Tuesday, March 19, 2024

सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार, विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस गर्भपात पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया, फिर चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 22 से 24 हफ्ते तक गर्भपात का हक सभी को फैसले में कहा गया है  कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स से अविवाहित महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर करना असंवैधानिक है।

कोर्ट ने कहा कि सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि ये दकियानूसी धारणा है कि सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही सेक्शुअली एक्टिव रहती हैं। अबॉर्शन के अधिकार में महिला के विवाहित या अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता।पीठ ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में मैरिटल रेप को शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर जबरन सेक्स की वजह से पत्नी गर्भवती होती है तो उसे सेफ और लीगल अबॉर्शन का हक है।

यह मुद्दा इस बात से संबंधित है कि क्या अविवाहित महिला, जिसकी गर्भ सहमति से संबंध से उत्पन्न होती है, को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के नियम 3बी से बाहर रखा जाना वैध है। नियम 3बी में उन महिलाओं की श्रेणियों का उल्लेख है जिनकी 20-24 सप्ताह की गर्भ समाप्त की जा सकती है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि नियम 3बी(सी) को केवल विवाहित महिलाओं के लिए समझा जाता है, तो यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखेगा कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं। यह संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कृत्रिम अंतर को कायम नहीं रखा जा सकता है। अधिकारों के स्वतंत्र प्रयोग करने के लिए महिलाओं को स्वायत्तता होनी चाहिए।

पीठ ने कहा, कि प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार अविवाहित महिलाओं को विवाहित महिलाओं के समान अधिकार देते हैं। एमटीपी अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) का उद्देश्य महिला को 20-24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देना है। इसलिए, केवल विवाहित महिलाओं को अनुमति और अविवाहित महिला को नहीं, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। पीठ ने 23 अगस्त को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सबसे पहले 25 वर्षीय अविवाहित महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भ को समाप्त करने की मांग करते हुए कहा कि उसकी गर्भावस्था एक सहमति से उत्पन्न हुई थी। हालांकि, वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती क्योंकि वह एक अविवाहित महिला है और उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था। हालांकि, चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।

उच्च न्यायालय ने पाया कि अविवाहित महिलाएं, जिनकी गर्भावस्था एक सहमति से उत्पन्न हुई थी, गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति नियम, 2003 के तहत किसी भी खंड में शामिल नहीं हैं।

इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 21 जुलाई, 2022 को एक अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें एम्स दिल्ली द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड के अधीन उसे गर्भपात करने की अनुमति दी गई थी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि भ्रूण को महिला के जीवन के लिए जोखिम के बिना गर्भपात किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का विचार था कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनावश्यक रूप से प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण लिया था, क्योंकि नियम 3 (बी) महिला की वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन की बात करता है, जिसके बाद विधवापन या तलाक की अभिव्यक्ति होती है। यह माना गया कि अभिव्यक्ति वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन को उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिए।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में किए गए संशोधनों को ध्यान में रखा, जिसने अधिनियम की धारा 3 (2) के स्पष्टीकरण 1 में “पति” शब्द को “पार्टनर” के साथ प्रतिस्थापित किया और देखा कि अविवाहित महिलाओं को क़ानून के दायरे से बाहर करना कानून के उद्देश्य के खिलाफ है।

आदेश में कहा गया है कि अविवाहित महिलाओं को गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के अधिकार से वंचित करने का कोई आधार नहीं है, जब महिलाओं की अन्य श्रेणियों के लिए समान विकल्प उपलब्ध है।” उपरोक्त परिसर में, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि याचिकाकर्ता का मामला प्रथम दृष्टया अधिनियम के दायरे में आता है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट और रुल्स के तहत बलात्कार से आशयों में “वैवाहिक बलात्कार” को भी शामिल करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जिन पत्नियों ने पतियों द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने के बाद गर्भधारण किया है, वे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के रूल 3बी (ए) में वर्णित “यौन उत्पीड़न या बलात्कार या अनाचार पीड़िता” के दायरे में आएंगी।

विवाहित महिला भी सेक्शुअल असॉल्ट और रेप सर्वाइवर्स के दायरे में आती है। रेप की सामान्य परिभाषा यह है कि किसी महिला के साथ उसकी सहमति के बिना या इच्छा के खिलाफ संबंध बनाया जाए। भले ही ऐसा मामला वैवाहिक बंधन के दौरान हुआ हो। एक महिला पति के द्वारा बनाए गए बिना सहमति के यौन संबंधों के चलते गर्भवती हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि नियम 3बी(ए) में उन महिलाओं की श्रेणियों का उल्लेख है, जो 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग कर सकती हैं। पीठ ने कहा कि अविवाहित महिलाएं भी सहमति से बने संबंध में उत्पन्न 20-24 सप्ताह तक की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने की हकदार हैं। (X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार, CA 5802/2022)।

गर्भावस्था समाप्त करने के लिए विवाहित महिलाओं के अधिकारों को विस्तार से बताते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने निर्णय के एक हिस्से को पढ़ा, “विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर कैटेगरी का हिस्सा बन सकती हैं। बलात्कार शब्द का सामान्य अर्थ सहमति के बिना या इच्छा के खिलाफ किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है। भले ही इस प्रकार बना जबरन संबंध विवाह के संदर्भ में हो या न हो, एक महिला पति द्वारा किए गए बिना सहमति किए गए संभोग के परिणामस्वरूप गर्भवती हो सकती है।”

रेप की परिभाषा में मेरिटल रेप को शामिल किए जाने की एकमात्र वजह एमटीपी एक्ट यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी है। इसके कोई और मायने निकाले जाने पर एक महिला बच्चे को जन्म देने और ऐसे पार्टनर के साथ उसे पालने को मजबूर होगी, जिसने महिला को मानसिक और शारीरिक यातना दी है। हम यहां यह साफ करना चाहते हैं कि एमटीपी के तहत अबॉर्शन कराने के लिए महिला को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि उसका रेप हुआ है या सेक्शुअल असॉल्ट हुआ है।

पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि केवल एमटीपी अधिनियम के उद्देश्य के लिए बलात्कार के आशय में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया जा रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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