Saturday, April 20, 2024

यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंकने लिए अमेरिका है जिम्मेदार

यूक्रेन पर रूस के भयानक हमले की कई व्याख्याएं हैं। इनमें से एक व्याख्या एक पुरानी कविता में ढूंढ़ी जा सकती है। अल्फ्रेड टेनिसन की यह कविता ‘चार्ज ऑफ़ द लाइट ब्रिगेड’ हमने स्कूल में पढ़ी थी। इस कविता में विक्टोरिया-कालीन ब्रिटेन में रूस के प्रति स्पष्ट शत्रुता के आरंभ का ज़िक्र है।

ऐसा हुआ कि 1854-56 के क्रीमिया युद्ध में, जिसकी पृष्ठभूमि में टेनिसन की यह कविता लिखी गयी है, ब्रिटिश और फ्रांसीसी सेनाओं द्वारा रूस से काला सागर के सेवस्तोपोल बंदरगाह को हथियाने का लगभग सफल प्रयास विफल हो गया था। युद्ध संबंधी ग़लत खुफिया जानकारी देने की वजह से महारानी विक्टोरिया ने गुस्से में ब्रिटिश समाचार एजेंसी के साथ 500-पाउंड वार्षिक अनुबंध को रद्द कर दिया। (जब मीडिया लंबे समय से राज्य के साथ हमबिस्तर रहता आया है, तो सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के हथियार होने, या इसी तरह की अंतहीन झूठी बातें फैलाते आ रहे अखबारों और टीवी चैनलों को कौन दंडित करेगा?)

रूस के खिलाफ ब्रिटेन की सनक की जड़ें व्लादिमीर पुतिन के प्रति उसकी बीमार घृणा से कहीं ज्यादा गहरी हैं, और किसी समय सोवियत संघ के नाममात्र से ब्रिटेन को जो एलर्जी के चकत्ते पड़ने लगते थे, उससे भी पुरानी हैं। सोवियत संघ द्वारा अपनी सीमाओं पर बनाया गया लौह आवरण आया और चला गया लेकिन इससे पश्चिम में पैदा हुई आदतें बरक़रार हैं। अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन द्वारा अफगानिस्तान से हाल ही में हड़बड़ी भरी सैन्यवापसी (जिसमें ब्रिटिश सेनाएं भी थीं, और इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था) का समय वही था जब रूस की ही सीमा से लगे एक अन्य बफर राष्ट्र, यूक्रेन में, इन्हीं देशों द्वारा नासमझी में आग भड़काई जा रही थी। एक ब्रिटिश युद्धपोत को काला सागर में बहुत ही संक्षिप्त समय के लिए भेजने का प्रहसन इसी आदत की ताकत का नतीजा था।

इसे एक पूर्व केजीबी एजेंट (पुतिन) के नजरिए से देखें, जो पूर्वी जर्मनी में अपनी तैनाती की जगह से सोवियत संघ के विघटन को निराश भाव से देख रहा था। कोई इतिहास की घंटी को बजने से नहीं रोक सकता, लेकिन ऐसा लगता है कि व्लादिमीर पुतिन ने इस ऐतिहासिक परिघटना से उपयोगी सबक लिया है। वह देख रहे थे कि जब सोवियत साम्राज्य सिकुड़ने लगा और फिर उखड़ने लगा तो पश्चिमी देशों द्वारा रूस के सहयोगियों का शिकार कैसे किया जा रहा था।

सबसे पहली लिंचिंग की गई अफगानिस्तान के आखिरी कम्युनिस्ट राष्ट्रपति नजीबुल्लाह की। नजीबुल्लाह अपनी जान बचाकर भाग सकते थे और राष्ट्रपति के खजाने को अपने साथ ले जा सकते थे, जैसाकि हाल के एक नेता ने किया। लेकिन नजीबुल्लाह सत्ता के व्यवस्थित हस्तांतरण में मदद की उम्मीद में डटे रहे। उन्हें प्रताड़ित किया गया और मार डाला गया, और उनके मृत शरीर के साथ दुर्व्यवहार किया गया और संयुक्त राष्ट्र अपने परिसर में ही उनकी रक्षा करने में विफल रहा।

पुतिन ने मास्को के दो अन्य दोस्तों को पश्चिमी देशों द्वारा प्रायोजित भीड़ के हाथों बाहर निकाले जाते हुए देखा। बाद में, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नाजी जर्मनी के नेताओं के विरुद्ध गठित ‘न्यूरेम्बर्ग मुकदमों’ की तर्ज पर गठित एक अन्यायपूर्ण अदालत (कंगारू कोर्ट) द्वारा सद्दाम हुसैन की हत्या कर दी गयी। मुअम्मर गद्दाफ़ी का शिकार एक जानवर की तरह किया गया था। और ऐसा नहीं था कि केवल तानाशाहों से इस तरह निपटा गया था, क्योंकि ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक और चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे तो अपनी जनता द्वारा चुने गये लोकप्रिय लोग थे, फिर भी ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा इनके तख्तापलट को प्रायोजित कराया गया था और उनका हश्र भी अन्य तानाशाहों जैसा ही किया गया। सीरिया के बशर अल-असद के साथ ऐसे ही हश्र को रोकने के लिए पुतिन ने हस्तक्षेप किया, और उनके इस कदम में यूक्रेन का भी एक कोण था। पश्चिम के पास पुतिन से नफरत करने का यह एक और कारण बन गया।

अभी ज्यादा पुराना इतिहास नहीं है, जब निकिता ख्रुश्चेव, जो खुद एक यूक्रेनी थे, उन्होंने क्रीमिया (रुसी बहुल इलाके) को रूस से यूक्रेन को स्थानांतरित किया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद  भूमध्य सागर तक अपनी महत्वपूर्ण पहुंच बनाये रखने के लिए बेताब रूस ने काले सागर के उस बंदरगाह को पट्टे पर लिया, जिसपर कभी खुद उसका स्वामित्व था, क्योंकि भूमध्य सागरीय क्षेत्र में सीरिया और लीबिया सहित उसके कई अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक हित थे। यह महज संयोग नहीं है कि मार्च 2014 में क्रीमिया पर, और उसके साथ ही बंदरगाह शहर सेवस्तोपोल पर क़ब्जा करने के बाद सितंबर 2015 में रूस सीरियाई गृहयुद्ध में शामिल हुआ। रूस का यह दांव कीव की रूस समर्थक सरकार को गिराने के लिए पश्चिम द्वारा करायी गयी तथाकथित रंगीन क्रांति से उत्प्रेरित था।

तत्कालीन उप-राष्ट्रपति जो बिडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एंटनी ब्लिंकन ने लीबिया के विनाश की कार्यवाही में अमेरिका के शामिल होने के लिए दबाव डाला था। बाद में उन्होंने सीरिया में युद्ध को समाप्त करने के लिए जॉन केरी के, लगभग अंतिम प्रारूप तक पहुंच चुके समझौते को भी अस्वीकार करा दिया। इसके अनुसार असद द्वारा (संभवतः रूसी मदद से) देश में रासायनिक हथियारों के भंडार को नष्ट कर दिया जाना था। व्हाइट हाउस में अपने बसेरे से ब्लिंकन ने केरी के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठंडे बस्ते में डाल दिया कि यह विचार अध्ययन के लायक है। यह बात पुतिन को हिलेरी क्लिंटन के राष्ट्रपति पद के अभियान के प्रति सावधान रहने का कारण हो सकती है। फिर भी, यह दावा कि वास्तव में पुतिन उनके चुनाव अभियान की दिशा मोड़ सकते थे, एक मासूम विश्वास से ज्यादा कुछ नहीं है।

सच्चाई जो भी हो, जब से क्लिंटन ने रूसी नेता पर उनके चुनाव में गड़बड़ी कराने का आरोप लगाया, तब से पुतिन बिडेन के निशाने पर हैं। इन आरोपों के अनुसार पुतिन ने क्लिंटन के ईमेल हैक किए और उन्हें विकीलीक्स के साथ साझा किया, जिसकी वजह से वे मामूली अंतर से डोनाल्ड ट्रम्प से हार गयीं। ऐसी हालत में किसी के लिए भी पुतिन के खिलाफ इस तरह से हमलावर होने की बात समझ में आने वाली है, जैसा कि यूक्रेन संघर्ष में देखा जा सकता है। इस सौदेबाजी में, बिडेन को राष्ट्रपति पद के चुनावी अभियान के प्राइमरी में बर्नी सैंडर्स को हटाने में क्लिंटन का महत्वपूर्ण समर्थन मिला, क्योंकि क्लिंटन बर्नी से नफरत करती थी, और बिडेन बर्नी से डरते थे।

दोनों बौद्धिक विरोधियों, हेनरी किसिंजर और नोम चॉम्स्की, ने पुतिन द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के दांव की आशंका व्यक्त की थी और इस पर बहसें  भी की थीं। दोनों ने ही अमेरिका द्वारा रूस को निशाना बनाए जाने का विरोध भी किया है।

रूस-यूक्रेन गतिरोध को ध्यान में रखते हुए, पूर्वी यूरोप के मामलों के विशेषज्ञ, इतिहासकार रिचर्ड सकवा ने एक पैनी दृष्टि वाला अवलोकन प्रस्तुत किया है: “नाटो के विस्तार से उत्पन्न खतरों का प्रबंधन करने की आवश्यकता ही नाटो के अस्तित्व के औचित्य को साबित करती है।” चॉम्स्की इससे सहमत हैं। वारसॉ-संधि के पूर्व सदस्य देशों के साथ रूस की सीमाओं के करीब नाटो के हथियारों को तैनात करने और नाटो में शामिल होने के लिए यूक्रेन के ग़लत आग्रह को खारिज करते हुए, चॉम्स्की ने trueout.org से कहा: “हथियारों की तैनाती से निपटने का एक आसान तरीका है: कि उन्हें तैनात ही न करें। उन्हें तैनात करने का कोई औचित्य नहीं है। अमेरिका दावा कर सकता है कि वे रक्षात्मक हैं, लेकिन रूस निश्चित रूप से इसे इस तरह से नहीं देखता, और उसके पास इसके पर्याप्त कारण हैं।”

उन्होंने मिखाइल गोर्बाचेव को याद किया, जिन्होंने लिस्बन से व्लादिवोस्तोक तक बिना किसी सैन्य ब्लॉक के यूरेशियन सुरक्षा प्रणाली का प्रस्ताव रखा गया था। अमेरिका ने इसे खारिज कर दिया: कि “नाटो बरक़रार है, जबकि रूस का वारसॉ पैक्ट गायब हो रहा है।” 2014 के संकट के दौरान किसिंजर ने चेतावनी दी थी कि “यूक्रेन के मुद्दे को अक्सर एक निर्णायक के रूप में पेश किया जाता है: यूक्रेन चाहे पूर्व में शामिल हो या पश्चिम में। लेकिन अगर यूक्रेन को बचे रहना है और फलना-फूलना है, तो बेहतर यही है कि यह दूसरे पक्ष के खिलाफ किसी भी पक्ष की सैन्य-चौकी न बने। इसे उनके बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना चाहिए।” किसिंजर ने हाल ही में ‘वाशिंगटन पोस्ट’ यह लिखा था।

और अंततः एक दिन जब वैश्विक मीडिया का ध्यान यूक्रेन की इस तबाही से हटेगा, और हटना भी चाहिए, तो वही मीडियाकर्मी हमें कभी भी उन्हीं शब्दों में, और उतनी ही सहानुभूति के साथ दुनिया के अन्य देशों में पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित लड़ाइयों के कारण होने वाली मौतों और बदहाल शवों की गिनती के बारे में नहीं बताएंगे, न तो यमन और फिलिस्तीन के लोगों का पीछा कर रहे अंतहीन आतंक के बारे में बताएंगे, न ही म्यांमार और कश्मीर में असहाय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की पीड़ा के बारे में।

लेख- जावेद नकवी

(डॉन में प्रकाशित, 1 मार्च, 2022, अनुवाद-शैलेश)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।