Thursday, April 18, 2024

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व्यक्तिवाद-परिवारवाद और समाजवाद अपनी जगह, चुनाव में चाहिए संविधानवाद

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चुनाव का बहुत महत्व होता है। हम सब हर पल किसी-न-किसी तरह के चुनाव में लगे रहते हैं। सब से ज्यादा चुनावी पल मोबाइल के साथ जुड़ा दिखता है। ‎‎चुनाव विकल्पों में से किसी...

आइए, दुनिया को बदलें: मार्क्स के अंतिम दैहिक पड़ाव स्थल से..

लंदन। पूंजीवाद ने मार्क्सवाद को दफनाने का ऐलान काफी पहले कर दिया था। मार्क्स का दैहिक अंत हुए करीब एक सौ चालीस वर्ष हो चुके हैं। लेकिन कार्ल मार्क्स की दैहिक विश्राम स्थली पर आज भी यात्री मिल जाएंगे।...

जयंती पर विशेष: पूंजीवाद के जयघोष के दौर में कार्ल मार्क्स की याद         

पूंजीवाद की जय और साम्यवाद की पराजय के उद्घोष के इस दौर में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार कार्ल मार्क्स {1818 में जिनका जर्मनी में आज के ही दिन जन्म हुआ} की यादें एक बडी...

कितनी अहम है चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस?

कल से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस शुरू हो गई है । दुनिया के कम्युनिस्ट आंदोलन के जानकारों के लिए ‘20वीं कांग्रेस’ पद ही खुद में एक रोमांचकारी पद है । सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएसयू)...

सीपीएम नेत्री शैलजा का मैगसेसे को नकारने का फैसला कितना सही?

मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के विचारों में समाजवादी समाज और समाजवादी राज्य के अंगों की जो कटी-छँटी छवियाँ थीं, उन्हें रूस में नवंबर क्रांति और सोवियत संघ के विकास के साथ पहली बार एक समग्र, एकजुट छवि की पहचान...

समाजवादी नेता मधु लिमये का जन्मशताब्दी वर्ष धूम-धाम से मनाने की तैयारी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गोवा मुक्ति आंदोलन के सिपाही, पुणे से बांका (बिहार) जाकर चुनाव जीतने की ताकत रखने वाले, 128 किताबों के रचनाकार प्रख्यात संसद विद मधु लिमये जी का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। इसे मनाने की पहल...

  देश में शुरू हो रहा है ‘भारत संवाद अभियान’

हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए ... इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। (उद्देशिका, भारत का संविधान) संविधान की उद्देशिका के इस शुरुआती हिस्से के साथ...

अमेरिका बनाम चीनः लोकतंत्र पर छिड़ा वैचारिक संग्राम

अमेरिकी राजनीति-शास्त्री फ्रांसिस फुकुयामा की मशहूर किताब ‘The End of History and the Last Man’ 29 साल पहले प्रकाशित हुई थी। उसके एक साल पहले यानि 1991 में सोवियत संघ का विखंडन हुआ था। उसके पहले 1989 में फुकुयामा...

कृपया हमारे बच्चों को ऐसी ‘देशभक्ति’ का पाठ मत पढ़ाएं!

प्रतिस्पर्धी अति-राष्ट्रवाद और प्रदर्शनकारी देशभक्ति के इस युग में, किसी न किसी प्रकार का "देशभक्त" होने से बच पाना बहुत मुश्किल है। फिर भी, एक शिक्षक और सतत घुमक्कड़ के रूप में, मैं अपने छात्रों से किसी भी देवता-विशेष...

बाजारवादी समाजवाद के बाद साझा समृद्धि: अब कैसे दिखेगा चीन?

चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की अगले महीने (8-11 नवंबर) एक विशेष बैठक होगी। खबरों के मुताबिक उसमें ‘इतिहास पर संकल्प-पत्र (resolution)’ को मंजूरी देगी। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि पार्टी के इतिहास में इस संकल्प-पत्र का वही...

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ऐसा क्यों? बढ़ती मुश्किलों के बावजूद मोदी पर ही दांव! 

आम चुनाव के लिए मतदान शुरू होने से ठीक पहले संभवतः एकमात्र ऐसा जनमत सर्वेक्षण सामने आया है, जिसमें...