Saturday, April 20, 2024

आखिर क्यों छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में थाने के सामने बैठा है दलित परिवार?

रायपुर। 30 जनवरी, 2022 को महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के डौंडी ब्लाक में सूरडोंगर ग्राम पंचायत के मोची समाज से ताल्लुकात रखने वाले गणेशराम बघेल के घर को जातिगत साजिश के तहत सरपंच, उप सरपंच व अन्य ने जेसीबी से उजाड़ दिया। घटना के बाद गणेशराम ने न्याय हासिल करने के लिए प्रशासन के कई दरवाजे खटखटाए लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं हुई। थक हार कर वह अब थाने के सामने धरने पर बैठ गए हैं और उनके पक्ष में विभिन्न संगठनों ने गोलबंदी भी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में पीयूसीएल ने गणेश राम के साथ राजधानी रायपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस भी की है।

बेघर हुए गणेशराम कई दिनों तक ठंड में खुले आसमान के नीचे सोते रहे और शासन-प्रशासन का दरवाजा खटखटाते रहे। हालांकि इस मामले में एक एफआईआर दर्ज हुई है पर आज तक शासन-प्रशासन ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की। इसके बाद से पीड़ित परिवार 27 फरवरी से डोंडी थाना परिसर में धरने पर बैठा हुआ है।

न्याय के लिए थाने की ओर पैदल रैली 

राजधानी में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में पीड़ित गणेशराम बघेल ने बताया कि वह स्वयं एक भूमिहीन हैं और वेल्डिंग का काम कर अपना जीवन यापन करते हैं। एक छोटी वेल्डिंग मशीन के सहारे घर-घर जाकर वह काम कर अपने परिवार के साथ विगत 20 वर्ष से उस गांव में रहते आ रहे हैं। उनका कहना था कि तकरीबन 7-8 साल पहले मेहनत-मजदूरी करके सार्वजनिक जमीन पर ईंट और खपरैल से घर बनाया था, जिसे गांव वालों ने कुछ ही पल में ध्वस्त कर दिया। अब गणेशराम अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ बेघर होकर न्याय के लिए दर-दर भटकने को विवश हैं।

धरने पर बैठा गणेशराम का परिवार

गणेशराम के अनुसार घर को ढहाए जाने के पूर्व किसी प्रकार की कोई नोटिस या सूचना उन्हें नहीं दी गयी। अचानक ही गांव के सरपंच, उपसरपंच, पंच और अन्य लगभग 150 ग्रामीण आये और घर तोड़ने के लिए जेसीबी चलाने लगे। रोकने की कोशिश करने पर सभी ने मिलकर पूरे परिवार की जमकर पिटाई की। उनका कहना था कि बचाव के लिए जब डौंडी थाने में फ़ोन किया तो पुलिसवाले बोले कि वो मुझे बचाने के लिए नहीं आ सकते। तब मैं अपने परिवार को लेकर खुद थाना गया और शिकायत दर्ज कराया। इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो मैं और पूरा परिवार 27 फ़रवरी से थाने के सामने धरने पर बैठ गए।” न्याय की गुहार लगाते हुए थाना परिसर में धरना देने के बावजूद शासन-प्रशासन मौन धारण किए हुआ है।

थाने के सामने से उठाने के लिए पुलिस के साथ नोक झोंक

इस प्रकरण में डौंडी थाना प्रभारी अनिल ठाकुर ने मामले की एफआईआर दर्ज होने की पुष्टि की, पर इसमें क्या कार्रवाई हुई इसकी कोई जानकारी नहीं दी। इस बीच गणेशराम ने जिला कलेक्टर को अपनी व्यथा सुनाते हुए पत्र लिखा है और फिर से न्याय की गुहार लगाई है।

आंदोलन के समर्थन में आये सामाजिक और मानवाधिकार संगठन

प्रकरण की गंभीरता तो देखते हुए कई सामाजिक और मानवाधिकार संगठन इसमें सामने आये हैं। इसमें से मोची समाज, भीम रेजिमेंट, दलित मुक्ति मोर्चा, पीयूसीएल खुलकर समर्थन में आईं।

पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने प्रेस कांफ्रेंस में भूपेश बघेल सरकार द्वारा किये जा रहे दलित मानवाधिकार उल्लंघन का तीखे अंदाज़ में विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह जीवन जीने के नैसर्गिक अधिकार का सरासर उल्लंघन है।

मोची समाज के डौंडी अध्यक्ष जीवधन जननायक के अनुसार गणेशराम और उसके परिवार के ऊपर भयानक क्रूरतापूर्ण व्यवहार हुआ है। जब वह अपनी शिकायक दर्ज करवाने गया तो पहले थाने वाले आनाकानी करने लगे। बाद में उसे डाक्टरी जांच के लिए भेजा और जब वह लौट आया तो प्राथमिकी बनाकर उसको बिना पढ़कर सुनाये हस्ताक्षर करवा लिए। डाक्टरी जांच भी ठीक तरीके से नहीं हुई।

ढहाया घर के मल्बे के सामने खड़ा बघेल परिवार

मोची समाज के एक अन्य पदाधिकारी हेमंतराव खांडे को लगता है कि गणेशराम को न्याय मिलना असंभव है। अगर न्याय मिलना होता तो पूरे मामले की अब तक जांच होती। गणेशराम ने कलेक्टर को लिखे पत्र में साफ़-साफ़ दर्शाया है कि किस तरह जातिगत गाली (मोची-चमार) देने के बाद उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया गया और फिर उसके घर पर जेसीबी चला दिया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि जाति जानकर जातिगत दुर्भावना से घर को तोड़ा गया।

समाज के पदाधिकारी यह भी सवाल उठा रहे हैं कि यदि अतिक्रमण को हठाना ही था, तो उसको विधिवत तहसीलदार, एसडीएम, थाना प्रभारी की उपस्थिति में करना चाहिए था, ना कि बिना किसी सूचना के अचानक। आपको बता दें कि गणेशराम ने आवासीय जमीन के विधिवत आवंटन के लिए ग्राम पंचायत और तहसीलदार को आवेदन भी दिया था, जिस पर कोई कार्यवाही अभी तक नहीं हुई। जबकि गणेशराम को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर आवंटन हुआ और शौचालय भी दिया गया। इस पूरे मामले में एसडीएम प्रेमलता चंदेल से सरकार के पक्ष को जानने के सारे प्रयास विफल रहे।

भीम रेजिमेंट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए विगत दिनों कई धरना और प्रदर्शन कर शासन-प्रशासन का ध्यान उस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। रेजिमेंट के अध्यक्ष दिनेश चतुर्वेदी ने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दी है। उन्होंने बताया कि विगत दिनों के आंदोलन की वजह से मामला कुछ आगे बढ़ा है।

मलवे में बदल गया गणेश राम का घर

दलित मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी संयोजक संध्यारानी बोधलेकर कहती हैं कि पूरे परिवार के सामने जीने-मरने का सवाल खड़ा है, ऐसे में सरकार यदि त्वरित कार्रवाई नहीं करती है, तब यह बात उन्हें मौत के मुंह में धकेलने के समान है। इसमें दलित अत्याचार का भी मामला है, जिस पर कार्रवाई करना अनिवार्य होगा। पुलिस-प्रशासन की आनाकानी को समाज और ज्यादा नहीं सहेगा।

हालांकि मामले की प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है, पर इसमें अत्याचार अधिनियम की धाराएं नहीं हैं। चौहान के अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें सरपंच समेत कई लोग आदिवासी समाज से ताल्लुकात रखते हैं, फिर भी यदि कानून की सही मायने में परिभाषित किया जाए तो यह संभव है। अपराध की गंभीरता और जिन धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी वह बहुत ही साधारण है। बताते चलें कि भारतीय दंड संहिता की धराएं 147, 148, 294, 506, 323, 427 के तहत यह प्रकरण दर्ज है।

जमकर हो रही है राजनीति

हालांकि यह मामला दलित अत्याचार का है, लेकिन इसको अत्याचार के दायरे से बहार रखकर देखा जा रहा है और इसे केवल अवैध अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही तक इसे सीमित कर दिया जा रहा है। गणेशराम ने बताया कि कलेक्टर को लिखे पत्र में उन्होंने जातिगत हमले का जिक्र किया है और गांव के लोग समाज के किसी भी व्यक्ति को वहां रहने नहीं देना चाह रहे हैं।

खांडे यह सवाल करते हैं कि बच्चों ने क्या दोष किया है। बच्चों की पढ़ाई क्यों बन्द हो गई है। जननायक ने बताया कि गांव के अन्य बच्चे गणेश के बच्चों को ताना मरते हैं कि तुम्हारा घर तोड़ दिया गया! क्या कर लिए? यह सरासर जातिवाद का दूसरा रूप है।

इन तमाम आरोपों का खंडन करते हुए सर्व आदिवासी समाज के डौंडी ब्लाक अध्यक्ष मोहन हिडको व सचिव तुलसी मरकाम ने 6 मार्च को बयान जारी किया कि यह मामला जातिगत राजनीति का नहीं बल्कि अतिक्रमण हटाने का है। साथ ही यह भी बताया कि आदिवासी समाज सरपंच और गांव वालों के साथ है। इस तरह से यह मामला दलित बनाम आदिवासी मुद्दा बनता जा रहा है। वैसे दबे स्वर में कुछ आदिवासी व्यक्ति पीड़ित पक्ष के साथ हैं, पर वे खुलकर इस बात का इज़हार नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन यहां दलित आदिवासियों के विभिन्न संगठनों के बीच में तकरार की स्थिति बनी हुई है।

न्याय के लिए धरना प्रदर्शन  

थाना प्रभारी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिए कि एसी/एसटी वाले मामले में कार्रवाई करने का अधिकार डीएसपी स्तर के अधिकारियों को होता है। सभी आवश्यक दस्तावेज को उच्च अधिकारियों को सौंप दिए गए हैं।

एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सरपंच कोमेश कोर्राम स्वयं कांग्रेस पार्टी के डौंडी ब्लाक कमेटी के सदस्य हैं और खुलकर गणेशराम को चुनौती दे रहे हैं। कमेटी के लोग झूठे आरोप लगाने के प्रयास में हैं। उनका कहना है कि गणेशराम को आरएसएस वाले उकसा रहे हैं।

घर के ध्वस्त होने से इस परिवार की फिलहाल पूरी दुनिया ही उजड़ चुकी है। जब पूरे गांव में मोची (चमार) को भगाने का राग अलापकर तमाम प्रकार के दबाव सामाजिक संगठन, एसडीएम और थानेदार के द्वारा बनाया जा रहा है, तो यह भी सवाल उठता है कि इस दलित परिवार के संवैधानिक और मौलिक अधिकार की रक्षा किस तरह से प्रदेश की बघेल सरकार करेगी।

(रायपुर से गोल्डी एम जॉर्ज की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

जौनपुर में आचार संहिता का मजाक उड़ाता ‘महामानव’ का होर्डिंग

भारत में लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद विवाद उठ रहा है कि क्या देश में दोहरे मानदंड अपनाये जा रहे हैं, खासकर जौनपुर के एक होर्डिंग को लेकर, जिसमें पीएम मोदी की तस्वीर है। सोशल मीडिया और स्थानीय पत्रकारों ने इसे चुनाव आयोग और सरकार को चुनौती के रूप में उठाया है।

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।