Thursday, April 18, 2024

भाभा के अलावा मात्र 4 साल में देश के 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत

क्या आप जानते हैं कि विमान दुर्घटना में देश के चोटी के परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की मौत के अलावा देश में उन 11 परमाणु वैज्ञानिकों की अप्राकृतिक मौत के मामले भी सामने आये थे जिनकी आज तक मीडिया में ठीक से चर्चा तक नहीं हुयी। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा मुहैया कराए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में 2009 से 2013 के बीच 11 परमाणु वैज्ञानिकों की अप्राकृतिक मौत के मामले सामने आए। विभाग की प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों में कार्यरत आठ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की विस्फोट में या समुद्र में डूबने से या फांसी पर लटकने से मौत हो गई। हरियाणा के रहने वाले राहुल सेहरावत के 21 सितंबर के आरटीआई आवेदन के जवाब में परमाणु ऊर्जा विभाग ने यह जानकारी दी है ।

2010 में बार्क की केमिस्ट्रिी लैब में ही दो अनुसंधानकर्ताओं की रहस्यमय तरीके से आग लगने से मौत हो गई। एफ ग्रेड के एक वैज्ञानिक की उनके निवास मुंबई में ही हत्या कर दी गई। ऐसी आशंका व्यक्त की गई की गला दबाकर उनकी हत्या की गई, लेकिन आज तक हत्या करने वाले का कोई पता नहीं चल पाया है।

मध्यप्रदेश इंदौर के राजा रमन्ना प्रगति प्रौद्योगिकी केंद्र (कैट) के डी ग्रेड के एक वैज्ञानिक ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। पुलिस ने इस मामले को आत्महत्या का बताकर बंद कर दिया। 2013 में एक और वैज्ञानिक, जो तमिलनाडु कलपक्कम में थे, ने समुद्र में कूदकर अपने जीवन का अंत कर लिया। इस घटना में अभी जांच जारी है जबकि मुंबई में वैज्ञानिक ने फांसी लगा ली। जिसे पुलिस ने निजी कारणों से यह कदम उठाना बताया। कर्नाटक के कारवार में स्थित काली नदी में एक वैज्ञानिक ने कूदकर अपनी जिंदगी समाप्त कर दी। इस मामले के पीछे भी पुलिस ने निजी कारणों को जिम्मेदार बताया।

कर्नाटक के कैगा एटॉमिक पावर स्टेशन में काम करने वाले 47 साल के लोकनाथन महालिंगम की पहचान बेहद प्रतिभावान परमाणु वैज्ञानिकों में होती थी। जून 2008 में वो एक दिन अपने घर से मॉर्निंग वॉक के लिए गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे। पांच दिन बाद उनका शव बरामद हुआ। डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट जारी होने के पहले ही आनन-फानन में उनका अंतिम संस्कार करवा दिया गया। बताते हैं कि लोकनाथन देश की सबसे संवेदनशील परमाणु सूचनाएं रखते थे। शक जताया गया कि जंगलों में वॉक के दौरान उन्हें तेंदुआ खा गया या उन्होंने खुद ही आत्महत्या कर ली या किसी ने अपहरण करके उनकी हत्या कर दी। पुलिस की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। लेकिन माना जाता है कि उनकी हत्या की गई थी।

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) में इंजीनियर एम पद्मनाभन अय्यर का शव 23 फरवरी 2010 को मुंबई के ब्रीच कैंडी में उनके घर में बरामद किया गया था। 48 साल के अय्यर बिल्कुल स्वस्थ और खुशमिजाज हुआ करते थे। पुलिस की जांच में घर में किसी बाहरी का सुराग या फिंगरप्रिंट्स वगैरह नहीं मिली थीं। फोरेंसिक जांच में उनकी मौत का कारण ‘अज्ञात’ बताया गया। जब काफी समय तक इस मौत का कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो 2012 में पुलिस ने मामले की फाइल क्लोज कर दी। हालांकि फोरेंसिक रिपोर्ट आज भी चीख-चीख कर बताती है कि पद्मनाभन अय्यर की मौत सामान्य नहीं थी। जांच में उनके समलैंगिक होने की बात सामने आई थी, लेकिन उससे भी मौत का कोई सुराग नहीं मिल सका।

केके जोश और अभीश शिवम, भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी आईएनएस  अरिहंत के इंजीनियर थे और बेहद संवेदनशील प्रोजेक्ट्स से जुड़े हुए थे। अक्टूबर 2013 में विशाखापत्तनम नौसैनिक यार्ड के पास पेंडुरुती में उनका शव रेलवे लाइन पर पड़ा मिला था। मौके पर मौजूद लोग इस बात से हैरान थे कि वहां से कोई ट्रेन भी नहीं गुजरी थी। शवों को देखकर भी लग रहा था कि वो ट्रेन से नहीं कटे हैं। केके जोश की उम्र सिर्फ 34 साल और अभीश शिवम 33 साल के थे। रेलवे पुलिस की जांच में हत्या का कोई सुराग हाथ नहीं लगा। हैरानी की बात है कि देश के इतने महत्वपूर्ण काम में जुटे इन दो नौजवान वैज्ञानिकों की मौत की जांच कभी किसी बड़ी एजेंसी से नहीं कराई गई।

उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम दोनों युवा वैज्ञानिक थे और 29 दिसंबर, 2009 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर यानी बार्क के रेडिएशन एंड फोटोकेमिस्ट्री लैब में काम कर रहे थे। दोपहर बाद रहस्यमय तरीके से लगी एक आग में झुलसकर दोनों की मौत हो गई। फोरेंसिक जांच रिपोर्ट के मुताबिक लैब में ऐसा कुछ नहीं था, जिसमें आग लगने का डर हो। रिपोर्ट में साफ इशारा किया गया था कि मौत के पीछे कोई साजिश है। उमंग मुंबई के रहने वाले थे, जबकि पार्थ बंगाल के। बार्क के तत्कालीन डायरेक्टर श्रीकुमार बनर्जी ने फोन करके तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों को घटना की जानकारी दी। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से तब की सरकार ने इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई।

शक की ढेरों वजहें थीं। इस लैब में कुल 5 वैज्ञानिक काम करते थे, उस दिन बाकी तीन छुट्टी पर थे। उमंग और पार्थ परमाणु रिएक्टरों से जुड़े एक बेहद संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। लैब में आग बुझाने में फायर ब्रिगेड को पूरे 45 मिनट लगे थे, क्योंकि आग ऐसी थी जो बार-बार किसी चीज से भड़क रही थी। जबकि किसी सामान्य पदार्थ की आग पानी के संपर्क में आते ही बुझ जाती है। बाद में जब दोनों वैज्ञानिकों के शव निकाले गए तो वो पूरी तरह राख बन चुके थे। यह रहस्य बना रहा कि आग किस चीज की थी जिसकी गर्मी इतनी थी कि महज थोड़ी देर में 2 शरीर पूरी तरह खत्म हो गए।

मोहम्मद मुस्तफा कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (IGCAR) के साइंटिफिक असिस्टेंट थे। इनका शव 2012 में उनके सरकारी घर से बरामद किया गया था। सिर्फ 24 साल का तमिलनाडु के कांचीपुरम का रहने वाला यह लड़का तेज़ दिमाग का था। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक मुस्तफा की हथेली की नस कई बार धारदार हथियार से काटी गई थी। एक डेथ नोट भी मिला, लेकिन उसमें भी खुदकुशी की कोई वजह नहीं लिखी थी। पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला और जांच बंद कर दी गई।

27 साल की तीतस पाल साइंटिस्ट थी और बार्क  में काम करती थी। ट्रांबे के कैंपस में चौदहवीं मंजिल पर अपने फ्लैट के वेंटिलेटर पर लटकती हुई पाई गई थी। पहली नजर में ये खुदकुशी का मामला था। उस दिन 3 मार्च, 2010 की तारीख थी। तीतस पाल के पिता ने पुलिस को बताया कि उनकी बेटी कोलकाता में अपने घर से 3 मार्च को ही मुंबई पहुंची थी और सुबह 10 बजे उसने ऑफिस ज्वाइन किया था। यह कैसे संभव है कि घर से हंसी-खुशी लौटी उनकी बेटी मुंबई पहुंचते ही शाम तक खुदकुशी कर ले।

28 साल तक भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम कर चुकीं उमा राव ने 30 अप्रैल 2011 को कथित तौर पर खुदकुशी कर ली। पुलिस जांच में बताया गया कि वो बीमार थीं और उसके कारण डिप्रेशन में चल रही थीं। मुंबई को गोवंडी में 10वें फ्लोर पर उनके फ्लैट में पड़े शव को सबसे पहले नौकरानी ने देखा। उसने पास में ही रहने वाले उनके बेटे को फोन करके बताया। पता चला कि उमा राव ने नींद की गोलियों का ओवरडोज़ लिया था। सुसाइड नोट में उन्होंने डिप्रेशन को ही कारण बताया था। जबकि परिवार, पड़ोसियों और साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना था कि उमा राव में डिप्रेशन के कोई लक्षण हो ही नहीं सकते। वो इतनी उम्र में भी नौजवानों की तरह काम करतीं थीं।

कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की सीनियर रिसर्चर डलिया नायक ने अगस्त 2009 में रहस्यमय हालात में खुदकुशी कर ली। पता चला कि उन्होंने मर्क्यूरिक क्लोराइड पी लिया था। उनकी उम्र सिर्फ 35 साल थी। डलिया की साथी वैज्ञानिक इस घटना से हैरान थीं। उन्हें भरोसा नहीं था कि डलिया के पास खुदकुशी का कोई कारण था। महिला कर्मचारियों ने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की थी। हालांकि इस केस में भी सरकार की उदासनीता के कारण कोई नतीजा नहीं निकला।

सिर्फ 30 साल के तिरुमला प्रसाद इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में साइंटिस्ट थे। अप्रैल 2010 में उन्होंने खुदकुशी कर ली। पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें अपने सीनियर के हाथों मानसिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने की बात लिखी थी। सीनियर के खिलाफ केस भी हुआ, लेकिन कुछ दिन बाद मामला रफा-दफा हो गया। तिरुमला प्रसाद एक महत्वपूर्ण न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यह सवाल उठा कि प्रताड़ना आखिर क्यों और किस तरह की थी? लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

2009 में कैगा न्यूक्लियर प्लांट में पीने के पानी के कूलर में ट्रिटियम नाम का रेडियोएक्टिव पदार्थ पाया गया था। जांच में यह बात सामने आई कि किसी अंदरूनी आदमी ने ही इसे मिलाया था ताकि यहां से पानी पीने वालों की मौत हो सके। अगर वो कामयाब हो गया होता तो रिएक्टर के कई कर्मचारी और वैज्ञानिक मौत की नींद सो चुके होते। लेकिन भारतीय परमाणु कार्यक्रम पर हो रहे तमाम हमलों की तरह यह मामला भी अनसुलझा ही रहा।

इन मामलों में फॉरेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े इन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की असमय मौत के सभी मामलों में फिंगर प्रिंट गायब हो चुके हैं। ऐसे अन्य सुराग भी नहीं मिले हैं जिसके जरिए पुलिस अपराधियों तक पहुंच पाए। पुलिस इन मामलों को अस्पष्ट करात देती रही है या फिर आत्महत्या बता देती है।

इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके इन मौतों के विषय में एक विशेष जांच दल गठित करने की अपील की गई थी ताकि यह पता चल सके कि देश के प्रमुख परमाणु संस्थान अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए मानक अपना रहे हैं या नहीं।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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