Tuesday, April 16, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- ईडब्ल्यूएस कैटगरी की 8 लाख आमदनी का पैमाना तय करने का क्या है आधार

एनईईटी-अखिल भारतीय कोटा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए 8 लाख रुपये की वार्षिक आय के मानदंड को अपनाने के अपने फैसले पर केंद्र सरकार को गुरुवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ के कड़े सवालों का सामना करना पड़ा। पीठ ने इस मुद्दे पर केंद्र द्वारा हलफनामा दाखिल नहीं करने पर नाखुशी व्यक्त की, हालांकि पीठ ने 7 अक्टूबर को पिछली सुनवाई की तारीख पर ईडब्ल्यूएस मानदंड के बारे में कई संदेह उठाए थे।आज भी पीठ ने यह जानना चाहा कि इस मानदंड को अपनाने के लिए केंद्र ने क्या कवायद की।

यह बताते हुए कि ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर के लिए 8 लाख रुपये मानदंड है, पीठ ने पूछा कि ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए समान मानदंड कैसे अपनाया जा सकता है, जब बाद वाले में कोई सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन नहीं है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक या सामाजिक-आर्थिक डेटा होना चाहिए। आप हवा से सिर्फ 8 लाख नहीं निकाल सकते ।आप 8 लाख रुपये की सीमा लागू करके असमान को बराबर बना रहे हैं।

पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) घोषित करने के लिए आठ लाख रुपये सलाना आमदनी से कम आमदनी का जो क्राइटेरिया तय किया गया है उसके लिए उसने क्या एक्सरसाइज किया है। केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि वह बताए कि जो मानदंड तय किया गया है उसके पीछे क्या आधार है। पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई के दौरान हमने केंद्र सरकार से इस मामले में हलफनामा दायर करने को कहा था लेकिन अभी तक दाखिल नहीं हुआ और इस बात पर नाराजगी जाहिर की। हम नोटिफिकेशन को स्टे कर देते हैं इस दौरान आप अपना हलफनामा दायर करें।

पीठ ने केंद्र सरकार से जवाब माँगा है क्या केंद्र ने ईडब्ल्यूएस निर्धारित करने के लिए मानदंड पर पहुंचने से पहले कोई अभ्यास किया था? यदि उत्तर ‘हां’ में है तो क्या सिंह आयोग की रिपोर्ट पर आधारित मानदंड है? यदि ऐसा है तो रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लाया जाए। ओबीसी में क्रीमी लेयर और ईडब्ल्यूएस के लिए आय सीमा समान है (आठ लाख रुपये की वार्षिक आय)। ओबीसी श्रेणी में आर्थिक रूप से उन्नत श्रेणी को बाहर रखा गया है। ऐसे में क्या ईडब्ल्यूएस और ओबीसी के लिए समान आय सीमा प्रदान करने को मनमानी नहीं कहा जाना चाहिए, क्योंकि ईडब्ल्यूएस में सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की कोई अवधारणा नहीं है।

पीठ ने केंद्र सरकार से यह जवाब भी माँगा है क्या इस सीमा को तय करते समय ग्रामीण और शहरी क्रय शक्ति में अंतर को ध्यान में रखा गया था?किस आधार पर परिसंपत्ति अपवाद के नतीजे पर पहुंचा गया और उसके लिए कोई अभ्यास किया गया था?आखिर क्यों नहीं आवासीय फ्लैट मानदंड, महानगरीय और गैर-महानगरीय क्षेत्र में अंतर नहीं करता है?

दरअसल उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें केंद्र सरकार द्वारा नीट एडमिशन में ओबीसी और ईडब्ल्यूएस कैटगरी के स्टूडेंट्स को रिजर्वेशन देने के फैसले को चुनौती दी गई है। केंद्र सरकार ने 29 जुलाई को नोटिफिकेशन जारी कर मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए आयोजित होने वाले नीट परीक्षा में ऑल इंडिया कोटा के तहत ओबीसी को 27 फीसदी और आर्थिक तौर पर कमजोर स्टूडेंट को 10 फीसदी रिजर्वेश देने का फैसला किया है। उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है।

पीठ ने कहा कि केंद्र ने ईडब्ल्यूएस के लिए जो आमदनी का क्राइटेरिया 8 लाख रुपये तय किया है उसके पीछे आधार क्या है। इसके लिए क्या एक्सरसाइज किया गया। ओबीसी रिजर्वेशन में क्रीमीलेयर के लिए 8 लाख रुपये का क्राइटेरिया तय है क्या आपने ईडब्ल्यूएस के लिए भी वही क्राइटेरिया तय कर दिया जबकि ईडब्ल्यूएस कैटगरी के लोग सोशली और एजुकेशनली बैकवर्ड नहीं हैं। डेमोग्राफिक या सामाजिक या फिर सोश्यो इकोनोमिकल डाटा होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि एकतरफा हवा में आठ लाख रुपये की आमदनी का क्राइटेरिया तय नहीं किया जा सकता है। यह लिमिट असमान समानता वाला है। ओबीसी के क्रीमीलेयर के लिए तय क्राइटेरिया में यह देखना होगा कि वह एजुकेशनली और सोशली बैकवर्ड हैं, लेकिन ईडब्ल्यूएस कैटगरी के लोग एजुकेशनली और सोशली बैकवर्ड नहीं हैं।

पीठ ने कहा कि वह इस बात को मानते हैं कि यह मामला नीतिगत है और पैरामीटर तय करना नीतिगत फैसला है लेकिन यह संवैधानिक कसौटी पर हो। आपको दो हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा गया लेकिन केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया कि क्राइटेरिया तय करने के लिए क्या एक्सरसाइज किया गया था। हम ऐसे में नोटिफिकेशन पर रोक लगा देते हैं और इस दौरान आप जवाब दाखिल करियेगा।

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आप नोटिफिकेशन पर स्टे न करें हम हलफनामा दायर करेंगे। ड्राफ्ट तैयार है और हम दो से तीन दिन में जवाब दाखिल करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नीतिगत मामले में दखल नहीं दे रहे हैं लेकिन हम इस बात का खुलासा चाहते हैं कि ईडब्ल्यूएस कैटगरी के लिए पैमाना तय करने के पीछे संवैधानिक सिद्धांत क्या है। इसके लिए क्या क्राइटेरिया अपनाया गया। क्या ओबीसी क्रीमीलेयर के आधार पर आठ लाख रुपये का पैरामीटर तय करना मनमाना नहीं है? शहरी और ग्रामीण और फिर मेट्रो सिटी के लिए एक समान क्राइटेरिया सही है? उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई 28 अक्टूबर के लिए टाल दी है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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