संयुक्त राष्ट्र के गाजा युद्धविराम प्रस्ताव पर मतदान में भारत ने भाग नहीं लिया। केंद्र सकार के इस कदम पर कांग्रेस ने कड़ा एतराज जताया है। कांग्रेस ने इसे नैतिक कायरता बताया है और सवाल उठाया है कि क्या भारत अपने ऐतिहासिक रुख और मानवीय मूल्यों से पीछे हट गया है। पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के फिलिस्तीन के प्रति रूख का भी जिक्र करते हुए सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।
महासभा में स्पेन की तरफ से प्रस्तुत प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इस प्रस्ताव में तत्काल, बिना शर्त तथा स्थायी युद्ध विराम और हमास तथा अन्य समूहों द्वारा बंधक बनाए गए सभी लोगों की तत्काल तथा बिना शर्त रिहाई की मांग की गई। भारत समेत 19 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया, जबकि 12 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया और पक्ष में 149 वोट पड़े हैं।
कांग्रेस ने यह सवाल भी किया कि पिछले छह महीनों में ऐसा क्या बदलाव आया जिसके कारण भारत ने युद्ध विराम का समर्थन करना बंद कर दिया। फिलिस्तीन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सैद्धांतिक रुख को भी छोड़ दिया? संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा में तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग वाले मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से भारत ने परहेज किया है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने एक्स पर लिखा कि ” भारत का 12 जून, 2025 को संयुक्त राष्ट्र में गाजा युद्धविराम पर मतदान से दूर रहना एक चौंका देने वाली नैतिक कायरतापूर्ण कृत्य है. यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों के साथ शर्मनाक विश्वासघात है। कभी भारत ने फिलिस्तीन के लिए मजबूती से खड़ा होकर इतिहास रचा था -1974 में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बना, 1983 में नई दिल्ली में आयोजित 7वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन में यासिर अराफात को आमंत्रित किया और 1988 में औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दी। हमने न्याय के लिए रणनीति के तौर पर नहीं, बल्कि सिद्धांत के तौर पर खड़े होने का चुनाव किया था। लेकिन आज, वह गौरवशाली विरासत मलबे में तब्दील हो चुकी है।”
उन्होंने आगे लिखा कि “आज भारत तेल अवीव के आगे झुक गया है, उन सिद्धांतों को छोड़कर, जिन्होंने कभी हमें दुनिया की नैतिक मूल्यों का दिशा देने वाला बनाया था। दिसंबर 2024 में गाजा में स्थायी युद्धविराम के पक्ष में भारत के मतदान से भी ज्यादा डरपोक पलटी इस मतदान से दूर रहना है, जिससे यह साबित होता है कि मोदी सरकार को न तो कुछ याद है, न ही किसी चीज के लिए खड़ी होती है, और सिर्फ फोटो खिंचवाने के पीछे भागती है, चाहे उसमें खून से सने हाथ मिलाने पड़ें।”
पवन खेड़ा ने कहा कि “एक भाजपा सांसद का हाल ही में फिलिस्तीन के समर्थन में भारत की भूमिका का महिमामंडन और इस मतदान से दूर रहाना,, पाखंड की पराकाष्ठा और सरकार की दोहरी विदेश नीति के रूप में उजागर करता है। एक ऐसी सरकार जो गाजा में बच्चों के जलाए जाने के बावजूद युद्धविराम के लिए वोट देने से डरती है, वह भारत या दुनिया को नैतिक दिशा और नेतृत्व देने के लायक नहीं है।”
वैश्विक नेतृत्व चुप्पी और चापलूसी पर नहीं बनता। अगर हम चाहते हैं कि वैश्विक मंच पर हमारी आवाज़ मायने रखे, तो हमें सबसे जरूरी वक्त पर बोलने का साहस दिखाना होगा। हमारी ताकत हमेशा हमारी आवाज़ के नैतिक वजन से आई है। जब भारत विदेशों में निर्दोष जिंदगियों की रक्षा करने से इनकार करता है, तो हम वह नैतिक पूंजी गंवा देते हैं जो विदेशों में भारतीयों की रक्षा करती है।
जब इज़राइल पश्चिम एशिया को आग में झोंक रहा है-गाजा, वेस्ट बैंक, लेबनान, सीरिया, यमन और अब ईरान पर बमबारी कर रहा है-मोदी की मिलीभगत ने भारत की अंतरात्मा को छोड़ दिया है। दुनिया सबसे ऊंची आवाज़ में बोलने वाले देश को नहीं सुनती, वह उस देश की सुनती है जो स्पष्टता, साहस और अंतरात्मा के साथ बोलता है। और भारत को कभी भी अपनी वह आवाज़ नहीं खोनी चाहिए।”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “अब यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि हमारी विदेश नीति में गड़बड़ियाँ हो रही हैं। शायद, प्रधानमंत्री मोदी को अब अपने विदेश मंत्री की बार-बार की गई गलतियों पर विचार करना चाहिए और कुछ जवाबदेही तय करनी चाहिए। गाजा में युद्ध विराम के लिए यूएनजीए के प्रस्ताव के पक्ष में 149 देशों ने मतदान किया। भारत उन 19 देशों में से एक था, जिन्होंने मतदान में भाग नहीं लिया। इस कदम से हम वस्तुतः अलग-थलग पड़ गए हैं।”
उन्होंने भारत फिलिस्तीन संबंधों को बताते हुए कहा कि ” 8 अक्टूबर 2023 को, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इजरायल के लोगों पर हमास द्वारा किए गए क्रूर हमलों की निंदा की थी। हमने लगातार अंधाधुंध कार्रवाइयों की निंदा की है, जिसमें गाजा पट्टी की घेराबंदी और उसमें बमबारी शामिल है। 60,000 लोग मारे गए हैं और व्यापक और भयावह मानवीय संकट है। क्या हमने मध्य पूर्व और पश्चिम एशिया में युद्ध विराम, शांति और संवाद की वकालत करने वाले भारत के लगातार रुख को त्याग दिया है?”
भारतीय नविदेश नीति का हवाला देते हुए खड़गे ने मोदी सरकार को याद दिलाते हुए कहा कि ” यह रुख गुटनिरपेक्षता और नैतिक कूटनीति की हमारी दीर्घकालिक परंपरा में गहराई से निहित है, जिसके माध्यम से भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में न्याय और शांति का समर्थन किया है। 19 अक्टूबर 2023 को ही, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने तत्काल युद्ध विराम और गाजा के संकटग्रस्त और बेदखल लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने का आह्वान किया था। जब क्षेत्र भीषण हिंसा, मानवीय तबाही और बढ़ती अस्थिरता का सामना कर रहा है, तो भारत चुपचाप या निष्क्रिय रूप से खड़ा नहीं रह सकता।”
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि “यह शर्मनाक और निराशाजनक है कि हमारी सरकार ने गाजा में नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी तथा मानवीय दायित्वों को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर विचार न करने का फैसला किया है। 60,000 लोग, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, पहले ही मारे जा चुके हैं, एक पूरी आबादी को बंधक बनाकर भूख से मारा जा रहा है और हम कोई कदम उठाने से इनकार कर रहे हैं।”
उन्होंने कहाकि “यह हमारी उपनिवेशवाद विरोधी विरासत का दुखद उलटफेर है। वास्तव में, हम न केवल श्री नेतन्याहू द्वारा पूरे देश को नष्ट किए जाने पर चुप खड़े हैं, बल्कि हम उनकी सरकार द्वारा ईरान पर हमला किए जाने और उसकी संप्रभुता का घोर उल्लंघन करते हुए उसके नेतृत्व की हत्या किए जाने पर भी खुशी मना रहे हैं और सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पूरी तरह उल्लंघन कर रहे हैं।”
प्रियंका गांधी ने कहा कि “हम एक राष्ट्र के रूप में अपने संविधान के सिद्धांतों और अपने स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को कैसे त्याग सकते हैं, जिसने शांति और मानवता पर आधारित अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र का मार्ग प्रशस्त किया? इसका कोई औचित्य नहीं है। सच्चा वैश्विक नेतृत्व न्याय की रक्षा करने के साहस की मांग करता है, भारत ने अतीत में यह साहस निरंतर दिखाया है। एक ऐसे विश्व में जो तेजी से विभाजनकारी होता जा रहा है, हमें मानवता के लिए अपनी आवाज पुनः उठानी होगी तथा सत्य और अहिंसा के लिए निडरता से खड़ा होना होगा।”
(जनचौक की रिपोर्ट)