Thursday, April 25, 2024

चुनावी कैंडिडेट का आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक न करने पर सुप्रीमकोर्ट सख्त, 8 दलों पर जुर्माना

राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय ने एक कदम और आगे बढ़ाया है। चुनावी कैंडिडेट का आपराधिक रिकॉर्ड सार्वजनिक न करने पर उच्चतम न्यायालय ने सख्ती दिखाई है। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी अधिकारिक वेबसाइटों के साथ-साथ समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के विवरण का खुलासा करने के संबंध में उच्चतम न्यायालय  के निर्देशों का पालन करने में विफल रहने के लिए आठ राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया। इन सभी 8 पार्टियों ने बिहार विधानसभा चुनाव के समय तय किए गए उम्मीदवारों के क्रिमिनल रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के आदेश का पालन नहीं किया था।

कल इस मामले पर जस्टिस रोहिंटन नरीमन और बी आर गवई की पीठ ने फैसला दिया। पीठ ने माना कि कुछ पार्टियों ने आदेश का आंशिक रूप से पालन किया। उन्होंने आपराधिक छवि के लोगों को टिकट दिया। इसकी कोई संतोषजनक वजह आयोग को नहीं बताई। कम प्रचलित अखबारों में प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड छपवा कर औपचारिकता पूरी की। जबकि 2 पार्टियों ने आदेश का बिल्कुल पालन नहीं किया। कोर्ट के नोटिस के जवाब में उन्होंने इसके लिए अपनी राज्य इकाई के भंग होने का बहाना बनाया।

पीठ ने इस बहाने को स्वीकार नहीं किया और सीपीआई (एम) और एनसीपी पर 5-5 लाख का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी, कांग्रेस, बीजेपी और सीपीआई को भी अवमानना का दोषी माना है। हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि यह उसके आदेश के बाद हुआ पहला चुनाव है। इसलिए, वह कठोर दंड नहीं देना चाहता। ऐसे में इन पार्टियों पर एक-एक लाख का जुर्माना लगाया गया है। पीठ ने कहा कि दलों ने कम प्रसार वाले अखबारों में उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास की जानकारी छपवाई, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ज्यादा प्रसार वाले अखबारों और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसका प्रचार करे।

पीठ ने मंगलवार को भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी और भाकपा पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया। वहीं, एनसीपी और सीपीएम पर पांच-पांच लाख रुपए का जुर्माना किया गया है। पीठ ने आदेश देने से पहले कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि बार-बार अपील करने के बावजूद राजनीतिक दलों ने नींद तोड़ने में रुचि नहीं दिखाई। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीति में अपराधियों के आने का विरोध करती हैं, लेकिन चुनाव में दोनों ही पार्टियां आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार उतारती हैं।

नए आदेश के साथ ही पीठ ने अपने पिछले फैसले में बदलाव किया है। फरवरी 2020 में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि उम्मीदवार के चयन के 48 घंटे के अंदर या फिर नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से दो हफ्ते पहले (इन दोनों में से जो भी पहले हो) उम्मीदवारों की पूरी जानकारी देनी होगी। वहीं पिछले महीने कोर्ट ने कहा था कि इसकी संभावना कम है कि अपराधियों को राजनीति में आने और चुनाव लड़ने से रोकने के लिए विधानमंडल कुछ करेगा। इस मामले में नवंबर 2020 में एडवोकेट ब्रजेश सिंह ने याचिका दायर की थी। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान उन पार्टियों के खिलाफ मानहानि की अर्जी दाखिल की थी, जिन्होंने अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा नहीं दिया था।

पिछले साल फरवरी में उच्चतम न्यायालय ने राजनीति में अपराधीकरण की वृद्धि को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ रहे अपने उम्मीदवारों के सभी लंबित आपराधिक मामलों का ब्योरा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ये जानकारी स्थानीय अखबारों और राजनीतिक दलों की आधिकारिक वेबसाइट और सोशल मीडिया हैंडल पर प्रकाशित की जानी चाहिए। इसमें ये बताया जाना चाहिए कि उम्मीदवार के खिलाफ किस तरह के अपराध का आरोप है और जांच कहां तक पहुंची है। न्यायालय ने कहा था कि ऐसे उम्मीदवारों का चुनाव करना जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, उनके चयन का कारण योग्यता होनी चाहिए न कि सिर्फ जीतने की संभावना।

पीठ ने चार हफ्ते के भीतर चुनाव आयोग को जुर्माना जमा कराने को कहा है। साथ ही चेतावनी दी कि भविष्य में वो उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करें अन्यथा इसे गंभीरता से लिया जाएगा। वहीं पीठ ने बहुजन समाज पार्टी को चेतावनी देकर छोड़ा है।

इसके साथ ही राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी किए है, जिनमें कहा गया है कि राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट के होमपेज पर उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रकाशित करनी होगी और मुखपृष्ठ पर एक कैप्शन हो जिसमें लिखा हो ‘आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार’। चुनाव आयोग को एक समर्पित मोबाइल एप्लिकेशन बनाने का निर्देश, जिसमें उम्मीदवारों द्वारा उनके आपराधिक इतिहास के बारे में प्रकाशित जानकारी शामिल हो।

चुनाव आयोग सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास के बारे में एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाए। यह सोशल मीडिया, वेबसाइटों, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पैम्फलेट आदि सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर किया जाएगा। चुनाव आयोग सेल बनाए जो ये निगरानी करे कि राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन किया है या नहीं तथा यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग के पास इस तरह की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो चुनाव आयोग इसकी जानकारी उच्चतम न्यायालय को देगा।

उच्चतम न्यायालय का यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजनीति के अपराधीकरण या अपराध के राजनीतिकरण को ख़त्म किए जाने की वकालत की जाती रही है। लेकिन हर प्रयास के बाद भी ऐसा होता नहीं दिखता है। सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज ऐसे मामले काफ़ी ज़्यादा आते रहे हैं। चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फ़ोर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म्स यानी एडीआर इसका आकलन करती रही है।

हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट विस्तार के बाद एडीआर ने दागी मंत्रियों पर ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की है। एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कैबिनेट में शामिल 78 मंत्रियों में से 42 फ़ीसदी ने अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनमें से चार पर हत्या के प्रयास से जुड़े मामले हैं। एडीआर ने इसी साल जुलाई में तब रिपोर्ट जारी की जब 15 नए कैबिनेट मंत्रियों और 28 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली थी। इसी के बाद मंत्रिपरिषद की संख्या 78 हो गई।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने चुनावी हलफनामों का हवाला देते हुए कहा है कि विश्लेषण किए गए सभी मंत्रियों में से 33 (42 फ़ीसदी) ने अपने ख़िलाफ़ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। लगभग 24 यानी 31 प्रतिशत मंत्रियों ने अपने ख़िलाफ़ दर्ज हत्या, हत्या के प्रयास, डकैती आदि से संबंधित मामलों सहित गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं।

कूच बिहार निर्वाचन क्षेत्र से निसिथ प्रमाणिक, जिन्हें गृह राज्य मंत्री नियुक्त किया गया है, ने अपने ख़िलाफ़ हत्या (आईपीसी धारा-302) से संबंधित मामला घोषित किया है। 35 साल की उम्र में वह कैबिनेट में सबसे कम उम्र के मंत्री भी हैं। चार मंत्रियों- जॉन बारला, प्रमाणिक, पंकज चौधरी और वी मुरलीधरन ने हत्या के प्रयास (आईपीसी की धारा-307) से जुड़े मामले घोषित किए हैं।

एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में चुनाव के बाद संसद के निचले सदन के नए सदस्यों में से लगभग 43 फीसद ने आपराधिक आरोपों का सामना करने के बावजूद जीत हासिल की। यह उनके द्वारा दायर चुनावी हलफ़नामे में ही कहा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, उनमें से एक चौथाई से अधिक बलात्कार, हत्या या हत्या के प्रयास से संबंधित हैं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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