उच्चतम न्यायालय 13 सितंबर को भारत में इजरायली स्पाईवेयर पेगासस की मदद से कथित जासूसी की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। अब देखना है कि उच्चतम न्यायालय में इस बार सरकार सही बात बताती है या फिर नया बहाना बताकर टालमटोल करती है।
दरअसल उच्चतम न्यायालय ने जब सरकार से इस बारे में हलफनामा देने को कहा कि उसने जासूसी के लिए पेगासस का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया है या नहीं, तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि मान लीजिए, मैं एक आतंकी संगठन हूं, तो जैसे ही सरकार यह घोषणा करेगी कि वह पेगासस का इस्तेमाल नहीं करती, वैसे ही मैं स्लीपर सेल्स से संवाद के लिए ऐसे तरीके काम में लाना शुरू कर दूंगा जो पेगासस के अलावा किसी और जासूसी उपकरण की पकड़ में आ ही नहीं सकते!
क्या आपको याद है कि ऐसी ही दलील राफेल लड़ाकू विमानों के बारे में सरकार ने दिया था! जब विपक्ष ने संसद में सरकार से राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत बताने को कहा था तो सरकार की तरफ से दलील दी गई थी कि जैसे ही इन विमानों की कीमत बताई जाएगी, चीन-पाकिस्तान आदि शत्रु देशों को इनका सारा कॉन्फिगरेशन पता चल जाएगा और वे इनसे मुकाबले के लिए तैयारी करना शुरू कर देंगे। यह मोदी सरकार की स्टाइल है कि जो सूचना मांगो तो सरकार इसी तरह की बेचारगी भरी भयातुरता का प्रदर्शन करती है और इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाती है।
लेकिन पेगासस मामले में उच्चतम न्यायालय राष्ट्रीय सुरक्षा के जुमले में नहीं फंसा। उच्चतम न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई भी सूचना उसे चाहिए ही नहीं। सरकार यह सुनिश्चित करे कि ऐसी कोई सूचना बाहर न जाने पाए। लेकिन कुछ नागरिकों की यह सीधी दरख्वास्त है कि उनके फोन नंबरों के जरिये उनकी जासूसी कराई गई है। यह काम किसके आदेश पर हुआ या सरकार की जानकारी के बगैर ही किसी ने इसको कर डाला, सरकार अदालत को इसके ब्यौरे दे। आगे क्या करना है, यह उसके जवाब देखने के बाद ही तय होगा। इस आशय का ‘नोटिस बिफोर एडमिशन’ अदालत की ओर से जारी कर दिया गया है। ऐसा ही याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि हमें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई भी सूचना नहीं चाहिए, बस ये बताएं हमारा फोन टेप हुआ था या नहीं और हुआ था तो क्यों और किसके आदेश पर?
इससे पहले चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 7 सितंबर को याचिकाओं पर आगे की प्रतिक्रिया दाखिल करने के लिए केंद्र को और समय दिया था। सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि कुछ कठिनाइयों के कारण दूसरा हलफनामा दाखिल करने पर निर्णय लेने के लिए वह संबंधित अधिकारियों से नहीं मिल सके। केंद्र ने पहले उच्चतम न्यायालय में एक सीमित हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि पेगासस जासूसी के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाएं अनुमानों और अटकलों या अन्य निराधार मीडिया रिपोर्टों या अधूरी या अपुष्ट सामग्री पर आधारित हैं।
केंद्र ने अपने सीमित हलफनामे में कहा कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा फैलाई गई किसी भी गलत नैरेटिव को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के लिए सरकार विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी। उच्चतम न्यायालय ने 17 अगस्त को याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी कर स्पष्ट किया था कि वह नहीं चाहती कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने वाली किसी भी बात का खुलासा करे।
गौरतलब है कि भारत में पेगासस स्पाईवेयर की मदद से पत्रकारों, विपक्षी राजनेताओं, मंत्रियों सहित अन्य पर कथित जासूसी की रिपोर्ट के बाद उच्चतम न्यायालय में करीब एक दर्जन याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर एक याचिका भी शामिल है, जिसमें पेगासस जासूसी के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है।
आने वाला वक्त ही बताएगा कि क्या उच्चतम न्यायालय पेगासस विवाद पर भी राफेल के रास्ते पर चलेगा? लेकिन उच्चतम न्यायालय के रुख से तो ऐसा नहीं लगता कि इस बार राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क भारी पड़ेगा।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)