नई दिल्ली। देश भर में संगठित और असंगठित क्षेत्रों, सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और औद्योगिक क्षेत्रों में 25 करोड़ से अधिक लोगों ने हड़ताल/रास्ता रोको/रेल रोको में भाग लिया। देश की 10 ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलायी गई इस हड़ताल में जगह-जगह प्रदर्शन और सभाएं हुईं। ग्रामीण भारत में और ब्लॉक-उप-मंडल स्तर पर भी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों, खेतिहर मजदूरों और किसानों तथा आम जनता के अन्य वर्गों द्वारा बड़े स्तर पर लामबंदी की गयी। कई राज्यों में छात्रों और युवाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी की। संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर संगठनों के संयुक्त मोर्चे के कार्यकर्ताओं ने ग्रामीण भारत में हड़ताल को सफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कोयला, एनएमडीसी लिमिटेड, अन्य गैर-कोयला खनिजों जैसे लौह अयस्क, तांबा, बॉक्साइट, एल्युमीनियम, सोने की खदानें आदि, इस्पात, बैंक, एलआईसी, जीआईसी, पेट्रोलियम, बिजली, डाक, ग्रामीण डाक सेवक, दूरसंचार, परमाणु ऊर्जा, सीमेंट, बंदरगाह और गोदी, चाय बागान, जूट मिलों, सार्वजनिक परिवहन, निजी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के परिवहन, विभिन्न क्षेत्रों/राज्यों में राज्य सरकार के कर्मचारी और डाक, आयकर, लेखा परीक्षा और अन्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में केंद्र सरकार के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित देश के अधिकांश औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिक/कर्मचारी बड़े पैमाने पर हड़ताल में शामिल हुए और जुलूस निकाले।

रेलवे यूनियनें एकजुट हुईं और एकजुटता कार्यों में भाग लिया। निर्माण, बीड़ी, आंगनवाड़ी, आशा, मिड-डे मील, और अन्य स्कीम वर्कर्स, मत्स्य पालन, घरेलू कामगार, फेरीवाले और विक्रेता, हेड-लोड वर्कर, घर आधारित पीस रेट वर्कर और रिक्शा, ऑटो, टैक्सी यूनियनें हड़ताल में भाग लेने वालों में शामिल थीं और कई स्थानों पर रास्ता रोको, रेल रोको में शामिल हुईं। छात्रों, युवाओं, महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी कई स्थानों पर जुलूस और धरना प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। आम लोगों की तरफ से भी इन हड़तालों भरपूर समर्थन मिला। हड़ताल के आह्वान पर कई जगहों पर बाजार बंद रहे।
देश के कई क्षेत्रों जैसे पुडुचेरी, असम, बिहार, झारखंड तमिलनाडु, पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा, मेघालय, मणिपुर आदि में बंद जैसी स्थिति रही। राजस्थान, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि के कई हिस्सों में आंशिक बंद की खबरें भी मिलीं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में औद्योगिक और क्षेत्रीय हड़ताल हुई।

केंद्र व कई राज्य सरकारों और नियोक्ताओं द्वारा की गई अनेक दमनकारी और धमकी भरी कार्रवाइयों का बहादुरी से सामना किया।
हड़तालियों ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सार्वजनिक सेवाओं और छोटे व्यापार व व्यवसायों के विरुद्ध भारतीय और विदेशी कॉर्पोरेट्स और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूँजी के पक्ष में सरकार की राष्ट्र-विरोधी नीतियों के विरुद्ध अपना रोष व्यक्त किया। सरकार ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) नीति के माध्यम से बुनियादी ढाँचे, प्राकृतिक संसाधनों और राष्ट्रीय संपत्तियों को बिक्री के लिए रख दिया है, जो देश के आत्मनिर्भर विकास को खतरे में डाल देगा और इसकी संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करेगा। आंदोलनकारियों ने कहा कि इन राष्ट्र-विरोधी नीतियों का विरोध करने और उनसे लड़ने का समय आ गया है।
लोगों ने आवश्यक वस्तुओं की अभूतपूर्व कीमतों में वृद्धि, बढ़ती बेरोजगारी और अल्परोजगार के कारण बढ़ती निराशा, दिहाड़ी मजदूरों और बेरोजगार युवाओं की बढ़ती आत्महत्याओं के कारण बढ़ती असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई।

सरकार पिछले 10 वर्षों से भारतीय श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं कर रही है, अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन कर रही है और श्रम बल के हितों के विपरीत निर्णय ले रही है, जिसमें ‘व्यापार करने में आसानी’ के नाम पर नियोक्ताओं को लाभ पहुँचाने के लिए चार श्रम संहिताएँ लागू करने का प्रयास भी शामिल है।
ट्रेड यूनियनें इन श्रम संहिताओं को ब्रिटिश राज के बाद से 150 वर्षों के संघर्ष के बाद प्राप्त श्रम अधिकारों का हनन मानती हैं। ये संहिताएं हड़ताल करने के हमारे अधिकार को नकारती हैं, यूनियन पंजीकरण को समस्याग्रस्त बनाती हैं, यूनियनों की मान्यता रद्द करना आसान बनाती हैं, समझौता और न्याय निर्णय की प्रक्रिया को बोझिल बनाती हैं, श्रम न्यायालयों को बंद करके श्रमिकों के लिए न्यायाधिकरण की स्थापना करती हैं, रजिस्ट्रारों को यूनियनों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार देती हैं, मजदूरी की परिभाषा में बदलाव किया जा रहा है और न्यूनतम मजदूरी लागू करने के लिए व्यवसायों की अनुसूची को समाप्त किया जा रहा है, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य तथा कार्य स्थिति संहिता को प्रत्येक श्रमिक की सुरक्षा के अधिकार और कार्यस्थल में श्रमिकों के अधिकारों और हकों को पूरी तरह खतरे में डालने के लिए बनाया गया है, विशेष निरीक्षण प्रत्येक श्रमिक के सुरक्षा के अधिकार को खतरे में डालते हैं, निरीक्षणों को समाप्त कर दिया गया है और नियोक्ताओं की सुविधा के लिए सुविधा प्रदाताओं को लाया जा रहा है, औद्योगिक संहिता में बदलाव और प्रयोज्यता-सीमा को 100 से 300 तक बढ़ाने के नियम से 70 प्रतिशत उद्योग श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे, कारखाना अधिनियम में बदलाव भी बड़ी संख्या में श्रमिकों को इसके दायरे से बाहर कर देगा, जिससे नियोक्ता वर्ग को दमन और शोषण करने के लिए व्यापक विवेकाधीन शक्तियां मिल जाएंगी।

मजदूर संगठनों का कहना था कि श्रमिकों की कोई सुरक्षा नहीं है। निश्चित अवधि का रोज़गार श्रम क़ानूनों से पूरी तरह रहित है, असीमित प्रशिक्षुता और अवशोषण की कोई बाध्यता शोषण का एक और तरीका है। नियोक्ताओं द्वारा उल्लंघन को अपराधमुक्त किया जा रहा है, जबकि ट्रेड यूनियन नेताओं का अपराधीकरण प्रस्तावित है। ठेकेदार लाइसेंस की सीमा 20 से बढ़ाकर 50 करने का प्रस्ताव है। आउटसोर्सिंग और ठेकेदारी को सामान्य बनाया जा रहा है। स्वीकृत पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है, बल्कि नए पदों के सृजन पर रोक है, जिससे बेरोज़गारी बढ़ रही है। बेरोज़गार युवाओं को नियमित रोज़गार देने के बजाय सेवानिवृत्त लोगों की नियुक्ति का चलन बढ़ रहा है।
यूनियन सभी सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों में रिक्त पड़े स्वीकृत पदों पर तत्काल भर्ती, उद्योगों और सेवाओं में अधिक रोज़गार सृजन, मनरेगा श्रमिकों के कार्यदिवसों और पारिश्रमिक में वृद्धि और शहरी क्षेत्रों के लिए समान कानून बनाने की माँग कर रहे हैं। लेकिन सरकार नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए ईएलआई योजना लागू करने में व्यस्त है, ताकि उनकी श्रम लागत में सब्सिडी दी जा सके और कार्यबल को अनौपचारिक बनाया जा सके। सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र में युवाओं को नियमित नियुक्तियां देने के बजाय एक ओर सेवानिवृत्त लोगों की भर्ती करने और दूसरी ओर मुख्य नौकरियों में निश्चित अवधि/प्रशिक्षु/प्रशिक्षु/इंटर्न की नियुक्ति करने की नीति लाई जा रही है, जैसा कि रेलवे, एनएमडीसी लिमिटेड, इस्पात क्षेत्र, शिक्षण संवर्ग आदि में देखा गया है।

यह देश के विकास के लिए हानिकारक है जहां 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है और बेरोजगारों की संख्या 20 से 25 वर्ष के आयु वर्ग में सबसे अधिक है। सरकार रोजगार और सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों पर फर्जी दावे कर रही है। मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को कमजोर किया जा रहा है और निजी खिलाड़ियों को इसमें लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
भारतीय संविधान में निहित लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला इस सत्तारूढ़ शासन द्वारा और अधिक जोरदार तरीके से जारी है और अब प्रवासी श्रमिकों को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है महाराष्ट्र में लोक सुरक्षा विधेयक और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में इसी तरह के अधिनियम इसके संकेत हैं। अब नागरिकता छीनने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं।

यह आने वाले दिनों में क्षेत्रीय स्तर पर एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है, जो दृढ़ एकजुट प्रतिरोध पर केंद्रित होगी और अंततः एक बड़े राष्ट्रीय स्तर पर तीव्र एकजुट कार्रवाई में परिणत होगी।
दिल्ली में यूनियनों ने औद्योगिक क्षेत्रों में हड़ताल के लिए जुलूस निकालने के बाद, नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक जनसभा की, जिसे 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय नेताओं – अशोक सिंह-इंटक, अमरजीत कौर-एटक, हरभजन सिंह-एचएमएस, तपन सेन-सीटू, राजीव डिमरी-एआईसीसीटीयू, लता बेन-सेवा, चौरसिया-एआईयूटीयूसी, जवाहर-एलपीएफ, धर्मेंद्र वर्मा-टीयूसीसी और आर एस डागर-यूटीयूसी ने संबोधित किया। आईसीईयू और एमईसी के यूनियन नेताओं, एआईकेएस और कृषि श्रमिकों के नेताओं ने भी संबोधित किया।

इस बीच ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) समेत विभिन्न ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा बुलाई गई 9 जुलाई की हड़ताल का दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक इलाकों में जोरदार असर देखा गया। महंगाई–बेरोजगारी–विस्थापन का दंश झेल रहे दिल्ली के मजदूरों ने सुबह–सुबह जुलूस निकालकर हड़ताल को सफल बनाने में पूरी ताकत लगाई। दिल्ली के वजीरपुर, नरेला, जहांगीरपुरी, ओखला, झिलमिल, मायापुरी समेत अनेक औद्योगिक क्षेत्रों में हड़ताल को लेकर, मजदूरों में काफी जोश देखा गया।
(जनचौक की रिपोर्ट।)