किया था कि बुधवार और गुरुवार को गैर-विविध दिनों के रूप में सूचीबद्ध सभी मामलों को अदालत में वकीलों/पक्षों की फिजिकल उपस्थिति में ही सुना जाएगा। हालांकि, गैर-विविध दिनों के मामले की सुनवाई अगले आदेश तक वीडियो/टेलीकांफ्रेंसिंग के माध्यम से जारी बार एसोसिएशनों से प्राप्त अनुरोधों और उस संबंध में न्यायाधीशों की समिति की सिफारिशों पर विचार करने पर चीफ जस्टिस द्वारा एसओपी जारी किया गया था।

नाबालिग होने का दावा कभी भी किया जा सकता है

उच्चतम न्यायालय  ने कहा है कि जूवनाइल होने का दावा किसी भी स्टेज पर किया जा सकता है। किसी मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद भी आरोपी जूवनाइल यानी नाबालिग होने का दावा उठा सकता है। उच्चतम न्यायालय  ने आगरा जेल में बंद याचिकाकर्ताओं के जूवनाइल होने के दावे का यूपी सरकार से वेरिफिकेशन करने को कहा है। अदालत ने कहा है कि एक महीने के भीतर इसकी जांच की जाए और अगर कोई जूवनाइल निकलता है तो उसे रिलीज किया जाए।

उच्चतम न्यायालय में आगरा जेल में याचिकाकर्ताओं की ओर से अर्जी दाखिल कर जूवनाइल होने का दावा किया गया है। याचिकाकर्ताओं के वकील रिषी मल्होत्रा ने कोर्ट को बताया कि आगरा जेल में 23 कैदी बंद हैं जो छह साल से लेकर 20 साल तक से जेल में बंद हैं।याचिका में कहा गया है कि यूपी सरकार को निर्देश दिया जाए कि कैदी के जूवनाइल होने के दावे का वेरिफिकेशन करे। याची के वकील ने कहा कि घटना के वक्त वो नाबालिग थे। अलग-अलग मामले में वो सजा काट रहे हैं।शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार से कहा है कि वह एक महीने में याची के जूवनाइल होने के दावे का संबंधित सेशन कोर्ट से वेरिफिकेशन कराए और अगर कोई भी जूवनाइल है तो उसे रिहा किया जाए।

अंडमान निकोबार में लड़की की खुदकुशी पर जवाब तलब

अंडमान निकोबार में लड़की की खुदकुशी मामले की सीबीआई जांच की याचिका पर उच्चतम न्यायालय  केंद्र सरकार, अंडमान के मुख्य सचिव और डीजीपी से जवाब मांगा है । लड़की ने खुदकुशी से पहले वीडियो बनाया था । अंडमान के डीजीपी  व अन्य  पुलिस अधिकारियों पर खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप है । याचिका में मामले को सीबीआई को ट्रांसफर करने की  मांग की गई है । अंडमान के डीजीपी को भी निलंबित करने की मांग भी की गई है ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।

याचिका में सोशल मीडिया अकाउंट्स पर आपराधिक जांच से संबंधित गोपनीय जानकारी प्रकाशित करने के लिए डीजीपी अंडमान और अन्य अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की मांग की गई है । सुप्रीम कोर्ट से आपराधिक मामलों में पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पर जानकारी देने को लेकर दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गयी है।खुदकुशी से पहले डीजीपी व अन्य पर आरोप लगाते हुए युवती ने वीडियो भी बनाया था ।मोहम्मद खालिद की इस याचिका पर जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने नोटिस जारी किया है।

उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर नोटिस जारी

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें यूपी पुलिस द्वारा तत्कालीन ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को जारी किए गए नोटिस में पोस्ट किए गए वीडियो पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था। गाजियाबाद में एक मुस्लिम व्यक्ति पर हमले से संबंधित वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया गया था। चीफ जस्टिस  एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने इस मामले पर विचार किया।

यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा  कि इस मामले ने उच्च न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से संबंधित कानून के सवाल उठाए हैं। कानून का एक सवाल है जिसके लिए यौर लॉर्डशिप को विचार करने की आवश्यकता है। फिलहाल, इस तथ्य को अनदेखा करें कि समन क्यों जारी किया गया था। यह 41 ए नोटिस था, इसलिए गिरफ्तारी आदि का कोई सवाल ही नहीं है। सवाल उच्च न्यायालय का क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से संबंधित है।

प्रतिवादी की ओर से कैविएट पर वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ ए एम सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए। पीठ ने उनसे नोटिस स्वीकार करने को कहा। चीफ जस्टिस ने कहा हमें इस मामले को सुनना है। हां नोटिस जारी करें।

धनबाद जज हत्याकांड

झारखंड हाईकोर्ट ने धनबाद के अपर जिला न्यायाधीश उत्तम आनंद की मौत के मामले में सीबीआई की अब तक की जांच पर नाराजगी जाहिर करते हुए अगली सुनवाई के दिन यानी 29 अक्टूबर को सीबीआई निदेशक को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सीबीआई द्वारा दो दिन पूर्व इस मामले में विशेष अदालत में दाखिल की गयी चार्जशीट को अधूरा और दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि अब तक की जांच के बावजूद एजेंसी यह स्पष्ट नहीं कर पायी है कि उनकी हत्या क्यों की गयी? पूरी साजिश के पीछे कौन लोग थे और इस घटना को अंजाम देने के पीछे उनका उद्देश्य क्या था?

हाईकोर्ट ने कहा कि जब इस मामले की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट कर रहा है तो सीबीआई द्वारा चार्जशीट धनबाद स्थित सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में फाइल करने के पूर्व इसकी जानकारी हमें क्यो नही दी गयी? सीबीआई ने हमसे क्यों यह बात छिपाई? कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई से इसकी उम्मीद नहीं थी। यह त्रुटिपूर्ण चार्जशीट है। इस मामले की हाईकोर्ट निगरानी कर रहा है और निगरानी का मतलब सिर्फ खानापूर्ति नहीं होती।बीते 28 जुलाई की सुबह जिला सत्र न्यायाधीश उत्तम आनंद को धनबाद शहर के रणधीर वर्मा चौक पर तेज रफ्तार ऑटो रिक्शा ने टक्कर मार दी थी। इस घटना में जज उत्तम आनंद की मौके पर ही मौत हो गई थी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles