सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में चुनाव आयोग द्वारा बिहार में अचानक शुरू किए गए ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ अभियान से जुड़ी संवैधानिक और कानूनी खामियों और अनियमितताओं को गंभीरता से संज्ञान में लिया है। साथ ही बिहार के आम मतदाताओं को हो रही व्यावहारिक परेशानियों और अव्यवस्थाओं को भी स्वीकार किया है। इस मायने में, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उन आशंकाओं और आपत्तियों की पुष्टि करता है जो मतदाताओं द्वारा दायर याचिकाओं में उजागर हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को “न्याय के हित में” आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज़ों की सूची में शामिल करने की सलाह दी है, जो जमीनी स्तर पर हर मतदाता की साझा मांग है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में बिहार के मतदाताओं की दो सबसे अहम चिंताओं को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ अभियान के शुरुआती पंद्रह दिनों के अनुभव से सामने आई हैं। ज़्यादातर मतदाता यह शिकायत कर रहे हैं कि जो फॉर्म उन्होंने जमा किए हैं, उनकी कोई पावती नहीं मिली है।
चुनाव आयोग ज़मीन पर अभियान की तेज़ी का दावा कर रहा है, लेकिन ज़्यादातर लोगों के पास यह भी सबूत नहीं है कि उन्होंने फॉर्म जमा किया है। प्रवासी मजदूर, विशेषकर विदेश में काम करने वाले और किसी आपात स्थिति में राज्य से बाहर गए लोगों के लिए गणना फॉर्म जमा करना बेहद मुश्किल हो रहा है, जिससे उनके मताधिकार छिनने और नागरिकता पर खतरा मंडरा रहा है।
एक और बड़ी चिंता यह है कि निवास (डोमिसाइल) और जाति प्रमाण पत्र जैसी चीज़ें जुटाना मतदाताओं के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है, जबकि इन्हें दस्तावेज़ के तौर पर मांगा जा रहा है। इसके अलावा, अगर कोई मतदाता दस्तावेज़ नहीं दे पाता, तो ERO यानी इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर को यह फैसला करने की खुली छूट दी गई है कि वह स्थानीय जांच के आधार पर तय करे कि नाम रखा जाए या नहीं।
हर विधानसभा क्षेत्र में हज़ारों लोग ऐसे हो सकते हैं जो इन 11 दस्तावेज़ों में से एक भी नहीं दे पाएंगे। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में मामलों का फ़ैसला ERO के विवेक पर छोड़ना-बिना पारदर्शिता के-भेदभावपूर्ण, मनमाने और ग़लत नाम काटने और जोड़ने का रास्ता खोल देगा।
बिहार की जनता अब यह समझ रही है कि मताधिकार पर एक बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है। वह कठिन संघर्ष से हासिल अपने इस संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए संघर्ष के लिए तैयार हो रही है। बिहार में 9 जुलाई के चक्का जाम में व्यापक भागीदारी और समर्थन ने हमें वोटबंदी अभियान को लेकर लोगों की बेचैनी और गुस्से की झलक दिखाई है। साथ ही ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार’ की संवैधानिक गारंटी की पूरी ताकत से रक्षा करने के उनके संकल्प की भी।
(प्रेस विज्ञप्ति)