इकबाल बचाने के लिए महिलाओं और युवाओं पर नीतीश का नया पासा

राजनीति में पासा कौन नहीं फेंकता? जनता को भ्रमित करना और सामने वालों को बेईमान और खुद को बड़ा ईमानदार कहना राजनीति का चरित्र है। इसे ही तो दोहरा चरित्र कहते हैं। नीतीश कुमार शुरुआती दौर में इस चरित्र के शिकार नहीं थे। लेकिन बीजेपी की सोहबत ने उन्हें यह भी सिखा दिया है। अब वे सब कुछ वही करते दिख रहे हैं जो बीजेपी करती रही है। लालू यादव के 15 साल को बीजेपी के साथ वे भी जंगलराज कहने से नहीं चूकते। लेकिन अपने 20 साल के राज का खुलासा नहीं करते। और अब जनता को फिर अपने फेटे में समेटने की कोशिश कर रहे हैं। 

नीतीश का यह पासा महिला और युवाओं को टारगेट करने के लिए है। नीतीश जानते हैं कि अब उनकी राजनीति की अंतिम बेला चल रही है। चुनाव जीत भी जाते हैं तो वे सीएम बनेंगे या नहीं अब इस पर कोई आधिकारिक बातें नहीं की जा सकती हैं। और चुनाव हार जाते हैं तो राजनीति से सदा के लिए दूर हो सकते हैं। बीजेपी इस बार किसी भी सूरत में उन्हें सत्ता नहीं सौंप सकती। लेकिन नीतीश यह भी चाहते हैं कि जब तक वे हैं तब तक उनकी आँखों के सामने जदयू बची रहे। लेकिन राजनीति में इस सोच के लिए जगह कहां बची है? जदयू का कौन ऐसा नेता है जो जदयू को बचाने के उपक्रम में लगा हुआ है? कुछ जदयू के बारे में सोचते भी होंगे लेकिन हालिया सच तो यही है कि जदयू के अधिकतर सांसद और विधायक या तो बीजेपी की गोद में जा बैठे हैं या फिर जाने को तैयार हैं।

जदयू क्या है? बिहार में समाजवादियों का एक धड़ा भर ही। लेकिन अब शायद ही इन समाजवादियों में समाजवाद का कोई अंश जीवित है या फिर समाजवाद ज़िंदा रहे इसके लिए कुछ करते रहने का जज्बा हो। ऐसे में जदयू तब तक ही है जब तक सत्ता उसके पास है। अभी तक जदयू बची भी इसीलिए रही क्योंकि नीतीश कुमार के चेहरे पर जदयू की जीत होती रही और जदयू जैसी पार्टी जीवित रही। पिछले 20 सालों में जदयू को कभी भी सत्ता से विमुख नहीं होना पड़ा।

कल्पना कीजिये कि जब तक बसपा का बोलबाला था तब तक बसपा और मायावती की जयकारे लगते थे। सत्ता गई तो अब बसपा कहाँ है और मायावती क्या कर रही हैं इसकी खबर कौन ले रहा है? कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी को ही देख लीजिये। 2014 कांग्रेस सत्ता से विलग हो गई। इसके बाद कांग्रेस का क्या हुआ? बड़ी-बड़ी संख्या में कांग्रेसी बीजेपी के साथ चले गए। कांग्रेस को छोड़ने में उन नेताओं ने भी कोई देरी नहीं की जिनके ऊपर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला था और बड़ी उम्मीद से उन्हें पाला भी था। लेकिन राजनीति में यही सब होता है, जो कांग्रेस उन्हें सत्ता का सुख देती रही सत्ता से हटते से वही कांग्रेस उन नेताओं की आँखों में चुभने लगी।

जदयू के हाथ से अगर इस बार सत्ता गई तो जदयू बचेगी इसकी सम्भावना कम ही है। इसके कुछ लोग राजद के साथ जा सकते हैं तो कुछ लोग अन्य पार्टियों में जा सकते हैं। बाकी और अधिकतर लोग बीजेपी के साथ चले जायेंगे। यह सब नीतीश कुमार भी जानते हैं। यही वजह है कि वे सब कुछ जानते हुए भी अपना काम कर रहे हैं। अपनी इज्जत बचाने के लिए चुनावी पासा फेंक रहे हैं। यह पासा एक दांव है। ठीक वैसा ही दांव जो निशाने पर लग गया तो जीत की सम्भावना बढ़ जाती है और पासा नहीं चला तो जो होना है होकर ही रहेगा। कौन उसे रोक सकेगा?

चुनाव से पहले कुछ ऐसा ही पासा नीतीश कुमार ने फेंका है। महिलाओं और युवाओं पर पासा। महिलाओं पर पहला पासा नीतीश कुमार ने शराबबंदी करके फेंका था। फिर महिलाओं को नौकरी में आरक्षण देकर फेंका था और इन दोनों पासा का बड़ा लाभ जदयू को मिला था। कहते हैं कि जब नीतीश कुमार अपने किचेन कैबिनेट वाले दोस्तों यानी भूजा पार्टी के साथ ठिठोली करते थे तो अक्सर इस पासा की भी चर्चा करते थे। लोग खूब ठहाका लगाते थे। कई लोग उस भूजा पार्टी में कह जाते थे कि गुरु आपने तो कमाल कर दिया। तब नीतीश कुमार कहते थे कि आगे भी कमाल देखियेगा। मेरी झोली में कई तरह के पासा हैं। जब तक हम हैं पासा चलता रहेगा और आप लोग केवल अपना काम करिये। एक रहिये और जनता के बीच जागते रहिये। 

जदयू के बीच कई नेताओं में भ्रम की स्थिति को देखते हुए नीतीश कुमार ने फिर से पासा चला है। जब से लोजपा वाले चिराग पासवान ने अपना पाला बदलते हुए नीतीश के अपराध तंत्र पर हमला किया है और बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है तभी से नीतीश कुमार परेशान हो गए। कहते हैं कि भूजा पार्टी की बैठक हुई। कई तरह के सवाल रखे गए, मंथन हुआ और फिर नीतीश कुमार ने एक अलग पासा फेंका। यह भी कह सकते हैं कि पहले के पासा का विस्तार किया। जदयू के लोग गदगद हुए, कुछ उम्मीद जगी। लगा कुछ लाभ होगा। उधर नीतीश के पासा से बीजेपी के भीतर भी मंथन जारी है। बीजेपी वाले हताश हैं। बीजेपी वाले जानते हैं कि नीतीश के सभी पासे जदयू के लिए हैं।

उस पासा का कमतर लाभ ही बीजेपी के पक्ष में जाता है। यही वजह है कि बीजेपी एक व्यापक रणनीति के तहत चुनाव आयोग के सहारे वोटरों पर अंकुश लगाने का दांव खेली। बीजेपी को पता है कि बिहार के वे लोग जो बीजेपी को वोट नहीं डालते और जो केवल जदयू और राजद को वोट डालते हैं उन्हें थोड़ा कम किया जाए। अगर इस खेल में बीजेपी को दस सीटों का भी ज्यादा लाभ होता है तो जदयू को दबाया जा सकता है। नीतीश कुमार इस खेल को समझ रहे हैं। बीजेपी और चुनाव आयोग पर वे भड़क भी सकते थे लेकिन अब भड़क भी तो नहीं सकते। इसलिए अब वे अपना खेल कर रहे हैं। 

अब पासा की बात भी कर ली जाए। बिहार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ने राज्य की महिलाओं को बड़ी सौगात दी है। नीतीश सरकार ने सरकारी नौकरियों में बिहार की मूल निवासी महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा  की है। इसे कैबिनेट में भी पास किया गया है। नीतीश सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण को और लक्षित करते हुए डोमेसाइल नीति लागू की है। अब केवल बिहार की मूल निवासी महिलाओं को ही सभी सरकारी सेवाओं, संवर्गों और सभी स्तरों के पदों पर सीधी नियुक्ति में 35% आरक्षण का लाभ मिलेगा। बिहार के बाहर की महिलाएं इस आरक्षण के दायरे से बाहर होंगी और उन्हें सामान्य श्रेणी में आवेदन करना होगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस फैसले को महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा, “यह निर्णय बिहार की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए लिया गया है।” विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति से स्थानीय महिलाओं को सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर मिलेंगे, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

चुनावी साल में इस फैसले को नीतीश सरकार का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम महिलाओं के बीच एनडीए की लोकप्रियता बढ़ा सकता है, क्योंकि बिहार में महिलाएं नीतीश कुमार का एक मजबूत वोट बैंक रही हैं। इसके अलावा, सरकार ने बिहार युवा आयोग के गठन को भी मंजूरी दी है, जो युवाओं के लिए रोजगार और प्रशिक्षण के अवसरों को बढ़ाएगा।

इस फैसले के बाद नीतीश सरकार ने विपक्ष, खासकर राजद नेता तेजस्वी यादव के डोमिसाइल नीति के वादे को भी पछाड़ दिया है। सरकार का कहना है कि यह कदम बिहार के हित में है और स्थानीय महिलाओं को प्राथमिकता देना इसका मुख्य उद्देश्य है।

इस नीति से बिहार की लाखों महिलाओं को सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर मिलने की उम्मीद है। हालांकि, बिहार के बाहर की महिलाओं के लिए यह नीति एक चुनौती बन सकती है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि आरक्षण का लाभ केवल प्रमाणित बिहार मूल निवासी महिलाओं को ही मिलेगा।

नीतीश का यह खेल कितना लाभप्रद होगा इसे चुनाव में देखने को मिलेगा। कई लोग कह रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार महिलाओं के बारे में बहुत कुछ सोचते हैं तो पहले यह सब क्यों नहीं किया गया? चुनाव के वक्त ही ऐसा क्यों ? वैसे भी बिहार में नौकरी नहीं है? नौकरी रहती तो सूबे की बड़ी आबादी दूसरे राज्यों में नौकरी की खोज नहीं करती। मजदूर नहीं बनते। बेइज्जत नहीं होते। बिहार से मजदूरों को दूसरे राज्यों तक ढोने के लिए रेल चलाई जा रही है। जब दूसरे राज्यों के लोग बिहार में मजदूरी करने नहीं आते तो बिहार की सरकार ऐसा क्यों कर रही है? ऐसे बहुत से सवाल हैं। 

बिहार में पांच सेर अनाज का लाभ बीजेपी उठा रही है। दो हजार की नकदी का लाभ बीजेपी ले रही है और फिर धार्मिक खेल से लेकर राष्ट्रवाद का लाभ बीजेपी को ही मिलता है ऐसे में नीतीश कुमार का नया पासा क्या गुल खिलायेगा यह देखना होगा। नीतीश के इकबाल की यह परीक्षा है।

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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