Friday, April 26, 2024

सरकार का विधेयकों को पारित कराने का रास्ता असंवैधानिक

संसद के ऐसे सदन को संबोधित करने के लिए काफी हिम्मत चाहिए होती है जिसमें विपक्ष की जगह खाली पड़ी हो। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 जुलाई 2019 को राज्यसभा में जो किया, वह यही था! उन्होंने अपना पहला वित्त विधेयक रखा, राज्यसभा ने (विपक्ष के बिना) इस विधेयक पर ‘विचार किया और लौटा दिया’, और भारत की अर्थव्यवस्था में सब कुछ अच्छा है। बधाई हो, वित्तमंत्री!

बजट को लेकर जिस तरह के गंभीर सवाल थे, वैसे ही गंभीर सवाल वित्त विधेयक को लेकर हैं।

मनमाना उल्लंघन
पहली बात तो यह कि विधेयक संवैधानिक रूप से ही संदिग्ध है। सरकार ने पूरी बेशर्मी से कानून का उल्लंघन किया। जस्टिस पुत्तास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि धन विधेयक को संविधान की धारा 110 में वर्णित शर्तों के अनुरूप ही होना चाहिए। इस तरह के विधेयक में ही सिर्फ ऐसे प्रावधान होंगे जो करों और भारत के सरकारी खाते या भारत के समेकित कोष से होने वाले भुगतान या उसमें आने वाले धन संबंधी मामलों को देख सकें। फिर भी, सरकार ने वित्त विधेयक (क्रमांक 2) 2019 में इन उपबंधों को शामिल कर लिया है जिन्हें संविधान की धारा 110 शामिल करने से रोकती है। विधेयक का अध्याय छह, जिसका शीर्षक ‘विविध’ दिया गया है, में ऐसे उपबंध हैं जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, इंश्योरेंस एक्ट, सिक्युरिटीज कांट्रैक्ट्स (रेग्युलेशन) एक्ट जैसे कई अधिनियमों को संशोधित करते हैं। मैंने कम से कम दस ऐसे नियम गिने हैं जिनमें संशोधन किए गए। धारा 110 में जो उद्देश्य बताए गए हैं, उनका न तो अधिनियमों से न ही संशोधनों से कोई संबंध है।

कोई न कोई निश्चित रूप से वित्त (क्रमांक 2) विधेयक, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देगा। मुझे हैरानी तो इस बात से है कि सरकार सबसे महत्त्वपूर्ण वित्त और आर्थिक विधेयक को सिर्फ इसीलिए जोखिम में डालने को तैयार है ताकि कुछ गैर-वित्तीय कानूनों के संदेहास्पद संशोधनों पर बहस को टाला जा सके।

और तेज रफ्तार!
दूसरा यह कि पिछले हफ्ते (21 जुलाई को) छपे मेरे लेख ‘पांच, दस, बीस ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था की ओर’ में आंकड़ों को लेकर किसी को भी कोई खामी नहीं मिली है। सरकार ने बहुत ही महत्वाकांक्षी – दूसरे शब्दों में राजस्व लक्ष्य निर्धारित किए हैं। 2018-19 में हासिल वास्तविक वृद्धि दर और नए साल के लिए रखी गई अनुमानित दर के आंकड़े इस प्रकार हैं-

वृद्धि दर (फीसदी में)
2018-19 2019-20
आयकर 7.16 23.25
सीमा शुल्क -8.60 32.20
केंद्रीय उत्पाद शुल्क 0.06 15.55
जीएसटी 3.38 44.98

इतने ऊंचे राजस्व लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार के प्रस्ताव क्या हैं? खास तौर से तब जब आईएमएफ, एडीबी और आरबीआई ने भारत की वृद्धि दर के बारे में अपने अनुमान घटा कर सात फीसदी और वैश्विक वृद्धि दर को 3.2 फीसदी कर दिए हैं। हर अर्थशास्त्री, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था की समझ है (हाल में डा. कौशिक बसु) ने एक बार फिर गिरावट की चेतावनी दी है जो कि 2018-19 की चारों तिमाहियों (8.0, 7.0, 6.6 और 5.8 फीसद) में बनी रही थी। ऐसे में सरकार कैसे उम्मीद करती है कि राजस्व संग्रह तेजी से बढ़ कर दो अंकों वाली ऊंची वृद्धि दर को छू लेगा, जबकि 2018-19 में यह एक अंक में ही था?

मुझे लगता है कि सरकार मौजूदा करदाताओं को और निचोड़ेगी। सरकार आयकर, जीएसटी और दूसरे कर अधिकारियों को पहले ही जरूरत से ज्यादा अधिकार दे चुकी है। अब और ज्यादा नोटिस जाएंगे, और ज्यादा निजी पेशी के लिए समन भेजे जाएंगे, और ज्यादा गिरफ्तारियां होंगी, और ज्यादा मुकदमे चलेंगे, और ज्यादा जुर्माने के आदेश निकलेंगे, और ज्यादा सख्त आकलन वाले आदेश आएंगे, अपील को सरसरी तौर पर खारिज करने के मामले बढ़ेंगे, संक्षेप में, करदाताओं का और ज्यादा उत्पीड़न होगा।

राज्यों को ठेंगा
तीसरी बात यह कि क्या राज्यों को करों में से उनका हिस्सा मिल रहा है? चौदहवें वित्त आयोग ने केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व (जीटीआर) में से राज्यों को बयालीस फीसद हिस्सा देने को कहा था। इस वित्त आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था। इस तरह केंद्रीय करों का बयालीस फीसदी हिस्सा राज्यों का संवैधानिक अधिकार बन गया है और यह केंद्र सरकार की संवैधानिक बाध्यता भी है। वित्त आयोग का यह फैसला 2015-16 से 2019-20 तक की अवधि के लिए लागू है। लेकिन इस फैसले के बावजूद राज्यों को हकीकत में जो दिया गया, वह काफी कम है। इसे इस सारणी में देखा जा सकता है-
वर्ष राज्यों को दिया गया 
जीटीआर (प्रतिशत में)
2015-16 34.77 
2016-17 35.43
2017-18 35.07
2018-19 (वास्तविक) 33.05
2019-20 (बजट अनुमान) 32.87

बयालीस फीसदी का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने का कारण करों पर लगने वाले उपकर (सेस) और अधिभार (सरचार्ज) को लेकर मनमानी रही है। वित्त आयोग का फैसला उपकर और अधिभार पर लागू नहीं है और इसीलिए राज्यों को इनका हिस्सा नहीं दिया जाता है। यह संकट की एक स्थिति है।

दोहरा संकट तब खड़ा होता है जब बजट या संशोधित अनुमानों की तुलना में केंद्र सरकार के कुल राजस्व संग्रह में गिरावट आती है। 2018-19 में जीटीआर (कुल केंद्रीय राजस्व) का बजट अनुमान 22,71,242 करोड़ रुपए था और संशोधित अनुमान 22,48,175 करोड़ रुपए था, लेकिन वास्तविक संग्रह सिर्फ 20,80,203 करोड़ रुपए ही रहे। जब कर संग्रह ही इतना कम होगा तो राज्य को उनके निर्धारित हिस्से से कम ही मिलेगा।

कृपया वित्तमंत्री के जवाब देखें या रिकार्ड टटोलें। क्या उन्होंने ऐसे किसी भी मुद्दे पर कुछ बोला है जो मैंने इस लेख में उठाए हैं या राज्यसभा में उचित और तर्कसंगत बहस होने पर उठाता?

(इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस दि आइल’ नाम से छपने वाला, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता, पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम। जनसत्ता में यह ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। पेश है जनसत्ता का अनुवाद, साभार पर संशोधित/संपादित।)

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