Friday, March 29, 2024

जलवायु परिवर्तन : जीवन-शैली बदलना जरूरी

जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्पन्न संकट का मुकाबला करने में व्यक्तिगत प्रयास अधिक उपयोगी हो सकते हैं। इसकी चर्चा आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट में विस्तार से की गई है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन को देखते हुए जीवन-यापन के आदर्श ढंग को प्रस्तुत किया गया है। इसमें लोगों और उनके कुशल-क्षेम के लिहाज से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की रणनीतियों की चर्चा की गई है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हुई इस चर्चा की उपयोगिता विभिन्न देशों में स्थानीय स्तर पर है।

रिपोर्ट में दिखाया गया है कि वैश्विक स्तर पर कार्बन डायअक्साइड व गैर-कार्बन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को उपभोग के तौर-तरीकों में बदलाव लाकर बड़ी मात्रा में घटाया जा सकता है। इस तरीके से उत्सर्जन को 2050 के प्रक्षेपित स्तर से 40 से 70 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। इन उपायों में खाद्य-सामग्री की बर्बादी को रोकने, टिकाऊ व स्वास्थ्यकर आहार आदतों को अपनाने, गरमी पाने के लिए वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग, जलवायु के अनुकूल पहनावा व परिधान, इमारतों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल, विद्युत-चालित छोटे वाहनों के इस्तेमाल के अलावा पैदल चलना, साइकिल चलाना, आवाजाही में सार्वजनिक व साझे वाहनों का इस्तेमाल, लंबे समय तक टिकने वाले मरम्मत योग्य उपकरणों का इस्तेमाल, महानगरों की बेहतरीन संरचना और इमारतों के फर्श का कौशलपूर्ण इस्तेमाल इत्यादि शामिल हैं। 

आईपीसीसी रिपोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उत्सर्जन में उच्च सामाजिक-आर्थिक हैसियत के लोगों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, इसलिए उत्सर्जन को घटने की क्षमता भी उन्हीं वर्गों में सर्वाधिक होगी। इनमें साधारण नागरिक, निवेशक, उपभोक्ता व पेशेवर लोग सभी शामिल हैं। कुछ इलाकों और समुदायों को आबादी के कुशल-क्षेम की जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है। जबकि सबसे कम ऊर्जा की खपत आबादी के उस 25 प्रतिशत हिस्से में होती है, जिनको आवास, परिवहन और पोषण की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता नहीं होती। उत्सर्जन घटाने की प्रक्रिया में असमानता को दूर करने की रणनीति और हैसियत से संबंधित उपभोग को नियंत्रित करना मददगार हो सकते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़े उपभोग जिनका लोगों के कुशल-क्षेम से संबंध नहीं होता, उनको बंद करने और जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन में उपयोगी व्यवहारों को अपनाने की जरूरत है।

इस रिपोर्ट के लेखकों में शामिल जयश्री राय बताती है कि रिपोर्ट में 60 प्रकार के कार्यों का उल्लेख किया गया है जिसे व्यक्तिगत स्तर पर अपनाया जा सकता है। इनमें भी जहां तक  संभव हो सके, पैदल चलना और साइकिल चलाना बहुत ही उपयोगी हो सकता है। इसके साथ ही बिजली चालित वाहनों का प्रयोग भी उपयोगी होगा। इन बदलावों के साथ-साथ कुछ अन्य मामलों में जैसे भूमि उपयोग और शहरी नियोजन नीतियों को भी बदलने की जरूरत होगी जिससे शहरों के अव्यवस्थित फैलाव से बचा जा सके और हरित क्षेत्र का प्रावधान हो सके। सड़कों व गलियों में पैदल चलने वालों के लिए सुविधाजनक स्थान हो, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था दुरुस्त हो और बिजली-चालित वाहनों के लिए अधिसंरचनाएं विकसित की जाएं। ऊर्जा की खपत को घटाते हुए कई सेवाओं को उन्नत भी बनाया जा सकता है। सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार, रोजगार व समानता के अवसर बनाने में भी सहायता मिलेगी।

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने में व्यक्तिगत प्रयास तब तक अधिक सहायक नहीं हो सकते, जब तक निम्न-कार्बन जीवन-पद्धति को अपनाने के लिए सांस्कृतिक व संरचनागत बदलाव नहीं होते। रिपोर्ट का आंकलन है कि लोगों को अगर उपयुक्त अधिसंरचनाएं और तकनीक उपलब्ध हों और उन्हें नीतिगत सहायता व सही निर्णय लेने में मददगार सूचनाएं प्राप्त हों तब न्यूनीकरण में सफलता मिल सकती है। साथ ही ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करने वाले समुदायों के जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। सामाजिक विज्ञान के साहित्य का अध्ययन करके रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि लोग स्वस्थ्य जीवन, दैनिक पोषण के लिए आहार, आरामदेह आवास, परिवहन व्यवस्था, संचार सुविधा और निर्णय-प्रक्रिया में हिस्सेदारी चाहते हैं।

रिपोर्ट बताता है कि उपभोक्ताओं को ऊर्जा रूपांतरण की अधिक कुशल तकनीक उपलब्ध करा कर प्रारंभिक ऊर्जा की मांग को 2050 के प्रक्षेपित स्तर से 45 प्रतिशत घटाया जा सकता है। जीवनशैली में परिवर्तन के लिए लक्ष्य आधारित नीतिगत समर्थन और उपयुक्त अधिसंरचनाओं का विकास करने में निवेश करने की जरूरत होगी। लेकिन केवल इन परिवर्तनों से नेट-जीरो लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता।  इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में रूपांतरण करना होगा। लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में निम्न कार्बन खपत वाले विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। हमारे नगरों में जिनमें विश्व की करीब आधी जनसंख्या निवास करती है, उनमें नगरीय संरचना में परिवर्तन की नीतियों को अपनाना होगा, इससे उत्सर्जन को बडी मात्रा में घटाया जा सकेगा।

जीवन-शैली में परिवर्तन अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इससे ऊर्जा की जरूरत व मांग को कम समय में नियंत्रित किया जा सकता है। इसे लेकर तत्काल हस्तक्षेप करना जरूरी है। परिवहन, उद्योग, इमारत और आहार के क्षेत्र में परिवर्तन की बहुत गुंजाइश है ताकि लोगों को कम उत्सर्जन वाले विकल्पों को अपनाने और अपने कुशल-क्षेम को स्तर को उन्नत करने में मदद मिल सके।

जीवाश्म ईंधनों की मांग में कमी लाने की कोशिश लगातार की जा रही है। रिपोर्ट स्पष्ट है कि वैश्विक तापमान में बढोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर नियंत्रित करने के लिए कोयले के इस्तेमाल को 2030 तक तीन-चौथाई घटाना होगा। हालांकि पेट्रोलियम (तेल व गैस) का इस्तेमाल 2050 तक इसीतरह जारी रहेगा, पर उसे घटाने का प्रयास भी करना होगा। 2050 तक वैश्विक स्तर पर कोयला का इस्तेमाल 90 प्रतिशत घटाना होगा और गैस व तेल के इस्तेमाल को 25 से 50 प्रतिशत का बीच घटाना होगा,जिससे तापमान में बढोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सकता है। गैस और तेल के इस्तेमाल में सन् 2100 तक अधिक कटौती की जरूरत होगी।

कुल मिलाकर आईपीसीसी की यह रिपोर्ट नीति-निर्माताओं, निवेशकों और सभी निर्णयकर्ताओं को उन कार्रवाइयों के बारे में फैसला करने का आधार प्रदान करती है जिन्हें किया जाना जरूरी है। 

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ पर्यावरण मामलों के जानकार भी हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

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