शायर
संस्कृति-समाज
फ़िराक़ जैसा कोई दूसरा नहीं-मलिकज़ादा मंजूर अहमद
(मलिकज़ादा मंजूर अहमद, उर्दू हलक़े में किसी तआरुफ़ के मोहताज नहीं। 17 अक्टूबर, 1929 को अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश) में जन्मे मलिकज़ादा मंजूर एक उम्दा शायर, मुशायरों के जाने-माने नाज़िम (प्रबंधक) और लखनऊ से शाए होने वाले माहनामा 'इम्कान'...
संस्कृति-समाज
साहिर का जन्मशती वर्षः ‘आओ कि कोई ख्वाब बुनें कल के वास्ते’
साल 2021, शायर-नग्मा निगार साहिर लुधियानवी का जन्मशती साल है। इस दुनिया से रुखसत हुए, उन्हें एक लंबा अरसा हो गया, मगर आज भी उनकी शायरी सिर चढ़कर बोलती है। उर्दू अदब में उनका कोई सानी नहीं। 8 मार्च,...
संस्कृति-समाज
फ़ैज़ की जयंतीः ‘अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं’
उर्दू अदब में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का मुकाम एक अजीमतर शायर के तौर पर है। वे न सिर्फ उर्दू भाषियों के पसंदीदा शायर हैं, बल्कि हिंदी और पंजाबी भाषी लोग भी उन्हें उतनी ही शिद्दत से मोहब्बत करते हैं।...
संस्कृति-समाज
हंसाते हुए संजीदा कर देने वाले शायर अकबर इलाहाबादी
दबंग फिल्म में सलमान खान का dialogue आपने सुना होगा ‘मैं दिल में आता हूं समझ में नहीं’। गुलाम अली की वो गज़ल भी कभी न कभी आपके कानों से होकर गुज़री होगी, ‘हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी...
संस्कृति-समाज
पुण्यतिथि पर विशेषः साहिर का ‘वह सुबह कभी तो आएगी…’ बन गया था मेहनतकशों का तराना
साहिर लुधियानवी एक तरक्कीपसंद शायर थे। अपनी ग़ज़लों, नज़मों से पूरे मुल्क में उन्हें खूब शोहरत मिली। अवाम का ढेर सारा प्यार मिला। कम समय में इतना सब मिल जाने के बाद भी साहिर के लिए रोजी-रोटी का सवाल...
संस्कृति-समाज
जन्मदिन पर विशेषः मजाज़ की शायरी में रबाब भी है और इंक़लाब भी
एक कैफ़ियत होती है प्यार। आगे बढ़कर मुहब्बत बनती है। ला-हद होकर इश्क़ हो जाती है। फिर जुनून और बेहद हो जाए तो दीवानगी कहलाती है। इसी दीवानगी को शायरी का लिबास पहना कर तरन्नुम से (गाकर) पढ़ा जाए...
लेखक
राहत की स्मृति: ‘वो गर्दन नापता है नाप ले, मगर जालिम से डर जाने का नहीं’
अब ना मैं हूं ना बाक़ी हैं ज़माने मेरेफिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरेकुछ ऐसे ही हालात हैं, शायर राहत इंदौरी के इस जहान-ए-फानी से जाने के बाद। उनको चाहने वाला हर शख्स, इस महबूब शायर को...
बीच बहस
रंज यही है बुद्धिजीवियों को भी कि राहत के जाने का इतना ग़म क्यों है!
अपनी विद्वता के ‘आइवरी टावर्स’ में बैठे कवि-बुद्धिजीवी जो भी समझें, पर सच यही है, इत्ते बड़े मुल्क में, एक सीधी सी बात को ऐसे खरेपन से कह देना, राहत इंदौरी के ही हिस्से में आया था। हिर्स करो,...
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लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान
आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।
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