सुशासन का ‘परसेप्शन’ तोड़ती कांग्रेस 

बिहार में विधानसभा चुनाव संपन्न होने में भले ही अभी छह माह का समय बाकी हो, लेकिन महागठबंधन के दूसरे सबसे बड़े साझीदार कांग्रेस ने राज्य में अपनी चुनावी गतिविधियों को काफ़ी बढ़ा दिया है। कांग्रेस की कोशिश है कि प्रदेश के छात्र, युवा, श्रमिक और हाशिये के समुदायों को साथ लेते हुए नीतीश कुमार सरकार की असफलताओं के खिलाफ़ मौजूदा समाज में एक ‘गंभीर’ विमर्श पैदा किया जाए। यह विमर्श न केवल राज्य की वर्तमान जमीनी हकीकत से रूबरू करवाएगा, बल्कि नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ या गुड गवर्नेंस के उनके खुद के निर्मित ‘परसेप्शन’ को भी जमींदोज कर देगा।

इसके लिए कांग्रेस के प्रभारी सचिव जहाँ अपने-अपने प्रभार क्षेत्र वाले जिलों में पिछले तीन माह से लगातार सक्रिय हैं और छोटी-छोटी बैठकों में नीतीश सरकार की असफलताओं पर आम जनता के बीच लगातार संवाद कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व भी इन  अभियानों में न केवल सक्रिय रूप से भाग ले रहा है बल्कि, प्रदेश के नेताओं को दी गई जिम्मेदारियों पर उनकी सक्रियता और गंभीरता के सन्दर्भ में गहरी निगाह बनाये हुए है।

नीतीश कुमार निर्मित ‘सुशासन’ का परसेप्शन

बीच के दो सालों को छोड़ दें तो 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद, नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सिर्फ ‘सुशासन’ के मुद्दे पर ही राजनीति की जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य में एक बेहतर और कुशल प्रशासन देने की बात कहकर हर बार विधानसभा चुनाव लड़ते हैं। सुशासन का यह ‘परसेप्शन’ उनके द्वारा निर्मित-प्रचारित होता है जिसे राज्य के लगभग पच्चीस फीसद फ्लोटिंग वोटर में वैधता मिलती है। इस निर्मित परसेप्शन ने नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को लालू यादव दौर के कथित जंगलराज की वापसी के डर के सहारे आम जनता में मजबूत करने कि कोशिश की जाती है। भाजपा सियासी मैदान में नम्बर दो की प्लेयर है और राज्य के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के इस परसेप्शन को अपने स्तर से भुनाने कि कोशिश में रहती है।  

नीतीश कुमार निर्मित ‘सुशासन’ के परसेप्शन को चुनौती 

नीतीश कुमार निर्मित सुशासन के इस परसेप्शन को पिछले चार माह से कांग्रेस जमीन पर लगातार चुनौती दे रही है। प्रदेश के नौजवानों के बुनियादी सवालों पर चर्चा और रोजगार की मांग केन्द्रित राज्य स्तरीय यात्राओं के सहारे कांग्रेस नीतीश कुमार के सुशासन के परसेप्शन को लगातार कमजोर करने पर काम कर रही है। कांग्रेस चाहती है कि नीतीश कुमार के इस ‘सुशासन’ के दावे को आंकड़ों के आलोक में तार्किक तरीके से न केवल घेरा जाए बल्कि, इसे सरकार का एक ऐसा घटिया मैनेजमेंट साबित किया जाए जो बिहार के आम लोगों युवाओं, महिलाओं, दलितों, पिछड़ों को ‘ठग’ रहा है।

तथ्यों के साथ सुशासन के परसेप्शन नकारने की रणनीति

बिहार में बेरोजगारी, पलायन जैसे सवालों को लेकर कांग्रेस ने हाल ही में ‘पलायन रोको नौकरी दो’ यात्रा का आयोजन किया। इस यात्रा का मकसद बिहार में पढ़े लिखे युवाओं में बेरोजगारी दर की समस्या को उजागर करते हुए बड़े पैमाने पर राज्य के बाहर हो रहे पलायन, सरकारी नौकरियों के पेपर लीक होने, सरकारी नौकरियों में निजीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति सहित प्रदेश के युवाओं-श्रमिकों के सवाल को तथ्यों आंकड़ों के साथ समाज की सतह पर लाकर नीतीश कुमार के ‘गुड गवर्नेंस’ के परसेप्शन को बेनकाब कर युवा समुदाय में एक बहस पैदा करने की कोशिश हुई। यही नहीं, कांग्रेस राज्य की तबाह हो चुकी शिक्षा व्यवस्था, सरकारी अस्पतालों कि बदहाली, कुपोषण, स्थानीय स्तर पर मजबूत होते भ्रष्टाचार आदि सवालों पर तथ्यों को सामने रखकर लगातार बोल रही है।

यही नहीं, एक माह तक चली इस यात्रा के बाद, बिहार कांग्रेस ने न्याय संवाद यात्रा का आयोजन भी किया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के दलित, आदिवासी और महिला समुदाय के रोजगार, शिक्षा, भागीदारी, सामाजिक न्याय जैसे सवालों पर तथ्यों आंकड़ों के आलोक में संवाद करके इन समुदायों के बीच कांग्रेस के लिए जगह बनाने की कोशिश की। इसके लिए ठोस आंकड़े भी जुटाए गए थे। 

सामाजिक न्याय विरोधी हैं नीतीश

प्रदेश के पिछड़ा-अति पिछड़ा समुदाय में नीतीश कुमार की पैठ कमजोर करने के लिए कुछ दिन पहले ही कांग्रेस पार्टी ने संविधान रक्षा सम्मेलन का आयोजन भी पटना में किया था। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय के सवाल पर राज्य के पिछड़ों-अति पिछड़ों के बीच कांग्रेस पार्टी के समर्पण को दर्शाना था। इससे यह संदेश गया कि पार्टी नीतीश के पिछड़ा प्रेमी परसेप्शन को तोड़ने पर गंभीरता से काम कर रही है।

कांग्रेस समझाएगी सुशासन के पीछे का खेल 

पिछले बीस साल से नीतीश कुमार का बिहार कि राजनीति में एक ही शब्द ‘गवर्नेंस’ पर फोकस रहा है। हालांकि इस शब्द के पीछे आम जनता को क्या मिलना चाहिए और अभी क्या मिल रहा है- इस बिंदु पर कभी कोई बात नहीं की गई। कांग्रेस चाहती है कि बिहार में नीतीश कुमार के इस ‘सुशासन’ या गवर्नेंस परसेप्शन पर एक चर्चा हो और इसे ठोस उदाहरण के साथ इस समुदाय के सामने रखा जाए, ताकि नीतीश कुमार कि असल मंशा को यह समुदाय समझ पाए।  

राजनीति में महत्वपूर्ण है परसेप्शन

राजनीति में ‘परसेप्शन’ एक महत्वपूर्ण धारणा है जो फ्लोटिंग वोटर के मन-मस्तिष्क को काफी मजबूत तरीके से प्रभावित करती है। यह परसेप्शन न केवल मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करता है, बल्कि नेताओं, दलों और उनकी सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक नीतियों की विश्वसनीयता को भी समाज में एक आकार देने का काम करता है।

कई बार परसेप्शन ही वास्तविक बनता है

विशेषज्ञ मानते हैं कि मतदाताओं के लिए वास्तविक तथ्यों से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वे किसी नेता या दल के बारे में क्या सोचते हैं। इस सोच के निर्माण का आधार कुछ हद तक किसी समुदाय में दल या नेता के बारे में छाया परसेप्शन ही होता है। नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि की भले ही विपक्ष आलोचना करे, लेकिन यह परसेप्शन उनके मतदाता आधार को मजबूत करता है इसलिए कांग्रेस परसेप्शन के मामले पर काफी गंभीर है।

सत्ता निर्मित परसेप्शन को चुनौती देना जिम्मेदार राजनीति

मार्च 2025 में बिहार कांग्रेस की ‘पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा’ का उद्देश्य नीतीश सरकार की बड़ी विफलताओं जैसे बेरोजगारी और पलायन पर सरकार के ख़िलाफ़ एक नकारात्मक परसेप्शन बनाना था। यह एक रणनीति है जो यात्राओं द्वारा आम जनता में सत्ता को लेकर मौजूद परसेप्शन को बदलने का प्रयास करती है। बिहार जैसे समाज में मतदाता तथ्यों से ज्यादा भावनाओं और छवि से प्रभावित होते हैं। इसलिए कांग्रेस नीतीश कुमार की सरकार की असलियत राज्य की जनता के सामने रखने के अभियान पर लगी है। यह सत्ता के पक्ष में बने परसेप्शन को कमजोर करेगा।

मीडिया और सोशल मीडिया का प्रयोग 

वर्तमान समय में मीडिया और सोशल मीडिया परसेप्शन बनाने बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी पार्टी के लिए सकारात्मक या नकारात्मक कवरेज नेता की विश्वसनीयता को जनता कि निगाह में प्रभावित करता है। कांग्रेस इस माध्यम से भी नीतीश कुमार को लगातार घेर रही है। इसके लिए विशेषज्ञ टीम काम कर रही है। 

परसेप्शन बदलता है मतदाता समूह का व्यवहार

भारतीय समाज में मतदाता अक्सर नीतियों या प्रदर्शन के बजाय नेताओं की छवि और प्रतीकों से प्रभावित होते हैं। वोटर नेताओं की जाति,  क्षेत्रीयता और नेतृत्व की उसकी छवि से गहरे प्रभावित होते हैं। इसीलिए इस समय राहुल गांधी और कन्हैया कुमार के जरिए कांग्रेस राज्य में खुद को “सामाजिक न्याय” और “युवा सशक्तीकरण” के प्रतीक के बतौर खड़ा कर रही है। इससे राज्य के ओबीसी और युवा मतदाताओं को आकर्षित किया जा सकेगा और कांग्रेस का परसेप्शन इस समुदाय में सकारात्मक होगा।

परसेप्शन प्रबंधन और प्रचार

परसेप्शन प्रबंधन एक कला है क्योंकि यह मतदाताओं की भावनाओं को नियंत्रित करता या फिर बदलता है। प्रचार, रैलियां और ब्रांडिंग परसेप्शन बनाने या उसे मजबूत करने का तरीका हैं। कांग्रेस इस प्रबंधन पर गंभीरता से काम कर रही है। न्याय संवाद श्रृंखला और संविधान सुरक्षा सम्मेलन जैसे आयोजन परसेप्शन में बदलाव करने के लिए ही बनाये गए।

परसेप्शन और बिहार की राजनीति

आगामी विधानसभा चुनाव में परसेप्शन की जंग महत्वपूर्ण होगी। नीतीश कुमार की स्थिरता और शासन करने का अनुभव होने की छवि जहां उनके पक्ष में है, वहीं राज्य के युवा मतदाताओं में बेरोजगारी और पलायन को लेकर फैला असंतोष उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। कांग्रेस, इस असंतोष को लगातार धार दे रही है। 

कुल मिलाकर बिहार में कांग्रेस नीतीश कुमार के किले में सेंधमारी की अपनी रणनीति पर गंभीरता से काम कर रही है। इसके लिए नीतीश निर्मित सुशासन का परसेप्शन तोड़ने पर गंभीरता से काम किया जा रहा है। महागठबंधन किस रणनीति पर आगे बढ़ेगा यह भविष्य का सवाल है लेकिन कांग्रेस अपने लिए राज्य में स्पेस तलाश रही है- इसमें कोई संदेह नहीं है। पार्टी इसमें कितनी सफल हुई यह चुनाव बाद नतीजे तय करेंगे।

(हरे राम मिश्र स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। वह इस समय बिहार के दौरे पर हैं।)

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