Wednesday, April 24, 2024

हिरासत में मौत का मामला:आरोपी इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी न होने पर हाईकोर्ट ने की सीबीआई की खिंचाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर के एक 24 वर्षीय व्यक्ति की कथित हिरासत में मौत की सही जांच करने में विफल रहने पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी द्वारा दायर किया गया हलफनामा पूरी तरह से असंतोषजनक है, क्योंकि इससे संकेत मिलता है कि आरोपी व्यक्तियों, जो पुलिसकर्मी हैं, को गिरफ्तार करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया था। यूपी पुलिस पर हिरासत में मौतों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इसी बीच कासगंज के अल्ताफ की मौत ने पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है।

एक आंकड़े के मुताबिक बीते 20 सालों में देश में 1888 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई है। लेकिन सिर्फ 26 पुलिस वाले ही इसके दोषी साबित हुए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि देश भर में पिछले 20 सालों हिरासत में मौत मामले में सिर्फ 893 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं। जिनमें से 358 के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए गए। लेकिन सिर्फ 26 पुलिसकर्मी ही दोषी साबित हुए हैं।

जौनपुर जिले के अजय कुमार यादव द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई द्वारा किया गया यह दावा कि प्रयास किए जा रहे हैं, सुनवाई की अंतिम तिथि को 27 अक्टूबर, 2021 के आदेश में दर्ज किए गए रुख के मद्देनजर महज एक दिखावा प्रतीत होता है कि सीबीआई जांच पूरी होने के बाद ही आरोपियों को गिरफ्तार करती है।

अपने हलफनामे में, सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों, संदिग्धों और आरोपी व्यक्तियों का विवरण दिया और यह भी कहा कि गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) के लिए उनके ज्ञात पतों पर छापे/तलाशी कर, उनके सीडीआर/आईपीडीआर की जांच करके और उनके वर्तमान स्थानों का पता लगाने के लिए सूत्रों को तैनात करने जैसे कई प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कहा गया कि स्थानीय पुलिस द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जौनपुर की अदालत से 6 सितंबर, 2021 को गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है। हालांकि, अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों को दो महीने से अधिक समय के बाद भी गिरफ्तार नहीं किया गया है।

अदालत ने सीबीआई को मामले की ठीक से जांच करने और बिना किसी देरी के गिरफ्तारी वारंट को निष्पादित करने और धारा 82 और 83 के प्रावधानों सहित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में प्रदान की गई सभी परिणामी कार्रवाई करने का एक और मौका दिया है। सीआरपीसी की धारा 82 और 83 के तहत आरोपियों को भगोड़ा घोषित किया जाता है और उनकी संपत्तियां कुर्क की जाती हैं। अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 29 नवंबर को सीबीआई से हलफनामा भी मांगा है।

इस बीच आधिकारिक रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि बीते बीस वर्षों में देश में हिरासत के मौत के 1,888 मामले सामने आए हैं। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और क्राइम इन इंडिया (सीआईआई) की 2001-2020 की रिपोर्ट्स से तैयार किया गया डेटा बताता है कि कुल 1,888 में से 893 में पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किए गए और 358 पुलिस वालों के खिलाफ आरोपपत्र दायर हुए। हालांकि  महज 26 पुलिसकर्मियों को दोषी साबित किया जा सका।

इन निराशाजनक आंकड़ों का महत्व बीते दिनों उत्तर प्रदेश (यूपी) के कासगंज में एक हिंदू लड़की की गुमशुदगी के मामले में हिरासत में लिए गए 22 वर्षीय अल्ताफ की थाने में मौत की घटना के आलोक में समझा जा सकता है। इस मामले में कासगंज के कोतवाली थाने के पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है। पुलिस का दावा है कि अल्ताफ ने शौचालय के दो फीट के करीब ऊंचे नल के पाइप से अपने जैकेट की डोरी को बांधकर आत्महत्या की है। अल्ताफ के परिवार सहित काफी लोगों द्वारा पुलिस के दावे पर सवालिया निशान खड़े के गए हैं। उधर अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में विभागीय जांच और मजिस्टेरियल जांच साथ-साथ चल रही है।

साल 2017 से एनसीआरबी हिरासत में मौत के मामलों में गिरफ्तार पुलिसकर्मियों पर डेटा जारी कर रहा है। पिछले चार सालों में हिरासत में हुई मौतों के सिलसिले में 96 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि बीते कुछ सालों का यह डेटा उपलब्ध नहीं है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के आधार पर संकलित अपने रिकॉर्ड में एनसीआरबी ने ‘पुलिस हिरासत/लॉकअप में मौत’ को दो श्रेणियों में बांटा है- रिमांड पर नहीं लिए गए व्यक्ति और रिमांड में लिए गए व्यक्ति। पहली श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जिन्हें गिरफ्तार किया गया है लेकिन उन्हें अदालत में पेश नहीं किया गया, और दूसरी श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो पुलिस/न्यायिक रिमांड में हैं।

आंकड़ों से पता चलता है कि 2001 के बाद से ‘रिमांड पर नहीं लिए गए व्यक्तियों’ की श्रेणी में 1,185 हिरासत में मौतें हुईं और ‘रिमांड में लिए गए लोगों’ की श्रेणी में 703 मौतें दर्ज की गईं। पिछले दो दशकों के दौरान हिरासत में हुई मौतों के संबंध में पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज 893 मामलों में से 518 उन लोगों से संबंधित हैं जो रिमांड पर नहीं थे।

बीते दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि पुलिस को पूछताछ के दौरान मारपीट करने का अधिकार कोई कानून नहीं देता है। हाईकोर्ट दो लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्हें कथित तौर पर अवैध रूप से हिरासत में लिया गया और दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों ने इस दौरान उन्हें बेरहमी से पीटा था।

एनसीआरबी की डेटा के मुताबिक हिरासत में हुई मौत मामले में 2006 में सबसे ज्यादा 11 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया था। इसमें से यूपी पुलिस के सात और मध्य प्रदेश पुलिस के चार जवान शामिल थे। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार बीते साल 2020 में 76 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी। पिछले साल गुजरात में सबसे ज्यादा 15 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल से भी ऐसे मामले सामने आए हैं। लेकिन इसके लिए अब तक कोई पुलिसकर्मी दोषी नहीं करार दिया गया है।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले यूपी के कासगंज में अल्ताफ नाम के लड़के की मौत पुलिस हिरासत में हो गई थी। उसे एक लड़की को भगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का कहना था कि अल्ताफ ने बाथरूम के नल से लटकर आत्महत्या कर ली है। लेकिन पुलिस के थ्योरी पर लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं। नल से लटकर आत्महत्या करने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके साथ ही पुलिस हिरात में होने वाले मौतों को लेकर भी बहस छिड़ गई है।

हिरासत में मौत के मामलों में यूपी नंबर 1, पिछले 3 साल में 1318 लोगों की हुई मौत

लोकसभा में 27 जुलाई 2021 को सवाल पूछा गया कि देश में कितने लोगों की मौत पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में हुई है। इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्‍ट्रीय मानवाध‍िकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है। एनएचआरसी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 और न्‍यायि हिरासत में 452 लोगों की मौत हुई। इसी तरह 2019-20 में पुलिस हिरासत में 3 और न्‍यायिक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुई। वहीं, 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 और न्‍यायिक हिरासत में 443 लोगों की मौत हुई है।

पिछले तीन साल में हुई इन मौतों को जोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कुल 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है। उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% है। देश में पिछले तीन साल में पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई है।

 इसी तरह 3 अगस्‍त, 21 को लोकसभा में पुलिस हिरासत में प्रताड़ना से जुड़ा एक सवाल पूछा गया। इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्‍य मंत्री नित्यानंद राय ने एनएचआरसी के आंकड़े पेश किए। इसके मुताबिक, देश में 2018-19 में पुलिस हिरासत में प्रताड़ना के 542 मामले दर्ज किए गए। 2019-20 में 411 मामले दर्ज हुए और 2020-21 में 236 मामले दर्ज किए गए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...

Related Articles

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...