Thursday, March 28, 2024

दिल्ली दंगेः फेसबुक को सुप्रीम कोर्ट से राहत, अगली सुनवाई तक कार्रवाई पर रोक

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार 23 सितंबर को फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष अजीत मोहन की याचिका पर नोटिस जारी किया है। इसमें दिल्ली विधानसभा की ‘शांति और सद्भाव समिति’ द्वारा जारी किए गए समन को चुनौती दी गई थी, जो दिल्ली के दंगों में फेसबुक की कथित भूमिका की जांच कर रही है। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे (मोहन के लिए), मुकुल रोहतगी (फेसबुक के लिए) और वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एएम सिंघवी (पैनल के अध्यक्ष राघव चड्ढा के लिए) की सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया और कमेटी से जवाब मांगा।

पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली विधानसभा की पीस एंड हार्मनी कमेटी को नोटिस जारी कर कहा है कि वो अगली सुनवाई तक अपना काउंटर एफिडेविट जमा कराएं। साथ ही पीठ ने ये भी आदेश दिए हैं कि अगली सुनवाई यानी 15 अक्टूबर तक फेसबुक या फेसबुक के एमडी के खिलाफ किसी भी तरह का एक्शन नहीं लिया जाए। साथ ही ये कमेटी 15 अक्टूबर तक कोई भी बैठक नहीं बुला सकती है।

पीठ ने सिंघवी के इस बयान को भी दर्ज किया कि आज के लिए निर्धारित बैठक को सुनवाई के मद्देनज़र टाल दिया गया है और इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, जब तक कि मामले का आखिरकार निस्तारण नहीं हो जाता। कोर्ट 15 अक्टूबर को इस मामले पर विचार करेगा।

साल्वे ने फेसबुक वीपी के लिए अपील करते हुए कहा कि एक निजी नागरिक को दंड के खतरे के साथ विधानसभा पैनल के सामने पेश होने के लिए मजबूर करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत बोलने के अधिकार को भी शामिल किया है।

फेसबुक इंक की ओर से मुकुल रोहतगी ने दो टूक कहा कि वो समन पूरी तरह असंवैधानिक है। अजीत मोहन हमारे अधिकारी हैं। हम कतई नहीं चाहते कि इस पचड़े में वो पड़ें। केन्द्र सरकार और सदन को हम जवाब दे चुके हैं। साल्वे ने कहा कि अजीत मोहन कमेटी के समक्ष पेश नहीं होते तो कोई कार्रवाई न हो, अदालत ये आदेश जारी करे। मुकुल रोहतगी ने कहा कि विधायी समिति को न्याय निर्णय की कोई शक्ति नहीं है। विधायिका न्याय की अदालत नहीं होती। कमेटी के अध्यक्ष का कहना है कि फेसबुक दोषी है। उनका कहना है कि समिति ने पहले ही कहा है कि फेसबुक का दिल्ली दंगों में हाथ है। वह यह कहने वाले कौन होते हैं।

सिंघवी ने पैनल के अध्यक्ष की ओर से पेश होकर कहा कि मोहन को गवाह के रूप में बुलाया गया है और कोई कठोर कार्रवाई का इरादा नहीं है। सिंघवी ने कहा कि उनके खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा। फेसबुक को आरोपी नहीं माना गया है। सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए फेसबुक का दुरुपयोग किए जाने की खबरें हैं और पैनल ने फेसबुक द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष मिलीभगत का आरोप नहीं लगाया।

उन्होंने कहा कि पैनल समस्या को ठीक करने के तरीकों पर चर्चा करना चाहता है। सिंघवी ने यह भी कहा कि विधानसभा में जांच करने की शक्ति है। शक्ति ‘पुलिस’ या ‘कानून और व्यवस्था’ की प्रविष्टियों से संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा कि पांच या छह अन्य विधायी प्रविष्टियां हैं जो विधानसभा को सशक्त बनाती हैं।

दिल्ली दंगों में फेसबुक की भूमिका को लेकर दिल्ली विधानसभा की पीस एंड हार्मनी कमेटी ने कंपनी को समन किया था और एमडी को उपस्थित होकर अपना बयान दर्ज कराने को कहा था, लेकिन फेसबुक ने कमेटी के सामने हाजिर होने से साफ इनकार कर दिया था, जिसके बाद एक बार फिर दिल्ली विधानसभा की कमेटी ने चेतावनी देते हुए फेसबुक के एमडी को समन जारी किया। इसके बाद उच्चतम न्यायालय में पीस एंड हार्मनी कमेटी के खिलाफ फेसबुक इंडिया के एमडी अजीत मोहन ने याचिका दायर की है। फेसबुक इंडिया के वीपी और एमडी अजीत मोहन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि जो नोटिस दिल्ली सरकार की कमेटी की तरफ से भेजा गया है उसे तुरंत खारिज कर दिया जाए।

फेसबुक पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। पिछले दिनों वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक ने पक्षपात करते हुए बीजेपी नेताओं के भड़काऊ और नफरती भाषणों के खिलाफ जानबूझकर एक्शन नहीं लिया। इसके अलावा फेसबुक के कुछ बड़े अधिकारियों का चुनाव में बीजेपी के लिए काम करने की बात भी सामने आई थी।

दरअसल दिल्ली में इस साल फरवरी के महीने में दो दिनों तक हिंसा हुई। कई दुकानों और मकानों को राख कर दिया गया और लोगों की खुलेआम हत्याएं हुईं। इन दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसके बाद दिल्ली विधानसभा की एक पीस एंड हार्मनी कमेटी बनाई गई, जो इन दंगों से जुड़ी सारी बातों पर नजर रखेगी और बाकी चीजें भी सुनिश्चित करेगी। इस कमेटी के अध्यक्ष आम आदमी पार्टी के विधायक राघव चड्ढा हैं।

कमेटी ने कई बैठकों के बाद पाया कि दिल्ली दंगों में फेसबुक का भी अहम रोल दिख रहा है, इसीलिए फेसबुक को पेश होकर अपनी सफाई देने के लिए नोटिस जारी किया गया था। दिल्ली विधानसभा की इस कमेटी के समन पर फेसबुक ने जवाब देते हुए कहा कि वो इसी मामले को लेकर पहले ही पार्लियामेंट्री कमेटी के सामने पेश हो चुके हैं। इसीलिए वो अब पेश नहीं हो सकते हैं। साथ ही फेसबुक ने कमेटी को कहा कि उसे ये नोटिस तुरंत वापस लेना चाहिए।

फेसबुक के जवाब पर पीस एंड हार्मनी कमेटी ने एक बार फिर बैठक बुलाई और कहा कि फेसबुक ने इस कमेटी का अपमान किया है। कमेटी के सदस्यों ने कहा कि चोर इस केस में खुद तय कर रहा है कि जज कौन होगा। कमेटी के चेयरमैन राघव चड्ढा ने कहा था कि फेसबुक को जिसने भी कानूनी सलाह दी है, वो काफी गलत दी है, क्योंकि जो मामला पार्लियामेंट्री कमेटी के सामने है, ऐसा नहीं है कि उस पर दिल्ली विधानसभा की कमेटी चर्चा नहीं कर सकती।

दूसरी बात ये है कि जो मामला संसदीय कमेटी में चल रहा है, उसमें दिल्ली दंगों का कोई जिक्र नहीं है। साथ ही राघव चड्ढा ने कहा कि ये कमेटी चाहे तो फेसबुक को पेश होने पर मजबूर कर सकती है। कमेटी के पास इतनी शक्ति है कि वो फेसबुक के खिलाफ वारंट भी जारी करवा सकती है। उन्होंने कहा था कि अब एक चिट्ठी भेजकर फेसबुक को आखिरी मौका दिया जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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