Friday, April 19, 2024

हाथरस गैंगरेप: CBI ने वेबसाइट से हटायी एफआईआर,पीड़ित परिवार आज हाईकोर्ट में रखेगा अपना पक्ष

नई दिल्ली। आखिर जिस बात की आशंका थी अब वही हो रहा है। हाथरस केस को तो कहने के लिए सीबीआई के हवाले कर दिया गया है। पहली नजर में किसी के लिए भी यह एक बड़ा कदम हो सकता है। लेकिन यह पुरानी वाली सीबीआई नहीं है। और उसका संचालन भी केंद्र की एक ऐसी सरकार कर रही है जिसकी पार्टी की सरकार यूपी में है।

सीबीआई ने राज्य की एसआईटी से हाथ में जांच लेने के बाद जो सबसे पहला काम किया है वह अपनी वेबसाइट से मामले से संबंधित एफआईआर को हटाना है। जबकि  चार्ज लेने के तुरंत बाद सीबीआई की गाजियाबाद इकाई ने हाथरस केस की एफआईआर और उसकी जांच को हाथ में लेने वाले प्रेस बयान को वेबसाइट पर पोस्ट किया था। लेकिन कुछ देर बाद सीबीआई ने दोनों को वहां से हटा दिया।

सीबीआई ने डीओपीटी की ओर से जारी नोटिफिकेशन के बाद मामले को जांच के लिए अपने हाथ में लिया। उसके साथ ही उसने रविवार को सेक्शन 307 (हत्या का प्रयास), 376 डी (गैंग रेप) और 302 (हत्या) तथा एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था।

सीबीआई गाजियाबाद की भ्रष्टाचार विरोधी इकाई ने केस में ‘बलात्कार, हत्या के प्रयास, गैंगरेप और हत्या (दूसरे)’ का जिक्र किया था। हालांकि एफआईआर और प्रेस रिलीज एजेंसी की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी। लेकिन एफआईआर को बाद में हटा दिया गया। अब उस प्रेस रिलीज का लिंक एक बैंक फ्रॉड से जुड़े केस से जुड़ता है।

फिर दोपहर के बाद एक नई रिलीज पोस्ट की गयी जिसमें यह कहा गया था कि एजेंसी ने एक “आरोपी के खिलाफ केस को रजिस्टर किया है और उसकी जांच अपने हाथ में ली है। जिसे एक शिकायत पर पहले सीसी नंबर- 136/2020 के तहत हाथरस जिले के चंदपा पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 14.09.2020 को आरोपी ने बाजरे के खेत में उसकी बहन की गला दबाकर हत्या करने की कोशिश की। सीबीआई द्वारा यह केस उत्तर प्रदेश सरकार और उसके बाद भारत सरकार के निवेदन पर दर्ज किया है”।

मूल रूप से यह केस 14 सितंबर को हाथरस के चंदपा पुलिस स्टेशन में एक दलित की हत्या के प्रयास के तौर पर दर्ज किया गया था। न ही शिकायतकर्ता ने रेप या गैंगरेप का जिक्र किया है और न ही पहली एफआईआर में यह बात है।

29 सितंबर को पीड़िता की सफदरजंग अस्पताल में मौत हो जाने के बाद मामला राष्ट्रीय बहस के केंद्र में आ गया और सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर राजनीतिक दलों तक के नेताओं ने इस पर आंदोलन शुरू कर दिया।

इस बीच, आज पीड़िता के परिवार के लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के सामने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पेश होंगे। बताया जा रहा है कि कोर्ट पीड़िता के परिजनों का पक्ष रिकॉर्ड करेगा। कोर्ट ने एक अक्तूबर को पीड़िता के माता-पिता से अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया था।

सुनवाई फिजिकल तौर पर होगी। कोर्ट ने हाथरस प्रशासन को परिवार को वहां ले जाने की व्यवस्था करने का आदेश किया है। केस आज 2.15 बजे जस्टिस पंकज मीथल और जस्टिस रंजन राय की बेंच में सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है।

इस सिलसिले में हाईकोर्ट ने जिला जज को भी परिवार को बेंच के सामने उपस्थित होने की व्यवस्था को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी, होम; डीजीपी; एडिशनल डायरेक्टर जनरल, लॉ एंड आर्डर के अलावा हाथरस के जिलाधिकारी और एसपी को जांच की स्टेटस रिपोर्ट लेकर पेश होने का निर्देश दिया है।   

(ज्यादातर कंटेंट ‘द हिंदू’ से लिया गया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।

Related Articles

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं

महाराष्ट्र की राजनीति में हालिया उथल-पुथल ने सामाजिक और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है। भाजपा ने अपने रणनीतिक आक्रामकता से सहयोगी दलों को सीमित किया और 2014 से महाराष्ट्र में प्रभुत्व स्थापित किया। लोकसभा व राज्य चुनावों में सफलता के बावजूद, रणनीतिक चातुर्य के चलते राज्य में राजनीतिक विभाजन बढ़ा है, जिससे पार्टियों की आंतरिक उलझनें और सामाजिक अस्थिरता अधिक गहरी हो गई है।